प्रसारण और प्रतिबन्ध

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akashwaniबी एन गोयल

कुछ मित्रों ने मेरी इस लेखमाला को जैसा कहा है वास्तव में यह कोई क्रमबद्ध इतिहास नहीं है वरनसमय समय पर होने वालीमेरीनिकट से देखी अथवा मेरी अपनी भुक्तमहत्त्वपूर्ण घटनाओं का वर्णन मात्र है. कुछ समय से रेडियोनामा में फिल्म संगीत के प्रसारण पर चर्चा चल रही है. रेडियोनामा भो आज कल दो हैं एक ब्लाग और दूसरा फेस बुक पर. हाल ही में लोकेन्द्र शर्मा जीकीटिप्पणी पढने को मिली. उन की इस कार्यक्रम में गहरी पैठ रही है और वे विविध भारती में इस से जुड़े रहे हैं. मेरा जुडाव काफी समय तक आकाशवाणी में हिंदी फिल्म संगीत की स्क्रीनिंग से रहा है. इस में लोकेन्द्र शर्मा जी का भी सहयोग मुझे मिला है . अतः उस की चर्चा करना ठीक रहेगा.

यदि आप को 30 – 40 वर्ष पहले रेडियो से फ़िल्म संगीत सुनने की कुछ याद हों तो आप को झूमरी तलैया नाम अवश्य ही याद होगा. भारत के किसी भी स्थान-  दूर दराज अथवा समीप -के किसी भी रेडियो केन्द्र से फरमाईशी फिल्म संगीतका कार्यक्रम चल रहा हो तो झुमरीतलैय्या के दस बीस नाम उस फरमाईश में अवश्य होंगे. रेडियो में आने से पहले हम भी सोचते थे की ये स्थान शायद कोई काल्पनिक है लेकिन रेडियो में आने के बाद जब फरमाईश के पत्रों का अम्बार स्वयं देखा तो यह वास्तव मेंआश्चर्यजनक था. मोहरों से छपे विभिन्न रेडियो केन्द्रों के नाम, फरमाईश कर्ताओं के नामों की मोहरे,  ताज़ा तरीन फिल्मों की फरमाईश, क्या कुछ नहीं होता था इन में. आल इंडिया की उर्दू सर्विस में तो हमारा एक डाकखाने की तरह का कबूतर खाना(Pigeon hole) बना हुआ था जिस में ये चिठ्ठियाँ बाकायदे उसी तरह से छटती थी और पढ़ी जाती थी. आज ये सब बदल सा गया है अब फिल्म संगीत विभिन्न रूपों, वर्गों और विधाओं में न केवल रेडियो से वरन इन्टरनेट, मोबाइल अथवा नए नए उपकरणों से उपलब्ध है

क्या इन फरमाईश कर्ताओं अथवा आज के प्रोस्ताओं को मालूम है की एक समय ये फिल्म संगीत  जनता के लिए पूर्णतः प्रतिबंधित था.जी हाँ -1952 में डॉ. बीवीकेसकर नेस्वतंत्र भारत के सूचना और प्रसारण मंत्री बनने के बाद आकाशवाणी के कार्यक्रमों कोअपनी एक निश्चित दिशा देनेका प्रयास किया. उस में था फिल्म संगीत के प्रति उन का दुराग्रह. डॉ. केसकर भारतीय शास्त्रीय संगीत के सुविज्ञथे और ध्रुपद धमार के गायक थे. उन्होंने आकाशवाणी केमाध्यम से भारतीय शास्त्रीय संगीत को जन जन तक ले जाने का व्रत लिया और वे इस में काफी सीमा तक सफल भी हुए. लेकिनफ़िल्मी संगीत के प्रति उन का दृष्टिकोण बहुत ही खराबअथवा उपेक्षा का था. उन की दृष्टिमेंयह सस्ता, बाजारू, भौंडाऔर भारतीय संस्कृति के प्रतिकूल था. अतः इस के प्रसारण पर उन्होंने पूरा प्रतिबन्ध लगा दिया. उनका बल केवल शास्त्रीय संगीत, लोक संगीत और सुगम संगीत (आकाशवाणी स्टूडियो में रिकार्ड किये गए गीत) पर था.

लेकिन यही समय था जब कि जनता में फिल्म संगीत के प्रति रूचि बढ़ रही थी. इस का सीधा लाभ रेडियो सीलोनको हुआ. रेडियोसीलोन ने 1950 में हिंदी में प्रसारण प्रारम्भकिया. 1952 से‘बिनाका गीतमाला’कार्यक्रम शुरू हुआ और इस नेरेडियो सीलोन कोअभूतपूर्व प्रसिद्धि दिलाई. यदिपुरानी पीढ़ीके लोग ज़रा अपनी यादों को टटोले और नयी पीढ़ीके युवा तनिककल्पना करें –तो आज भी हर बुधवार की शाम, 8.00 से 9.00 का समय, मोहल्ले के चंद घरों में रेडियो सेट, हवा में लहराती, चहकती,चमकती और खनकती अमीन सयानी की आवाज़– ‘भाइयोंबहनों…..6ठी/सातवीं…पायदानपरआते गीत …’ सुनायी देंगे.  आकाशवाणी पर फिल्म संगीत पर प्रतिबन्ध लग गया और इस का पूरा लाभ रेडियो सीलोनको मिला. समय के साथ उन्होंने अपने प्रसारण को और अधिक व्यापक और समयानुकूल बनाया. श्रोताओं की पसंद पर आधारित कार्यक्रम बनाये और उन के आकर्षक शीर्षक दिए. जैसे प्रातः 7.00 से 7.15फ़िल्मी गीतों की धुनें. यहीं से वान शिप्लेऔरइनोक डेनिअल के नाम प्रसिद्द हो गए. 7.15 से 7.30‘एक ही फिल्म के गीत’ शीर्षक से गीत बजते  थे. सब से अधिक प्रसिद्ध स्लॉट था 7.30 से 8.00 तक‘पुरानी फिल्मों के गीत’ का. इस में अंतिम गीत होता था– कुंदन लाल सहगल कागाया एक गीत.

मुझे यह स्लॉट इस लिए भी याद है की हम सुबह घर से अपने स्कूल के लिए निकलते और रास्ते में आतीहलवाई की दुकानों के रेडियो सेबजते गानों की आवाज़ सुनतेरहते और के एल सहगल की आवाज़ तक हम स्कूल पहुँच जाते. 8.00 से 8.45 ‘आप की फरमाइश के गीत’के कारण इसे भारत में अत्यधिक लोकप्रियता मिली. रेडियो सीलोन के ये सभी कार्यक्रम मुंबई में तैयार होते और कोलोम्बो से प्रसारित किये जाते थे. इस के पीछे काम कर रहा था एक भारतीय नवयुवक विजय शंकर दुबे का मस्तिषक. रेडियो सीलोन नेदुबे को दो वर्ष के कॉन्ट्रैक्ट पर रखा और इस व्यक्ति को काम की पूरी छूट दी गयीऔर इस ने भी पूरी निष्ठा से काम किया. इन की सलाह से और हिंदी उद्घोषकों की नियुक्ति की गयी जिन में गोपाल शर्मा प्रमुख थे.

उनदिनोंरेडियो सीलोन की लोकप्रियता के बारे में एक चुटकुला प्रचलित हो गया था – कहते हैं. एक ग्रामीण व्यक्ति शहर में एक रेडियो सेट खरीदने गया. उस समय रेडियो के दोब्रांडनाम ही प्रसिद्ध थे – मर्फी और  फिलिप्स. दूकानदार ने पूछा ‘इन में से कौन सा सेट लेना चाहतें है – ग्रामीण ने कहा की उसे तो सिर्फ रेडियो सीलोन चाहिए’. यह तो एक चुटकुला था लेकिन वास्तविकता भी यही थी. .

श्री लंका (उस समय के सीलोन) ने स्वतंत्रता प्राप्ति के साथ ही रेडियो से विज्ञापन सेवा शुरू की औरमुंबई में रेडियो विज्ञापन का एक ऑफिस खोल दिया. व्यंग्य में लोगोंनेसूचनामंत्री श्री केसकर को रेडियो सीलोन का जनक (Father of Radio Ceylon) कहना शुरू कर दिया. शास्त्रीय संगीत के व्यक्ति होते हुए भी वे यह सोच नहीं पाए की फिल्म संगीत का आधार शास्त्रीय और लोक संगीत ही है.

भारत सरकार कोराजस्व की बढती हुई हानि देखकर अपनीगलतीमहसूसहुईहुयी. 2 अक्तूबर 1957 से मनोरंजन और हलके फुल्के ढंग से शिक्षा के कार्यक्रमोंको एक गुलदस्ते केरूप में विविध भारती का पंचरंगी कार्यक्रम’नाम से एक नयी चैनल शुरू की गयी. इस का उत्तरदायित्व पंडित नरेंद्र शर्मा को दिया गया.

1962 में केसकर युग समाप्त हुआ और नए सूचना प्रसारण मंत्री के रूप में सत्यनारायण सिन्हा आये. साथहीधीरे धीरे फिल्मसंगीतकीमात्राभीदी जाने लगी. अंततःआकाशवाणीकेसभीकेन्द्रोंसेप्राइमरी चैनल पर – आपकी फरमाइश, आपकीपसंद, फौजीभाइयोंकेलिए, आदिनामों से फिल्म संगीत का प्रसारण बढ़ता चला गया. इसयुग की प्रसारण के इतिहास की तीन प्रक्रियाएं देखी जा सकती हैं- विविध भारती चैनल की शुरुआत, फ़िल्मी संगीत का पुनरागमन औरसुगम संगीत और प्रसार गीतों का प्रारम्भ

यद्यपि  डॉ. केसकर ने आकाशवाणी के माध्यम से शास्त्रीय संगीत के प्रचार प्रसार के लिए अनेक सराहनीय कदम उठाये – वह एक अलग बात है. यहाँडॉ. केसकरके एक और योगदान की चर्चा करना भी उचित होगा. यहऐसादौर थाजब समाज मेंसाहित्‍य, कला, लेखन और संगीत का वातावरण थाऔरउन्होंनेसंगीत, साहित्य, कला इत्यादिकेउस समय के शीर्षस्थविद्वानों और कलाकारों को आकाशवाणी से जोड़ा.

आवश्यक – आज कल रेडियो और विविध भारती के बारे में बहुत सीवेब साईट बन गयी हैं. एक बात जो सबसे अधिक खटकती है वह यह कि हर साईट पर जहाँ विविध भारती की चर्चा है वहां आकाशवाणी महानिदेशक के रूप में स्व०  गिरिजा कुमार माथुर का नाम दिया हुआ है जो गलत है. उस समय महानिदेशक स्व० श्री जगदीश चन्द्र माथुर थे. ये ICS थे और 1955 से 1962 तक आकाशवाणी के महानिदेशक थे. एक प्रशासक होनेकेसाथ साथ ये प्रसिद्धसाहित्यकार भी थे. इन्होने रेडियो एकांकी की विधा को जन्म दिया और इनका एकांकी संग्रह ‘भोर का तारा’ बहुत प्रसिद्ध हुआ. गिरिजा कुमार माथुर हिंदी के कवि, नाटककार और समालोचक के रूप में जाने जाते हैं. तार सप्तक के कवि के तौर से उन्हें अधिक मान्यता मिली. ये 1977 में विदेश प्रसारण सेवा के निदेशक पद से रिटायर हुए.सभीसम्बंधित पाठक कृपया इसे ठीक कर पढ़ें.

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बी एन गोयल
लगभग 40 वर्ष भारत सरकार के विभिन्न पदों पर रक्षा मंत्रालय, सूचना प्रसारण मंत्रालय तथा विदेश मंत्रालय में कार्य कर चुके हैं। सन् 2001 में आकाशवाणी महानिदेशालय के कार्यक्रम निदेशक पद से सेवा निवृत्त हुए। भारत में और विदेश में विस्तृत यात्राएं की हैं। भारतीय दूतावास में शिक्षा और सांस्कृतिक सचिव के पद पर कार्य कर चुके हैं। शैक्षणिक तौर पर विभिन्न विश्व विद्यालयों से पांच विभिन्न विषयों में स्नातकोत्तर किए। प्राइवेट प्रकाशनों के अतिरिक्त भारत सरकार के प्रकाशन संस्थान, नेशनल बुक ट्रस्ट के लिए पुस्तकें लिखीं। पढ़ने की बहुत अधिक रूचि है और हर विषय पर पढ़ते हैं। अपने निजी पुस्तकालय में विभिन्न विषयों की पुस्तकें मिलेंगी। कला और संस्कृति पर स्वतंत्र लेख लिखने के साथ राजनीतिक, सामाजिक और ऐतिहासिक विषयों पर नियमित रूप से भारत और कनाडा के समाचार पत्रों में विश्लेषणात्मक टिप्पणियां लिखते रहे हैं।

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  1. सादर, आज पहली बार सूचना और प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार के कार्य-कलापों की जानकारी हम जनता के बीच प्राप्त हुआ | जय भारत जय भारती !!!

    • हार्दिक आभार – इस से पहले इस से संबंधित कुछ और लेख यहीं पर प्रकाशित हुए हैं – उनपर भी कृपया समय निकाल कर अपनी प्रतिक्रिया दें –

  2. दिल्ली आकाशवाणी पर एक कार्यक्रम आता था – लीजिये, फिर सुनिए. गुलशन मधुर और मधु मालती इसे प्रस्तुत करते थे. ये दोनों मेरे प्रिय उद्घोषक थे. फरमाइशी गीतों का ये मेरा सबसे प्रिय कार्यक्रम था. गुलशन जी की इतनी मधुर आवाज़ और मधु जी की खिलखिलाहट आज भी कानों में गूँजती है. कहाँ गया वो दौर, कहाँ गया संगीत.

    • लीजिये फिर सुनिए – इस के अंतर्गत कुछ कार्य क्रमों का पुनर्प्रसारण होता था. गुलशन मधुर जी इसी युग की बात है – वे भी बाद में वौइस् आफ अमेरिका चले गए थे. मधु मालती जी बीते युग – (त्रेता युग) से
      थी. उन का सबसे अधिक लोकप्रिय कार्यक्रम उन का पत्रोत्तर का था.
      कोई भी श्रोता उन के इस कार्य क्रम को छोड़ना नहीं चाहता था. आप की प्रति क्रिया के लिए आभारी हूँ.

  3. प्रशासन एवं प्रसारण से संबंधित जानकारियों को देते हुए पुरानी यादों को ताज़ा करने वाला रोचक एवं ज्ञानवर्धक आलेख है । साधुवाद !!

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