उल्टा चोर कोतवाल को डॉंटे…/ मा. गो. वैद्य

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‘भ्रष्टाचार विरोधी भारत’ (इंडिया अगेन्स्ट करप्शन) के अग्रणी नेता अरविंद केजरीवाल ने भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितीन गडकरी पर जो आरोप लगाए, वे किसी खोखले पटाखे के समान निरर्थक सिद्ध हुए. इस बारे में हो-हल्ला खूब हुआ था. इस कारण, कुछ भयंकर विस्फोट होगा ऐसा लोगों को लग रहा था. लेकिन वास्तव में विस्फोट हुआ ही नहीं. सादा पटाखा भी नहीं फूटा. कोई पटाखा जैसे ‘फुस्’ आवाज कर शांत हो जाता है, वही हाल केजरीवाल के पटाखे का हुआ.

१७ अक्टूबर को, सायंकाल, करीब आधा घंटा चली केजरीवाल की पत्रपरिषद मैंने अवधानपूर्वक देखी और सुनी. तुरंत ही मुझे पहले ‘टाईम्स ऑफ इंडिया’के प्रतिनिधि और बाद में ‘पीटीआय’ इस वृत्तसंस्था के प्रतिनिधि की ओर से, मेरी प्रतिक्रिया जान लेने के लिए, दूरध्वनि आए. मैंने उन्हें एक वाक्य में बताया कि, उन आरोपों में कोई दम नहीं. केजरीवाल के आरोप निरर्थक है.

पहला आरोप

केजरीवाल के जो मुख्य आरोप थे, उनमें का पहला यह कि, किसानों की जमीन गडकरी को दी गई. प्रश्‍न यह है कि, वह जमीन दी किसने? उत्तर है महाराष्ट्र सरकार ने. मतलब उस समय के सिंचाई मंत्री अजित पवार ने. फिर इसमें गडकरी का क्या दोष? प्रश्‍न अजित पवार से पूछा जाना चाहिए कि, उन्होंने वह जमीन गडकरी को क्यों दी? गडकरी ने मतलब उनकी संस्था ने मांगने के बाद, केवल चार दिनों में वह जमीन दी गई. इस जल्दबाजी का जबाब देने की जिम्मेदारी भी अजित पवार की है, गडकरी की नहीं. हमारे एक मित्र ने कहा इसमें कुछ मिलीभगत है. ‘अंडरहँड डीलिंग’ है, ऐसा भी उन्होंने कहा. वह क्या है यह बताने की जिम्मेदारी जिन्होंने आरोप या संदेह व्यक्त किया है, उनकी है. लेकिन उनके पास इसके बारे में कोई सबूत नहीं. केजरीवाल ने भी आरोप किया था कि, सरकार और भाजपा के बीच ‘सांठगांठ’ है. मेरा प्रश्‍न है कि कहॉं? महाराष्ट्र में या केन्द्र में? महाराष्ट्र में सांठगांठ होती तो, गठबंधन सरकार के सिंचाई घोटालों के मामले, इतने जोरदार तरीके से भाजपा बाहर क्यों निकालता?

अचरज

मुझे इस बात का अचरज हुआ कि, किसानों की जमीन, सरकार परस्पर अन्य संस्था को कैसे दे सकती है? जॉंच करने पर पता चला कि, वह जमीन किसानों की रही ही नहीं थी. सरकार ने बहुत पहले ही वह अधिगृहित की थी. अधिग्रहण की जमीन का पूरा मुआवजा किसानों को दिया गया था. फिर वह जमीन किसानों की कैसे रही? वह तो कब की सरकार की हुई थी और सरकार ने उस जमीन का कुछ हिस्सा गडकरी की संस्था को दिया. वह भी किराये से. स्वामित्व के अधिकार से नहीं. गडकरी की यह संस्था बेनामी नहीं है. पंजीकृत है. फिर पुन: प्रश्‍न उठाया गया कि, जिनकी जमीन अधिगृहित की गई थी, उन्हें ही वह क्यों दी नहीं गई? क्या किसानों ने वह जमीन मांगी थी? और मांगी भी होगी, तो सरकार की हुई जमीन किसे दे यह कौन तय करेगा? सरकार या केजरीवाल?

दूसरा आरोप

दूसरा आरोप यह है कि, जिस बांध के लिए किसानों की जमीन अधिगृहित की गई थी, उस बांध का पानी गडकरी की कंपनी को दिया जाता है. आरोप सुनने से ऐसा लगता है कि, बांध का सब पानी गडकरी की कंपनी को ही दिया जाता है. लेकिन वस्तुस्थिति दर्शाती है कि, इस बांध के पानी में से पूरा एक प्रतिशत पानी भी गडकरी की कंपनी को नहीं जाता. जो थोडा पानी, गडकरी की कंपनी को जाता है, उसका क्या उपयोग होता है, इसका भी विचार नहीं किया जाता. ‘भ्रष्टाचार विरोधी भारत’को तो केवल भ्रष्टाचार के आरोप ही करने है! फिर अन्य ब्यौरा जान लेने की झंझट में वे क्यों पड़ेंगे?

मिलीभगत?

तीसरा आरोप भाजपा और गठबंधन की सरकार के बीच ‘मिलीभगत’ होने का था. इसका उत्तर ऊपर आया ही है. सीधी बात ध्यान में ले कि, मिलीभगत होती, तो भाजपा के ही एक राष्ट्रीय सचिव किरीट सोमय्या, लगातार सरकार के अनेक घोटालों का, खुलेआम पत्रपरिषद लेकर भंडाफोड कर पाते? पहली ही पत्रपरिषद के बाद सोमय्या को खामोश नहीं किया जाता? आरोप करने वालों ने इस बात की ओर भी ध्यान नहीं दिया कि, जिस ३७ एकड़ जमीन का उपयोग गडकरी कर रहे है, वह उनकी नहीं है. वह सहकारी तत्त्वानुसार स्थापन हुई किसानों की संस्था की है; और उन किसानों के लिए ही वहॉं बुआई के लिए गन्ने की पारियॉं तैयार की जाती है और वह किसानों को रियायती दर में दी जाती है. इसके बारे में किसानों की कोई शिकायत होने की जानकारी नहीं.

कारणमीमांसा

इसके बाद दूसरे दिन मतलब दिनांक १८ को, दूरदर्शन के दो-तीन चॅनेल ने घर आकर मेरी मुलाकात ली. उन सब ने एक समान प्रश्‍न पूछा कि, केजरीवाल ऐसे आरोप क्यों कर रहे है? मेरा अंदाज मैंने बताया. मैंने कहा, ‘‘केजरीवाल को एक नई राजनीतिक पार्टी बनानी है. आज देश में जो दो बड़ीराजनीतिक पार्टियॉं है, वह दोनों ही भ्रष्ट है; इसलिए तीसरी पार्टी की आवश्यकता है, यह उन्हें लोगों के गले उतारना है.’’ लेकिन अभी तो केवल राजनीतिक पार्टी बनाना है, इतना ही निश्‍चित हुआ है. अभी तो उसका नाम भी निश्‍चित नहीं हुआ. फिर सिद्धांत, नीतियॉं और कार्यक्रमों का प्रतिपादन तो दूर की बात है. ‘भ्रष्टाचार विरोध’ यह नकारात्मक कारण है. उस आधार पर पार्टी स्थापन हो भी सकती है; एखाद चुनाव वह लड़ेंगी भी, लेकिन ऐसी पार्टी टिक नहीं सकती. पार्टी को टिकाऊ बनाने के लिए, आधारभूत सिद्धांत चाहिए. विशिष्ट विषयों जैसे : आर्थिक नीति, विदेश नीति, आरक्षण, अल्पसंख्य आदि, के बारे में अपनी भूमिका स्पष्ट करनी पड़ती है. और उस भूमिका से सुसंगत कार्यक्रमों का ब्यौरा देना पड़ता है. ऐसा कुछ अपने पास न होते हुए, या उसके बारे में विचार स्पष्ट न रहते हुए, किसी राजनीतिक पार्टी की घोषणा करना, जल्दबाजी है. इस जल्दबाजी के कारण कहे या दि. १७ की पत्रपरिषद में के बचकाना आरोपों के कारण कहे, केजरीवाल का गौरव बढ़ा नहीं. विपरीत कम हुआ है. नितीन गडकरी के व्यक्तित्व पर उसका कोई परिणाम नहीं होगा. उसी प्रकार, उनके पार्टी में के स्थान पर भी नहीं होगा. केजरीवाल की पत्रपरिषद के बाद श्रीमती सुषमा स्वराज और अरुण जेटली ने ली पत्रपरिषद से वह और भी स्पष्ट हो गया है.

कॉंच के घर और पथराव

अंग्रेजी में एक कहावत है कि, ‘‘कॉंच के घरों में रहने वालों ने दूसरों के घरों पर पत्थर नहीं फेकने चाहिए.’’ केजरीवाल और उनकी सहयोगी कार्यकर्ता अंजली दामनिया यह व्यवहारोपयोगी कहावत भूल गई, और उन्होंने स्वयं पर पत्थराव की आफत मोल ली. इस कारण, वे और उनकी पार्टी की विश्‍वसनीयता पर ही प्रश्‍नचिन्ह निर्माण हुआ है. एक भूतपूर्व पुलीस अधिकारी और अब वकिली करने वाले वाय. पी. सिंग ने ‘लवासा’ के मामले में महाराष्ट्र के ज्येष्ठ नेता शरद पवार और उनकी पुत्री सांसद सुप्रिया सुळे तथा उसके पति के विरुद्ध भी पद का दुरुपयोग करने के आरोप लगाए और उन आरोपों के जॉंच की मांग की. वैसे ‘लवासा’ कोई नया मामला नहीं है. उस पर काफी चर्चा हो चुकी है. ‘लवासा’ इस लेख का विषय भी नहीं है. लेकिन अपने निवेदन में सिंग कहते है कि, ‘‘इस मामले से संबंधित शरद पवार और उनके परिवारजनों पर के आरोपित गैरव्यवहारों के सब कागजात मैंने केजरीवाल को दिये थे. लेकिन वे गैरव्यवहार सामने न लाकर, केजरीवाल गडकरी के मामूली भ्रष्टाचार की ओर ध्यान दे रहे है, यह आश्‍चर्य है.’’ ‘लवासा’ का घोटाला उजागर होने के बाद उसकी जॉंच करने के लिए सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर ने ‘जनता का जॉंच आयोग’ नियुक्त किया था. केजरीवाल उस आयोग के सदस्य थे. इस कारण उन्हें उन सब व्यवहारों की जानकारी होनी ही चाहिए. अब उत्तर देने की बारी केजरीवाल की है.

दमानिया का मामला

गडकरी के तथाकथित भ्रष्टाचार की पोल खोलने की मुहिम में, केजरीवाल के महत्त्वपूर्ण सहयोगी की भूमिका निभानेवाली अंजली दमानिया के वादग्रस्त व्यवहार का मामला सामने आया है. पहले प्रकाशित हुआ है कि, दमानिया ने कर्जत तहसील में की अपनी ३० एकड़ जमीन बांध में जाने से बचाने के लिए प्रयास शुरु किये है. इस बारे में गडकरी उनकी सहायता करें, ऐसी उनकी अपेक्षा थी. लेकिन गडकरी ने ऐसा करने से साफ इंकार किया. क्योंकि दमानिया की जमीन बचाने के प्रयास से आदिवासियों की जमीन जाने का खतरा निर्माण होता था. गडकरी पर दामनिया का रोष होने का यह कारण बातया जाता है. इसके साथ ही दमानिया का और एक विवादित मामला सामने आया है. केजरीवाल ने प्रश्‍न किया था कि, गडकरी राजनीतिज्ञ है या व्यापारी? श्रीमती दमानिया ने भी यही प्रश्‍नांकित आरोप स्वयं पर लगा लिया है. मुंबई से प्रकाशित होने वाले ‘डीएनए’ समाचारपत्र ने दि. १८ के अंक में एक समाचार प्रकाशित किया है. उसका सार यह है कि, दमानिया और उनके सहयोगियों ने कर्जत तहसील में करीब ६० एकड़ जमीन, वहॉं के आदिवासी किसानों से खरीदी. उसकी किमत किसानों की दी. लेकिन उन्होंने, यह जमीन खरीदने का उद्देश्य बताते समय कहा कि, इस जमीन पर वे कृषि-आधारित उद्योग शुरु करेंगे. इससे स्थानीय लोगों को रोजगार मिलेगा. लेकिन बाद में उनकी नीयत बदल गई ऐसा कहना चाहिए. उन्होंने अपने प्रभाव का उपयोग कर वह सब जमीन कृषितर कामों के लिए (नॉन ऍग्रिकल्चर पर्पजेस) रूपांतरित कर ली. उन्होंने उसके निवासी भूखंड (प्लॉट) बनाए. एक गृहनिर्माण प्रकल्प बनाया. इस प्रकल्प में मुंबई के अमीरों को फ्लॅट और बंगले देने का उनका विचार है. आज सब बड़े शहरों में रहने वाले और अमाप संपत्ति जमा करने वाले रईसों को पूँजी निवेश के लिए कहे या काला पैसा लगाने के लिए कहे, समीप के ग्रामीण क्षेत्र में अपना घर बनाने का चस्का लगा है. मुंबई के रईसों को भी, ऐसा ही लगता होगा, तो आश्‍चर्य नहीं. श्रीमती दमानिया का यह प्रकल्प, एक छोटी नदी के किनारे पर है. कोकण में है. मतलब वहॉं सृष्टिसौंदर्य होगा ही. इनमें के अनेक भूखंड बिक चुके है, ऐसी जानकारी है. लेकिन, रोजगार निर्मिति के लिए जमीन खरीद रहे है, ऐसा बताकर जिनकी जमीन खरीदी गई, उनका भ्र्रमनिरास हुआ; और वे संतप्त हुए. स्थानीय निवासियों के इस असंतोष से ही दमानिया का पर्दाफाश हुआ. यह भूखंड उन्होंने किस भाव से बेचे इस बारे में भी उन्होंने मौन रखा है. वह स्पष्ट होता तो श्रीमती दमानिया ने कितना लाभ कमाया यह भी पता चलता.

केजरीवाल का अभिनंदन

इसे भ्रष्टाचार ही कहे, ऐसा निश्‍चित नहीं कह सकते. लेकिन दमानिया के हेतु शुद्ध नहीं, वे स्वार्थी व्यापारी है और ‘भ्रष्टाचार विरोधी भारत’ आंदोलन के माध्यम से अपना स्वार्थ साध रही है, यह निश्‍चित. क्या उन्हें केजरीवाल की नई संकल्पित स्वच्छ राजनीतिक पार्टी के प्रमुख रणनीतिकारों में माने! केजरीवाल ने, कम से कम अपने सहयोगी चुनने में तारतम्य रखना चाहिए, ऐसा कहना पड़ता है. ऐसी स्वार्थी व्यक्ति जिस पार्टी की नेता है, उस पार्टी का कौन विश्‍वास करेगा? इसलिए ऊपर कहा है कि, केजरीवाल की गडकरी के विरुद्ध की पत्रपरिषद से न उनका गौरव बढ़ा है, न उनकी पार्टी के लिए अनुकूलता निर्माण हुई है. परिणाम एक ही हुआ कि केजरीवाल हो या उनकी सहयोगी दमानिया उनके पॉंव भी मिट्टी के ही बने है, यह आम जनता जान चुकी है.

श्री केजरीवाल ने अपने सहयोगियो पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों की जॉंच करने के लिए भूतपूर्व न्यायमूर्तियों की एक समिति नियुक्त की है और उसे तीन माह के भीतर अपना रिपोर्ट देने के लिए कहा है. श्री केजरीवाल का यह निर्णय उचित है और इसके लिए उनका अभिनंदन करना चाहिए. हम आशा करें कि, केजरीवाल और उनके सहयोगियों का निष्कलंकत्व इससे सिद्ध होगा और उनकी प्रतिमा पहले के समान ही चमक उठेगी.

(अनुवाद : विकास कुलकर्णी)

8 COMMENTS

  1. मैंने अभी अभी इंडियन एक्सप्रेस में छपे एक समाचार के कुछ अंश को फेशबुक पर पोस्ट किया है.मैं उसी अंश को मैं प्रवक्ता के उन पाठकों के लिए जो मेरे फेशबुक मित्रों में नहीं हैं यहाँ अंगरेजी में ही पुनः उद्धृत कर रहा हूँ.
    n course of discussion ,Mr.Mohan Bhagwat ,RSS chief, invoked seven “original sins” according to Mahatma Gandhi to make his point. “Politics without principles, property without work, pleasure without conscience, knowledge without character, commerce without ethics, science without humanity and worship without sacrifice seem to mark the socio-political scenario today,” he said.
    I have to ask only one question,how many of his followers are adhering to principles suggested by the Mahatma to counter “original sins”?Further.are they not inadvertently or advertently indulging in same sins?

  2. अनिल गुप्ता जी ,मुझे तो ऐसा नहीं लगता कि मैंने किसी उतावलेपन का परिचय दिया है.उतावलापन तो श्री वैद्य ने दिखलाया है और अब प्रतिदिन गडकरी जी के बारे में कुछ नकुछ नया खुलासा सामने आता जा रहा है.मैं तो उन खबरों को यहाँ दुहराने की आवश्यकता भी नहीं समझता,पर उससे यह जाहिर अवश्य हो जाता है कि अरविन्द केजरीवाल ने जो कुछ अपने प्रेस कांफ्रेंस में कहा वह पानी में तैरते वर्फ शीला का केवल चोटी था. पता नहीं अभी कितने कंकाल सामने आयेंगे.अंजली दमानिया के बारे में वैद्य जी ने जो लिखा है,उसके बारे में तो मैंने टिप्पणी ही नहीं की.ऐसे भी अंजली दमानिया ने कुछ गलत काम किया,इससे दूसरों को भी ऐसा करने का अधिकार मिल गया ,इस विचारधारा से मैं सहमत नहीं हूँ.

  3. श्री रमश सिंह जी ने वैद्य जी पर अपने उद्गार प्रगट करने में उतावलेपन का परिचय दिया है. अंजलि दमानिया के विषय में जो कुछ श्री वैद्य जी ने लिखा है उससे कहीं ज्यादा अन्यत्र लिखा जा चूका है. समाचार पत्रों ने लिखा है की अंजलि दमानिया ने जो जमीन खरीदी थी उससे गाँव के लोगों का नदी से पानी लेन का मार्ग अवरुद्ध हो रहा था लेकिन उसने आश्वासन दिया था की लोगों का मार्ग अवरुद्ध नहीं किया जायेगा.लेकिन अब वहां तार की बाड़ लगाकर रास्ता रोक दिया गया है. जिससे गाँव के लोगों को नदी से जल लाने के लिए बहुत घूम कर जाना पड रहा है. इसके अतिरिक्त लोगों को अपने मृतकों का अंतिम संस्कार करने के लिए नदी के तट तक जाने के लिए दो मील घूम कर जाना पड रहा है जबकि पहले ये दूरी आधे मील से भी कम थी. इस विषय में पूछे जाने पर अंजलि ने कहा की गाँव वालों को रास्ता देने से भूमि के अच्छे ग्राहक नहीं आ पाएंगे और भूमि की कीमत कम हो जाएगी. ये विचार करने की बात है की जो गाँव के लोगों को सस्ते में गन्ने की पौध देने के लिए भूमि का उपयोग कर रहा है वो सही है या जो कौड़ियों के मोल भूमि क्रय करके लोगों का मार्ग अवरुद्ध करके निजी लाभ के लिए कार्य कर रहा है वो सही है?

  4. श्री वैद्य ने वही किया ,जो उनसे अपेक्षित था,पर गडकरी के बचाव में आगे आने में उन्होंने ज़रा जल्दबाजी कर दी.अब तो हालात ऐसे हो गएहैं की न केवल राम जेठमलानी श्री गडकरी के इस्तीफे की सिफारिश कर रहें हैं बल्कि शायद आर.एस.एस भी उसी दिशा में सोच रहा है,क्योंकि अभी अन्य बातें भी सामने आ रही हैं.हो सकता है की महाराष्ट्र सरकार भी जांच बैठा दे,पर उसकी उम्मीद जरा कम है.

  5. वैद्य जी का आलेख पढने पर बहुत शंका समाधान हुआ| अनेक बिन्दुओं पर आपने प्रकाश फेंक कर कार्य कारण शृंखला स्पष्ट की|

  6. Perhaps the RSS stalwart forgot that Sh. Deoras raised his note of dissent twice during the time of Sh. Golwalkar. The height of democracy within the RSS reached to such crescendo that Sh. Golwalkar did not hesitate to appoint Deoras as his successor.Such things contribute to the making of an organisation. But these days, in particularlysince when the RSS tasted power, first in SVD governments in 1967 and the centre in 1977 and enjoyed the fruits, this NGO (RSS) and its offsprings Jansangh/ BJP too became a political party where Indira Gandhi’s style personality cult was promoted and encouraged.

    • श्री माहेश्वरीजी द्वारा जो कुछ कहा है वो इस आलेख के सन्दर्भ में प्रासंगिक नहीं है.

  7. अरविंद केजरीवाल के अंदर गुण ही गुण है, लेकिन इन दिनों वे सद्गुण विकृति से ज्यादा परेशान हैं। सद्गुण विकृति भी आदमी का विनाश कर देती है।

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