बस्ती – बस्ती गली – गली
फैली एक निराशा |
कल कल करती बहती नदियां
फिर भी मैं हूं प्यासा ||
जीवन के दुख द्वन्द लिए
पागल पथिक सा चलता जाऊं |
एक क्षण में रोता हूं
दूजे क्षण मैं गाता जाऊं ||
समझ चुका था जीवन का
हर नियम और वो कायदा |
तपकर , जल कर चलना होगा
बस छिपा इसी में फायदा ||
हर पल जीना
हर पल मरना होगा |
सब से कदम मिलाकर चलना होगा ||
राहों में फिर दीप जलाकर
आज उजाला करना होगा |
थक कर गिर कर लेकिन
मंजिल तक तो चलना होगा ||
अजय कुमार