प्रधानमंत्री जी, यही तो हैं ‘बड़ी मछलियां’

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गत दिनों कांग्रेस कार्य समिति का अखिल भारतीय अधिवेशन नई दिल्ली में संपन्न हुआ। इस अधिवेशन पर जहां कांग्रेसजनों की निगाहें कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी व महासचिव राहुल गांधी के संबोधन पर लगी थीं वहीं विपक्ष तथा देश का मीडिया भी बड़ी उत्सुकता से प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सहित कांग्रेस की अध्यक्ष व महासचिव सहित अन्य वरिष्ठ नेताओं के भाषणों पर अपनी नज़रें जमाए हुए था। इसका प्रमुख कारण यह था कि कांग्रेस कार्यसमिति का यह अधिवेशन न केवल राष्ट्रमंडल खेलों के समापन के कुछ ही समय बाद आयोजित हो रहा था बल्कि इस अधिवेशन से एक सप्ताह पूर्व ही मुंबई में आदर्श सोसाईटी नामक एक ऐसे बड़े व शर्मनाक घोटाले का पर्दाफाश हुआ जिसने कि कांग्रेस पार्टी को संकट में डाल दिया है। ज़ाहिर है देश इस बात को लेकर उत्सुक था कि देखें आिखर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी,प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तथा देश में युवाराज कायम करने के स्वप्न्दृष्टा राहुल गांधी राष्ट्रमंडल खेलों तथा आदर्श सोसायटी घोटाले को लेकर कांग्रेसजनों को अपना क्या संदेश देते हैं। परंतु निश्चित रूप से देश को उस समय मायूसी हाथ लगी जबकि उपरोक्त प्रमुख नेताओं द्वारा अपने-अपने भाषणों में इन घोटालों का कोई ज़िक्र नहीं किया गया, न ही इन घोटालों पर कोई संदेश देने की कोशिश की गई।

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अपने भाषण में सांप्रदायिकता तथा सांप्रदायिक ताकतों के विरुद्ध संघर्ष किए जाने का ज़बरदस्त आह्वान किया। उन्होंने यह महसूस किया कि धर्म के नाम पर देश व समाज को बांटने वालों के विरुद्ध कांग्रेस को एकजुट होकर संघर्ष करना चाहिए। इसमें कोई संदेह नहीं कि सोनिया गांधी का यह आह्वान सराहनीय था। खासतौर पर ऐसे समय में जबकि स्वयं को राष्ट्रवादी बताने वाली कुछ शक्तियां एक के बाद एक कई आतंकी घटनाओं में संलिप्त होने की आरोपी पाई जा रही हैं। यहां तक कि अपने ऊपर लगने वाले आरोपों से यह सांप्रदायिक ताकतें इतना तिलमिला गई हैं कि अब यह शक्तियां सड़कों पर उतर कर जनता को अपनी बेगुनाही का झूठा व गुमराह करने वाला सुबूत देने की कोशिश करने जा रही हैं। इस बात से तो कोई भी सच्चा राष्ट्रभक्त इंकार कर ही नहीं सकता कि सांप्रदायिकता,धर्मांधता तथा कट्टरपंथ देश के विकास की राह में बहुत बड़ी बाधा साबित हो रहे हैं । परंतु वास्तविकता यह भी कि भ्रष्टाचार का दानव भी सांप्रदायिकता रूपी दानव से कम खतरनाक नहीं है। ख़ासतौर पर जब देश को नेतृत्व प्रदान करने वाले देश की नीतियां व कायदे-कानून निर्धारित करने वाले राजनीतिज्ञ तथा अफसरशाही से जुड़े लोग भ्रष्टाचार में संलिप्त पाए जाने लगें। फिर मध्यम अथवा निचले स्तर पर भ्रष्टाचार पर नियंत्रण करने की कल्पना आख़िर कैसे की जा सकती है।

गत वर्ष सितंबर माह में प्रधानमंत्री डा0 मनमोहन सिंह ने केंद्रीय जांच ब्यूरो तथा समस्त राज्यों की भ्रष्टाचार निरोधक एजेंसियों के एक राष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित किया था। उस समय प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में भ्रष्टाचार के विषय पर कुछ ऐसी सच्चाईयां उजागर की थीं जो संभवतः राजीव गांधी के बाद किसी पहले प्रधानमंत्री द्वारा व्यक्त की गई थीं। प्रधानमंत्री ने इस सम्मेलन में यह स्वीकार किया था कि ‘आम लोगों के बीच देश में व्यापक तौर पर यह धारणा बनी हुई है कि छोटे-मोटे मामलों में तो फौरन कार्रवाई होती है। परंतु बड़ी मछलियां सज़ा से बच जाती हैं’। साथ ही उन्होंने यह भी महसूस किया था कि ‘आम लोगों में फैली इस धारणा को बदलने की ज़रूरत है। उच्च स्तर पर जो भ्रष्टाचार फैला रहा है उस पर सख़्ती के साथ नज़र रखनी होगी।’ गत वर्ष प्रधानमंत्री द्वारा दिए गए इस भाषण के बाद यह उम्मीद जागी थी कि अब संभवतः उच्च स्तर पर भ्रष्टाचार फैलाने वाले अथवा इसमें संलिप्त रहने वाले लोगों की खैर नहीं होगी। परंतु प्रधानमंत्री द्वारा उपरोक्त संकल्प व्यक्त किए जाने के एक वर्ष बीत जाने के बाद भी बजाए इसे कि किन्हीं बड़ी मछलियों को सलाख़ों के पीछे जाते हुए देश का ‘आम आदमी’ देखता, ठीक इसे विपरीत

हमारा देश राष्ट्रमंडल खेलों में हुए हज़ारों करोड़ रुपयों के घोटाले से रूबरू हुआ। यहां तक कि भ्रष्टाचारियों ने कारगिल के शहीदों के परिजनों के नाम पर मुंबई में आबंटित होने वाले आवासीय फ्लैटस पर भी अपना कब्ज़ा जमा डाला।

राष्ट्रमंडल खेलों में हुए भ्रष्टाचार में तथा आदर्श सोसाईटी घोटाले में जिस स्तर के राजनेताओं व उच्चाधिकारियों के नाम उजागर हो रहे हैं आिखर उनसे ज़्यादा ‘बड़ी मछलियां’ और कौन सी हो सकती हैं? यदि इन घोटालेबाज़ों व भ्रष्टाचारियों के विरुद्ध सख़्त कार्रवाई नहीं होती है तथा इने ऊंचे पदों,ऊंचे रुसू़ व लंबे हाथों के चलते इन्हें बख़्श दिया जाता है फिर आिखर प्रधानमंत्री के संदेह के अनुसार आम लागों में वह धारणा तो यथावत बनी ही रहेगी जिसे तहत आम लोग यह सोचने पर मजबूर रहते हैं कि छोटे-मोटे मामलों में तो फौरन कार्रवाई होती है। परंतु ‘बड़ी मछलियां’ सज़ा से बच जाती हैं। प्रधानमंत्री को यदि जनता में बन चुकी इस धारणा को अपने संकल्प के अनुसार बदलना है तो उन्हें किसी भी दल के किसी भी नेता की अथवा किसी भी अधिकारी की पारिवारिक पृष्ठभूमि, उसकी ऊंची पहुंच, उसे पद व रुतबे की परवाह किए बिना यथाशीघ्र उसे विरुद्ध सख़्त से सख़्त कार्रवाई करने का प्रण करना चाहिए।

रहा सवाल विपक्ष, खा़सतौर पर भारतीय जनता पार्टी द्वारा आदर्श सोसाइटी घोटाले को कांग्रेस पार्टी के विरुद्ध राजनैतिक मुद्दा बनाए जाने का तो भाजपा का इस विषय पर राजनीति करना भी न्यायसंगत नहीं कहा जा सकता। पिछले दिनों यह देखा गया कि मुंबई में कुछ भाजपाईयों द्वारा कारगिल के शहीदों की विधवाओं के नाम की तख़्ती आदर्श सोसाइटी के फ्लैटस पर चिपकाने का प्रदर्शन कर यह संदेश देने की कोशिश की गई कि देश के शहीदों के प्रति भाजपा कितनी गंभीर है। परंतु यहां यह भी याद रखना होगा कि उन्हीं कारगिल के शहीदों के नाम पर सबसे पहला घोटाला जिसे देश ताबूत घोटाले के नाम से जानता है वह भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्रीय राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार के शासन में उजागर हुआ था। आज तक देश यह समझ ही नहीं पाया कि कारगिल के शहीदों के लिए प्रयोग में लाई जाने वाली ताबूत जैसी वस्तु को अपने देश में बनाने के बजाए बाहर से क्यों आयात करना पड़ा। तथा इसे लिए अत्यधिक कीमत क्यों चुकानी पड़ी? अतः भाजपा का कारगिल शहीदों के प्रति प्रदर्शित किया जाने वाला प्रेम बेमानी,दिखावा तथा राजनैतिक स्टंट के अतिरिक्त और कुछ नहीं कहा जा सकता।

राष्ट्रमंडन खेलों के आयोजन से पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने देश को यह आश्वासन दिया था कि इस खेल से संबंधित घोटालों में दोषी पाए जाने वालों के विरुद्ध खेल समाप्त होने के पश्चात कार्रवाई की जाएगी। और उसे बाद देश ने यह देखा कि भ्रष्टाचार विरोधी तंत्र खेल समापन समारोह के अगले ही दिन सिक्रय हो उठा। तमाम स्थानों पर छापेमारी शुरु हो गई। आयोजन समिति के अध्यक्ष सुरेश कलमाड़ी को प्रधानमंत्री व कांग्रेस अध्यक्ष दोनों ही ने नज़र अंदाज़ करना शुरु कर दिया। खेलों पर हुए खर्च का लेखा-जोखा सी ए जी द्वारा जांचा व परखा जा रहा है। ऐसी उम्मीद की जा रही है कि शीघ्र ही दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा। इसी प्रकार आदर्श सोसाइटी घोटाले की भी जांच करने हेतु प्रणव मुखर्जी तथा ए के एंटोनी जैसे वरिष्ठ नेताओं को नियुक्त किया गया है। परंतु बड़े अफसोस व चिंता की बात तो यह है कि देश ऐसे तमाम घोटालों से पहले भी अनेक बार जूझ चुका है। पहले भी कितने ऑडिट हो चुके हैं। कितनी कमेटियां व आयोग बन चुके हैं। परंतु कम से कम मुझे तो नहीं याद कि कोई भी ‘बड़ी मछली’ आज सलाख़ों के पीछे दिखाई दे रही हो। हां मधु कौड़ा को अपवाद के रूप में ज़रूर देखा जा सकता है। उसका भी शायद कारण यही हो सकता है कि या तो वह किसी राष्ट्रीय राजनैतिक दल से जुड़ा नेता नहीं था या फिर उसने अपने मुख्यमंत्रित्व काल में भ्रष्टाचार के द्वारा पैसा उगाही करने के सिवा दिन-रात और दूसरा कोई काम ही नहीं किया। गोया उसे पाप का घड़ा इतना लबरेज़ हो गया था कि आिखरकार उसे छलकना ही पड़ा।

उम्मीद की जानी चाहिए कि कम से कम राष्ट्रमंडल खेलों व आदर्श सोसाइटी जैसे ताज़ातरीन भ्रष्टाचार व घोटालों में संलिप्त लोगों के विरुद्ध सरकार टालमटोल या उन्हें संरक्षण दिए जाने वाली कोई चाल नहीं चलेगी। कांग्रेस अध्यक्ष तथा प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को देश को विशेषकर देश के ‘आम आदमी’को अब यह एहसास करा ही देना चाहिए कि बड़ी मछलियां और आगे बख़्शी नहीं जा सकतीं। और यह भी कि न्याय की नज़रों में सभी बराबर हैं। इसे अतिरिक्त कांग्रेस अध्यक्ष व प्रधानमंत्री को कांग्रेस पार्टी में बड़े पैमाने पर घुसपैठ कर चुके उन व्यापारी मानसिकता के नेताओं पर भी नज़र रखनी चाहिए जो अपने पदों का दुरुपयोग कर या अपने पद के प्रभाव से बड़े पैमाने पर या तो स्वयं धन अर्जित कर रहे हैं या अपने परिजनों अथवा रिश्तेदारों को इस काम में मदद पहुंचा रहे हैं अथवा बेनामी रूप से अपने साथियों व मित्रों को करोड़ों रुपये का लाभ पहुंचा रहे हैं। सोनिया गांधी को सांप्रदायिकता के विरुद्ध यलग़ार करने के साथ ही साथ भ्रष्टाचार को भी सांप्रदायिकता के समान ही समझना चाहिए। क्योंकि यह दोनों ही विषमताएं देश के विकास में समान रूप से बाधक हैं।

— तनवीर जाफरी

5 COMMENTS

  1. ऐसा लगता है की लेखक भी कांग्रेस के कार्यकर्त्ता है तभी तो सोनिया के दोष वो नहीं देख सकते है.

  2. प्रधान मंत्री, सोनिया, राहुल सरे लोग घोटाले मैं लिप्त हैं, जब सारा काम १० जनपथ से हो रहा है तो आज तक अ.रजा को हटाया क्यों नहीं गया था.
    बिहार इलेक्शन मैं राहुल को अपने औकात का पता चल ही गया होगा जंग ९ से २५ का खवाब देखने वाले ४ पे सिमट गए!
    इन देश मैं सांप्रदायिकता केवल मुस्लमान और इसाई फैला रहे हैं हिन्दू नहीं. गोधरा के बाद तो गुजरात होना ही था क्यों की आज के हिन्दू अब क्यों डरे! मुसलमानों ने केरला मैं एक प्रोफेस्सर का हाँथ काट डाला क्या ओ मुसलमानों का ईसाई प्रेम था? हा हा हा तनवीर साहेब आप जैसो लोगों के कारन ही आज हिंदुस्तान का ये हाल है. घोटालो को सांप्रदायिकता के नाम पे छुपा देते हैं ! अब ये जयादा दिनों तक नहीं चलेगा.

  3. प्रधानमंत्री जी, यही तो हैं ‘बड़ी मछलियां’ – by – तनवीर जाफरी

    ***** भ्रष्टाचार में “पहले आप” का शिष्टाचार – आप हमसे पहले और हमारे से अधिक भ्रष्ट हैं *****

    तुरंत कारवाही करने से पहले विपक्ष की किसी मोटी हस्ती के नाम की खोज प्रारंभ कर दी जाती है कि यह व्यक्ति भी इस मामले में लिप्त है.

    “पहले आप” का शिष्टाचार

    बिना भेद-भाव, राष्ट्रमंडल खेलों व आदर्श सोसाइटी ताज़ा भ्रष्टाचार व घोटालों में संलिप्त लोगों के विरुद्ध सरकार तुरंत कारवाही करे.

    सोनिया जी / मनमोहन सिंह जी जनता आपके कार्यवाही के आश्वासन की प्रतीक्षा में है.

    पद से हटाओ; गिरिफ्तार करो.

    Well begun is half done – “पहले आप” का शिष्टाचार त्यागें.

    – अनिल सहगल –

  4. इमानदार(?) प्र. मंत्री जी—-
    (१)सारे स्विस बॅंक के अकाउंट धारियों की सूचि प्रधान मंत्री यदि, प्रकाशित करें, तो स्विस बॅंक उसपर कार्यवाही करने तैय्यार है। अब बताएं प्रधान मंत्री उस नामावली को क्यों प्रकाशित नहीं करते?
    (२)सारे स्विस बॅंक के अकाउंट धारियों की सूचि प्रधान मंत्री यदि, प्रकाशित करें, तो स्विस बॅंक उसपर कार्यवाही करने तैय्यार है। अब बताएं प्रधान मंत्री उस नामावली को क्यों प्रकाशित नहीं करते?
    (३) सारे स्विस बॅंक के अकाउंट धारियों की सूचि प्रधान मंत्री यदि, प्रकाशित करें, तो स्विस बॅंक उसपर कार्यवाही करने तैय्यार है। अब बताएं प्रधान मंत्री उस नामावली को क्यों प्रकाशित नहीं करते?
    दालमें काला क्या है? जान बुझकर ३ बार उल्लेख किया है।

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