महत्वपूर्ण लेख

निजकरण और भारतीय रेल

-प्रमोद भार्गव-
railway

सदानंद गौड़ा की रेल में प्रधानमंत्री नरेेंद्र मोदी के सपने सवार हैं। यह रेल बजट महाभारत के युद्ध के उस रथ की तरह है, जिसमें धनुष-बाण जरूर अर्जुन के हाथों में हैं, लेकिन तीर उसी दिशा में छोड़े जा रहे हैं। जिधर का इशारा भगवान श्री कृष्ण मसलन नरेंद्र मोदी गौड़ा को कर रहे हैं। इस बजट में निजीकरण की बुनियाद रखने के साथ, प्रत्यक्ष विदेशी पूंजी निवेश के रेलवे में द्वार खोलने की कोशिश की गई है। जिसका नतीजा रेलवे को दो भारत में बदलने के रूप में सामने आ सकता हैं। यानी बीमार तो रेल विभाग हैं, लेकिन कड़वी गोली आम आदमी को खानी पड़ेगी। यह बजट रेल की सूरत बदलने वाला आकर्षक इसलिए भी लग रहा है, क्योंकि यात्री किराए और रेल भाड़े पहले ही बढ़ा दिए गए हैं। हालांकि बजट में न तो रेलवे को भ्रष्टाचार मुक्त करने और आरक्षण में पारदर्क्षिता लाने के उपाय कहीं नहीं दिखाई नहीं देते हैं। हां, सुरक्षा की पहल जरूर की गई है, लेकिन जवाबदेही सुनिश्चित नहीं की गई तो सुरक्षाकर्मी घटना के समय सोते दिखाई देंगे।

बजट में सपने कुछ उसी तर्ज पर दिखाई दे रहे हैं, जिस तरह से मोदी ने सत्ता में आने से पहले महंगाई दूर करने के सपने दिखाए थे, लेकिन महंगाई उत्तरोत्तर बढ़ रही है। भारत को इंडिया में बांटने की इस बजट में साफ झलक हैं। नो क्षेत्रों में सेमी हाईस्पीड और अहमदाबाद, मुंबई दिल्ली व आगरा के लिए बुलेट रेलों का ऐलान हुआ है। ये रेले 160-200 किमी की रफ्तर से दौड़ेंगी। इनका किराया इतना अधिक होगा कि मध्य और निम्न वर्ग का आदमी इसमें सफर नहीं कर पाएगा। पिछले एक साल से इंदौर-भोपाल के लिए दो-मंजिला वातनुकूलित रेल चल रही है। इसका किराया 460 रुपये प्रति यात्री है। नतीजतन इस रेल को क्षमता के मुताबिक यात्री मिल नहीं रहे, इसलिए इसे रेलवे बोर्ड ने बंद करने की सिफारिश की है, में द्रुत गति की रेलें चलनी चाहिए, लेकिन इन रेलों में आम आदमी के लिए भी साधारण डिब्बे लगाए जाएं। जिससे आम भारतीय भी कम किराए में इस रेल में बैठ सकें। अन्यथा ये रेलें लोगों के बीच अमीरी-गरीबी के स्तर पर विभाजक देखा ही खींचने का काम करेंगी। एक बुलट रेल पर 60 हजार करोड़ रूपए खर्च होंगे, यह धन कहां से आएगा ? हांलाकि ऐसी रेलें चलाने का प्रस्ताव 2011 के बजट में भी रखा गया था। पर अभी तक पटरी पर नहीं आई। ये भी कब पटरी पर उतरंेगी,यह समय सीमा रेल मंत्री ने तय नहीं की है। ऐसा न हो कि ये रेलें 2019 के आम चुनाव तक शुरू हों ? इस बजट में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की दूरदर्शिता का भी ख्याल रखा गया है। उन्होंने चतुर्भुज सड़क परियोजनाओं को जमीन पर उतारा था, जो बेहद लाभदायी रही। वाजपेयी ने हीरक चतुर्भुज रेल परियोजना की भी कल्पना की थी। अब इस महत्वाकांक्षी योजना को अमल में लाया जा रहा हैै। इसके लिए 100 करोड़ रूपए का बजट प्रस्ताव भी कर दिया गया है।

50 स्टेशनों पर साफ-सफाई की जिम्मेदारी निजी हाथों में सौंपी जाएंगी। इन स्टेशनों और द्रुतगामी रेलों में शुद्ध व स्वच्छ जल के लिए आरओ यूनिट लगाएं जाएंगे। 10 स्टेशनों की शक्ल एयरपोर्ट की सूरत की तरह बदली जाएगी। इन घोषणाााओं से साफ है रेलवे में बेरोजगारी बढ़ेगी। सफाईकर्मी कंपनियों के बंधुआ बनकर रह जाएंगे। शु़द्ध पानी क्या चंद ऐसे स्टेशनों पर ही मिलना चाहिए, जहां खास आदमी ज्यादा संख्या में सफर करेंगे ? क्या स्वच्छ पानी की जरूरत हरेक स्टेशन पर रेलवे की जबाबदेही नहीं है ? यहां यह आशंका भी उत्पन्न होती है कि आगे चलकर महानगरों के कुछ विशेष स्टेशन केवल वीआईपी लोगों के लिए ही आराक्षित न कर दिए जाएं ? इसी तरह प्रथम श्रेणी के एसी डिब्बों में वाई-फाई सुविधा हासिल करने के उपाय महज युवा टेक्नीशियनों को टाइमपास का जरिया उपलब्ध कराना है,जो रेलवे पर खर्च बढ़ाएगा। निजीकरण को बढ़ावा देने के उपाय आरक्षित वर्ग के युवाओं को रेलवे में नौकरी से वंचित करने की आशंकाएं भी जताते हैं।

इन आशंकाओं बावजूद इस बजट में बुलट और हाईस्पीड रेलों के स्वप्न के साथ कुछ जरूरी आयामों को भी छुआ है। रेलवे की आधार सरंचना को मजबूती देने की दृष्टि से कुछ रेल मार्गों का दोहरी, तिहरी और चौहरीकरण भी किया जाएगा। बुलट रेल तिहरी अथवा चौहरी पटरी पर ही दौड़ेंगी। क्योंकि इस रेल को 100 किमी तक लाइन क्लीयर हो जाने के बाद ही हरी झंझी दी जाएगी। सागरमाला परियोजना के जरिए बंदरगाहों को जोड़ना अह्म जरूरत है। इसी तर्ज पर कोयला खानों से बिजली उत्पादन संयंत्रों तक त्वरित गति की मालगाडि़या चलाया जाना अच्छा फैसला है। कोयला समय पर पहुंचेगा तो बिजली उत्पादन में बाधा नहीं आएगी। सब्जी-फल और दूध के यातायात के लिए ऐसे डिब्बे डिजाइन किए जाएंगे,जिससे ये वस्तुएं खराब न हों। इन चीजों को गंतव्य तक समय पर पहुंचाने की भी ठोस पहल भी होगी। 5 फीसदी बायोडीजल का उपयोग भी अच्छी बात है। रेलमंत्री ने 500 मेगावाट सौर्य उर्जा रेल भवनों की छतों पर पैदा करने का भी भरोसा जताया है। यह प्रयास अच्छा है। लेकिन सौर्य बिजली इतनी महंगी पड़ती है कि गुजरात जहां से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आते हैं, वहां भी तमाम परियोजनाएं ठप पड़ी हैैं। यह अच्छी बात है कि यह काम पीपीपी की साझेदारी से होगा।

बजट में तीर्थ दर्शन यात्री रेलों को भी चालू करने की बात कही गई है। हालांकि तीर्थों के लिए पर्व विशेष के अवसर पर हमेशा से रेलें चल रही हैं। अब इसमें नया क्या होगा,ये रेल के पटरियों पर अतरने के बाद ही पता चलेगा। हां, यदि चार धाम यात्रा को नियमित रेल परिक्रमा सेवा से जोड़ा जाता है तो एक अच्छी शुरूआत होगी। यह अच्छी बात है कि रेलवे कंप्यूटर प्रणाली को एकीकृत किया जाएगा। साथ ही यात्री के मोबाइल पर गंतव्य की चेतावनी सुविधा हासिल होगी। मानव मुक्त व मानव रहित पार पथों को खत्म करना बजट प्रस्ताव में शामिल किया है। देश में 11,463 बिना चौकीदार के पार पंथ है। इन पर आए दिन दुर्घटनाएं होती रहती हैं। इन्हें खत्म किया जाना रेलवे की पहली प्राथमिकता होनी ही चाहिए।

सभी तरह की रेलों में लूटपाट,चोरी और महिलाओं के साथ अभद्रता की घटनाएं निरंतर सामने आ रही है। इस बजट में 17 हजार सुरक्षा कार्मियों की भर्ती होगी, जिनमें 4 हजार महिलाएं होंगी। माहिला यात्रियों के लिए यह खुशखबरी है। क्योंकि आर्थिक उदारवाद के बाद रेल में अकेली महिलाओं के साथ सफर करने की तादात निरंतर बढ़ रही है। इस व्यवस्था से उनका आत्मविशवास मजबूत होगा। डाकघरों में रेल टिकट की उपलब्धता और इंटरनेट पर साधारण टिकट मिलने की सुविधाएं आम आदमी के लिए उपयोगी साबित होंगी।

भारतीय रेल ने 161 साल का सफर बिना किसी रेल विश्वविधालय के पूरा किेया है। और हर क्षेत्र में प्रगति की है। कश्मीर घाटी से लेकर कोंकण क्षेत्र में पटरी बिछाने का काम कामयाबी के साथ पूरा किया है। दिल्ली मेट्रो रेल मार्ग का विस्तार तो भूतल,आधार तल और वायुतल का अनूठा नमूना है। लिहाजा समझ नहीं आता है कि इस संस्थागत ढांचे की क्या उपयोगिता रहेगी ? क्योंकि हमारे यहां ऐसे ढ़ाचे जनता पर बोझ ही साबित हुए हैं। कुल 58 नई रेलें चालाना अच्छी सौगातें हैं। मोदी ने बनारस को भी दो नई रेलें दी है। सब कुल मिलाकर योजनाओं का अंबार तो है,लेकिन ये योजनाएं भी पूर्व बजट घोषणाओं की तरह कागजी साबित न हों, राजग सरकार के लिए यह सोचने की बात है।