भगवत कौशिक

किसी भी देश की आर्थिक व राजनैतिक ताकत उस देश के युवाओं के कंधो पर टिकी होती है।सदियों से युवा शक्ति के बल पर हम दुनिया मे भारत का लौहा मनवाते आ रहे है,लेकिन आज देश की वहीं युवाशक्ति दो वक्त की रोटी के जुगाड़ के लिए दर दर की ठोकरें खाने पर मजबूर है।और हालात इस कदर बिगड रहे है कि प्रतिदिन बढ़ती बेरोजगारी के कारण सबसे अधिक आत्महत्याओं का कलंक भी हमारे देश के माथे पर लगा हुआ है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के ताजा आंकड़ों के मुताबिक प्रतिदिन 28-30 युवा खुद को काल के गाल में झोंक रहे हैं । अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन, भारत सरकार और विभिन्न एजेंसियों के ताजा सर्वेक्षण और रपट इस ओर इशारा करते हैं कि देश में बेरोजगारी का ग्राफ बढ़ा है। जिन युवाओं के दम पर हम भविष्य की मजबूत इमारत की आस लगाए बैठे हैं उसकी नींव की हालत दिनप्रतिदिन खोखली होती जा रही है और हमारी नीतियों के खोखलेपन को राष्ट्रीय पटल पर प्रदर्शित कर रही है। देश में बेरोजगारी के आंकड़े चौंकाने वाले हैं।पढ़े-लिखे लोगों मे बेरोजगारी के हालात ये हैं कि चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी के पद के लिए प्रबंधन की पढ़ाई करने वाले और इंजीनियरिंग के डिग्रीधारी भी आवेदन करते हैं। रोजगार के मोर्चे पर हालात विस्फोटक होते जा रहे हैं।हर तीन स्नातक में से दो बेरोजगार हैं। देश में बेरोजगारी की समस्या के मूल कारणों पर यदि नजर डाला जायें, तो हम पाते हैं कि प्राय: लोग अन्य आर्थिक स्त्रोत के रुप में नौकरी को विशेष महत्व देते हैं।अतएव शिक्षित,अर्धशिक्षित और उच्चशिक्षित सभी वर्ग के लोग नौकरी को ही प्रथिमिकता ज्यादा देते है। अतः नौकरी की समस्या हमारे बीच राष्ट्रीय समस्या बनती जा रही हैं। जिसका मुख्य कारण हमारे देश की शिक्षा प्रणाली है, जो कि युवा पीढी को स्वावलंबी बनाने और उनमें आत्मविश्नास कायम करनें में नकाम रही हैं। हमने अपनी शिक्षा प्रणाली को व्यापार बना दिया है और इस खेल में सरकार, कॉर्पोरेट, समाज, नेता और पेरेंट्स सभी शामिल हैं. अच्छी शिक्षा तक पहुँच पैसे वालों तक ही सीमित हो गयी है, यह लगातार आम आदमी के पहुँच से बाहर होती जा रही है। राज्य सरकारें अपनी भूमिका से लगातार पीछे हट रही है हालांकि इस बीच शिक्षा का अधिकार कानून भी आया है जो 6 से 14 साल के सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा की गारंटी देता है, लेकिन इसका बहुत असर होने नहीं दिया गया है।एक बहुत ही सुनियोजित तरीके से सरकारी शिक्षा व्यवस्था को चौपट और बदनाम किया गया है और आज स्थिति यह बन गयी है कि सरकारी स्कूल मजबूरी का ठिकाना बन कर उभरे हैं। जो परिवार थोड़े से भी समर्थ होते है वे अपने बच्चों को तथाकथित अंग्रेजी माध्यम के प्राइवेट स्कूलों के शरण में भेजने में देरी नहीं करते हैं। खुद 90 प्रतिशत से ज्यादा सरकारी अध्यापकों के बच्चे प्राईवेट स्कूलों मे पढ रहे है ऐसे मे सरकारी स्कूलों मे अध्यापन का कार्य कैसा होगा ये बताने की जरूरत नहीं है। पिछले 2-3 दशकों में उदारीकरण-वैश्वीकरण के दौर में जहां नौकरियों की तादाद घटती गयी हैं, वहीं निजी शिक्षण संस्थानों एंव कोचिंग सेंटरो की तादाद भी बढ़ती गयी है। ये शिक्षण संस्थान बेहतर भविष्य के झूठे स्वप्न दिखा छात्रों को ठगते हैं ।शिक्षा को इन्होंने व्यपार व धंधेबाजी का अड्डा बना दिया है। ऐसे में शिक्षा हासिल कर रोजगार की चाह रखने वाले नौजवानों की तादाद बढ़ती जा रही है। धंधेबाजी केवल कोचिंग-एजेण्ट ही नहीं कर रहे हैं, सरकारें भी इसमें उतर पड़ी हैं। सरकारों को पता है कि आज 10 पदों के लिए भी एक लाख आवेदन आ सकते हैं। इसलिए वो एक ही विभाग के पदों को एक साथ निकालने के बजाय टुकड़ों में भरती है ताकि हर परीक्षा पर शुल्क के नाम पर छात्रों को लूटा जा सके। इससे आगे बढ़कर अब भरती की प्रक्रिया को काफी समय तक लटकाये रखना, किसी भी बहाने रद्द कर नयी भर्ती प्रक्रिया शुरू करना, अदालतों में शिकायतों से भर्ती प्रक्रिया का थम जाना, पेपर आउट होने के नाम पर परीक्षा रद्द होना कुछ ऐसी कार्यवाहियां हैं जो बेरोजगारों की जेबों को तो ढीला कर ही रही हैं।पढ़े-लिखे बेरोजगारों व उनके लायक नौकरियों का गणित बुरी तरह गड़बड़ाया हुआ है। यदि समय रहते इस समस्या के समाधान का हल नहीं निकाला गया तो इसके गंभीर परिणाम निकट भविष्य में भुगतने होंगे।
mujhe nahi pata ye kinhone likha hai?
lekin aapne kaafi satik baatein kahi hain.
dhanyawaad.