बदली-बदली सी दुनिया

अक्षत जैन
दुनिया में आजकल बहुत तरह की अनिश्चितता देखने को मिल रही है। सिर्फ देश की आर्थिक व्यवस्था और राष्ट्रीय दृष्टिकोण ही नहीं बल्कि अंतर्राष्ट्रीय रिश्ते और फॉरेन पॉलिटिक्स में भी बहुत बदलाव आया है। कोरोना वायरस में हम इंटरनेशनल को-ऑपरेशन, ग्लोबल ट्रेड, मार्केट रिफॉर्म्स, कामकाज का भविष्य, टेक्नोलॉजी का आयात आदि पर चर्चा कर सकते हैं। कोरोना ने दुनिया को तो बहुत ज्यादा बदला ही है, साथ ही उसने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देशों की कमियों और खामियों को क्रूरता से उजागर किया है। कोरोना पेंडेमिक को ध्यान में रखकर कई तरह के सवाल सामने आते हैं। जैसे कि क्या दुनिया हमेशा ऐसी ही तो नहीं रह जाएगी? निश्चित ही अभी इन प्रश्नों का उत्तर देना संभव नहीं है लेकिन अभी तक के अनुभव के हिसाब से ऐसा प्रतीत होता है कि भारत ने उम्मीद से अच्छा प्रदर्शन किया है। सबसे बड़ा सवाल जो कि दिमाग में आता है, वह है कि क्या हमेशा के लिए ग्लोबलाइजेशन यानि भूमंडलीकरण खत्म हो जाएगा? ग्लोबलाइजेशन सिर्फ लोगों का आना-जाना नहीं है, यह गुड्स एंड सर्विसेज और विचारों का भी आदान-प्रदान है।

कोरोना वायरस के मद्देनजर इंटरनेशनल सीमाओं की बात करें तो इसमें कहने, लिखने और चर्चा के लिए बहुत कुछ है। मैंने हाल ही में अटलांटिक काउंसिल वाशिंगटन डीसी के लिए रिसर्च पेपर लिखा है-इंडियास फॉरेन अफेयर्स स्ट्रेटेजी इन द प्रेजेंट कॉन्टेक्स्ट ऑफ कोविड-19। जब भी हम इस पेंडेमिक के बारे में बात करते हैं तो हम देखते हैं कि बहुत कुछ बदल गया है। यह सच है कि कोरोना के चलते लोगों का आना-जाना प्रतिबंधित है लेकिन चीजों और सेवाओं का आदान-प्रदान सुचारु है। चीन के अलावा प्रत्येक देश की जीडीपी में गिरावट आई है। चीन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। हम यह कहकर उसे इग्नोर नहीं कर सकते कि कोरोना वायरस चीन ने फैलाया है। चीन से कोरोना का फैलाव इस बात को दर्शाता हैं कि हम वास्तव में भूमंडलीकृत दुनिया में रहते हैं। कहने का अभिप्राय यह है, चीन के वुहान से शुरू हुआ वायरस पूरी दुनिया में फैल गया, जो कि यह दर्शाता है कि एक व्यक्ति गुड्स एंड सर्विसेज के साथ-साथ बीमारियों का भी आयात-निर्यात करता है। इन प्रश्नों के बाद जो सवाल मन में आता है, वह है, कोरोनाकाल के पश्चात, क्या ग्लोबलाइजेशन सुचारु हो सकेगा? क्योंकि, तब तक अर्थव्यवस्था में बहुत कुछ बदल चुका होगा। यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की मुहिम आत्मनिर्भर भारत की चर्चा करें तो इसका अर्थ नहीं है कि हमें दुनिया से संबंध पूरी तरह खत्म करने है जबकि इसका मतलब यह है कि हमें सोच-समझकर कदम उठाने हैं। हमें यह सोचना है कि हम और बेहतर कैसे कर सकते हैं? फॉरेन पॉलिसी डोमेस्टिक पॉलिटिक्स का ही प्रतिबिंब है। अमेरिका का उदाहरण ही लीजिएगा, वह भी अपने वादों से पीछे हट रहा है। अमेरिका को लीड करने में अब गर्व महसूस नहीं हो रहा होगा। अमेरिका ने वल्र्ड हेल्थ आर्गेनाईजेशन- डब्ल्यूएचओ को छोड़ दिया है। डब्ल्यूएचओ की फंडिंग करनी बंद कर दी है। इन सब कदमों ने चीन को आगे बढ़ने का मौका दिया है। हमारे देश का हाल भी कुछ ऐसा ही है। मजदूरों का पैदल चलकर घर जाना, रास्ते में ही मर जाना, इसने दुनियाभर में भारत की छवि को मैला किया है।

लॉकडाउन के कारण भारत में प्रदूषण में बहुत ज्यादा कमी आई है। इससे हमंे पता चला कि प्रदूषण का कम-ज्यादा होना इंसान के कंट्रोल में है। लॉकडाउन ने यह भी दर्शाया है कि टेक्नोलॉजी ने भी बहुत बड़ा रोल प्ले किया है। हमने कभी जो सोचा भी नहीं था कि तकनीक ने उससे ज्यादा काम किया है। इससे यह प्रतीत होता है कि भविष्य में आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस काफी चीजों की जगह ले लेगा लेकिन एआई बेरोजगारी भी बढ़ा सकती है। कोरोना काल खत्म होने के बाद न्यू वल्र्ड आर्डर बनाना चाहिए। चीन अत्याधिक आक्रामक है, उसकी पिछली गतिविधियों से इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है। न्यू वल्र्ड आर्डर पर चीन से होने वाले खतरे पर भी विचार करना होगा। भविष्य में भारत के लिए सामने आने वाली चुनौतियों के लिए इतिहास गवाह है, सोवियत यूनियन और यूएस के बीच हुए कोल्ड वार के समय भी भारत ने प्रत्यक्ष रूप से किसी का सपोर्ट या विरोध नहीं किया था। यदि पुनः ऐसा कोई वार होता है तो भारत के लिए शांत या न्यूट्रल रहना संभव नहीं होगा। दूसरी चुनौती यह है कि नेपाल भी भारत पर दबाव डाल रहा है। तीसरी चुनौती जो देखने मिलती है, वह है कि भारत हाई एआई टेक्नोलॉजी के लिए तैयार नहीं है। भारत और चीन की कुल जीडीपी एशिया की 50 प्रतिशत से ज्यादा है। हमें इन्हीं सब मुद्दों पर विचार करना है। आने वाली चुनौतियों का पहले से ही उपाय ढूंढकर रखना है।

पड़ोसी देशों से रिश्ते बेहतर करने का प्रयास तो दिल्ली में बैठे एक्सपर्ट्स भी कर रहे हैं। मोदी सरकार के रिटायर्ड वरिष्ठ नौकरशाह श्री सुब्रमण्यम जयशंकर को विदेश मंत्री बनाने का फैसला प्रशंसनीय हैं। वह पहले से ही इस मंत्रालय से जुड़े थे, इसीलिए उन्हें इन मुद्दों की समझ है। पड़ोसी देशों ने वार्तालाप कभी बंद नहीं होनी चाहिए। साथ ही, अपनी अर्थव्यवस्था को एक-दूसरे के साथ मिलाना और मिलाए रखना भी जरुरी है। यदि हम पड़ोसी देशों के साथ फ्री ट्रेड एग्रीमेंट करें तो हमारी चीन पर निर्भरता भी कम होगी। ऐसी स्थिति में दोस्ती की संभावना बढ़ जाती है। यदि चीन हमारे पड़ोस को पूरी तरह जकड़ लेगा तो हमारे लिए यह बेहद चिंता का विषय है। ईरान से हमारे संबंध बहुत पुराने है। इन्हें और आगे बढ़ाना है। भारत और चीन के बीच तनाव है लेकिन अभी इतनी खराब स्थिति नहीं है, जो यह तनाव युद्ध में तब्दील हो सके। हमें किसी भी मुल्क के साथ अपने रिश्ते अच्छे ही रखने चाहिए। चीन ने हमेशा दो कदम आगे बढ़ाकर एक कदम पीछे लिया है, जिसे हम अपनी जीत समझ लेते हैं। यह हमारी गफलत है, हमें अपनी इस कमजोरी को तिलांजलि देनी होगी।

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