अपना भारत कभी रहा था , आर्यों की संस्कृति का देश ।
ज्ञान लिये वेदों,गीता का , ऋषियों का देता संदेश ।।
मुस्लिम आए, मंदिर तोड़े , प्राच्य संस्कृति नष्ट करी ।
लादा तब इस्लाम सभी पर, बर्बरता उनमें थी भरी ।।
अत्याचारी अंग्रेज़ों ने , देशभक्त फाँसी लटकाए ।
समृद्धि लूट कर भारत की,सब कुछ अपने साथ ले गए ।।
भारत के ग्रंथों को चुराया , भेजा अपने देश को ।
अपनी भाषा आरोपित कर,वेषभूषा दी जन जन को ।।
भूल गए हम अपनी भाषा, अपनी संस्कृति, अपना वेष ।
रची बसी अंग्रेज़ी सब में, उन्हीं का भक्त हुआ ये देश ।।
भारत के आध्यात्म को माने,आज करे सारा जग “योग” ।
भूले थे हम अपनी संस्कृति , बड़ा दु:खद है ये संयोग ।।
काश ! कभी वो दिन आ जाए, “इंडिया” बन जाए “भारत”।
स्वाभिमान से शीश उठाकर, देश करे सबका स्वागत ।।
विश्व-शान्ति का पाठ पढ़ाकर,प्रेमी हो सारा संसार ।
आतंकी कोई न रहे और , सारा विश्व बने परिवार ।।
– शकुन्तला बहादुर
अत्याधिक भावपूर्ण रचना