धर्म-अध्यात्म

पूजनीय प्रभो हमारे……भाग-14

राकेश कुमार आर्य


वेद की बोलें ऋचाएं सत्य को धारण करें

गतांक से आगे….
किसी कवि ने कितना सुंदर कहा है :-
ओ३म् है जीवन हमारा,
ओ३म् प्राणाधार है।
ओ३म् है कत्र्ता विधाता,
ओ३म् पालनहार है।।
ओ३म् है दु:ख का विनाशक ओ३म् सर्वानंद है।
ओ३म् है बल तेजधारी, ओ३म् करूणाकंद है।।

ओ३म् सबका पूज्य है,

हम ओ३म् का पूजन करें।
ओ३म् ही के ध्यान से
हम शुद्घ अपना मन करें।
ओ३म् के गुरूमंत्र जपने से रहेगा शुद्घ मन।
बुद्घि दिन प्रतिदिन बढ़ेगी, धर्म में होगी लगन।।
ओ३म् के जप से हमारा ज्ञान बढ़ता जाएगा।
अंत में यह ओ३म् हमको मुक्ति तक पहुंचाएगा।।

सारा वेद ज्ञान ओ३म् से नि:सृत है। ओ३म् से निकलकर सारा सृष्टिचक्र ओ३म् में ही समाहित हो रहा है। ‘ओ३म्’ ईश्वर का निजी नाम है। ईश्वर के शेष नाम उसके गुण-धर्म-स्वभाव के अनुसार हैं। वह परमतत्व परमात्मा तो एक ही है, पर विप्रजन उसे भिन्न-भिन्न नामों से पुकारते ओर उच्चारते हैं।

संसार में सर्वाधिक मूल्यवान वस्तुएं बहुत कम लोगों के पास होती हैं। बात सवारियों की करें तो दोपहिया वाहन तो अधिकांश लोगों के पास मिल जाते हैं, पर चार पहिया की गाड़ी कम लोगों के पास होती है और उनमें करोड़ों की कीमत वाली गाडिय़ां और भी कम लोगों के पास होती हैं। वैसे ही सत्य जो कि सुंदर है पर उसी अनुपात में बहुत मूल्यवान भी है, बहुत कम लोगों के पास उपलब्ध होता है। जैसे मिलावटी चीजें बाजार में बिकती रहती हैं, वैसे ही ‘सत्य’ भी मिलावटी करके बेचा जाता रहता है। लोगों ने धर्म जैसी सत्य, सुंदर और शिव अर्थात जीवनोपकारक कल्याणकारी वस्तु को भी मिलावटी बनाकर संप्रदाय (मजहब) के नाम पर बाजार में उतार दिया। लोग इस भेडिय़ा रूपी मजहब को ही धर्म मानकर खरीद रहे हैं और बीमार हो रहे हैं। संसार के अधिकांश लोगों को साम्प्रदायिक उन्माद ने रोगग्रस्त कर दिया है। यही कारण है कि सर्वत्र अशांति का वास है और मानव शांति को अब मृग मारीचिका ही मान बैठा है।

हमारा देश भारतवर्ष तो प्राचीनकाल से ही सत्योपासक देश रहा है। उसकी जीवन चर्या का और दिनचर्या का शुभारंभ ही वेद=ज्ञान=सत्य अर्थात ईश भजन और ईश चर्चा से होता है। ऐसे ही परमवंदनीय भारतदेश के लिए कहा गया है:-

गायन्ति देवा: किलगीतकानि धन्यास्तुते
भारतभूमि भागे।
स्वर्गापवर्गापद हेतुभूते भवन्ति भूप: पुरूषा: सुख्वात्।।
अर्थात धन्य भारत ही सदा से सदगुणों की खान है।
धर्मरक्षा धर्मनिष्ठा ही यहां की बान है।।
दीन दुखियों पर दया करना यहां की शान है।
बस इसी से आज तक सर्वत्र इसका मान है।
जिस तरह वृक्षों में चंदन को बड़ा अधिकार है।
पर्वतों में हिमगिरि नदियों में गंगाधार है।
है कमल फूलों में और नागों में जैसे शेष है।
उस तरह देशों में सबसे श्रेष्ठ भारतदेश है।

क्रमश: