सच्चा मुस्लिम प्रेम: तुष्टीकरण या विकास

-मुकेश शर्मा-
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16वीं लोकसभा चुनाव में हर राजनैतिक पार्टी मुस्लिम प्रेम की हर हद पार कर उन्हें गले लगाना चाहती है। सपा, बसपा और कांग्रेस ने तो दोनों हाथों में लड्डू लेकर मुस्लिमों को आकर्षिक करना शुरू कर दिया है। उन्हें नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के डर से सताया जा रहा है। इसलिए अनाप-शनाप बयानबाजी की जा रही है। जबकि मोदी किसी चाल से नहीं, बल्कि दिल से मुस्लिमों को अपनाना चाहते हैं। इस सकारात्मक राजनीति से टीवी चैनलों को कोई टीआरपी वाली खबर नहीं मिल रही। तभी तो मोदी के मुस्लिम प्रेम का कहीं ज्यादा विवरण नहीं है। इससे भाजपा कार्यकर्ता भी दुविधा में है। उसे अब भी लग रहा है कि मुस्लिम समाज बदला नहीं है। वह आज भी नफरत और तुष्टीकरण की राजनीति में विश्वास करता है। लेकिन अब मुस्लिम बदल गया है, वह भी अपना विकास करना चाहता है। उसकी सोच भी बदल रही है।

इसमें कोई संदेह नहीं है कि मुस्लिम समुदाय के सारे लोग, चाहे वे पढ़े-लिखे हो या थोड़ा बहुत लिखना-पढ़ना जानते हों, अमीर हों या गरीब, निजी कारोबार करते हों या नौकरीपेशा हो, सब कांग्रेस से नाराज हैं। यह नाराजगी इतनी ज्यादा है कि कोई भी व्यक्ति बहुत आसानी से कांग्रेस के कारनामे गिना सकता है। यह नाराजगी पहले भी थी और अब भी है। बीतते समय के साथ उसमें बढ़ोतरी ही हुई है, कमी नहीं आई। मुसलमान समझते हैं कि सच्चर आयोग की जो रिपोर्ट खुद संप्रग सरकार ने लोकसभा में पेश की, वह कांग्रेस की बजाए नरेंद्र मोदी का प्रशंसा-पत्र बन गया। जिसमें सामने आया कि भारतीय मुसलमानों की स्थिति अनुसूचित जाति-जनजाति से भी खराब है। जबकि दूसरी तरह सच्चर कमेटी की रिपोर्ट में दिए गए आंकड़े सिध्द करते हैं कि देश के अन्य भागों की तुलना में गुजरात में शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले मुसलमान शिक्षा, रोजगार और आमदनी के मामले में कहीं ज्यादा अच्छी स्थिति में हैं। यही कारण है लगातार गुजरात का मुस्लिम अब भाजपा को वोट देकर उसका सहयोगी बन रहा है। वास्तव में उन्हें एक विकल्प की आवश्यकता कल भी थी, आज भी है। हालांकि अभी मुसलमान असमंजस में है।

तुष्टीकरण नहीं, विकास चाहिए
वर्तमान लोकसभा चुनाव में एक बार फिर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को छोड़ सभी प्रमुख दलों ने मुस्लिम प्रत्याशियों पर दांव लगाया है। लोकसभा चुनाव की गतिविधियों के शुरू होते ही तमाम मुस्लिम संगठनों ने अपने-अपने तरीके से अपने वर्ग की पैरोकारी शुरू कर दी। सपा, बसपा, कांग्रेस मुस्लिमों की हिमायती होने का दावा कर रही है। लेकिन एकमात्र नरेंद्र मोदी से तुष्टिकरण स्वीकार नहीं, का नारा देकर सिर्फ विकास का विश्वास दिलाया है। मोदी की विचार टोपी को अपमानित नहीं होने दूंगा, मुस्लिम दिमागों में घर कर रहा है। आंकड़ों पर ध्यान दें तो तुष्टीकरण की राजनीति मुस्लिमों को विकसित नहीं कर पाई। सच्चर कमेटी की रिपोर्ट से साफ दिखाई देता है कि गुजरात का मुस्लिम बाकी भारत से विकसित, शिक्षित, रोजगारपरक है। दंगों के मामलों में भी गुजरात पर 2002 के बाद कोई धब्बा नहीं है। जबकि उत्तरप्रदेश पिछले दस सालों में 800 से ज्यादा दंगों का गवाह बना है।

वोट-बैंक के अलावा कुछ नहीं
मुस्लिम प्रत्याशी होने के बाद भी इन उम्मीदवारों को हार का सामना करना पड़ता है। बीते कुछ चुनावों के आंकड़ों से स्पष्ट है कि मुस्लिम मतदाताओं पर भी राजनीतिक दल का मुस्लिम कार्ड बहुत प्रभावी नहीं हो पाता, जिसका परिणाम यह है कि इन मुस्लिम आबादी बहुल सीटों पर भी दूसरे समुदाय के लोगों ने अपनी जीत दर्ज कराई है। वर्ष 1980 के लोकसभा चुनाव में सभी प्रमुख दलों ने उत्तर प्रदेश से कुल 46 प्रत्याशियों को चुनाव मैदान में उतारा। इस चुनाव में सबसे ज्यादा 18 प्रत्याशियों ने अपनी जीत दर्ज कराई, लेकिन इसके बाद यह ग्राफ लगातार नीचे आता गया। वर्ष 1984 में मुस्लिम प्रत्याशियों की संख्या जहां घटकर 34 हो गई, वहीं संसद पहुंचने वालों की संख्या भी घटकर 12 पर आ गई. इसके बाद वर्ष 1989 में मुस्लिम सांसदों की संख्या घटकर 8 हुई, तो 1991 में राम लहर में इनकी संख्या और कम हो गई। वर्ष 1991 में मात्र तीन मुस्लिम प्रत्याशी ही अपनी जीत दर्ज करा सके। लोकसभा चुनाव के इतिहास में जीतकर संसद पहुंचने वाले मुस्लिमों की यह सबसे कम संख्या थी। हालांकि 1998 के लोकसभा चुनाव में यह संख्या बढ़कर छह हुई, 1999 में आठ और 2004 में तो 11 मुस्लिम प्रत्याशी जीतकर संसद पहुंचे थे। वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में यह संख्या घटकर सात पर सिमट गई।

सच जीता है सदा
गुजरात मुख्यमंत्री के ‘सबका साथ, सबका विकास’ की अवधारणा को धरातल पर उतार रहे है। यह बात गुजरात का मुसलमान जान चुका है, तभी तो मुस्लिम बहुल 19 विधानसभा क्षेत्र में से 12 में उन्होंने भाजपा प्रतिनिधियों को जिता कर भेजा है। इसीतरह पिछले साल नगरपालिका चुनाव में भी कांग्रेस को करारी मात मिली। सबसे उल्लेखनीय यह है कि जामनगर जिले के मुस्लिम बहुल नगर सलाया में भाजपा के 24 मुस्लिम प्रत्याशियों समेत सभी 27 उम्मीदवारों ने जीत हासिल की है। शेष तीन प्रत्याशी हिदू हैं। दशकों तक कांग्रेस के प्रभुत्व वाले इस शहर में इस बार उसका एक भी प्रत्याशी जीत हासिल नहीं कर सका। सलाया में 90 फीसद आबादी मुस्लिम है।

सोच में बदलाव जरूरी
16वीं लोकसभा चुनाव सिर्फ देश के भविष्य ही नहीं, मुस्लिम समाज के विकास के लिए महत्वपूर्ण है। क्योंकि चुनाव में यह तय होगा कि मुस्लिम समाज बदल रहा है या पुरानी नीतियां पर चलकर आंख बंद करके वोट करेगा। कांग्रेस, सपा और बसपा जैसी पार्टियां अपनी कुटिल नीति से मुस्लिमों को उसी गर्त में रहने पर विवश कर रही है। लेकिन मोदी की बात का असर इसबार जरूर मुस्लिमों पर होना तय है। मुस्लिम अब भी अपने वोट की ताकत को समझता है। वह भी इसबार अपनी समृद्धि और स्वर्णिम भविष्य को देखते हुए मतदान करेगा। क्योंकि ये भारत उसका है, राष्ट्र पर उसका भी अधिकार है।

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