त्‍वरित टिप्‍पणी: है राम के वजूद पे हिन्दोस्तां को नाज़

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-फ़िरदौस ख़ान

है राम के वजूद पे हिन्दोस्तां को नाज़

अहल-ए-नज़र समझते हैं इस को इमाम-ए-हिन्द

लबरेज़ है शराब-ए-हक़ीक़त से जाम-ए-हिन्द

सब फ़सलसफ़ी हैं ख़ित्त-ए-मग़रिब के राम-ए-हिन्द

बाबरी मस्जिद और राम जन्मभूमि मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच का फ़ैसला आ चुका है। अदालत ने विवादित ज़मीन को तीन हिस्सों में बांटा है। एक हिस्सा हिन्दुओं, दूसरा हिस्सा निर्मोही अखाड़े और तीसरा हिस्सा मुसलमानों को देने के निर्देश दिए गए हैं। न्यायाधीश एसयू ख़ान, न्यायाधीश सुधीर अग्रवाल और न्यायाधीश धर्मवीर शर्मा की खंडपीठ द्वारा दिए गए इस फ़ैसले का इससे बेहतर हल शायद ही कोई और हो सकता था। यह फ़ैसला देश की एकता और अखंडता को बनाए रखने वाला है। इसलिए सभी पक्षों को इसे दिल से क़ुबूल करना चाहिए। हालांकि मुस्लिम पक्ष के वकील इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाने की बात कर रहे हैं। मुसलमानों को चाहिए कि इस मामले को यहीं ख़त्म कर दें और देश और समाज की तरक्क़ी के बारे में सोचें। देश और समाज के हित में सांप्रदायिक सौहार्द्र बढ़ाने के लिए यह एक बेहतरीन मौक़ा है। विवादित ज़मीन पर मंदिर बने या मस्जिद, दोनों ही इबादतगाह हैं। दोनों के लिए ही हमारे मन में श्रद्धा होनी चाहिए।

राम हिन्दुओं के तैंतीस करोड़ देवी-देवताओं में से एक हैं। राम ने अपने पिता के वचन को निभाने के लिए अपना सिंहासन त्यागकर वनवास क़ुबूल कर लिया। मुस्लिम बहुल देश इंडोनेशिया में भी राम को एक आदर्श पुरुष के रूप में देखा जाता है। यह दुनिया में सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी वाला देश है। हम जिस धरती पर रहते हैं, राम उसकी संस्कृति के प्रतीक हैं। हमें अपने देश की संस्कृति और सभ्यता का सम्मान करना चाहिए। अदालत के फ़ैसले का सम्मान करते हुए उदारवादी मुसलमानों को आगे आना चाहिए।

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फ़िरदौस ख़ान
फ़िरदौस ख़ान युवा पत्रकार, शायरा और कहानीकार हैं. आपने दूरदर्शन केन्द्र और देश के प्रतिष्ठित समाचार-पत्रों दैनिक भास्कर, अमर उजाला और हरिभूमि में कई वर्षों तक सेवाएं दीं हैं. अनेक साप्ताहिक समाचार-पत्रों का सम्पादन भी किया है. ऑल इंडिया रेडियो, दूरदर्शन केन्द्र से समय-समय पर कार्यक्रमों का प्रसारण होता रहता है. आपने ऑल इंडिया रेडियो और न्यूज़ चैनल के लिए एंकरिंग भी की है. देश-विदेश के विभिन्न समाचार-पत्रों, पत्रिकाओं के लिए लेखन भी जारी है. आपकी 'गंगा-जमुनी संस्कृति के अग्रदूत' नामक एक किताब प्रकाशित हो चुकी है, जिसे काफ़ी सराहा गया है. इसके अलावा डिस्कवरी चैनल सहित अन्य टेलीविज़न चैनलों के लिए स्क्रिप्ट लेखन भी कर रही हैं. उत्कृष्ट पत्रकारिता, कुशल संपादन और लेखन के लिए आपको कई पुरस्कारों ने नवाज़ा जा चुका है. इसके अलावा कवि सम्मेलनों और मुशायरों में भी शिरकत करती रही हैं. कई बरसों तक हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की तालीम भी ली है. आप कई भाषों में लिखती हैं. उर्दू, पंजाबी, अंग्रेज़ी और रशियन अदब (साहित्य) में ख़ास दिलचस्पी रखती हैं. फ़िलहाल एक न्यूज़ और फ़ीचर्स एजेंसी में महत्वपूर्ण पद पर कार्यरत हैं.

12 COMMENTS

  1. सही कहा है फिरदौस जी आपने ,जो हो गया वो हो गया अब बीती बाटों को याद करने से क्या फायदा ,अगर वो जमीन मंदिर को दे दी जाती तो मुस्लमान नही मानते और मस्जिद को दे दी जाती तो हिन्दू नहीं मानते ,और जब ये फैसला बहुसंख्यक समुदाय को मंजूर है तो कुछ सिरफिरे और पागल लोग क्यों मरने मरने पर आमादा है , अरे भाई राम की अयोध्या को अब तो अयोध्या बन जाने दो क्यों उसे नरक बनाने पर आमादा हो बस यही कहना था

  2. ramjanmbhumi par court kafaisala nation k hit men ha .rastrdrohio ko samajhna chahia .we rajniti ki roti na seke. ram sabke aaradhy han. jo v india ko matribhumi, janmbhumi,punyabhumi manta ha wo deshbhakt tatha na manne wala rastradrohi bharatdrohi ha.

  3. कुछ लोगों ने हिन्दुओं से उदारता दिखलाने की अपेक्षा की है. मेरे उनसे कुछ प्रश्न हैं:—–
    – भारत को दारुल हरब और दारुल इस्लाम (जहां शासक और शासित केवल मुस्लिम होंगे) बनाने के लिए कौन काम कर रहा है ? क्या हिन्दुओं ने कभी भी कोई ऐसी मांग की है ? क्या हिन्दू बहुल भारत में ईसाई व मुस्लिम सुरक्षित रह कर अपनी विकास नहीं कर रहे ? उनमें से कई हिन्दू विरोधी कम करते नहीं पाए जा रहे ? इस प्रकार वे हिन्दुओं में रह कर हिन्दुओं के विनाश का कम नहीं कर रहे ?
    – गृहमंत्रालय के अनुसार अब तक ६५ हज़ार लोग जिहाद की भेंट चढ़ चुके हैं. अब और क्या चाहते हो हिन्दुओं से ? यही कि वे चुचाप मरा कंरें, शोर न मचाया करें !
    – कौन है जो अपने मज़हब के इलावा और सब को काफिर कह कर उनसे नफरत करने की तालीम सैंकड़ों साल से दे रहा है ? मज़हबी दागों का कारण वे तासुबी लोग हैं या हिदू ?
    – यदि हिन्दू साम्प्रदायिक है तो हर उस गली-मोहल्ले में दंगे क्यों नहीं होते जहां पर हिदू बहुसंख्यक हैं और मुस्लिम या ईसाई अल्प संख्यक हैं ?
    – वहाँ दंगे क्यों होते हैं जहां पर मुस्लिम या ईसाई बहुसंख्यक होते हैं ?
    – पूरे भारत में एक ऐसा मोहल्ला, कस्बा, गाँव बतलाईये जहां पर ईसाई या मुस्लिम बहु संख्यक हों और वहाँ पर हिन्दू सुरक्षित व सम्मानित हों ? अगर नहीं बतला सकते तो फिर क्यों इस बात पर परदे डाल रहे हो की साम्प्रदायिक कौन है और सहिष्णु कौन है ?
    ## दुनिया का कोई एक सम्प्रदाय बतलाईये जो हिन्दू समाज जितना सहनशील, सहिष्णु और उदार हो. फिर भी अगर लोग ‘हिन्दुओं’ को बदनाम करते हैं तो वे या तो अल्पग्य, अग्यानी व महामूर्ख हैं और या फिर हिन्दुओं के दुश्मन और महा बदमाश हैं.###
    – हिन्दुओं ने कब कहाँ, किसके धर्म स्थलों पर कब्जा करके उन्हें विनष्ट किया और वहाँ अपना मंदिर बनाया ? किसकी है ये परम्परा ? भारत के हज़ारों मठ-मंदिरोंका विध्वंस करके वहाँ अपने चर्च या गिरजाघर बनाने वाले विदेशी आक्रमणकारियों के समर्थकों, उन्हें अपना अग्रज मानने वालों को इस देश में रहने का कानूनी व नैतिक अधिकार मिलना चाहिए क्या ?
    – भारत के बाहर निष्ठा रखने वाले ऐसे लोगों को समर्थन, सुरक्षा देने वाले भारत व हिन्दू समाज के दोस्त कहलायेंगे या दुश्मन मानेजाने चाहियें ?
    *** अंत में इतना निवेदन है की हिन्दू समाज की सहनशीलता व सज्जनता का इतना दुरूपयोग न करें कि वह अपना धैर्य खो कर अनने दुश्मनों की तरह हिंसक बन बैठे. यदि ऐसा हुआ तो कोई सत्ता या सरकार फिर उसे रोक नहीं पायेगी. अतः हिन्दू समाज को अपमानित करने व उस पर झूठे आरोप लगाने की दुष्टता बंद की जानी चाहिए. कोई कितना भी सहनशील हो, पर हर बात की एक सीमा होती है ; वह समाप्त न हो जाए ***.

  4. सब आपकी तर्ह थोडी सोचते है,अगर सोचते तो ना तो मन्दिर टुटता,ना कोयी संग्रस होता,ना कोयी आन्दोलन होता ,ना राजनिति,ना ढाचा टुटता.मुस्लिम पक्ष को जरुर सुप्रिम कोर्ट जाना चाहिये ये उनका संवैधानिक अधिकार है,लेकिन सुप्रिम कोर्ट के निर्ण्य से भी कोयी हल नही निकलेगा,क्यो ना आज ही बैठ कर हम सब भारतिय हर उस चिज को खत्म कर दे जो हिन्दु को मुस्लमान से अलग करति है और मुसल्मान को हिन्दु से.सारे मुद्दे निपटा दो ताकि आने वाली पिढि ये नही कहे कि उनके पुर्वजो ने अपने लिये सिर्फ़ सम्स्याओ का घर भारत छोडा था.गौ हत्या से लेकर सारे मन्दिर के झगडे निपटा दिये जाये,एक दुसरे को काफ़िर या म्लेछ समझने की मानसिकता को खत्म कर दिया जाये,ताकि कोयी झगडा ही नही रहे,वर्ना हर ५ -१० साल मे लडते रहेंगे,और पीढि दर पीढी दुस्मनी निभाते रहेंगे,ये भारत कभी जगद गुरु नही बनेगा कभी समर्थ नही होगा एसे झागडो से तो………………………जो लोग ये सोचते है कुछ ले देकर मामल निपटा देण्गे वो शायद “समाज की नाक” वाली मानसिकता को नही जानते है,एक बार जब ये विषय उछल जाता है तब किसि के काबु मे नही आता,अत: मन्दिर मस्जिद के मामलो को “नाक” से नही “दिमाग” से सोचना पडेगा,very good article

  5. काश कि इतनी दयानतदारी हम हिंदू भी दिखा पाते… सुनिए अब निर्मोही अखाड़ा और विहिप भी तो पूरी जमीन के लिए सुप्रीम कोर्ट में अपील करने जा रही है… नौ दिन चले अढ़ाई कोस…!

  6. गर फिरदौस बर-रु -ये -जमीं अस्त .हमीं असतो -हमीं असतो ..
    ये शब्द भले ही कश्मीर के लिए हैं – किन्तु बहिन फिरदौस के आलेख के लिए भी यही मौजूं हैं ..शुक्रिया ..आमीन …एक नूर के हैं सब बन्दे …कौन भले को मंदे ?

  7. फिरदौस खान जी आपके विचार बड़े प्रेरक, सकारात्मक और सुलझे हुए हैं. आशा है की समझदार और देशभक्त लोग इन्हें समझेंगे और इन पर आचरण करेंगे. ख़ास कर वे लोग जो भारत के राष्ट्र पुरुषों में नहीं, विदेशी आक्रमणकारियों में श्रधा रखते हैं.

  8. वाह बहुत अच्छा. प्रेरणास्पद राष्ट्रवादी विचार.

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