राहुल जी! संघर्ष करो

Rahul on leave

राहुल गांधी को कांग्रेस का नेता बनाने की जब-जब तैयारी की जाती है तब-तब ही कोई ऐसी घटना घटित होती है कि कांग्रेस की ‘राजमाता’ सोनिया गांधी को उनका ‘राजतिलक’ टालना पड़ जाता है। अब राहुल गांधी के राजतिलक की चर्चाएं सुनने को निरंतर मिल रही थीं, पर अब आसाम, पश्चिम बंगाल, केरल, तमिलनाडु और पांडिचेरी के चुनाव परिणामों ने राहुल के ‘राजा’ बनने की संभावनाओं को टाल दिया है। सोनिया गांधी पिछले कई वर्ष से अपने कंधों से भार को हल्का करने की सोच रही हैं, सारी कांग्रेस पार्टी भी उनके निर्णय को सुनने की मुद्रा में खड़ी है, पर यह राहुल गांधी ही हैं जो उन्हें हर बार निराश कर देते हैं। राहुल ने आसाम में बचपना दिखाया और ‘कन्हैया’ को एक नायक के रूप में प्रस्तुत कर दिया। एक देशद्रोही को तो जनता ने दण्ड दिया ही साथ ही उसको गले लगाने वालों को भी नाप दिया है। अब राहुल गांधी के इस बचपने से सबसे अधिक दुख उनकी मां को है। कांग्रेस इस समय संक्रमण काल से निकल रही है-उसके लिए यह आवश्यक है कि वह इस समय अपने नेता के पीछे खड़ी हो। पर उसकी समस्या यह है कि उसके पास कोई नेता नही है। वह आगे पीछे, दांए-बांए चारों ओर देख रही है और उसे कोई नेता दिखाई नही दे रहा। देश में सूखा पड़ रहा है और लोग बिना पानी के दुखी हैं इधर कांग्रेस में भी सूखा पड़ गया है और वह भी बिना पानी (नेता) के दुखी है। उसके नायक ने उसे निराश किया है।

राहुल जी! तनिक सुनें। मिथिला के राजपंडित गणपति के पुत्र विद्यापति अपने पिता की भांति धर्मशास्त्रों के ज्ञाता और परमधार्मिक व्यक्ति थे। उन्होंने किशोर अवस्था में ही काव्य साधना आरंभ कर दी थी। उनकी कविताएं सुनकर मिथिला नरेश शिवसिंह मंत्रमुग्ध हो उठते थे।

राजा प्राय: विद्यापति को अपने राजभवन में आमंत्रित कर उनसे धर्म, संस्कृति एवं साहित्य संबंधी वात्र्तालाप किया करते थे। एक दिन राजा ने कहा-‘‘पंडितराज! आपने सर्वधर्म शास्त्रों का व साहित्य का गहन अध्ययन किया है। शास्त्रों में सच्चे मानव के क्या लक्षण बताये गये हैं?’’

महाकवि विद्यापति ने बताया-‘‘सदगुणों से युक्त व्यक्ति ही सच्चा मानव कहलाने का अधिकारी है। जो विद्यावान, विवेकी, पुरूषार्थी, संयमी व सदाचारी हो, वही सच्चा पुरूष कहलाने का अधिकारी है। धर्मशास्त्रों में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चारों पुरूषार्थों की प्राप्ति मानव के लिए आवश्यक मानी गयी है। विवेकी, बुद्घिमान, संयमी और कत्र्तव्यनिष्ठ अर्थात पुरूषार्थी व्यक्ति ही इन चारों कत्र्तव्यों की पूत्र्ति करने की क्षमता रखता है। मूढ, आलसी, असंयमी और दुराचारी तो इनमें से एक की भी प्राप्ति नही कर सकता। अत: धर्मशास्त्रों में इन सब सद्गुणों से रहित पुरूष को पूंछ रहित पशु की संज्ञा दी गयी है। ’’ महाकवि के शब्दों में अदभुत चेतना थी। राजा समझ गया था कि एक राजा के लिए भी कैसे गुणों की आवश्यकता है? वह समझ गया कि जब एक साधारण व्यक्ति के लिए इतने गुणों का होना आवश्यक है तो राजा के लिए तो ये गुण प्राथमिकता पर होने चाहिए।

राहुल गांधी के साथ समस्या यह है कि उनके पास कोई ऐसा व्यक्ति नही है जो राजपंडित विद्यापति का स्थान ग्रहण कर सके। उनका दुर्भाग्य है कि उन्होंने विद्यापति वाली संस्कृति में प्रारंभ से ही विश्वास नही किया। उनकी ‘माता रानी’ सोनिया गांधी की छत्रछाया में वह पले बढ़े हैं, इसलिए उनके संस्कारों में विदेशीपन दिखायी देना आवश्यक है।

आज कांग्रेस में नवजीवन का संचार करने की आवश्यकता है। उसके लिए नायक का परिश्रमी, पुरूषार्थी और संघर्षशील होना आवश्यक है। राहुल गांधी को समझना चाहिए कि जैसे एक गेंद आकाश की ओर तभी तक जाती है जब तक उसके पीछे हमारे हाथ की शक्ति कार्य करती रहती है। जैसे ही हमारे हाथ की शक्ति या बल क्षीण होता है वैसे ही वह गेंद पृथ्वी के गुरूत्वाकर्षण बल के कारण तेजी से धरती की ओर लौट आती है। ऐसे ही किसी परिवार के या राष्ट्र के पूर्वजों के दिये संस्कार और पुण्य कार्यों का बल होता है जो अपने परिवार को या राष्ट्र को ऊंचाई की ओर ले जाते हैं। वे संस्कार जितनी देर तक कार्य करते रहते हैं-उतनी देर तक वह राष्ट्र ऊंचाई की ओर दौड़ता रहता है। इस देश के पास अनेकों ऋषियों, सम्राटों और श्रीराम व कृष्ण जैसे दिव्य महामानवों के पुण्यों का प्रताप है जिसके कारण यह आज भी विश्व में सम्माननीय हैं। हर देश अपनी विरासत के आधार पर ही आगे बढ़ता है। विरासत व्यक्ति का सम्बल होती है और उसके लिए पथ प्रशस्त किया करती है।
राहुल गांधी के पास भी विरासत है। पर उस विरासत के पुण्य कार्य अब क्षीण हो चुके हैं। नेहरू, गांधी, इंदिरा, राजीव-राहुल गांधी के लिए ये धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के पुरूषार्थ बनाकर समझाये गये हैं और कांग्रेस के नीतिकारों ने इन चारों नेताओं को राहुल को मन, बुद्घि, चित्त और अहंकार के चित्त चतुष्टय के रूप में बताया है। पर अब देश की जनता तो समझ गयी है कि चारों ना तो हमारे शास्त्रोल्लिखित पुरूषार्थ हैं और ना ही हमारे चित्त-चतुष्टय की परिधि है, इनके सच को जनता ने समझ लिया है और वह देख रही है कि इन नेताओं के पुण्य क्षय को प्राप्त हो गये हें जिससे कांग्रेस की गेंद निरंतर नीचे की ओर आती जा रही है। अब छह प्रांतों में कांग्रेस का शासन शेष रह गया है। कांग्रेस मुक्त भारत लगभग बन गया है।

राहुल के लिए बड़ी चुनौती है। उन्हें गेंद फिर से ऊंचाई की ओर लौटानी है। कांग्रेस के खाते में फिर पुण्यों का संचय करना है। उनके व्यक्तित्व को देखकर नही लगता कि वह एक पुरूषार्थी नेता की भांति ‘भागीरथ’ प्रयास करने के लिए स्वयं को प्रस्तुत करेंगे। यदि वह अपने आप को इस कार्य के लिए प्रस्तुत करना चाहते हैं तो उन्हें समझना होगा कि कांग्रेस की यह गेंद वापस क्यों आ रही है? इसकी समीक्षा के लिए उन्हें गांधी नेहरू से लेकर अपनी माता सोनिया गांधी तक की कांग्रेस के इतिहास की भूलों को स्वीकार करना होगा। उनसे शिक्षा लेनी होगी, क्योंकि भूलों से शिक्षा लेकर ही कोई संगठन आगे बढ़ सकता है। पांचों राज्यों के चुनाव परिणामों की जिम्मेदारी उनकी और उनकी मां की है। इस जिम्मेदारी को केवल औपचारिकता के लिए स्वीकार न कर जितनी गंभीरता से वह स्वीकार करेंगे उतना ही अच्छा रहेगा। क्योंकि हार की जिम्मेदारी लेने में जितनी गंभीरता होगी उतने ही अनुपात में उस बुराई को सुधारने का गंभीर प्रयास उनकी ओर से किये जाने की अपेक्षा की जा सकती है।

राहुल जी विचार करें कि संवैधानिक प्रतिष्ठानों का अपमान करने की शुरूआत कब हुई? राष्ट्रपति जैसे गरिमामयी पद पर अपने लोगों को बैठाकर उसकी गरिमा को ठेस पहुंचाने की नीति को कब किसने अपनाया? देश में भ्रष्टाचार किसने बढ़ाया? देश में छद्म धर्मनिरपेक्षता का प्रचार करके मुस्लिमों का तुष्टिकरण किसने किया? जाति के नाम पर आरक्षण देकर एक वर्ग का शोषण किसने किया? समान नागरिक संहिता का प्राविधान संविधान में होते हुए भी उसे लागू क्यों नही किया गया? धारा 370 को लागू करके उसे अस्थायी बताकर भी हटाया क्यों नही गया? जातिवाद को मिटाकर ‘अन्त्योदयवादी लोकतंत्र’ को देश में किसने लागू नही किया? ऐसे कितने ही प्रश्न हैं जिन पर कांग्रेस के नेतृृत्व को अब गहन मंथन और अंतरावलोकन करना चाहिए। ये प्रश्न देश की जनता पूछ रही है-उसकी मानसिकता के साथ कांग्रेस को अपनी मानसिकता का समन्वय करना होगा। ‘कन्हैया’ की संगति भारी पड़ती है जब वह जेएनयू में बड़ा होता है और देश तोडऩे की बात कहता है पर जब वह वृंदावन मथुरा या कुरूक्षेत्र में मिल जाता है तो वह आसुरी शक्तियों का विनाश करने की प्रेरणा देकर बेड़ा पार भी करा देता है। राहुल गांधी से चूक यह हुई कि उन्होंने जेएनयू वाला कन्हैया पकड़ लिया है उन्हें कुरूक्षेत्र वाले कन्हैया को पकडऩे के लिए ‘महाभारत’ करना ही होगा। उधार पायों से कभी नाव पार नही होती है ना ही बिहार में नीतीश बाबू की ताजपोशी में जाकर अपनी गरिमा घटाने से नाव पार होगी। राहुल जी! संघर्ष करो, आसुरी शक्तियों को पहचानो, उनसे हाथ मिलाओगे तो ‘हाथ’ कटा लोगे और यदि उनसे दो-दो हाथ करोगे तो महानायक बन जाओगे, तुम्हारी मां तुम्हें महानायक बनाना चाहती है-उनकी पीड़ा को समझो।

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राकेश कुमार आर्य
उगता भारत’ साप्ताहिक / दैनिक समाचारपत्र के संपादक; बी.ए. ,एलएल.बी. तक की शिक्षा, पेशे से अधिवक्ता। राकेश आर्य जी कई वर्षों से देश के विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं। अब तक चालीस से अधिक पुस्तकों का लेखन कर चुके हैं। वर्तमान में ' 'राष्ट्रीय प्रेस महासंघ ' के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं । उत्कृष्ट लेखन के लिए राजस्थान के राज्यपाल श्री कल्याण सिंह जी सहित कई संस्थाओं द्वारा सम्मानित किए जा चुके हैं । सामाजिक रूप से सक्रिय राकेश जी अखिल भारत हिन्दू महासभा के वरिष्ठ राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और अखिल भारतीय मानवाधिकार निगरानी समिति के राष्ट्रीय सलाहकार भी हैं। ग्रेटर नोएडा , जनपद गौतमबुध नगर दादरी, उ.प्र. के निवासी हैं।

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