राजनीति

राहुल की बौखलाहट के पीछे का राज !

सुरेश हिंदुस्‍तानी

images (4)नन्हा मुन्ना राही हूँ देश का सिपाही हूँ बोलो मेरे संग जय हिन्द …. इतना कहने के बाद भी जब उस नन्हें मुन्ने राही के साथ कोई जय हिन्द बोलने को तैयार नहीं होता तो वह खिसिया जाता है, और इसी खिसियाहट के कारण वह ऊल जलूल भाषा का प्रयोग करना शुरू कर देता है। आज शायद राहुल गांधी के साथ भी ऐसा ही हो रहा है, देश की जनता का प्रत्युत्तर जब उनको अपने मन के हिसाब से नहीं लगता, तब वे बौखला जाते हैं, और अनाप शनाप बोलने लगते हैं। राहुल को यह बात तो समझ में आ ही गई होगी कि उनकी सभाओं में भीड़ जुटाई जाती है, अपने आप नाही आती।

जब कोई राजनीतिक दल असफलता की तरफ जाता दिखाई देता है तब उसके नेताओं के स्वर में बौखलाहट आ जाती है। कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी भी वर्तमान में कुछ ऐसी ही भाषा का प्रयोग करने पर उतारू हो गए हैं । क्या यह बौखलाहट इस बात की तरफ संकेत नहीं करती कि कांग्रेस के पास अपनी कुछ भी उपलब्धियां नहीं हैं, वह आज विरोधी पर हमला करके पुनः स्थापित होने का स्वप्न देख रही है।

राहुल गांधी ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी तोड़ने का काम करती है, और कांग्रेस जोड़ने का। राहुल को शायद कांग्रेस का इतिहास नहीं पता, अगर पता होता तो इस प्रकार की बात बिलकुल ही नहीं करते, सभी जानते हैं कि कांग्रेस ने हमेशा तोड़ने का काम किया है, चाहे वह देश को तोड़ने की बात हो या समाज को तोड़ने की, आज समाज के भीतर जो विभाजन की दीवार है वह कांग्रेस की देन ही है । क्या कांग्रेस इस बात से अनभिज्ञ है जिन स्वरों के साथ देश का विभाजन हुआ, वैसे ही स्वर पुनः मुखरित होने लगे हैं। देश में रहने वाले मुसलमानों को मनमाफिक अधिकार देने वाले ये राजनीतिक दल आज देश को एक और विभाजन की ले जा रही हैं।

देश में पनप रही आरोप प्रत्यारोप की राजनीति बंद होना चाहिए। और घटिया आरोप तो तुरंत ही बंद होना चाहिए, राहुल गांधी ने जो आरोप लगाए हैं वह निम्न स्तर के हैं। उन्होने शायद यह कहने की कोशिश की है कि भाजपा ने मेरी दादी को मारा, मेरे पिता को मारा, अब मुझे भी मार डालेंगे । पूरा देश जानता है कि इंदिरा गांधी की हत्या कैसे हुई, और उसके पीछे के कारण भी जगजाहिर हैं, इसी प्रकार राजीव गांधी की हत्या के पीछे लिट्टे का हाथ था, इन दोनों मामलों से भाजपा का कोई लेना देना नहीं है, फिर राहुल ने ऐसा केवल इसलिए बोला कि देश में एक नई बहस का सूत्रपात हो, और मीडिया वाले इसी बयान पर केन्द्रित होकर रह जाएँ। इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के हत्या के तार विदेशी शक्तियों द्वारा संचालित आतंकवादियों से जुड़े हैं, देश के खुफिया तंत्र ने इस बात की गहराई से जांच करने का कभी प्रयास नहीं किया कि इन हत्याओं में विदेशी शक्ति की भूमिका क्या है? अगर इसकी सही ढंग से जांच हो जाये तो भारत के कई नेताओं की आतंकवादियों से साठगांठ उजागर हो सकती है, पर जांच करे कौन? सारा तंत्र आज कांग्रेस के हाथ में होने के बाद भी जांच नहीं होना, सवाल खड़े करता है? इसका उत्तर देना आज की बहुत बड़ी चुनौती है। इसके अलावा देश तो यह भी जानता है कि कांग्रेस ने राजीव के हत्यारों को बचाने का प्रयास किया था, यह प्रयास क्यों किया किया गया, जबकि कांग्रेस कहती है कि कानून सबके लिए समान है, फिर आतंकवादियों के लिए रहम क्यों किया जाता है। हमारे देश में बड़े नेताओं की हत्या के पीछे कौन से षड्यंत्र रहे, इस बात की जांच को लेकर हमारे देश की सरकार कभी गंभीर नहीं रही। क्या इस गंभीर नहीं होने के पीछे भी कोई कारण हो सकता है? लाल बहादुर शास्त्री की मौत के पीछे क्या कारण थे, इस बात की कभी जांच नहीं की गई…..। इसके बाद नंबर आता है संजय गांधी का। संजय गांधी की हत्या हुई या दुर्घटना, यह आज तक रहस्य बना हुआ है, अभी तक पर्दा उठाने के लिए किसी ने प्रयास नाही किया? इसके अलावा प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या हो गई, इसमें केवल सतवन्त सिंह और बेअंत सिंह को अंतिम अपराधी मान लिया गया…. इसके पीछे कौन से कारण रहे इस बात की कोई खोज खबर नहीं ली गई? इन दोनों के पीछे कौन सी शक्ती ने काम किया, इस बात की चिंता किसी को नहीं है? इसके अलावा राजीव गांधी की हत्या लिट्टे के उग्रवादियों ने कर दी।

राहुल गांधी ने जब दागी सांसदों को लेकर सरकार द्वारा बनाए गए अध्यादेश की प्रति को बकवास करार दिया तब यह बात सामने आई कि यह बौखलाहट भरा कदम था। हालांकि बाद में सोनिया गांधी ने राहुल से कहा था कि शब्द गलत थे, लेकिन भावनाएं सही थीं। इससे यह तो साबित होता है कि राहुल गांधी को हिन्दी के शब्दों का ज्ञान नहीं है, सवाल यह भी पैदा होता है कि राहुल को जब कांग्रेस ने प्रधानमंत्री पद का दावेदार मान ही लिया है तब राहुल को गंभीरता दिखानी चाहिए, ऐसे बचकाना बयान से वे क्या साबित करना चाह रहे हैं।

आज कांग्रेस के नेता इस बात को लेकर बेहद परेशान दिखाई देती है कि कांग्रेस के पास ऐसा कोई नेता नहीं है जिसके नाम पर भीड़ खिची चली आए, नेताओं की आधी शक्ति भीड़ जुटाने मैं ही लग जाती है, राहुल गांधी के साथ भी कुछ ऐसा ही है, आज राहुल की सभाओं में जो भीड़ आती है वह पूरी तरह प्रायोजित ही रहती है। इन्हीं सब कारणों के चलते अब कांग्रेस नेता अभिनेता और क्रिकेटरों का सहारा ले रही है। कई कांग्रेसी तो अभी से कहने लगे हैं कि हमारे नेताओं के नाम पर भीड़ एकत्रित नहीं हो रही है, इससे तो अच्छा है कि फिल्मी सितारों को प्रचार के लिए उतारा जाये।