कविता

वर्षा !-बीनू भटनागर

वर्षा !

वर्षा !

तुमसे करूँ विनती एक,

रुक ना जाना एक जगह पर,

सबको प्यार बराबर देना।

वर्षा !

इतना जल भी ना दे देना जो,

घर घरोंदे,गाँव गली, चौबारे,

खेत किसान , मवेशी सारे,

जल मग्न हो जायें।

नदियाँ उफ़ान लेले

और नाव उसी मे डूबें।

भूखे प्यासे लोग,

पानी मे घिरकर,

पेड़ों पर रात गुज़ारें।

वर्षा !

तुम हर छोर पर जाना,

पूरब, पश्चिम,उत्तर,दक्षिण,

सबकी प्यास बुझाना,

कहीं का रस्ता भूल न जाना,

सब पर प्यार लुटाना,

कहीं भी कुऐं ना सूखें,

नदियाँ झीलें भरी रहें,

चटके नहीं दरार धरती पर,

कहीं न सूखी धूल उड़े।

वर्षा !

तुम आगे बढ़ना,

भूल ना जाना मेरी विनती,

सबको प्यार बराबर देना।

वर्षा !

बरसो छम छम छम,छम।

बादल गरजो, बरसो थम थम।

प्यास बुझाओ धरती की तुम।