आपदाकाल में भी जनसेवा में लगे हुए हैं राजस्थान के ‘पैडमैन’ राजेश कुमार सुथार!

दीपक कुमार त्यागी
जिस वक्त लोग अपने जीवन को सुरक्षित रखने के लिए अपने घरों के अंदर छिपकर बैठे हैं, उस समय राजस्थान के हनुमानगढ़ जनपद की तहसील संगरिया के एक छोटे से गांव नाथवाना में मध्यमवर्गीय परिवार लालचंद सुथार के घर 15 फरवरी 1989 को जन्मे ‘पैडमैन’ के नाम से मशहूर राजेश कुमार सुथार ‘नर सेवा नारायण सेवा’ को अपने जीवन का मुख्य सिद्धांत मानकर निस्वार्थ भाव से आम जनमानस की हर संभव मदद कर रहे हैं, वैसे परिवार का जीवन यापन करने के लिए राजेश दूध का  कारोबार करते हैं। लेकिन समाजसेवा करना उनका जुनून है, वो कोरोना की भयावह आपदा के वक्त में संक्रमित व्यक्ति को अस्पताल में एडमिट करवाने से लेकर के उसको बेड, ऑक्सीजन, आईसीयू, वेन्टीलेटर वाला बेड, दवाई, इजेक्शन, प्लाज़्मा व एंबुलेंस तक उपलब्ध करवाने में दिनरात एक करके अपने शुभचिंतकों के साथ जुटे हुए हैं। लोग भयंकर आपदाकाल में ‘पैडमैन राजेश’ के अंदर छिपे सेवाभाव के जबरदस्त जज्बे को देखकर आश्चर्यचकित हैं, हालांकि देश में जब से कोरोना महामारी का काल पिछले वर्ष से शुरू हुआ है, तब से ही ‘पैडमैन राजेश’ लगातार जरूरतमंद लोगों को हर संभव मदद पहुंचाने का कार्य कर रहे हैं।
मैं आपको राजेश सुथार के एक दूधिया से ‘पैडमैन राजेश’ बनने से जुड़ी एक घटना से अवगत कराना चाहता हूँ कि आखिर उनको जीवन पथ पर चलते हुए अचानक से ‘पैडमैन’ बनने की प्रेरणा कहाँ से मिली, यह सवाल पूछने पर बातचीत में राजेश कुमार सुथार बताते हैं कि पिछले वर्ष लॉकडाऊन लगने से पहले एक बार वह अपने गांव से दूध इकट्ठा करके उसको बेचने के लिए निकले थे कि पास के एक स्कूल के गेट के पास दो बच्चियां बैठी हुई थी, उनमें से एक बच्ची अपने पेट को पकड़ कर रो रही थी! यह देखकर वो वहां पर उनसे उनकी समस्या पूछने के लिए रुक गये, तो दूसरी बच्ची उनसे बोली घर तक छोड़ दो भैया! इसके हालत बहुत खराब हैं फिर मैं दूसरी लड़की के बोलने पर और पहली बच्ची के खून से लथपथ कपड़े देखकर समझ गया कि इसकी समस्या का कारण मासिक धर्म है, मैने समस्या समझने के बाद उनकी हर संभव मदद की, इस घटना ने मुझे अंदर तक झकझोर दिया था। वैसे मैं दुध बेचने जब अक्सर गली-मौहल्लों में जाता था तो आस-पास खाली मैदान या कूड़े के ढ़ेर पर  अक्सर माहवारी के रक्त से रंजीत गंदे कपड़ों से जाने अनजाने में सामना हो ही जाता था। मैंने कुछ लड़कियों से बात करके जाना कि बहुत सारी लड़कियां महीने में एक सप्ताह स्कूल तक नहीं जा पाती हैं, जिसका एकमात्र कारण यह मासिक धर्म ही था, क्योंकि उनके पास ना तो पर्याप्त कपड़े बदलने के लिए थे और ना ही उनके पास कपड़ों को धोने के लिए सर्फ या साबुन था।
ऐसी गरीब के हालात में उन बच्चियों के पास सैनिटरी पैड खरीदने के लिए पैसे होना तो बहुत दूर की बात थी। उस दिन घटित दिलोदिमाग को झकझोर देने वाली घटना से प्रेरित होकर मैंने शुरू में कुछ बेहद जरूरतमंद महिलाओं को अपने रोजमर्रा के खर्चों में कटौती करके हुई बचत से सैनिटरी पैड खरीद कर बांटने शुरू कर दिये, फिर मैंने देखा कि इस तरह की जरूरतमंद महिलाएं काफी संख्या में हैं, जो पैसों के अभाव में सैनिटरी पैड दुकान से नहीं खरीद सकती हैं। फिर मैंने लोगों को सोशल मीडिया के ताकतवर माध्यम से फेसबुक आदि पर मदद करने के लिए कहा तो कुछ लोगों ने मेरा उपहास उड़ाया और कुछ लोगों ने मेरी हौसलाफजाई करते हुए इस मुहिम में मेरा साथ देने का वचन दिया। धीरे-धीरे मेरी मुहिम रंग लेकर आयी और मैं लोगों की नजरों में राजेश कुमार सुथार से ‘पैडमैन राजेश’ बन गया।
मैं घर-घर जाकर 11 हजार 788 के आसपास सेनेटरी पैड जरूरतमंद महिलाओं को बांट चुका हूँ। इसमें से 7 हजार सेनेटरी पैड के पैकेट मेरे मित्र ने सहयोग के रूप में फ्री में मुझे दिये, क्योंकि उसकी सेनेटरी पैड की एक फैक्ट्री थी और बाकी के पैड मैंने जन सहयोग से जुटाए। इन एकत्रित सेनेटरी पैडों को मैंने खस्ताहाल कच्ची बस्तियों और ईट भट्टों पर व सड़क पर काम करने वाली महिलाओं को बांटने की मुहिम लगातार चला रखी है। मैं फेसबुक आदि के माध्यम से लगातार अपील करता रहता हूँ कि आप भी हमें सेनेटरी पैड भेजें ताकि मैं उनको जरूरतमंद महिलाओं तक पहुंचाने की अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन कर सकूं।

‘पैडमैन राजेश’ कहते हैं कि हमारा अपनी माताओं और बहनों के लिए एक स्वस्छ और सुखद जीवन देना नैतिक दायित्व है। उनके मासिक धर्म वाले मुश्किल दिनों को आसान बनाना और उनको स्वच्छ रखकर घातक जानलेवा बीमारियों से बचाना सभी की जिम्मेदारी है। राजेश कहते हैं कि गांव वालों से दुध लेकर आगे बेचते हुए अपना और अपने घर परिवार की जिम्मेदारी उठाने के साथ-साथ वह पूरे जुनून व ईमानदारी के साथ जनसेवा करते हैं, वह कहते हैं कि सेनेटरी पैड महिलाओं और माता बहन बच्चियों को देना हमारा एहसान नहीं है यह उनका हक है जिसको पूरा करना हम सभी लोगों का नैतिक दायित्व हैं। राजेश बताते हैं कि अब उनकी मुहिम धीरे-धीरे बड़ा रूप लेने लगी है और उनके अमेरिका कनाड़ा दुबई के प्रवासी भारतीयों से सहयोग मिल जाता है।

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