राजनीति

राजीव गांधी की हत्‍या और सोनिया कांग्रेस

डॉ. कुलदीप चंद अग्निहोत्री 

तमिलनाडु विधानसभा में सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया गया है कि राजीव गांधी के हत्यारों को फांसी न दी जाए। इस प्रस्ताव का करुणानिधि की डीएमके समर्थन करेगी ऐसा सभी को आभास था ही। चाहे एडीएमके दिल्ली में सोनिया कांग्रेस का समर्थन करती है और सोनिया कांग्रेस भी इसे अपना विश्वस्त सहयोगी बताती है। लेकिन राजीव गांधी की हत्या को लेकर डी एम के की भूमिका पर शुरु से ही उंगलियां उठती रही हैं। एडीएमके की जयललिता ने इस प्रस्ताव का समर्थन अपने राजनैतिक लाभ-हानि को देखकर किया होगा। परंतु सभी को विश्वास था कि सोनिया कांग्रेस के सदस्य इस प्रस्ताव का डटकर विरोध करेंगे। क्योंकि सोनिया कांग्रेस के लिए राजीव गांधी की हत्या का प्रश्न केवल एक पूर्व प्रधानमंत्री के हत्या का प्रश्न नहीं था बल्कि सोनिया कांग्रेस की अध्यक्षा श्रीमती सोनिया माइनो गांधी के पति की हत्या का भी प्रश्न था। लेकिन सभी को इस बात का ताज्जुब हुआ कि सोनिया कांग्रेस के विधानसभा सदस्यों ने इस प्रस्ताव का विरोध करने के बजाय इसका खुले रूप में समर्थन करना शुरु कर दिया। इससे पहले भी राजीव गांधी की हत्या में सजा भुगत रही नलिनी को जेल से छोड़े जाने की अपिल करते हुए सोनिया गांधी ने दखलंदाजी की थी। यहां तक कि सोनिया गांधी की बेटी भी नलिनी से मिलने के लिए जेल गई थी। उसकी इस मुलाकात को यत्नपूर्वक छिपाकर रखा गया था लेकिन मीडिया की अतिरिक्त सक्रियता के चलते यह मुलाकात लोगों के ध्यान में आ गई। इससे पहले जब सोनिया कांग्रेस ने दिल्ली में सरकार बनाने के लिए डीएमके को शामिल किया था तो राजनैतिक विश्लेषकों ने इसे राजनैतिक विवशता कहकर भी व्याख्यायित किया था। लेकिन अब जब तमिलनाडु विधानसभा में सोनिया कांग्रेस खुलकर राजीव गांधी के हत्यारों को न्यायालय द्वारा दी गई सजा से मुक्त करवाने के अभियान में शामिल हो गई है तो सोनिया कांग्रेस की पूरी नीति, उसका उद्देश्य संदेह के घेरे में आ जाते हैं। यह ध्यान में रहना चाहिए कि राजीव गांधी की हत्या से अभी पूरी तरह पर्दा नहीं हटा है। उनके हत्यारे तो पकड़े गए और उनको पूरी न्यायिक प्रक्रिया के उपरांत सजा भी हो गई है। यह अलग बात है कि जो लोग उनको इस सजा से बचाना चाहते हैं उनमें सोनिया कांग्रेस भी शामिल है। लेकिन अभी भी जो प्रश्न अनुतरित है, वह यह कि इस हत्या के पीछे के षड्यंत्रकारी कौन थे? इस षड्यंत्र को बेनकाब करने के प्रयास भी हुए। इसके लिए आयोग बने, उन्होंने लंबी जांच भी की। लेकिन जिस ओर संदेह की सूई जा रही थी, उधर जाने का साहस किसी ने नहीं किया। कुछ लोग तो ऐसा भी मानते हैं कि राजीव गांधी की हत्या के बाद नरसिंहा राव प्रधानमंत्री बनें और उन्होंने हत्यारों को पकड़ने के लिए पुलिस विभाग को अतिरिक्त चौकन्ना किया। इसलिए वे हत्यारे कानून के सिकंजे में आ गए। यदि नरसिंहा राव प्रधानमंत्री न होते तो शायद राजीव के वे हत्यारे भी पकड़े न जाते। जब सोनिया गांधी और उसके कुछ अत्यंत नजदीकी साथियों ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पर कब्जा कर लिया और कालांतर में कुछ अन्य छोटे-बड़े दलों के सहयोग से देश के सत्ता-सूत्रों पर भी आधिपत्य जमा लिया तो देश के बहुत से लोगों को लगा था कि सोनिया कांग्रेस की सरकार अब कम-से-कम राजीव गांधी की हत्या की साजिश की तो गहरी जांच करवाएगी और षड्यंत्रकारियों को जनता के आगे नंगा करेगी। परंतु इस मामले में सोनियां कांग्रेस आश्चर्यजनक ढंग से मौन रही और अब जब इतने अरसे बाद उसने अपना मौन तोड़ा भी है तो राजीव के हत्यारों को सजा से बचाने के लिए न कि उन्हें दंड दिलवाने के लिए। इधर आतंकवाद के भुक्तभोगी मनिंदरजीत सिंह बिट्टा ने एक रहस्योद्धाटन किया है कि दिल्ली में युवा सोनिया कांग्रेस के कार्यालय पर बम विस्फोट करने वाले आतंकवादी द्रेवेन्द्रपाल सिंह की माता को लेकर दिल्ली की मुख्यमंत्री श्रीमती शीला दीक्षित सोनिया गांधी के पास गई थी। देवेन्द्रपाल सिंह भुल्लर ने सोनिया कांग्रेस के कार्यालय पर जो आतंकवादी आक्रमण किया था उसमें अनेक लोगों की मौत हो गई थी। बिट्टा के ही अनुसार सोनिया कांग्रेस के एक प्रमुख मंत्री कपिल सिब्बल भुल्लर का केश कचहरियों में लड़ते रहे।

आखिर क्या कारण है कि आतंकवादी अपनी सजा माफ करवाने के लिए सोनिया कांग्रेस के ओर ही जाते हैं। सोनिया कांग्रेस की अध्यक्षा श्रीमती सोनियां गांधी ने राजीव गांधी की हत्या में सजा भुगत रही नलिनी को छुड़ाने के लिए जो कारण बताया था उसमें मुख्य कारण यह था कि राजीव गांधी के हत्यारों से बदला लेने की भावना न मुझमें है न मेरे बच्चों में है। यहां यह ध्यान रखना चाहिए कि राजीव गांधी की हत्या सोनिया गांधी और उसके बच्चों का परिवारिक मसला नहीं है बल्कि यह आतंकवाद से लड़ने की रणनीति का हिस्सा है। सोनिया गांधी नलिनी के पक्ष में गुहार लगाकर और अब सोनिया कांग्रेस तमिलनाडु विधानसभा में राजीव गांधी के हत्यारों को सजा से मुक्त कर सकने का प्रस्ताव पारित करके बडी चतुराई से इस पूरी रणनीति को पलिता लगाने का प्रयास का रही है।

सोनिया कांग्रेस की इसी रणनीति के कारण आतंकवाद को भारत में पैर पसारने का मौका मिल रहा है। आतंकवादी संगठन जानते हैं कि भारत सरकार आतंकवाद से लड़ने के बजाय उसका राजनैतिक लाभ-हानि देखेगी। सोनिया कांग्रेस से ही शायद संकेत पाकर जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने यह लिखने का साहस किया कि यदि जम्मू-कश्मीर विधानसभा संसद पर हमला करने वाले अफजल गुरु की सजा माफ करवाने का प्रस्ताव पारित कर देती है तो देशभर में उसकी क्या प्रतिक्रिया होगी? शायद उमर अब्दुल्ला की इसी भावना से प्रेरित होकर कश्मीर विधानसभा के एक सदस्य ने ऐसा प्रस्ताव विधानसभा में पेश भी कर दिया। उमर अब्दुल्ला तो अभी इस प्रकार के प्रस्ताव की प्रतिक्रिया ही देख रहे थे, आतंकवादियों ने दिल्ली हाई कोर्ट पर आक्रमण करके अफजल गुरु को मुक्त करने की मांग कर डाली। सोनियां कांग्रेस और आतंकवादी संगठनों में फांसी प्राप्त दहशतगर्दों को छुड़ाने के तरिके को लेकर हीं मतभेद है, उद्देश्य दोनों का समान हीं है। ये विधानसभा में प्रस्ताव परित करके यह काम करवाना चाहते हैं और वे दिल्ली हाईकोर्ट पर बम विस्फोट करके उसी काम को करवाना चाहते हैं। इस बात की गहराई से जांच होनी चाहिए कि आखिर सोनियां कांग्रेस आतंकवादियों को सजा से किस कारण बचाना चाहती है?

(नवोत्‍थान लेख सेवा)