राम के बिना कैसी दिवाली

सुरेश हिन्दुस्तानी

download (2)भगवान श्रीराम जब असुर रावण वंश का विनाश करके अयोध्या लौटे तो राम के भक्तों ने विजयोत्सव मनाया यानी दीपावली का त्यौहार मनाया। कहते हैं कि यहीं से दीवाली का प्रारम्भ हुआ। भगवान राम का प्राकट्य जिस भूमि पर हुआ वहां दीवाली की चमक आज भी बरकरार है, इतना ही नहीं पूरे भारत में जनमानस भगवान राम के इस विजयोत्सव को दीपावली के रूप में मनाता आ रहा है। हिन्दुओं के पावन त्यौहार दिवाली पर राम का स्मरण न हो तो दिवाली की कल्पना अधूरी सी लगती है। इसलिए भगवान राम की पावन पवित्र भूमि पर हम सभी भारत वासियों का एक समान कर्तव्य हो जाता है कि हम भगवान राम के विजय के प्रतीक इस त्यौहार को धूमधाम से तो मनाएं ही, साथ ही हमारे रामजी के प्रति क्या कर्तव्य हैं इस बात का भी निरंतर स्मरण करना चाहिए। हम भगवान राम का प्रतिदिन स्मरण करते हैं कि भगवान हमारे दुखों को दूर कर दे। और हमारा विश्वास भी है कि भगवान हमारे दुख दूर भी करते हैं।

वर्तमान में अयोध्या की हालत क्या है, हमारे राम की पावन अवधपुरी को विवादित ही बना दिया। श्रीराम भारत की वास्तविक पहचान हैं। राम के बिना भारत की कल्पना अधूरी है। यह सत्य है कि मुगलों ने भारत पर आक्रमण करके देश के संस्कार केन्द्र और हिन्दू धर्म के तीर्थ स्थलों को नष्ट किया करके हिन्दू धर्म को अपमानित किया। मुगलिया सल्तनत के वे अवशेष आज भी देश के नागरिकों को यह याद दिलाते हैं, भारत का मूल हिन्दू समाज गुलाम रहा है। क्या आज हमको इन स्मारकों को देखकर स्वतंत्रता का अहसास होता है?

भारत में मुगलिया सल्तनत के काल में अनेक हिन्दुओं को अपमानित करके मुसलमान बनाया, आज देश में जो भी मुसलमान हैं, वे मूलत: हिन्दू ही हैं। देश के अधिकांश मुसलमान इस सत्य को सरेआम स्वीकार करते हैं। भारत के मुसलमानों के गोत्र आज भी हिन्दुओं के समान हैं। जिन लोगों को यह याद है, वह आज भी देश की मुख्य धारा से जुड़े हैं। और जो मुसलमान अपने आदर्श किसी और में तलाश करता है, उसका भारत से तारतम्य नहीं है।

भारतवासियों के लिए तीर्थ समान अवधपुरी की भूमि भगवान का जन्म स्थान है। श्रीराम हमारे पूर्वज है, और हम सभी उनके वंशज। श्रीराम जन्मभूमि में ही भगवान राम ही तिरपाल में बैठे हों, यह भारत भूमि का अपमान है, साथ ही हिन्दू समाज का भी अपमान है। हिन्दू समाज को अपने पूर्वजों की स्वर्णिम और प्रेरणास्पद धरोहर की रक्षा करनी चाहिए। जो समाज इन धरोहरों की रक्षा नहीं कर पाता उसका पतन होता जाता है, और उस समाज के पास संस्कार के नाम पर कुछ भी नहीं बचता। क्योंकि जिन्हें हम संस्कार कहते हैं, वे एक दिन में परिभाषित नहीं किए जा सकते, उनके लिए वर्षों की तपस्या लग जाती है। भगवान राम की तपस्या के कारण जो संस्कार भारत को मिले हैं, उनको हम आज तक नहीं भूले, और भूलना भी नहीं चाहिए, भूलना हमारी संस्कृति का हिस्सा नहीं हैं। राम ने जो भारत को दिया है, वह सब हमारे लिए है। देश का संस्कारित हिन्दू समाज इस बात को भली भांति जानता है। लेकिन सवाल यह उठता है कि जिस राम से हमारी पहचान है, हम उनके लिए क्या कर रहे हैं? यह सवाल अपने आपसे पूछना चाहिए, जब उत्तर प्राप्त हो जाए तब उसका ईमानदारी से चिन्तन करना चाहिए। इसके अलावा हम सभी जब दुखी होते हैं तब भगवान का स्मरण करते हैं, और किसी न किसी रूप में राम हमारी सहायता भी करते हैं। जब भगवान हमारी सहायता करते हैं, तब हमारा कर्तव्य भी बन जाता है कि हम भी राम के काम आएं।

क्या हम इस बात को नहीं जानते कि आज हमारे भगवान राम अयोध्या में तिरपाल के अंदर बैठे हैं। ऐसे में राम का विजयोत्सव मनाना कितना सार्थक है। ऐसे हालातों में हम सभी भारत वासियों को अब यह प्रयास करना चाहिए जिससे हमारी दिवाली, हमारा यह विजयोत्सव सार्थक हो जाए। अब तो अयोध्या की श्रीराम जन्मभूमि के बारे में न्यायालय ने भी निर्णय सुना दिया, फिर सरकार की ओर से देरी क्यों? सरकार को चाहिए कि वह संसद में राम जन्मभूमि को लेकर कानून बनाए और राम मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त करे।

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