मेरे मानस के राम : अध्याय 20

हनुमान जी का सीता जी से वार्तालाप

हनुमान जी पेड़ पर बैठे हुए सीता जी और रावण के संवाद को सुन चुके थे। उसके पश्चात की घटना और वार्तालाप को भी उन्होंने बड़े ध्यान से सुना। अब उनके सामने समस्या एक थी कि
यदि वे सीधे सीता जी के समक्ष उपस्थित हो गए तो वे उन्हें एक अपरिचित व्यक्ति समझकर उनसे डर भी सकती हैं या यह भी सोच सकती हैं कि यह कोई रावण का ही व्यक्ति है, जो उन्हें उत्पीड़न करने के लिए प्रकट हुआ है। तब हनुमान जी ने बुद्धिमानी से काम लिया और वह राम गुणगान करने लगे। उनके द्वारा किए जा रहे राम गुणगान के शब्द जब सीता जी के कानों में पड़े तो वह बड़े ध्यान से उन शब्दों को सुनने लगीं। उनके चेहरे के भाव बदल गए। हनुमान जी यह सब भली प्रकार देख रहे थे कि इन शब्दों पर सीता जी किस प्रकार मंत्रमुग्ध होती जा रही थीं?

हनुमान जी सुन रहे, धरकर अपना ध्यान।
हुए दु:खी सब देखकर, हाल सिया का जान।।

बैठे – बैठे वृक्ष पर , राम का किया बखान।
भाषा भाव अति सहज था, स्थित प्रज्ञ हनुमान ।।

सीता जी हर्षित हुईं , सुना राम गुणगान।
कौन यहां पर कर रहा, ऐसा सुंदर गान।।

हनुमान बतला गए, अपना देश उद्देश्य।
सब कथा कही भाव से, बदल गई परिवेश।।

हनुमान जी की योजना काम कर गई। उनके राम गुणगान का सीता जी पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा। अब उन्होंने यह भाव बना लिया कि सीता जी के सामने यदि इस समय प्रकट हुआ जाए तो वह पहले की भांति भयभीत नहीं होंगी। उन्होंने बातों बातों में अपना परिचय दे दिया था। अब उन्होंने सीता जी से सीधे उनका परिचय पूछ लिया :-

हनुमान कहने लगे , हे नारी ! तुम कौन ?
परिचय अपना दीजिए , तोड़ो अपना मौन।।

सीता जी ने दे दिया, परिचय अपना ठीक।
पवन पुत्र प्रसन्न थे , मेरा धन्य नसीब।।

सीता ने बतला दिया , समय और दो मास।
आए नहीं श्री राम तो, करूं जीवन का नाश।।

राम लखन दोनों कुशल, कह रहे थे हनुमान ।
सीता जी प्रसन्न थीं , सत्य जान बखान।।

सीता जी को हो रही, मन में शंका एक।
हनुमान के रूप में, होवे ना लंकेश।।

समझ गए हनुमान जी, सीता मन की बात।
लगे दिखाने राम की , दी अंगूठी हाथ।।

देख निशानी हो गईं , सीता जी संतुष्ट।
अंत निकट अब आ गया, बचे ना रावण दुष्ट।।

डॉ राकेश कुमार आर्य

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