रावण की मंत्रणा
उधर रावण भी अब भली प्रकार यह समझ गया था कि जिस राम को वह केवल एक वनवासी मान कर चल रहा था वह कोई हल्का-फुल्का व्यक्ति नहीं है। उसके पास आध्यात्मिक शक्ति भी है, साथ ही साथ बौद्धिक शारीरिक और सैनिक बल में भी वह कम नहीं है। उसके द्वारा भेजे गए हनुमान ने राम के बारे में बहुत कुछ स्पष्ट कर दिया है। अब तक रावण बड़े ही निश्चिंत भाव से अपने आप को लंका में सुरक्षित मान रहा था , पर अब उसे पता चल गया कि अब उसकी सुरक्षा संकट में है। चिंतातुर रावण ने भी अपनी आपातकालीन सभा बुला ली। उसने सभा के समक्ष अपना विचार रखा। सभा में अपने पंख तोले बिना , और बिना सोचे विचारे उड़ान भरने की लंबी-लंबी डींगें मारी जाने लगीं।
रावण भी उन हवाई बातों को सुनकर प्रसन्न हो रहा था। दरबारी उसके अनुकूल बोलने का प्रयास करते जा रहे थे।
सभा बुला लंकेश ने, कहा – सुनो मेरी बात।
हनुमान ने जो किया , आए देख कर लाज।।
क्या करना हमको अभी, कर लो सोच विचार।
विचार ही संसार में , विजय का है आधार।।
मंत्री गण सब एकमत, होकर दें निष्कर्ष।
वही विचार उत्तम सदा, कर लें ठोस विमर्श।।
जो भी आप निर्णय करें, वही मेरा कर्तव्य।
समक्ष आपके रख दिया, मैंने निज वक्तव्य।।
सेना के संग आ रहे, राम लखन महावीर।
नीति बल उनका प्रबल, सुनो बात गंभीर।।
रावण जानता था कि नीति बल में श्री राम उससे बहुत अधिक भारी हैं। अतः जो कुछ उसने किया है, वह गलत किया है। परन्तु संसार में प्रत्येक पापी की यही प्रवृत्ति होती है कि वह जानकर भी उस पाप की वृत्ति से अपने आप को बचा नहीं पाता है। यदि कभी कुछ वरिष्ठजन उसे बचने के लिए प्रेरित भी करें तो भी वह अपने अहंकार के कारण उसी रास्ते पर चलता रहता है जिसे वह अपना चुका होता है। वास्तव में, जब कोई व्यक्ति किसी के समझाने के उपरांत भी गलत रास्ते को नहीं छोड़ता है तो समझिए कि वह अपने दुष्ट स्वभाव के कारण अपने विनाश की ओर ही जा रहा होता है। रावण दुर्बुद्धि के वशीभूत होकर बड़ी-बड़ी बातें कर रहा था। उससे प्रेरित होकर उसके अन्य दुर्बुद्धि मंत्री भी वैसी ही बातें करने लगे :-
उत्साहित सब जन हुए, सुन रावण की बात।
लंका में घुसे राम को, पता चले औकात।।
प्रहस्त दुर्मुख जोश में, बड़ी-बड़ी करें बात।
हर वानर को युद्ध में , हम कर दें भूमिसात ।।
राम को हम युद्ध में , कर दें भूमिसात।
चल जाए उसको पता , अपनी सही औकात।।
बलशाली से जो भिड़े , उसे मूर्ख ही जान।
बलशाली पाता रहा, हर युग में सम्मान।।
सभी राक्षस कर रहे , रावण की जयकार।
बिना पंख के उड़ रहे, बिना सोच विचार।।
डॉ राकेश कुमार आर्य