रामसेतु को राष्ट्रीय धरोहर घोषित करे केन्द्र सरकार

प्रवीण गुगनानी

रामसेतु को संरक्षित करने का प्रण करे केंद्र सरकार भारत जैसे विशाल राष्ट्र मैं विवाद और विषय आते जाते रहते है और इनका उलझना सुलझना भी एक सामान्य प्रक्रिया है किन्तु जिस प्रकार से पिछले वर्षों मैं संस्कृति से जुड़े विषयों पर सरकार का रुख प्रगतिवादी होने के नाम पर भारतीयता और हिन्दुत्व का विरोधी होता जा रहा है वह एक बड़ी चिंता का विषय है .देश मैं प्रगतिशीलता , बुद्धिजीविता और धर्म निरपेक्षता का निर्वहन करने वाला उन्ही को कहा जाने लगा है जो हिंदू विरोधी बात करता हो !!! देश मैं एक वर्ग ने हिंदू विरोध को फैशन बना दिया है .आज देश का वातावरण ऐसा है की देश मैं प्रगतिशील विचारों का धनी कहलाना हो तों ; और धर्म निरपेक्षता का वाहक बनना हो तों ;हिंदुओं के मठ ,मंदिर,आश्रम,मेले ,यात्रा ,संत,संत परम्परा,त्योहारों ,उत्सवों और हिंदू प्रतीकों आदि का विरोध प्रारम्भ कर दो .

ऐसी ही प्रवृत्ति का शिकार रामसेतु का विषय भी बन गया लगता है .रामसेतु पिछले पांच छह वर्षों से एक मुद्दे के रूप देश की जन चिंता का एक विषय बन गया है .देशवासी रामसेतु के मुद्दे पर वो हलफनामा पीढ़ियों तक नहीं भूलेंगे जो एक सनकी ,बूढ़े और नाम न लिए जाने योग्य मुख्यमंत्री ने न्यायलय मैं प्रस्तुत किया था. अपने पारिवारिक आर्थिक घोटालों को दबाने के प्रयास मैं इस मुख्यमंत्री ने मनमोहन सरकार को प्रसन्न करने के लिए न्यायलय मैं दाखिल हलफनामें मैं भगवान राम के अस्तित्व होने को ही नकार दिया था. रामसेतु के ही ज्वलन्त मुद्दे पर प्रस्तुत इस शर्मनाक हलफनामे मैं इस राष्ट्र के जन जन और कण कण के आराध्य और नायक को कपोल कल्पना और उपन्यास का एक पात्र भर सिद्ध करने की कुत्सित किन्तु असफल कोशिश इसी मनमोहन सरकार के सहारे एक कृतघ्न मुख्यमंत्री ने की थी. हालाँकि बाद मैं जब हिंदुओं ने तीव्र और सशक्त विरोध किया तब इस घोटालेबाज मुख्यमंत्री ने इस तथाकथित हलफनामें को वापिस ले लिया था.

सेतू समुद्रम योजना के विषय मैं जानकारी परक तथ्य यह भी है कि यह योजना १८६० से यानी लगभग १५० वर्षों से लंबित व विवादित रही है .इस योजना को लेकर अब तक १३ समितियां गठित हो चुकी है .इस देश के शोषक और आक्रमणकारी अंग्रजों ने भी इस योजना को सदा क्रियान्वयन से दूर ही रखा किन्तु हाय री हमारी संवेदनहीन यू पी ए सरकार कि उसकी बुद्धि इस मामले मैं सदा से न जाने क्यों उलटी ही चल ररही है!! इतिहास साक्षी है कि वर्ष १४६० तक भारत श्रीलंका के बीच आवागमन श्रीराम और इस देश के इंजीनियरों के पुरोधा नल नील के द्वारा डिजाइन किये गए इसी सेतू मार्ग से होता रहा .बाद के वर्षों मैं यह सेतू भूगर्भीय परिवर्तनों से समुद्र कि तलहटी मैं धसता चला गया किन्तु इसकी विशाल और सुद्रढ़ सरंचना ने अपना आकार और अस्तित्व नहीं खोया व इसके कारण भारत और श्रीलंका के तटवर्ती भागों का प्राकृतिक आपदाओं से बचाव होता रहा .

गत २७ मार्च को भारतीय संस्कृति की प्राचीन और पूज्य रामसेतु के मामले को हल करने हेतु गठित न्यायमूर्ति एच.एल .दत्तू की अध्यक्षता वाली पीठ के सामने पेश होकर अतरिक्त सालिसिटर जनरल हरेन रावल ने कहा की रामसेतु को राष्ट्रीय धरोहर और स्मारक घोषित करने से सम्बंधित हलफनामा दायर करने के सम्बन्ध मैं उसे दो सप्ताह का समय और चाहिए .कहना न होगा कि केंद्र सरकार अभी भी देश की अधिसंख्य मानसिकता से एकमत नहीं हो पा रही है .रामसेतु को तोड़ने और उसे नेस्तनाबूद कर देने को दृढप्रतिज्ञ इस सरकार की बदनियति पर किसी को शंका भी नहीं है किन्तु केंद्र सरकार को भी सेतू विरोधी मंतव्य प्रकट करने पर भारी, प्रचंड और प्रखर विरोध झेलना पड़ सकता है. सेतू समुद्रम परियोजना को अमेरिकी दबाव मैं अति शीघ्र पूर्ण करने के चक्कर मैं यदि वह कोई भी कदम सेतू विरोधी उठाती है तों देश का संस्कृति प्रेमी हिंदू समाज संभवतः भी चुप और हाथ पे हाथ धरकर बैठा नहीं रहेगा . हाल के वर्षों मैं यदि आर एस एस और विहिप परिवार ने देशव्यापी आंदोलन चला कर पुरे देश को इस विषय पर जागृत और चेतन्य नहीं किया होता तों रामसेतु आज केवल किताबों में उल्लेखित एक नाम भर होता . हमें स्मरण करना चाहिये वह दौर जब रामसेतु के लिए पूरा हिंदू जनमानस सड़कों पर उतर आया था और जेलों को भर दिया गया था ,रास्ते और रेल रोको आंदोलन किये गए थे .

उस समय उतने बड़े विशाल जनांदोलन के बाद भी केंद्र सरकार मानी नहीं और हठधर्मिता पुर्वक इस कुत्सित योजना मैं लगी रही थी .सेतू समुद्रम परियोजना को पूर्ण करने के लिए अमेरिकी दबाव मैं ३०० मीटर चौड़ा और १२ मीटर गहरा मार्ग बनाने के लिए उसने विशाल स्वचालित और तेज गति कि मशीने रामेश्वरम के समीप धनुषकोटि पहुंचा दी थी . फलस्वरूप इस विध्वंसक कार्य को रोकने के लिए कई याचिकाएं न्यायलय मैं दायर की गई किन्तु अधिकांश याचिकाएं आश्चर्यजनक रूप से ख़ारिज हो गई थी ,सिवा एक सुब्रमण्यम स्वामी की याचिका के!!! २७ मार्च २०१२ को सुब्रमण्यम स्वामी की इस याचिका पर विचार करते समय ही केंद्र सरकार से न्यायलय ने स्पष्ट कहा की वह रामसेतु को राष्ट्रीय धरोहर व स्मारक घोषित करने के सम्बन्ध मैं अपनी राय दो सप्ताह के अंदर देवे. इस मामले मे अगली सुनवाई १० अप्रैल को रखी गई है . इस सम्बन्ध मैं रोचक तथ्य है की श्रीराम को कथा का पात्र मात्र मानने वाली इस सरकार ने इस सेतू को मानव निर्मित सरंचना माना व यह भी माना की इसकी लम्बाई ३० कि मी है ,स्मरण रहे कि धनुषकोटि और श्रीलंका के मध्य दुरी भी ३० कि मी ही है . याचिका के सम्बन्ध मैं स्वामी ने देश के सेवानिर्व्वृत्त न्यायाधीश के. जी. बालकृष्णन पर सोनिया गांधी से प्रभावित होने का आरोप लगाते हुए देश को बताया था कि जब उन्होंने याचिका दायर कि तब न्यायाधीश के जी बालकृष्णन एक सप्ताह कि छुट्टी पर दक्षिण अफ्रिका चले गए थे.उनके लौटते तक सुनवाई टल जाती तो रामसेतु के विध्वंस का कार्य प्रारंभ हो जाता तब वे भागे भागे कार्यवाहक न्यायाधीश के पास पहुंचे और उन्हें पूरा विषय निवेदन किया तब कही जाकर रामसेतु को तोड़ने पहुंची मशीने थम पाई थी और इस तथाकथित धर्म निरपेक्ष सरकार के मंसूबो पर रोक लग पाई थी .

रामसेतु के सम्बन्ध मैं एक महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि वर्ष २००४ मैं आई सुनामी का सामना यदि इस सेतू कि कि विशाल और सुद्रढ़ सरंचना से नहीं होता तों तमिलनाडु और केरल को भयंकर त्रासदी और नुक्सान झेलना पड़ता .उस समय सुनामी कि लहरें इसकी सरंचना से टकराकर कई भागो मैं छिन्न भिन्न होकर भारत और श्रीलंका कि तरफ विभाजित हो गई जिससे न सिर्फ भारत के तटवर्ती राज्य बल्कि श्रीलंका भी सुनामी से बाल बाल बचा था.

रामसेतु के सम्बन्ध मैं प्रसिद्ध वैज्ञानिक व पर्यावरणविद व कनाडा के ओट्टावा विश्वविद्यालय मैं अध्यापन करने वाले सत्यम मूर्ति से भारत सरकार ने राय मांगी थी तब उन्होंने स्पष्ट राय दी थी कि संपूर्ण विश्व पहले ही प्रकृति से खिलवाड करने कि गंभीर परिणाम भुगत रहा है . उन्होंने अपनी लिखित राय मैं मनमोहन सरकार को स्पष्ट कहा था कि रामसेतु वाले समुद्री भाग मैं कई सक्रिय ज्वालामुखी व गतिमान व विशाल प्रवाल भित्तियां है जिसके कारण रामसेतु को तोड़ने से कई भयंकर परिणाम सामने आ सकते है .साथ ही साथ उन्होंने यह भी कहा था कि रामसेतु को तोड़ने से पर्यावरण,समुद्री जल जीवन और इसमें रहने वाले जल जन्तुओ के साथ तटवर्ती इलाको मैं जन जीवन को दूरगामी दुष्परिणाम झेलने के लिए तैयार रहना चाहिए .इतना सब होने के बाद भी पता नहीं क्यों केंद्र सरकार इस मामले मैं लचीला व टालमटोल वाला रुख अपनाये हुए है ?अन्तराष्ट्रीय दबावों के नाम पर यह सरकार अनेक विषयों पर पूर्वाग्रहों से ग्रसित रही है और उसके दुष्परिणाम देश ने झेलें है किन्तु इस विषय पर यदि केंद्र सरकार अधिसंख्य समाज कि भावनाओं का अपमान न करे तों ही अच्छा होगा. इस मुद्दे पर किसी दबाव मैं आये बिना रामेश्वरम रामसेतु को राष्ट्रीय धरोहर और स्मारक घोषित करने कि स्पष्ट और एकमत राय केंद्र सरकार न्यायलय मैं प्रस्तुत करे यही इस देश के जन जन कि आशा है

1 COMMENT

  1. जब ऐसे लोग जिन्हें इतिहाश का ज्ञान नहीं है मनका लेख प्रवक्ता कॉम को नहीं छापना चाहिए.

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