राजनीति

रमज़ान सन्देश से लेकर कुत्ते के बच्चे के बीच भटकती सोनिया कांग्रेस

Sonia-Gandhiडा० कुलदीप चन्द अग्निहोत्री

            रमज़ान का पवित्र महीना शुरु हो गया है । यह महीना हिजरी सम्वत का नौवाँ मास है और ईस्वी सम्वत के हिसाब से नौ जुलाई को शुरु हुआ है । इस महीने में मुसलमान उपवास रखते हैं और जीवन में बुराइयों को त्यागने का प्रयास करते हैं । मुसलमानों के अतिरिक्त शिया समाज भी इस महीने में उपवास करता है । उनका विधि विधान कुछ अलग हो सकता है , लेकिन बुराइयों को त्यागने का संकल्प उतना ही प्रबल होता है । यद्यपि अहमदिया सम्प्रदाय को इस्लामी पाकिस्तान मुसलमान नहीं मानता , लेकिन इसके बाबजूद वे भी रमज़ान में उपवास की परम्परा का निर्वाह करते ही हैं । दरअसल भारत में इन सभी सम्प्रदायों को मानने वाले लोग भारतीय सम्प्रदायों से ही मतान्तरित होकर इन नये सम्प्रदायों में गये हैं । अत: इन मतान्तरित लोगों ने कुछ पुरानी परम्पराएँ भी सहेजे रखीं और कुछ नई परम्पराएँ भी अख़्तियार कर लीं । उपवास भारत की प्राचीन परम्परा का हिस्सा है । लेकिन उसका निर्वाह व्यक्तिगत स्तर पर होता है । मुसलमानों और शिया समाज के लोगों ने इसमें सामाजिकता को जोड़ कर इसको सामाजिक आधार प्रदान किया । गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रमज़ान के महीने में उपवास करने वाले सभी सम्प्रदायों के लोगों को मुबारकवाद कहा और कामना की कि रमजान हमारे जीवन में सुख , समृद्धि और शान्ति लाये । यह ऐसी कामना है जिससे किसी को आपत्ति नहीं करनी चाहिये । कोई अपने पड़ोसी , मित्र अथवा समीपस्थ समाज के लोगों के लिये शुभ कामना प्रकट करता है तो उसका आभार ही प्रकट किया जाता है । फिर मोदी ने तो उपवास के इस पावन पर्व को किसी ख़ास सम्प्रदाय तक सीमित नहीं रखा । उन्होंने तो यह कहा कि इस पावन पर्व से सभी लोगों को सुख शान्ति मिले । यह उनकी सकारात्मक दृष्टि का प्रतीक है । रमज़ान के महीने में उपवास रखने वाले विभिन्न सम्प्रदायों में भी किसी को मोदी की शुभ कामना पर एतराज़ नहीं हुआ । 
                     लेकिन सोनिया कांग्रेस की तो मानो नींद ही हराम हो गई हो । मानों मोदी ने किसी को गाली दे दी हो । गुजरात कांग्रेस के अध्यक्ष अर्जुन मुढवाडिया तो एक क़दम और आगे गये । उन्होंने कहा कि मोदी वोटों के लिये कुछ भी कर सकते हैं । उनके अनुसार ये लोग एक ओर सच्चर कमेटी की रपटें जलाते हैं और दूसरी ओर रमज़ान की बधाई भी देते हैं । यानि कांग्रेस की नज़र में रमज़ान की बधाई देने का हक़ उसी को है जो सच्चर समिति की सिफ़ारिशों से सहमत हैं , जबकि अब मुसलमानों में से भी अनेक बुद्धिजीवी यह स्वीकार करते हैं कि सच्चर समिति की सिफ़ारिशें इस देश के आम मुसलमान को शेष समाज से काट
कर , अपने राजनैतिक हितों की पूर्ति के लिये , सोनिया कांग्रेस द्वारा रचा गया एक षड्यंत्र है । हो सकता है कल सोनिया कांग्रेस का कोई प्रवक्ता , ख़ासकर दिग्विजय सिंह , कहने लगें कि मुसलमानों में से केवल उन्हें ही रमज़ान के रोज़े रखने का अधिकार है , जो कांग्रेस के साथ हैं । जो मुसलमान भाजपा , समाजवादी दल , राष्ट्रीय जनता दल , बहुजन समाज पार्टी , अकाली दल , या साम्यवादी दलों का साथ देते हैं , उन्हें रोज़ा रखने का भी अधिकार नहीं है । पाकिस्तान सरकार से संकेत लेते हुये शिया समाज और अहमदिया समाज के लिये तो रोज़ा रखना मामनू क़रार दे सकती है । दरअसल सोनिया कांग्रेस की , मुसलमानों , शिया समाज , अहमदिया समाज और रमज़ान में रोज़ा रखने वाले अन्य सम्प्रदायों या जनजातियों के प्रति ,यह साम्प्रदायिक नीति भारतीय समाज में अलगाव के बीज बो रही है । 
                                    इस देश का मुस्लिम समाज जितना सोनिया कांग्रेस के साम्प्रदायिक जाल से बाहर निकलने का प्रयास कर रहा है , सोनिया कांग्रेस उतना ही उन पर शिकंजा कसने का प्रयास करती है । इसका ताज़ा नमूना कुत्ते के पिल्ले वाले प्रसंग में मिला । नरेन्द्र मोदी से किसी न्यूज़ एजेंसी ने इन्ट्रव्यू लिया । प्रश्नकर्ता ने २००२ में गुजरात में हुये दंगों के बारे में प्रश्न किया । मोदी का कहना था कि यदि कुछ ग़लत होता है तो उसका दुख होता ही है । यदि आपकी गाड़ी के नीचे आकर कुत्ते का पिल्ले भी मर जाये , तब भी दुख होता है । यह मुख्यमंत्री होने या न होने से जुड़ा हुआ मामला नहीं है । यह मानवीय संवेदना से जुड़ा मामला है । यदि कहीं कुछ बुरा होता है तो निश्चय ही दुख होता है । मोदी ने कहा दंगों के दौरान जितनी मेरी क्षमता थी , मैंने उसके अनुसार स्थिति नियंत्रित करने का प्रयास किया । यह बयान बहुत सीधा और सपाट है । गुजरात में कुछ ग़लत होता है तो मोदी को दुख होता है और उन्होंने यथाशक्ति स्थिति नियंत्रित करने की कोशिश की थी । सोनिया कांग्रेस मोदी के इस सीधे सपाट बयान को भी अपने सियासी मुफाद के लिये प्रयोग कर रही है । कांग्रेस ने मोदी के दुख को छोड़ दिया और उनके मरे हुये कुत्ते के बच्चे को पकड़ लिया ।कपिल सिब्बल सोनिया गान्धी के असली सिपाही हैं । उन्हें मोदी द्वारा दिये गये इस उदाहरण से बहुत कष्ट हुआ है । यदि उनके चेहरे को ध्यान से देखें तो यह दर्द उनके चेहरे पर झलकता है । लेकिन यह दर्द एक इंसान का दर्द नहीं है, एक वकील का दर्द है । उनका कहना है कि मुसलमानों की मौत हो गई है और मोदी इन घटनाओं पर अपने दुख को प्रकट करने के लिये कुत्ते के बच्चे का उदाहरण दे रहे हैं । कपिल सिब्बल पेशे से वक़ील हैं । किसी घटना की या फिर किसी बयान की किस प्रकार व्याख्या करनी है , इस कला में वे निष्णात हैं । वक़ील को इस बात की चिन्ता नहीं होती कि सच क्या है और झूठ क्या है , उसे इस बात की चिन्ता भी नहीं होती कि सामने वाला क्या कह कह रहा है या नहीं कह रहा है, उसकी चिन्ता एक ही होती है कि कि इन तमाम बातों की व्याख्या इस प्रकार की जाये , जिससे उसके मुवक्किल को लाभ होता हो । वक़ील के लिये अन्तिम सच्चाई उसका मुवक्किल और उसका लाभ ही होता है । कपिल सिब्बल की इस केस में मुवक्किल सोनिया गान्धी और उसके माध्यम से सोनिया कांग्रेस है । इसलिये कपिल सिब्बल की चिन्ता यह नहीं है कि मोदी ने सचमुच क्या कहा , उनकी चिन्ता यह है कि मोदी के बयान का ऐसा अर्थ निकाला जाये जिससे उसके मुवक्किल को किसी भी तरीक़े से लाभ मिल सके । इसकी संभावना सिब्बल को तब दिखाई देती है , जब किसी तरह कुत्ते के बच्चे के उदाहरण को मुसलमानों से जोड़ दिया जाये , और आजकल वे अपने सभी काम छोड कर इस काम में ही लगे हुये हैं । लेकिन कपिल सिब्बल का एक दुर्भाग्य है । यदि केस किसी न्यायालय में होता , तो शायद वे केस जीत भी जाते । लेकिन यह केस जनता के न्यायालय  में चल रहा है । जनता सिब्बल की व्याख्याओं के पीछे छिपे झूठ को अच्छी तरह पहचानती है । कपिल सिब्बल के झूठ के बहकावे में सोनिया गान्धी आ सकती है और हो सकता है, इस बहकावे  में आकर उन्हें कुछ इनाम इकराम भी दे दे , लेकिन भारत की जनता इस बहकावे में नहीं आ सकती । मोदी के बयान को लेकर की गई अपनी व्याख्या की इस सीमा को सिब्बल भी अच्छी तरह जानते हैं । परन्तु उनका मक़सद भी सोनिया गान्धी को बहकावे में लाकर पार्टी में अपना रुतबा बढ़ाना है , जनता से उनको भी कुछ लेना देना नहीं है । 
                         परन्तु सोनिया कांग्रेस के इस सारे द्रविड़ प्राणायाम से इतना तो स्पष्ट है कि मोदी को लेकर  सोनिया कांग्रेस में भयंकर अफ़रा तफ़री मच गई है । उसी घबराहट में वह मोदी के रमज़ान मुबारक के सन्देश से लेकर कुत्ते के बच्चे की मौत के उदाहरण तक को अपने गले में लटकाकर मुसलमानों के मुहल्ले में घूम रही है । पीछे पीछे उसकी सेना पंथ निरपेक्षता के बुर्क़े में मुसलमानों को रिझाने के लिये हर तरीक़ा इस्तेमाल कर रही है । लेकिन सोनिया कांग्रेस के कपिल सिब्बलों की सबसे बड़ी समस्या यह है कि मुसलमानों के इस मुहल्ले में मायावती,लालू , नीतिश भी गोल टोपी लगा कर घूमना शुरु हो गये हैं । अब कपिल सिब्बल ने भी सोनिया कांग्रेस की ओर से गले में कुत्ते के मरे बच्चे को लटकाकर घूमना शुरु किया है । कपिल सिब्बल चाहते हैं कि मुसलमान इस में स्वयं को देखें । अब देखना केवल इतना ही है कि मुसलमान कुत्ते के बच्चे के पीछे छिपे कपिल सिब्बल का साम्प्रदायिक चेहरा देख पाते हैं या नहीं ?