सच में ये मिट्टी का तन

—विनय कुमार विनायक
सच में ये मिट्टी का तन,
जिसमें समाहित है समीर,
क्षिति,जल,पावक व गगन!

सचमुच ये माटी का तन,
धरातल का है ये सम्बन्ध,
धरा का आकर्षण-विकर्षण!

मिट्टी का ये अद्भुत तन,
जिसमें जल अग्नि मिश्रण,
वायु व आकाश का संगम!

रात्रि में जब सूर्यातप कम,
क्षैतिज हो सो जाता वदन,
अग्नि लौ से उदग्र जीवन!

सच में ये मिट्टी का तन,
चाहे करलो जितना जतन,
जल,जलन,वायु बिन बेदम!

सूर्य नहीं तो नहीं हैं हम,
सूर्य नहीं तो सूर्यपुत्र यम,
सूर्य जीवन,निस्पंदन तम!

ये जल जलन वायु मिलन,
तबतक हमसब हैं हमदम,
श्वसन की आवाजाही दम!

धरा बिना अधमरा जन्म,
वैक्टेरिया वाइरस अर्धतन,
माता भू पुत्रोऽमं पृथ्विया!

भूमि पे भूमा सुख चिंतन,
भूमि पे कर्मफल से मुक्ति,
करलो मां माटी का वंदन!

ये मिट्टी तन आत्म वसन
ये मिट्टी आत्मा का बंधन
आत्मा भोगती दुख आनंद!

ये मिट्टी तन घर ईश्वर के,
ये मिट्टी तन आत्मावलंबन,
ये मिट्टी तन मुक्ति साधन!
—विनय कुमार विनायक

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here