निज पर शासन फिर कोरोना पर अनुशासन

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 -ललित गर्ग –
आज पूरा विश्व कोरोना वायरस के खतरे का सामना कर रहा है। दुनियाभर की सरकारें युद्धस्तर पर इससे लड़ने को उद्यत है फिर भी इस महासंकट की मुक्ति का रास्ता दिखाई नहीं दे रहा है, संभवतः यह मानव इतिहास का अब तक का सबसे बड़ा संकट है, जिससे पूरी दुनिया प्रभावित एवं पीड़ित है। महाशक्तियां भी लाचार नजर आ रही हैं। यह लड़ाई हर व्यक्ति को स्वयं अपने स्तर पर लड़नी पड़ रही है। हर सरकार अपने नागरिकों को संयम का पाठ पढ़ाती नजर आ रही है। संयम ही कोरोना से लड़ने का एकमात्र समाधान बताया जा रहा है। उस युग में जहाँ असंयमित जीवनशैली चरम पराकाष्ठा पर है वहाँ संयम की बात स्वीकार कर लेना इतना आसान कहाँ? लेकिन जब रोग भयंकर होता है तो उसकी दवा भी अधिक कड़वी होती है, इसीलिये प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अब तक के दुनिया के कोरोना वायरस के परिदृश्यों का सूक्ष्म अध्ययन के बाद जो निष्कर्ष निकाला वह संयम ही है, यानी निज पर शासन फिर कोरोना पर अनुशासन- नियंत्रण।
दुनिया का हर इनसान विशेषतः भारत का गम्भीरता से इस प्रश्न पर विचार कर अपने अन्तर की आवाज को सुने, संयम बरते, अनुशासित हो, सरकार एवं प्रशासन के निर्देशों का पालन करते हुए कोरोना यानी कोई रोड़ पर ना आए का पालन करते हुए घरों में ही रहे तो जल्दी ही हम इस महामारी से भारत के लोगों को बचा पाएंगे और इसे अनियंत्रित होने से रोक पाएंगे। ऐसा होने से ही यह त्रासदी भावी मानव जाति के लिए अभिशाप नहीं वरदान बन पाएगी।
सच्चाई यही है कि संकट बड़ा है और एक भी व्यक्ति की नादानी हजारों लोगों के लिये जीवन संकट बन सकती है, यह बार-बार समझाने के बावजूद कुछ ऐसे लोग हैं जिन पर यह टैग लगना दुर्भाग्यपूर्ण है कि “हम नहीं सुधरेंगे।” रोजाना कोरोना से बढ़ते मामलों के बावजूद इन नादान एवं नासमझ लोगों के कान पर जूं नहीं रेंग रही है, इससे महामारी पर नियंत्रण में जुटे लोगों के सामने संकट बड़ा होता जा रहा है फिर भी वे पूरे साहस से जुटे हैं। क्योंकि कोरोना से मुक्ति का महत्वपूर्ण सूत्र है साहसी मन का होना। मन यदि बुझा-बुझा-सा रहे तो इस महासंकट से पार पाना संभव नहीं है। साहस संघर्षों से जूझने की प्रेरणा देता है। साहस के साथ ये छोटी-छोटी नौकाएं कोरोना के तूफान में भी मुक्ति का रास्ता ढूंढ लेने को तत्पर है, हमें उनका साथ एवं सहयोग करना है। इन नौकाओं के रूप में हमारे सुरक्षाकर्मी अच्छा काम कर रहे हैं यूं कहा जाए कि सुरक्षाकर्मी भी कुछ हद तक इसे फैलने से रोक रहे हैं। वही डॉक्टर भी इसके इलाज और दवाइयां बनाने में जुटे हुए हैं। मीडिया जागरूकता का माहौल बनाते हुए महत्वपूर्ण सूचनाएं जन-जन पहुंचा रही है। प्रधानमंत्री के अपील या कहीं इससे पहले से ही सोशल डिस्टेंस पर जो लोगों ने ध्यान दिया है, इसे पूरा देश देख रहा है जिस तरह से यहां लोक डाउन है तो सारे नेता, अभिनेता और भी बहुत से सेलिब्रिटी इसका समर्थन कर रहे हैं। फिर भी कुछ लोग प्रधानमंत्री की अपील की धज्जियां भी उड़ा रहे हैं, जैसे कि कुछ लोग जो शाहीन बाग में कर रहे थे, जिन्हें देश से ज्यादा अपनी जिद्द पसंद थी। वहां जिस तरह से सुरक्षाकर्मियों ने काम किया वह वाकई सराहनीय है। क्यों कुछ लोग यह नहीं समझते हैं कि देश ही नहीं दुनिया विनाश के मुहाने पर खड़ी है। ऐसे लोग खुद की जिद के लिए पूरे देश को क्यों खतरे में डालने पर तुलेे हुए हैं। जब से कोरोना शुरू हुआ तब से सरकार सतर्क है और हर संभव तैयारी कर रही है। सरकारें ही नहीं, अनेक जनसेवी संगठन भी कोरोना से मुक्ति के महासंग्राम में अपना योगदान दे रहे हैं।
जाॅर्ज स्टेनले का नाम तो सुना ही होगा। वह हालैंड का रहने वाला था। उसने एक बार देखा कि नदी का पुल टूटा हुआ है। उधर से ही टेªन आ रही है। टेªन को बचाने का कोई उपाय नहीं सूझा। उसने तत्काल कुर्ता फाड़ा, उसे शरीर के खून से रंगा और लाल झंडी दिखाकर टेªन रोक दी। एक भयंकर दुर्घटना होते-होते टल गई। यह जीवंत पुरुषार्थ एवं साहस की कहानी है। कोरोना वायरस से मुक्ति के संघर्ष के लिये हमें पुरुषार्थ, साहस और कष्ट सहिष्णुता के साथ-साथ संयम एवं अनुशासन का आदर्श प्रस्तुत करना ही होगा। साहस प्रतिकूल परिस्थितियों के बीच सही समाधान ढूंढ लेती है। उसके साथ तीव्र महासंकट से मुक्ति की योजनाएं करवटें लेती हैं। जहां साहस की रोशनी है वहां भय, चिंता, आशंका, निराशा, असफलता का कोई अस्तित्व नहीं। साहस पुरुषार्थ से जोड़ता है। आशाओं की मीनारें खड़ी करता है। सफलताओं की ऊंचाइयां छूता है। साहस टूटा कि मनुष्य कायर, बुझदिल, निराश होकर थम गया। हाथ पर हाथ धरे बैठने वालों के लिए छोटा-सा काम भी बड़ा लगने लगता है। उनमें न तो सहने की क्षमता होती है, न अनुशासित जीवन जीने की तीव्र उत्कण्ठा होती है।
आइए, कोरोना मुक्ति की इस यात्रा में संयम एवं अनुशासन के गुणात्मक पड़ावों पर ठहरें, वहां से शक्ति, आस्था, संकल्प एवं विश्वास प्राप्त करें तथा सतत अभ्यास से पूर्णता तक पहुंचे। इस महासंकट के महासंग्राम के सफर में अपने उद्देश्यों के प्रति मन में अटूट विश्वास होना जरूरी है। कहा जाता है-आदमी नहीं चलता, उसका विश्वास चलता है। आत्मविश्वास सभी गुणों को एक जगह बांध देता है यानी कि विश्वास की रोशनी में मनुष्य का संपूर्ण जीवन संकटों से मुक्ति के रास्तें ढूंढ़ लेता है। विश्वास के अभाव में सफलताएं संभव नहीं, क्योंकि लड़ाई में युद्ध होने से पहले ही हथियार डाल देने वाला सिपाही कभी विजयी नहीं बनता। कार्य प्रारंभ होने से पहले ही यदि मन संदेह, भय, आशंका से भर जाए तो यह बुझदिली है। इसलिए महावीर ने उपदेश दिया-पराक्रमी बनो। कष्टों से घबराओं नहीं, उन्हें सहो। जोखिमों से खेलना सीखेंगे तभी तो मंजिल तक पहुंच सकेंगे। साहसी बनकर आगे बढ़ें। ‘मैं यह काम कर नहीं सकता’ इस बुझदिली को छोड़कर यह कहना सीखें कि मेरे जीवन-कोश में ‘असंभव’ जैसा शब्द नहीं लिखा है। कुछ लोग ऐसे होते हैं जिनमें गंभीरता का पूर्ण अभाव होता है। वे बड़ी बात को सामान्य समझकर उस पर चिंतन-मनन नहीं करते तो कभी छोटी-सी बात पर प्याज के छिलके उतारने बैठ जाते हैं। समय, परिस्थिति और मनुष्य को समझने की उनमें सही परख नहीं होती, इसलिए वे हर बार उठकर गिरते देखे गए हैं और ऐसे लोग कोरोना से मुक्ति की बड़ी बाधाएं हैं।

दुनिया के एकमात्र नैतिक आन्दोलन को चलाने वाले आचार्य तुलसी ने ‘निज पर शासन फिर अनुशासन’ एवं ‘संयमः खलु जीवनम्- संयम ही जीवन है’ का उद्घोष लगभग आधी शताब्दी पूर्व दिये हैं, जो आज कोरोना वायरस की महामारी से मुक्ति के अमोघ साधन हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी इसी संयम को कोरोना से मुक्ति का सशक्त माध्यम स्वीकार किया है। संयमित जीवनशैली का आधार बिन्दु है संयम का अभ्यास। एक बार यह अभ्यास सध गया तो जीवन के हर क्षेत्र में यह अपना प्रभाव छोड़ेगा। संयम आपकी आदत का हिस्सा बन गया और आपके अवचेतन मन ने इसे स्वीकार कर लिया तो बिना आपके सुचिन्तित प्रयास के पग-पग पर आपको रास्ता दिखाता रहेगा। आज कोरोना से मुक्ति के लिये इसी रोशनी की जरूरत है, संयम की इसी आदत में कोरोना से मुक्ति का रास्ता है, अतः हममें इस आदत को बनाने के लिए तीन बातों की जरूरत है- दृढ़ निर्णय, क्रियान्विति और निरन्तरता। दृढ़ निर्णय के लिए स्व-संकल्प हमारे लिये सहयोगी होगा, अर्थात स्वयं अपनी इच्छा से लिया संकल्प, छोटा-सा व्रत। कोरोना के अंधेरों में रोशनी को अवतरित करने में ये छोटे-छोटे संकल्प बहुत सहयोगी हैं। आपने जो संयम का व्रत लिया है, जो आदत आप विकसित करना चाहते हैं उसे क्रियान्वित करने के लिए एक प्रोटोकोल अवश्य निर्धारित करें। आपने कोई संकल्प लिया और कुछ दिन निभाने के बाद उसे छोड़ दिया तो वह आपकी आदत नहीं बन पाएगा, समस्या को अधिक गहरा देगा। हमारी संयम व्रत को पालन करने की तैयारी ही हमारे जीवन को नरक भी बना सकती है और स्वर्ग भी। इसलिए वर्तमान के संदर्भ में यही संयम का चुनाव हमारे जीवन की सुख-शान्ति, सुरक्षित एवं रोगमुक्त जीवन का आधार बन सकता है। जरूरी है 21 दिनों के लिये हम दृढ़ निश्चय के साथ आगे बढ़े, तो कोरोना को ना होना ही होगा। 

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