कोरोना – भारत की दोहरी चुनौती

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जावेद अनीस

हम सदी के सबसे बड़े संकट में हैं पूरी मानवता सहमी हुयी हैं, खुद को पृथ्वी की सबसे शक्तिशाली जीव समझने वाली प्रजाति आज एक वायरस के सामने बेबस और लाचार नजर आ रही है. पूरी दुनिया की स्थितियां बद से बदतर होती जा रही हैं. आज लोगों के जान और माल दोनों दावं पर हैं, पूरी दुनिया ठप सी हो गयी है. खतरा बहुत बड़ा है और सारे उपाय नाकाफी साबित होते जा रहे हैं. महाशक्तियां कराह रही है, स्वास्थ्य सेवायें चरमरा रही हैं और वैश्विक अर्थव्यवस्था बहुत तेजी से मंदी की ओर जा रही है. इस सम्बन्ध में मौजूदा समय के मशहूर विचारक युवाल नोआ हरारी ने लिखा है कि “शायद हमारी पीढ़ी का यह सबसे बड़ा संकट है. अगले कुछ सप्ताहों में आम लोग और सरकारें जिस तरह की निर्णय लेंगी वह शायद यह तय करेगा कि आनेवाले वर्षों में दुनिया की तक़दीर कैसी होगी.”

विश्व स्वास्थ्य संगठन इसे पहले ही महामारी घोषित कर चुका है लेकिन अब हम स्वास्थ्य आपातकाल में पहुँच गये हैं और अभी तक इसे रोकने की कोई वैक्सिन नहीं बन पायी है. इसने पूंजीवादी व्यवस्था के खोखले दावों की भी पोल खोल दी है. मुनाफा और बाजार आधारित स्वास्थ्य सेवायें इस संकट का सामना करने में असफल साबित हो रही हैं. यह एक वैश्विक संकट है जिसका असर पूरी दुनिया पर होगा इसलिये दुनिया को इसके खिलाफ लड़ाई भी मिलजुल कर  लड़नी चाहिये लेकिन दुर्भाग्य से इस ग्लोबल गावं में सभी अपनी लडाई अकेले लड़ने को मजबूर हैं. वैश्विक संकट के इस नाजुक घड़ी में वैश्विक नेतृत्व की कमी साफ महसूस की जा रही है. इस मामले में ट्रंप के आने के बाद से अमेरिका भी पीछे हट गया है. भारत भी अभूतपूर्व स्थिति से गुजर रहा है. कोरोना के संक्रमण चक्र को तोड़ने के लिये भारत सरकार ने पूरे देश को 21 दिनों तक लॉकडाउन की घोषणा कर दी है जो कि एक बहुत बड़ा और जोखिम भरा कदम हैं.

भारत में कोरोना संक्रमण का पहला मामला 30 जनवरी को केरल में मिला था. अब यह पूरे देश के सभी राज्यों में फैल चूका है, भारत के लिये सबसे बड़ी चुनौती यह है कि किसी को यह नहीं पता कि कितने लोग कोरोना वायरस से प्रभावित हैं क्योंकि हम कोरोना टेस्टिंग के मामले में फिसड्डी हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन की तरफ से कहा गया है कि “भारत एक बहुत ज्यादा आबादी वाला देश है और इस वायरस का भविष्य बड़ी और घनी आबादी वाले एक ऐसे ही देश में तय होगा.” आज भारत में कोरोना वायरस के कम्युनिटी से फैलने से रोकने की चुनौती से जूझ रहा है. दरअसल हम संकट सर पर आ जाने के बाद उसे रिस्पांस कर रहे हैं ऊपर से दूसरे देशों के मुकाबले कोरोना के खिलाफ हमारी स्थिति बहुत जटिल है क्योंकि भारत की विशाल आबादी, अवैज्ञानिक और बंटा हुआ समाज सीमित संसाधन, आर्थिक विषमता, गरीबी-कुपोषण और जर्जर स्वास्थ्य सुविधायें इसे और चुनौतीपूर्ण बना देते हैं. 22 मार्च 2020 को इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित खबर में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी आकंड़ों के आधार पर बताया गया है कि 17 मार्च 2020 की स्थिति तक देश में 84,000 लोगों पर एक आइसोलेशन बेड और 36,000 लोगों पर एक क्वारंटाइन बेड है. देश स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति इतनी गंभीर है कि प्रति 11,600 भारतीयों पर एक डॉक्टर और 1,826 भारतीयों के लिए अस्पताल में एक ही बेड है. भारत सरकार की पूर्व स्वास्थ्य सचिव के. सुजाता राव का मानना है कि भारत पूर्ण विकसित महामारी से निपटने के लिए तैयार नहीं है. खासकर उत्तर भारत के राज्य जहाँ सार्वजनिक और निजी स्वास्थ्य क्षेत्र कमजोर हैं और अगर संक्रमित रोगियों की संख्या तेजी से बढ़ती है तो वह भरभरा जाएगी.

आज भारत को दोहरी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है, अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज  का कहना है कि कोरोना वायरस ने हमारे देश के सामने स्वास्थ के साथ-साथ आर्थिक संकट भी पैदा हो गयी है और इन दोनों ही मोर्चों पर भारत की स्थिति चिंताजनक है. अचानक किये गये लम्बे लॉकडाउन से देश में नयी चुनौतियां सामने आ सकती हैं, गौतलब है भूख और कुपोषण के मामले में भारत की स्थिति बहुत खराब है. 2019 के विश्व भूख सूचकांक में शामिल कुल 117 देशों की सूची में भारत को 102वें पायदान पर रखा गया है. इसी प्रकार से ग्लोबल न्यूट्रिशन रिपोर्ट 2018 बताती है कि भारत कुपोषित बच्चों के मामले में अव्वल देश है. हमारे देश की तकरीबन 90 प्रतिशत आबादी असंगठित क्षेत्र में काम करती हैं, इनमें से अधिकतर प्रतिदिन कमाने और खाने वाले लोग हैं. लम्बे लॉकडाउन की स्थिति में समझा जा सकता है कि देश का गरीब और वंचित तबका जिसकी देश में बड़ी संख्या है कैसे अपने खाने-पीने जैसी बुनियादी जरूरतों का जुगाड़ करेंगें?

इस पूरे संकट को लेकर हमारे समाज और सरकार की प्रतिक्रिया बहुत ही निराशाजनक है. इस संकट के दस्तक दिये जाने के करीब डेढ़ महीने बाद तक सरकारी तौर पर इसको लेकर  गंभीरता नहीं देखने को मिली. लॉकडाउन भी बहुत बाद में किया गया. इससे पहले तक इस देश में सबकुछ सामान्य तौर पर चल रहा था. अभी भी इस सरकार के पास कोरोना और इसके बाद के संकट से भी निपटने के लिये कोई स्पष्ट रोडमैप और तैयारी देखने को नहीं मिल रही है. सबकुछ लॉकडाउन के भरोसे है लेकिन सिर्फ यही पर्याप्त नहीं है, विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा कोरोना टेस्ट और पहचान पर बहुत जोर दिया गया है लेकिन हमारी स्थिति यह है कि देश के 130 करोड़ आबादी के लिये करीब सवा सौ जांच केंद्र ही उपलब्ध हैं. कारवां पत्रिका में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक़ विश्व स्वास्थ्य संगठन की चेतावनी के बावजूद भारत ने स्वास्थ्य कर्मचारियों के लिए जरूरी सुरक्षा सामग्री जैसे मास्क, गाउन और दस्ताने का भंडारण करने में विफल रही उलटे इसका निर्यात होता रहा जिसपर 19 मार्च को रोक लगायी गयी.

समाज, मीडिया और राजनेताओं की तरफ से भी इस मामले में बहुत ही गैरजिम्मेदाराना रवैया देखने को मिला है. राजनीति में कोरोना के खतरे को लेकर राहुल गांधी ही बहुत शुरू से सरकार को चेता रहे हैं, वे फरवरी से ही कहते आ रहे हैं कि ‘सरकार को कोरोना ने निपटने की तैयारी गंभीरता से शुरू कर देनी चाहिये.’ जबकि दूसरी तरफ भारत के स्वास्थ्य राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबै द्वारा बहुत ही गैरजिम्मेदाराना रूप से यह बयान दिया गया कि “15 मिनट हर दिन धूप में बैठने से इसका वायरस मर जाता है”. पश्चिम बंगाल में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष तो बाकायदा यह घोषणा करते हुये नजर आये कि ‘गौमूत्र और गाय के गोबर से कोरोना का इलाज संभव है’ इसके बाद पश्चिम बंगाल में कई जगह लोगों ने गौमूत्र पार्टी का आयोजन किया और गौमूत्र बिकने की भी खबरें आयीं. प्रधानमंत्री के जनता कर्फ्यू के दौरान शाम 5 बजे ताली,थाली,घंटी और शंख बजाने की अपील के बाद मीडिया के एक हिस्से और कई नेताओं द्वारा इसके तथाकथित वैज्ञानिक पक्ष की व्याख्या करते हुये दावे किये गये कि इससे कोरोना वायरस के संक्रमण की शृंखला टूट जाएगी. बीजेपी की प्रवक्ता शाइना एनसी ने अपने ट्वीट में लिखा कि, “हमारे नेता नरेंद्र मोदी बिलकुल अलग हैं,  पुराणों के हिसाब से घंटी और शंख की आवाज़ से बैक्टीरिया, वायरस आदि मर जाते हैं. इसलिए पूजा के समय हमलोग घंटी और शंख बजाते हैं. 120 करोड़ लोगों के घंटी, शंख, ताली, बर्तन बजाने के पीछे कितनी बड़ी सोच है मोदी जी की”. प्रधानमंत्री मोदी के सलाह पर ताली,थाली,घंटी और शंख बजाते हुये जनता में अजीब तरह का अन्धविश्वासी उन्माद देखने को मिला.

राहुल गांधी की तरह वरिष्ठ पत्रकार और नया इंडिया के संपादक हरिशंकर व्यास फरवरी के पहले सप्ताह से अपने अखबार के माध्यम से कोरोना वायरस के खतरे को लेकर लगातार लिखते रहे हैं. 21 दिनों के लॉकडाउन की घोषणा के बाद उन्होंने लिखा है कि “देश भले लॉकडाउन में चला गया हो लेकिन वायरस के आगे भारत का आत्मघाती रुख जस का तस है..फिलहाल भारत में कोरोना छुपा हुआ है और यह तब तक छुपा रहेगा जब तक प्रति दस लाख आबादी के पीछे तीन-हजार टेस्ट न हों.”

एक राष्ट्र के और पर हमें इस संकट को समझने और उसके तैयारी करने में भारी चूक या लापरवाही हुयी है और अभी भी हमारी सारी उम्मीदें लॉकडाउन पर टिकी हुई हैं जबकि इसके अलावा भी बड़े और ठोस कदम उठाये जाने की जरूरत है. लॉकडाउन हटने के बाद की स्थिति में वायरस का फैलाव ना हो इसके लिये भी जरूरी तैयारी और उपाय करने होंगें. फिलहाल सबसे  पहली जरूरत हैं कि सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर बनाने के लिये बड़ा कदम उठाया जाए जिसमें निजी स्वास्थ्य क्षेत्र को ‘राष्ट्रीयकृत’ करने के उपाय भी शामिल हैं जिससे बड़े पैमाने पर लोगों की टेस्टिंग हो सके. इसी प्रकार से प्रोग्रेसिव मेडिकोस एंड साइंटिस्ट्स फोरम द्वारा दिये गये बहुत ही जरूरी सुझावों जैसे जन-धन खातों के माध्यम से गरीब परिवारों को घर में रहने के दौरान वित्तीय सहायता और एफसीआई के गोदामों में जमा अतिरिक्त स्टॉक से गरीबों को मुफ्त राशन की दिशा में तत्काल कदम उठाये जाने की जरूरत है. संकट से उबरने के बाद की स्थिति का सामना करने के लिये अभी से ही तैयार होना होगा क्योंकि इसके तुरंत बाद देश का सामना बहुत ही गंभीर आर्थिक संकट से होने वाला है जैसा कि कांग्रेस के राहुल गाँधी ने मांग की है कि  इसके लिये एक बड़े आर्थिक पैकेज की जरुरत होगी.

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