कविता

धार्मिक जन होते हैं ईश्वर के शांति दूत

—विनय कुमार विनायक
धर्म में दिखावे की कोई चीज होती नहीं,
धर्म में अलगाववाद का बीज होता नहीं!

धर्म है धारण करने की मानवीय शक्ति,
धर्म है मानवता की सफल अभिव्यक्ति!

धर्म में मजहबी फिरकापरस्ती नहीं होती,
धर्म है मानव की उच्च मानसिक स्थिति!

धार्मिक जन होते हैं ईश्वर के शांति दूत,
धार्मिक हस्ती होते ईश्वर के सच्चे सपूत!

धर्मप्राण मानव कभी भेदभाव नहीं करते,
अपने व विपरीत स्वभाव के मनुष्यों से!

धार्मिक इंसान कभी दुर्भावना नहीं पालते,
विश्व भर के विभिन्न मानव समुदाय से!

धार्मिक जन दुखित मानव जन-जीवन में,
सर्वदा खुशियां भरते अपने सद् उपाय से!

धर्म में मजहबी बाह्य प्रवर्जना नहीं होती,
धर्म में अंतर्मन की हार्दिक साधना होती!

धर्मप्राण मानव अपने अंतःकरण मन में,
दूसरों के प्रति हिंसाचार भाव नहीं रखते!

धर्मप्राण रहमदिल औ भावुक इंसान होते,
वे किसी जीव जंतुओं की जान नहीं लेते!

धर्मप्राण प्राणी मनुष्य को सद् ज्ञान देते,
धर्मप्राण मानव सार्वकालिक महान होते!

धर्मप्राण हस्ती कभी उम्मीद नहीं करते,
हरकोई अनुयायी व अंधभक्त हों उनके!

धार्मिक इंसान वैसी गतिविधि नहीं करते,
जिससे हो देश की क्षति,मानवीय दुर्गति!

धर्मात्मा गुटबंदी व दुर्भिसंधी नहीं करते,
धर्मात्मा देश धर्म संस्कृति खातिर जीते!

धर्मानुरागी व्यक्ति नहीं चाहते सब लोग,
उनकी तरह हावभाव वेशभूषा धारण करे!

धर्मप्रेमी मानवों की चाहत ऐसी होती है,
कि हर मानव मानव जाति से प्यार करे!

स्वदेश की प्रगति,अपनी उन्नति के लिए
चाहिए स्वदेशी धर्म आस्था स्वीकार करें!
—-विनय कुमार विनायक