आरक्षण, आरक्षण और कितना आरक्षण ?

मृत्युंजय दीक्षित

25 अगस्त 2015 का दिन गुजरात की भावी राजनीति की जो दशा ओर दिशा तय  करके बीता है वह बेहद ही दुर्भाग्यपूर्ण और निराशावाद की राजनीति की नयी परिस्थितियो का जनक वाला दिन हो गया है। विगत तीन विधानसभ चुनावों से गुजरात में मोदी माडल की गूंज रही है तथा आज उसी मोदी माडल की आंधी का ही परिणाम है कि कंेद्र में भारतीय जनता पार्टी को पूर्ण बहुमत प्राप्त हुआ है। आज गुजराती प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में भारत विकास की नयी परिभाषा लिखने जा रहा है। 25 अगस्त को अहमदाबाद में पटेल समुदाय के युवा नेता हार्दिक पटेल ने अपने समुदाय के लिए ओबीसी कोटे में आरक्षण की मांग करते हुए एक महारैली कर डाली। हार्दिक पटेल की यह रैली वाकई में बहुत विशाल थी। यह रैली बंगाल के मुख्यमंत्री ममता बनर्जी व उप्र की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती की रैलियां में आने वाली भीड़ की याद ताजा कर रही थी। हार्दिक पटेल क रैली चूंकि आरक्षण की मांग को लेकर हो रही थी वह भी तब जब गुजरात में मुख्यमंत्री पटेल समुदाय का हो तथा वहां पर कम से कम 40 विधायक पटेल समुदाय से हों। आज की परिस्थितियों में गुजरात  तेजी से विकसित प्रदेश माना जा रहा है तथा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात माडल को ही भुनाकर अपनी राजनीतिक यात्रा का विकास किया है। गुजरात की भूमि हिंदू एकता का भी अनोखा माडल माना  गया है। गुजरात एक ऐसा प्रांत माना जाता था जहां फिलहाल जातिवाद की धारा नहीं थी हां वहां पर सांप्रदायिकता कुछ समय के लिए हावी हो गयी थी।

यह रैली आरक्षण की मांग को पूरा करने के लिए आयोजित की गयी थी जिसे मोदी व भाजपा विरोधी खेमे ने पूरे आनंद व उत्साह के साथ देखा और कहाकि अब मजा आ गया। भाजपा विरोधी व सेकुलर मीडिया ने खूब गाजे बाजे के साथ हार्दिक पटेल की रैली का प्रसारण किया और बाद में बहसें भी की जो अभी तक चल रही है। पटेल समुदाय की रैली को देखकर एकबारगी तो लग रहा है कि आगामी विधानसभा व लोकसभा चुनावों में पटेल समुदाय को आरक्षण की मांग एक बहुत बड़ा सरदर्द सभी राजनैतिक दलों के लिए बनने जा रही है।

हार्दिक पटेल ने रैली में पूरे जोर शोर से ऐलान किया है कि यदि भारतीय जनता पार्टी पटेल समुदाय को ओबीसी कोटे में आरक्षण दे दे तो 2017 में कमल फिर से खिल जायेगा नहीं तो कमल नहीं खिलेगा। पटेल ने रैली को सबोधित करते हुए नीतिश कुमार और चंद्रबाबू नायडू को अपना बताया। पटेल ने रैली में केजरीवाल की प्रशंसा भी कर दी। 22 वर्षीय पटेल का दावा है कि सोशल मीडिया का प्रयोग करना मोदी जी ने सिखाया और आंदोलन करना केजरीवाल ने सिखाया। वह भीड़तंत्र के समर्थक हैं ठीक उसी प्रकार से जैसे कि केजरीवाल। वह नक्सलवादी आंदोलन के भी समर्थक निकले। जब नरेंद्र मोदी को देश के पीएम पद के लिए चुना गया था और वे गुजरात से बाहर आ रहे थे तभी गुजरात के लोगों को चिंता सता रही थी कि की आखिर मोदी जी के गुजरात छोड़ने के बाद आखिर उनकी विरासत को कौन सफलतापूर्वक संभाल सकता है। पटेल समुदाय की विशाल रैली और उसके बाद गुजरात के कई क्षेत्रों में भड़की हिंसा को देखकर गुजरात के राजनैतिक विश्लेषकों को मोदी जी जैसे नेतृत्व की कमी व उनकी विरासत को संभाल रही  मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल की नेतृत्व क्षमता पर भी सवालिया निशान खड़े कर रहे है।

हार्दिक पटेल की रैली व उसके बाद भड़की हिंसा से मोदी व भाजपा विरोधियों के स्वर एक बार फिर बुलंद हो गये हैं तथा उन्हें लग रहा है कि जैसे बैठे- बिठाये गुजरात माडल के गुब्बारे की हवा निकल गयी है। आरक्षण की राजनीति करने वाले सभी  नेता चाहे वह कभी कांगे्रस रही हो या फिर लालू, मुलायम और नीतिश कुमार तथा मायावती सरीखे सभी प्रदेशों में जातिगत आधार पर फैले नेतागण। सभी ऐसे पटेल समुदाय के समर्थन में उछल  रहे हैं कि जेसे कि उन्होनें हार्दिक के दम पर अभी से ही सबकुछ एक झटके में हासिल कर लिया है। यह बात अलग है कि पटेल समुदाय के आंदोलन से गुजरात की छवि को एक बहुत बड़ा आधात लगा है और पर्यटन तथा निवेश भी बुरी तरह से प्रभावित हो सकता है। रही बात कांग्रेस की तो वह तो आजकल केवल और केवल किसी न किसी बहाने भाजपा नेताओं के इस्तीफों और पीएम मोदी की चुप्पी को ही उठा रही है। वह तो बहुत ही नकारात्मक राजनीति कर रही है और  यही कारण  है उसका लगातार पराजय की ओर जाना जारी है।  हार्दिक पटेल ने अपनी रैली में जिस प्रकार से केजरीवाल की तारीफ कर दी उससे कान खडे .हो गये। मीडिया ने पूरी तरह से हार्दिक पटेल का डीएनए शुरू कर दिया।

हार्दिक पटेल की यह रैली पीएम मोदी की आगामी राजनीति के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण है क्योंकि अभी 15 अगस्त को ही पीएम मोदी ने अपने संबोधन में देशवासियों से वादा किया है कि वह अब अपने शासनकाल में जातिवाद और संप्रदायवाद को फिर से खड़ा नहीं होने देंगे। अब उनको यह चुनौती अपने गृहराज्य से ही मिल रही है। आज पूरे देशभर में किसी न किसी प्रकार से जातिवाद की ही राजनीति की जा रही है । बिहार के चुनावों में जातिवाद और विकास के बीच महायुद्ध होने जा रहा है । उप्र के भी ऐसे ही हालात है। एक प्रकार से अभी तक उप्र के जाट, राजस्थान के गुर्जर, आरक्षण की मांग कर रहे थे उसमें अब गुजरात का पटेल समुदाय भी साथ हो गया है। अगर रैलियों और समुदायोें के भीड़तंत्र के दबाव में आकर सबका आरक्षण दे दिया जाये तो फिर देश के संविधान का क्या होगा? कल को फिर भूमिहार, राजपूत, मराठे और ब्राहमण समुदाय भी आरक्षण की मांग करने लग जायेंगे। पहले आरक्षण की मांग उठेगी फिर यही लोग गोलबंद होकर अलग राज्य और विशेषाधिकर की मांग करंेगे। आरक्षण की मांगों का विस्तार हमारे देश की एकता, अखंडता और विकास की यात्रा के लिए महाखतरा है। इस आंदोलन से भारत की व गुजरात की छवि को एक बार फिर गहरा आघात लगा है।  आंदोलन की रूपरेखा को देखकर  ऐसा लग रहा है कि यह आंदोलन हिंदुओं की एकता को खंड- खंड करने का है। यह आरक्षण आंदोलन एक बहुत ही बड़ी साजिश लग रही है जिसमें देश के सभी तथाकथित सुकेलर विचारधारा वाले दल व भारत विरोधी ताकतें पूरी तरह से सक्रिय हो उठी हैं। इन्हीं भारत विरोधी ताकतों ने हार्दिक पटेल जैसे एक और युवा नेता को अपना नया हथियार बना लिया है। आरक्षण की राजनीति अब बंद होनी चाहिये। देश की जनता के लगातार जागते रहने का समय आ गया है । यह आरक्षण की मांग तो केवल एक महज छलावा हेै लेकिन यह बहुत बड़ी अखंड भारत विरोधी साजिश का हिस्सा भी लग रही है।      यह वही हार्दिक पटेल है जिसने पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनावों में केजरीवाल का समर्थन किया था और पीएम मोदी को जनता का सबसे बड़ा धोखेबाज नेता कहा था।इससे साफ पता चल रहा है कि वह किधर से  संचालित हो रहे हैं। वैसे भी अब जातिवाद की राजनति से लोग तंग आ रहे हैं। आरक्षण व्यवस्था पर अब नये सिरे से विचार करने की आवश्यकता आ गयी है।

 

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