अब बेटे की नहीं शहर से,
चिट्ठी आती।
अम्मा बैठी दरवाजे पर,
आँख गड़ाती।
जब से गया शहर
अब तक न
वापस आया।
खत भेजा ना
शहर पहुँचकर,
फोन लगाया।
अम्मा को तो
पल -पल उसकी
याद सताती।
पता नहीं कैसा होगा वह
कहाँ मिला घर।
क्या खाता होगा वह
होगा किस पर निर्भर।
सोच- सोच कर उसे
रात भर नींद न आती।
बेटों का अब
हाल यही है होता जाता।
चल देते हैं शहर
गाँव अब छूटा जाता।
माँ बापू की ,घर की याद
बिसरती जाती।
इसीलिए क्या बेटों को
पाला पोसा है।
बिगड़ा वक्त आज देखो
कैसा -कैसा है।
रिश्तों की बाती अब
बुझकर धुँआँ उड़ाती।