नदियों हैं जीवन-रेखा, इन्हें प्रदूषण-मुक्त करें

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नदियों की कार्रवाई का अंतर्राष्ट्रीय दिवस 14 मार्च 2024
-ललित गर्ग-

नदियों को बचाने, जश्न मनाने और उनके महत्व के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए नदियों की कार्रवाई का अंतर्राष्ट्रीय दिवस 14 मार्च को मनाया जाता है। इस वर्ष की थीम ’सभी के लिए पानी’ है, जो मांग करती है कि नदियों को राष्ट्रीय संपत्ति घोषित किया जाए। बढ़ते नदियों के प्रदूषण को रोकने के लिये उनमें को अपशिष्ट या सीवेज, कारखानों से निकलने वाले तेल, कैमिकल, धुंआ, गैस, एसिड, कीचड़, कचरा, रंग को डालने से रोकना होना, हमने जीवनदायिनी नदियों को अपने लोभ, स्वार्थ, लापरवाही के कारण जहरीला बना दिया है। समूची दुनिया में पीने का शुद्ध पानी एक बड़ी समस्या बनता जा रहा है। पानी अत्यधिक जहरीला हो चुका है। इस कारण पीने के पानी की आपूर्ति भी नहीं हो पा रही है। लोगों को जल संकट का सामना करना पड़ रहा है। इस दिवस का मुख्य उद्देश्य वैश्विक स्तर पर नदी प्रबंधन, नदी प्रदूषण और नदी संरक्षण से संबंधित मुद्दों को संबोधित करके विश्व स्तर पर लोगों को नदियों को बचाने के बारे में बात करने के लिए अग्रसर करना एवं उनमें जागरूकता पैदा करना है। नदियाँ भी अत्यधिक ख़तरे में हैं, विश्व की 10 प्रतिशत से भी कम नदियां सुरक्षित हैं। इस दिवस की शुरुआत 1997 में कूर्टिबा ब्राजील में बांधों के प्रभावित होने से हुए जान-माल के नुकसान को देखते हुए की गई।
नदियों की कार्रवाई का अंतर्राष्ट्रीय दिवस दुनिया की नदियों की रक्षा में अग्रणी समुदायों और नागरिक समाज के आंदोलनों को मजबूत करती हैं। इसके अन्य उद्देश्यों में है कि नीतियों और अभियानों को सूचित करने के लिए मजबूत डेटा और साक्ष्य उत्पन्न करने के लिए खोजी अनुसंधान करना। विनाशकारी परियोजनाओं का पर्दाफाश करने और उनका विरोध करने के अभियानों को स्वतंत्र और निडर बनाना। एक ऐसी दृष्टि विकसित करना जो नदियों और उन पर निर्भर समुदायों की रक्षा करे क्योंकि नदियाँ विश्व की जैव विविधता को बहाल करने और बनाए रखने में महत्वपूर्ण हैं। नदी प्रणालियाँ पृथ्वी की उच्चतम जैविक विविधता और हमारी सबसे गहन मानवीय गतिविधि का क्षेत्र भी हैं। नदियाँ हमारे ग्रह की धमनियाँ हैं। वे सच्चे अर्थों में जीवन रेखा हैं। नदियाँ कभी उल्टी दिशा में नहीं जातीं। इसलिए, नदी की तरह जीने की कोशिश करें, अपने अतीत को भूल जाएं और अपने भविष्य पर ध्यान केंद्रित करें। अगर इस ग्रह पर कोई जादू है तो वह पानी में है। यह हमें अपनी अर्थव्यवस्था के एक हिस्से के रूप में व्यापार और वाणिज्य के लिए सस्ता और कुशल अंतर्देशीय परिवहन भी प्रदान करता है। यह पृथ्वी पर सबसे विविध और लुप्तप्राय वन्यजीवों में से कुछ का घर भी है।
इस वर्ष दुनिया जैविक विविधता पर 15वें सम्मेलन (सीबीडी) के लिए एकत्र हो रही है। मीठे पानी का पारिस्थितिकी तंत्र दुनिया में सबसे अधिक ख़राब है और इसे बदलने के लिए वैश्विक कार्रवाई की आवश्यकता है। भारत एक अनोखा देश है जहां नदियों को पूजनीय माना जाता है लेकिन दुर्भाग्य से प्रदूषण एक बड़ी समस्या है। गंगा, यमुना, महानदी, गोदावरी, नर्मदा, सिंधु (सिंधु), और कावेरी जैसी नदियों को देवी-देवताओं के रूप में पूजा जाता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शासन में बनाया गया जल शक्ति मंत्रालय, नदी घाटियों में आर्द्रभूमि के पुनरुद्धार और संरक्षण और नदी प्रदूषण के खतरनाक स्तर से निपटने पर ध्यान केंद्रित करता है। भारत की नदियों की दिन-ब-दिन बिगड़ती हालत एवं बढ़ते प्रदूषण पर पिछले चार दशकों से लगभग हर सरकार कोरी राजनीति कर रही है, प्रदूषणमुक्त नदियों का कोई ईमानदार प्रयास होता हुआ दिखाई नहीं दिया है। नदियों की साफ-सफाई के नाम पर कई हजार करोड़ रुपए बहा दिए गए हैं, लेकिन लगता है सब भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गये। यही कारण है कि नदियों में प्रदूषण की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है बल्कि साल-दर-साल पानी और गंदा व स्थिति खराब ही हुई है। नदियां पेयजल उपलब्धि का बड़ा माध्यम है, लेकिन इनके प्रदूषित होने से पीने के पानी की आपूर्ति भी नहीं हो पा रही है। लोगों को जल संकट का सामना करना पड़ रहा है।
हिंदुस्तान का जिस तरह का मौसम चक्र है उसमें हर नदी चाहे वो कितनी भी प्रदूषित क्यों न हो, साल में एक बार वर्षा के वक्त खुद को फिर से साफ करके देती है, पर इसके बाद हम फिर से इसे गंदा क्यों कर देते है? लेकिन मोदी ने नदियों की शुद्धता एवं पवित्रता के लिये व्यापक एवं प्रभावी उपक्रम किये हैं, जो समूची दुनिया के लिये नदी प्रबंधन एवं प्रदूषण मुक्ति के अनुकरणीय है। केंद्रीय जल संसाधन के अनुसार गंगा को निर्मल बनाने के लिए घाट, मोक्षधाम, बायो डायवर्सिटी आदि से जुड़े 245 प्रोजेक्ट पर तेजी से काम हो रहा है। गंगा की 40 सहायक नदियों में प्रदूषित जल का प्रवेश रोकने के लिए दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार में 170 परियोजनाओं पर काम शुरू हो गया है। गंगा को विषाक्त कचरे से मुक्ति इसलिये मिलना संभव हो पाया है क्योंकि प्रदूषण फैलाने वाली औद्योगिक इकाइयों के खिलाफ सख्ती बरती जा रही है। लेकिन विडम्बना है कि सरकार की सख्ती के बावजूद गंगा के नाम पर भी भ्रष्टाचार अविरल चल रहा है। अगर गंगा रूठ गई तो न दोआबा रहेगा और न देश में हरियाली रहेगी। न गंगा के वे लोकगीत, जिन्हें गाती हुई महिलाएं कार्तिक स्नान के लिए भोर में जाती है। गंगा के किनारे पर साधु-संत बड़ी-बड़ी आरतियां लेकर आरती गाते हैं, बड़े-बड़े आश्रम बनावकर मंडलेश्वर बने हैं उन्होंने कभी क्यों नहीं सोचा कि गंगा जो उनकी सब कुछ है, उसके अस्तित्व एवं अस्मिता को कुचला जा रहा है। वास्तव में गंगा एक संपूर्ण संस्कृति की वाहक रही है, जिसने विभिन्न साम्राज्यों का उत्थान-पतन देखा, किंतु गंगा का महत्व कम न हुआ।
आधुनिक शोधों से भी प्रमाणित हो चुका है कि गंगा की तलहटी में ही उसके जल के अद्भुत और चमत्कारी होने के कारण मौजूद है। यद्यपि औद्योगिक विकास ने गंगा की गुणवत्ता को प्रभावित किया है, किन्तु उसका महत्व यथावत है। उसका महात्म्य आज भी सर्वोपरि है। गंगा स्वयं में संपूर्ण संस्कृति है, संपूर्ण तीर्थ है, जिसका एक गौरवशाली इतिहास रहा है। गंगा ने अपनी विभिन्न धाराओं से, विभिन्न स्रोतों से भारतीय सभ्यता को समृद्ध किया, गंगा विश्व में भारत की पहचान है। वह मां है, देवी है, प्रेरणा है, शक्ति है, महाशक्ति है, परम शक्ति है, सर्वव्यापी है, उत्सवों की वाहक है। एक महान तीर्थ है। पुराण कहते हैं कि पृथ्वी, स्वर्ग, आकाश के सभी तीन करोड़ तीर्थ गंगा में उपस्थित रहते हैं। गंगाजल का स्पर्श इन तीन करोड़ तीर्थों का पुण्य उपलब्ध कराता है। गंगा का जल समस्त मानसिक एवं तामसिक दोषों को दूर करता है। यह जल परम पवित्र एवं स्वास्थ्यवर्धक है, जिसमें रोगवाहक कीटाणुओं को भक्षण करने की क्षमता है। गंगा का दर्शन मात्र ही समस्त पापों का विनाश करना है। जिस गंगा का इतना महत्व है, उपयोगिता है तो फिर क्यों उसके प्रति उपेक्षा एवं उदासीनता बरती जाती रही है?
दुनियाभर में नदी जल एवं नदियों के लिए कानून बने हुए है। आवश्यक हो गया है कि उस पर पुनर्विचार कर देश एवं दुनिया के व्यापक हित में विवेक से निर्णय लिया जाना चाहिए। हमारे राजनीतिज्ञ, जिन्हें सिर्फ वोट की प्यास है और वे अपनी इस स्वार्थ की प्यास को इस पानी से बुझाना चाहते हैं। नदियों को विवाद बना दिया है, आवश्यकता है तुच्छ स्वार्थ से ऊपर उठकर व्यापक मानवीय हित के परिप्रेक्ष्य में देखा जाये। जीवन में श्रेष्ठ वस्तुएं प्रभु ने मुफ्त दे रखी हैं- पानी, हवा और प्यार। और आज वे ही विवादग्रस्त, दूषित और झूठी हो गईं।

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