सुरेश हिंदुस्थानी
भारत एक लोकतांत्रिक देश होने के नाते आवश्यक है कि सत्ता पक्ष और विपक्ष को जनता की भावनाओं को ध्यान में रखकर ही काम करें। स्वस्थ लोकतंत्र के लिए कार्य करने की शैली ही भारत को उच्चतम आयाम देने की दिशा दिखा सकता है। कहने को देश में लोकतंत्र है, लेकिन ऐसा लगता है कि राजनीतिक दलों के जो नेता जनप्रतिनिधि बनकर दिल्ली या प्रदेश की राजधानियों में बैठते हैं, उनको केवल अपने दल के अनुसार ही काम करना होता है। जिसमें लोक की भावनाओं का समावेश बिलकुल भी नहीं रहता। ऐसे में सबसे पहले तो सवाल यही है कि जब देश लोकतांत्रिक है तो लोक की भावनाओं के अनुसार ही काम होना चाहिए, लेकिन हमेशा यही देखा जाता है कि लोकतंत्र को कमजोर करने वाले हमारे राजनेता केवल विरोध करने के लिए ही विरोध करने की शैली को अपनाने के लिए ही बाध्य होते हैं।
लोकतंत्र की व्यवस्थाओं के अनुसार विपक्ष का होना भी अत्यंत जरूरी है, लेकिन जो विपक्ष रचनात्मक भूमिका का पालन नहीं करता ऐसे विपक्ष से तो विपक्ष का न होना ही सही है। सत्ता पक्ष की निरंकुशता पर लगाम स्थापित करने के लिए ही विपक्ष का काम होता है, लेकिन भारत में प्राय: देखा जाता है कि सत्ता पक्ष के हर कार्य के लिए विपक्ष अपना विरोधी रुख अपनाता है। वर्तमान में केन्द्र में पदासीन भाजपा नीत सरकार जिन वादों के सहारे सरकार में आई है, उनको पूरा करने का जिम्मा सरकार का है, लेकिन विपक्ष के अडंगा के कारण वह अपने वादों को पूरा नहीं कर पा रही। अभी हाल ही में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आसाम के एक कार्यक्रम में यह स्वीकार किया कि एक परिवार संसद को नहीं चलने दे रहा। प्रधानमंत्री का यह कथन निश्चित ही किसी न किसी दुविधा को उजागर कर रहा है। अब सवाल यह आता है कि देश का मुखिया ही जब अपने देशवासियों और जनप्रतिनिधियों के कार्य से असंतुष्ट दिखाई देता है, तब निश्चित रूप से देशहितैषी कार्य योजनाओं को साकार रूप में परिणित होने के बारे में आशंका पैदा होती है। अभी तक नरेंद्र मोदी की सरकार ने जिस प्रकार का शासन किया है, वैसा ही शासन हर देश वासी चाहता था। हम जानते हैं कि भारत की जनता सत्ता द्वारा प्रायोजित भ्रष्टाचार से अंदर तक प्रताड़ित हो चुकी थी। वर्त्तमान सरकार के कार्यकाल में कम से कम सरकारी स्तर का भ्रष्टाचार तो समाप्त हुआ ही है। इतना ही नहीं इसका असर भारत के कोने कोने में धीरे धीरे ही सही, परंतु दिखाई देने लगा है। कहते हैं जब मुखिया की मानसिकता शुद्ध होगी तब जनता भी वैसा ही काम करने के लिए प्रवृत होती चली जाती है। आज देश में इस धारणा को बल मिला है कि नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में भारत भ्रष्टाचार मुक्त हो जाएगा। नरेंद्र मोदी सरकार का विरोध वही लोग ज्यादातर करते दिखाई देते हैं जिनका स्वार्थ प्रभावित हुआ है। वर्त्तमान में दिल्ली के कई सरकारी बंगलों पर ऐसे लोगों का आज भी कब्जा है। केंद्र सरकार जब इनसे बंगला खाली कराने के लिए नोटिस देती है, तब देश में ऐसा हो हल्ला मचाया जाता है जैसे बहुत बड़ा गुनाह हो गया हो।
संसद के सत्र के लिए कांग्रेस द्वारा जिस प्रकार की कार्यशैली अपनाई गई या अपनाए जाने की आशंका व्यक्त की जा रही है, उससे तो ऐसा ही लगता है कि संसद का आगामी सत्र भी बहुत हंगामेदार ही होगा। संसद में इस प्रकार की हंगामे के चलते देश का भारी नुकसान होता है। और उसका खामियाजा देश की जनता को ही भुगतना होता है। इसके लिए वर्तमान समय में तो केवल और केवल कांग्रेस ही जिम्मेदार है। केन्द्र में जब कांग्रेस की सरकार थी, तब कांग्रेस के राजनेताओं द्वारा विपक्ष पर आरोप लगाते थे कि विपक्ष सदन को चलने नहीं दे रहा, लेकिन आज कांग्रेस की जो भूमिका है, यही बात अब उन पर लागू हो रही है। कहा जाता है कि जो व्यवहार खुद के लिए पसंद न हो, वैसा दूसरे के साथ भी नहीं करना चाहिए। वर्तमान में कांग्रेस भी उसी तरह का व्यवहार करने पर उतारु है जो उसको खुद के लिए पसंद नहीं था।
वर्तमान केन्द्र सरकार के प्रत्येक कार्य का विरोध करने वाले विपक्षी दलों संभवत: इस बात का भय सता रहा है कि नरेन्द्र मोदी ने जिस प्रकार से कांग्रेस मुक्त भारत बनाने का संकल्प लिया है, कहीं वह पूरा न हो जाए। भारत की विश्व स्तरीय भूमिका का आंकलन किया जाए तो यह साबित होता है कि आज भारत की स्थिति पूर्व की सरकारों के समय की अपेक्षा बहुत ही मजबूत है। विश्व के कई देश जिस भारत से बात नहीं करते थे, आज वहीं देश भारत से दोस्ती करने के लिए आतुर दिखाई दे रहे हैं। कांग्रेस की दुविधा यही है कि नरेन्द्र मोदी अपने कार्य में सफल हो जाते हैं, तब भारत बुलंदियों पर होगा। ऐसे में कांग्रेस सहित विपक्ष के राजनेता इस बात से ग्रसित दिखाई देते हैं कि देश से कहीं कांग्रेस समाप्त नहीं हो जाए।
Bhajpa sakar ya pradhan mantri to apne purane gunahon ka fal bhugat rahe hain,kyonki jaisa unhone congress ke sath kiya tha,vahi aaj congress unke sath kar rahi hai,.karan chahe jo raha ho,par dono avshthaon men hani to desh aur uskee janta ko uthani pad rahi hai.kya iska ek hal yah ho sakta hai ki BJP apne dwara paida adchan ke liye desh ya janta se maafi maange? main nahin samjhta ki ek parivarv ko dosh dene se iska hal nikalne vaalaa hai.bhavishy men agar BJP rajyon men chunav nahin jeet paati hai,to aage ke teen ya usase kuchh adhik bache huye period men bhi kuchh sudhar hone kee sambhavna nahin hai.agar vipaksh ek joot ho jata hai to yah samsya aur badh jaayegee.