लोकतंत्र में संघ का कु-संग और कम्युनिस्टों का सत्संग / जगदीश्वर चतुर्वेदी

‘भारत नीति प्रतिष्ठान और मंगलेश डबराल’ विवाद को लेकर हम ‘प्रवक्ता’ पर ‘वैचारिक छुआछूत’ पर केन्द्रित बहस चला रहे हैं. इसी क्रम में हमने सर्वश्री जगदीश्वर चतुर्वेदी और विपिन किशोर सिन्हा से आग्रह किया था कि इस विषय पर अपने विचार हमें भेंजे. यह प्रसन्नता का विषय है कि दोनों महानुभावों के लेख हमें प्राप्त हुए. गत १ जून से मेरे यहाँ इन्टरनेट कनेक्शन में गड़बड़ी है. इस बीच ‘प्रवक्ता’ पर प्रकाशनार्थ लेख भारतजी अपलोड करते रहे.. आज जब अपने मित्र के यहाँ मेल चेक कर रहा था तो पाया कि चतुर्वेदी जी का लेख मेरे आग्रह के अगले ही दिन मेरे इन्बौक्स में आ चुका था. समय से प्रस्तुत लेख का प्रकाशन नहीं होने पर हमें खेद है. (सं.) 

लोकतंत्र में अन्तर्विरोधी विचार,संगठन और संस्थान सक्रिय रहते हैं। लोकतंत्र में सबको आजादी है। लोकतंत्र में विचार की आजादी,संगठन बनाने की आजादी और निजी विचारों के प्रचार-प्रसार की आजादी सबको है। इस परिप्रेक्ष्य के आधार पर सतह पर यही लगता है कि लोकतंत्र तो अन्तर्विरोधों का पुंज है। वस्तुतःलोकतंत्र में लोकतांत्रिक और अ-लोकतांत्रिक विचारों और संगठनों के बीच निरंतर टकराव होता रहता है। लोकतंत्र की शक्ति इस तथ्य से पहचानी जाती है कि वह अ-लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति कितनी भद्रता और सदाशयता से पेश आता है। यह सच है भारत में लोकतंत्र है और इस लोकतंत्र में संघ परिवार जैसे साम्प्रदायिक संगठन से लेकर अतिवादी-हिंसक माओवादी तक निवास करते हैं।

संघ परिवार के लोग अपने अच्छे निजी व्यवहारके लिए जाने जाते हैं। उनका निजी व्यवहार अपील करता है। लेकिन उनके विचारों में व्याप्त हिंसा, विद्वेष और असहिष्णुता के कारण लोकतंत्र बार-बार क्षतिग्रस्त हुआहै। भारत में संघ परिवार हिन्दुत्व में विश्वास करते हुए भारत को धर्म के आधार पर एक हिन्दू राष्ट्र के रूप में देखता है। उसका यह नजरिया ही समस्या की प्रधान जड़है। संघ परिवार की तरह दुनिया के अनेक देशों में धार्मिक और नस्ली आधार पर अनेक संगठन और सत्ताएं काम कर रही हैं। पश्चिमी देशों में संघ के समानधर्मा संगठनों ने मानव सभ्यता को जितने बड़े पैमाने पर क्षतिग्रस्त किया है, उसकी समूचे मानव सभ्यता के इतिहास में मिसाल नहीं मिलती। इसी तरह संघ परिवार ने भारत की सभ्यता को जिस तरह क्षतिग्रस्त किया है वैसे तो औरंगजेब ने भी नहीं किया था। संघ ने कायिक और वैचारिक हिंसा में मध्यकाल के विदेशी हमलावरों को काफी पीछे छोड़ दिया है। महमूद गजनवी की लूट औरहिंसा से ज्यादा गुजरात-मुंबई के दंगों में संपत्ति और जिंदगी की क्षति हुई।

इसी तरह संघ परिवार के बुद्धिजीवियों ने इतिहास से लेकर समाजनीति तक भारत में जिस तरह का विकृतिकरण किया है ,वैसा तो ब्रिटिश शासकों के कलमघिस्सुओं ने भी नहीं किया। इससे भारत कमजोर हुआ है। आमलोगों में हिन्दुत्व के विचारों के प्रभाव ने भारत की सांस्कृतिक एकता और बहुलतावाद कोबार-बार क्षतिग्रस्त किया है। इस परिप्रेक्ष्य में सोचे तो पता चलेगा कि संघ के विचारों ने कायिक हिंसाचार से ज्यादा वैचारिक हिंसाचार किया है। वैचारिक हिंसाचार का अर्थ अन्य के विचारों को कुत्सा प्रचार से दबाना, सत्य के प्रति विभ्रम फैलाना, देश के बाशिंदों, खासकर अल्पसंख्यकों के भावों,विचारों,संवेदनाओं और धार्मिक मान्यताओंके बारे में आक्रामक और भड़काने वाली भाषा का इस्तेमाल करना। उनको दोयम-दर्जे का इंसान करार देना। संघ के प्रकाशनों के जरिए यह काम अहर्निश होता रहता है। किसी दंगे में की गई हिंसा से इस तरह का प्रचार ज्यादा हानिकारक है।

संघ परिवार के प्रचारकों औरबुद्धिजीवियों का भारत में अल्पसंख्यकों के खिलाफ घृणा का वातावरण बनाने मेंमहत्वपूर्ण योगदान रहा है। इससे भारत की बहुलतावादी संस्कृति और विचारधारा क्षतिग्रस्त हुई है। ऐसी स्थिति में संघ के संस्थानों का बहुलतावाद की हिमायत मेंबोलना गले नहीं उतरता।

बहुलतावाद का अर्थ सिर्फ हिन्दुत्वमय बहुलतावाद नहीं है। बहुलतावाद की बुनियादी शर्त है किसी के भी खिलाफ घृणा के प्रचार का निषेध। बहुलतावाद की दूसरी प्रधान शर्त है व्यक्तिगत स्वतंत्रता और संवैधानिक अधिकारों का सम्मान करना, तीसरी शर्त है मानवाधिकारों का पूर्णतःसम्मान करना और उनके अनुरूप आचरण करना।

मानवाधिकारों में किसी भी किस्म की कतर-ब्यौंत बहुलतावाद की स्प्रिट को खत्म कर देती है। संघ परिवार को लोकतंत्र में अपने विचारोंकी आजादी है, वैसे ही अन्य को भी आजादी है। संघ परिवार निरंतर अन्य के अधिकारों (विशेषकर अल्पसंख्यकों) में कटौती की मांग करके, अन्य के प्रति घृणा फैलाकर अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करता रहा है। यह रास्ता मूलतः लोकतंत्र की मूल स्प्रिट के खिलाफ है।

कायदे से संघ परिवार को अन्य पर हमले करने, घृणा फैलाने के काम को बंद करके सकारात्मक एजेण्डे के आधार पर काम करना चाहिए। संघपरिवार की शक्ति का अधिकांश समय विद्वेष के प्रचार-प्रसार खर्च होता है ,इससे देश कमजोर बनता है , और संघ मजबूत बनता है।

संघ की शक्ति का अन्य के प्रति घृणा के आधार पर बढ़ना लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटीहै। इससे बहुलतावाद,लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्ष ताना-बाना टूटता है। आमतौर पर संघ के लोग अपने किसी सुदर्शन पुरूष को सामने रखकर बातें करते हैं। सवाल व्यक्तियों कानहीं ,विचारों का है। संघ परिवार जिस तरह के विचारों का प्रचार करता रहा है वेसमग्रता में देश के अहित और संघ के हितसाधन के लिए रचे गए हैं।

संघपरिवार के बुद्धिजीवी इस सवाल पर सोचें कि सारी दुनिया में धर्म आधारित समाज व्यवस्था के सपने ने लोकतंत्र को समृद्ध किया है या कमजोर किया है? वे इस सवाल का जबाब भी खोजें कि हिटलर–मुसोलिनी की नीतियों से विश्वसभ्यता का विनाश हुआ या विकास हुआ? यह भी सोचें कि हिटलर आदि क्यों आसानी से उनके विचारों के करीब आते हैं, प्रेरक की सूची में आते हैं ? भगवान कृष्ण की भूमि पर जन्मलेने वालों का हिटलर के विचारों और कर्म से प्रेरणा लेना शर्मिंदगी के साथ खतरनाक दिशा का संकेत भी है।

हिटलर ने कभी बहुलतावाद को पसंद नहीं किया। रही बात स्टालिन की तो समाजवादी व्यवस्था में भी बहुलतावाद के लिए कोई जगह नहीं है। समाजवादी व्यवस्था में अनेक मानवाधिकार विरोधी चीजें सामने आई हैं जिनको लेकर मार्क्सवादी खेमे में विश्वस्तर पर मंथन चल रहा है। इसका परिणाम है कि मार्क्सवादी भी बहुलतावाद और लोकतंत्र की सत्ता और महत्ता को मानने लगे हैं।

भारत में कम्युनिस्ट आंदोलन अपने जन्म से ही बहुलतावाद और लोकतंत्र का पक्षधर रहा है। लोकतंत्र की अग्रिम चौकियों में कम्युनिस्टों का योगदान रहा है। आधुनिक केरल पर आज सारा देश गर्व करता है। लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि आधुनिक केरल के निर्माताओं में कम्युनिस्टों की अग्रणी-नेतृत्वकारी भूमिका रही है।

खासकर ईएमएस नम्बूदिरीपाद ने आधुनिक केरलके सपने को साकार करने में जो योगदान किया है वह अतुलनीय है।ईमानदार राजनीति की वेबेमिसाल पहचान थे। सवाल यह है कि केरल जैसा राज्य देश में अन्यत्र कोई और बुर्जुआनेता या संघनेता क्यों नहीं बना पाए? क्या बात है कि केरल में बहुलतावाद, सांस्कृतिक उन्नयन के जो शिखर बनाए गए हैं उनको भारत का कोई भी राज्य छू नहीं पाया है।

आधुनिक केरल की परिकल्पना को साकार करने में कम्युनिस्टों ने पूंजीवादी विकास से भिन्न रास्ता चुना और गैर औद्योगिक संरचनाओं के वह सब कर दिखाया जो गुजरात-महाराष्ट्र-बंगाल-कर्नाटक-दिल्ली आदि नहीं कर पाए।

कम्युनिस्टों की भारत में लोकतंत्र में महत्वपूर्ण और सकारात्मक भूमिका रही है। कुछ अपवादों को छोड़कर। उल्लेखनीय है कि भारत के कम्युनिस्टों के लोकतांत्रिक व्यवस्था में काम करने के अनुभवों और भारत के लोकतंत्र का समाजवादी मुल्कों पर गहरा असर पड़ा है और समाजवादी मुल्कों में समाजवाद की जगह लोकतंत्र के भारतीय मॉडल के अनुकरण की ओर लैटिन अमेरिका से लेकररूस तक प्रयास हो रहे हैं। पहले अक्टूबर क्रांति और समाजवाद के विचारों के विश्वव्यापीप्रवाह के परिप्रेक्ष्य में भारत में सोचा जाता था। लेकिन इन दिनों मामला थोड़ा पलटगया है।

भारतीय लोकतंत्र और कम्युनिस्टों के यहांके अनुभवों की रोशनी में सारी दुनिया के कम्युनिस्ट सोच रहे हैं। इस दिशा की ओर ध्यान खींचने में 1957 में पहली बार केरल में लोकतंत्र के जरिए चुनकर आई कम्युनिस्ट सरकार की बड़ी भमिका है। सारी दुनिया में पहली बार कम्युनिस्टों की वोट के जरिए सरकार बनी थी। कम्युनिस्ट वोटों के जरिए जब आए तो वे बूथ केप्चरिंग करके, गुण्डागर्दी करके नहीं आए थे बल्कि अपने पॉजिटिव कार्यक्रम के आधार पर आए थे। उस समय संघ से लेकर कांग्रेस तक सभी के दिग्गजनेता जिंदा थे और वे कम्युनिस्टों की जीत को अवाक् होकर देख रहे थे। कम्युनिस्टों की केरल में जीत के साथ ही आधुनिक केरल के सपने का आरंभ हो गया और उस सपने को साकार करने में कम्युनिस्ट अग्रणी कतारों में रहे हैं।

हमारा एक ही अनुरोध है संघ परिवार के लोग कमसे कम केरल जैसा एक राज्य बनाकर दिखाएं। कांग्रेस तो यह काम नहीं कर पायी है। क्या शिवराजसिंह चौहान और नरेन्द्र मोदी कर पाए हैं? केरल जैसी शांति, सुरक्षा, शिक्षा, स्वस्थ राजनीति, मीडियाचेतना, साहित्यचेतना और बहुलतावादी सांस्कृतिक वातावरण, साम्प्रदायिक सदभाव, दंगारहित समाज, सुरक्षित अल्पसंख्यक क्या अन्यत्र संघ परिवार दे पाया है?

10 COMMENTS

  1. जगदीश्वर जी का लेख पढ़ हसी का फव्वारा फुट गया /वह किस केरल कि बात कर रहे है जहा वाम पंथी गुंडे नित्य आरएसएस के लोगो पर हमले कर हत्या कर रहे है /जहा लव जिहाद चल रहा /कोनसे केरल को बता रहे है जगदीश /वे दुबारा केरल जाए और फिर लिखे /केवल बनावटी शब्द से सत्य नहीं मिटता है /

  2. कम्युनिस्टों का ….. कम्युनिस्टों के लिए …… कम्युनिस्टों के द्वारा
    विश्व का ….. विश्व के लिए …… संघ के द्वारा

    लेखक को उपरोक्त में अंतर समझना चाहिए, कम्युनिस्टों में पुरानी परंपरा है कि इन्हे बहरा बनाया जाता है ……..जिस से कि ये पूरी ताकत बोलने पर खर्च करें

    आज तक भारत का एक कुत्ता भी कंम्यूनिस्टों का दिया हुआ पानी नहीं पिया होगा जबकि संघ के सेवा प्रकल्पों से कितने आदिवासी संरक्षित हो रहे हैं …….. विचारधारा तो दूर संघ के विविध आयामों कि भी समझ नहीं है इन लोगों को

    आज़ादी के ५० साल में संघ भारत से अमेरिका तक जा पंहुचा और कम्युनिस्ट लाहौर से खदेड़े गए तो बंगाल के कुछ जिलों तक सिमट कर रह गए

    पूरे विश्व में असफल होते कम्युनिस्म पर तरस आता है ……… जहाँ तक चाइना कि बात है तो वहाँ भी कंम्यूनिस्ट के रूप में प्रखर राष्ट्रवाद ही है …….

    काश भारत के हसिया हथौड़ा वाले लाल झंडाधारियों को भोले देशवाशियों कि गर्दन और खोपड़ी काटने और फोड़ने कि जगह …….. भारत का श्रम और कृषि दिखती

  3. संघ लोगो के समझ में तभी आ सकता है जब वह शाखा में जाये. ये तो लोगों को बरगलाने वाली बातें आपने लिखी है. १९२५ से लेकर आज तक के इतिहास में संघ की भूमिका को नकार नहीं जा सकता है. आपको गुजरात क दंगे तो याद हैं लेकिन इसके पीछे का कारण तो कोई नही बताता है . और भी जितने दंगे हुए हैं उनके दोषी कौन है . मुझे तो लगता है सबसे बड़ा आतंक फ़ैलाने का काम तो आप अपने ही लेखों के माध्यम से कर रहे हैं

  4. अभी अभी खबर आयी है कि केरल में राष्ट्रिय औसत से दोगुने अपराध हो रहे हैं. मैं नहीं समझता कि केरल में कांग्रेस का शासन आने के बाद अपराधों की संख्या में इतनी वृद्धि हुई है.केरल की सम्पन्नता उसके विदशी मुद्रा के अर्जन से हैं न कि वहाँ के सुचारू शासन व्यवस्था के कारण. कहा तो यह जाता है कि केरल में साम्य वादियों के शासन के अंत का कारण भी वहाँ के लोगों की विदेशों से अर्जित धन है.आज केवल त्रिपुरा में साम्यवादियों का शासन है.यह कोई गुप्त बात नहीं है कि आज भी त्रिपुरा देश के सबसे गरीब राज्यों में से एक है.बंगाल आजादी के समय देश के सबसे उन्नत राज्यों में से एक था.आज साम्यवादियों ने उसे उस कगार पर ला खड़ा किया है कि बिना भीख के उसका दिनानुदिन खर्च चलाना भी ममता के लिए कठिन हो रहा है यह दूसरी बात है कि ममता भी अपने एक वर्ष के शासन में कुछ ख़ास नहीं कर सकी हैं.मानवाधिकारों की बात जब कोई कम्युनिष्ट करता है,तब केवल हँसा ही जा सकता है.ऐसे मैं यह नहीं कहता कि आर.एस एस. या बीजेपी जो कर रहा है वह सब ठीक है,पर हमारे यहाँ एक कहावत है कि चलनी दूषे सूप को जिसमे सहस्र छेद. बात आकर वहीं अटक जाती है.कम्युनिष्टों से मेरा एक ही निवेदन है कि दूसरों पर कीचड उछालने के पहले अपने गरेबान में झाँक ले तो ज्यादा अच्छा हो.

  5. संस्कृत में एक श्लोक है जिसका अर्थ है युक्तियुक्त बात चाहे बच्चे ने कही हो या शुक (तोते) ने ग्रहण करनी चाहिए . युक्तिहीन बात चाहे वृद्ध ने कही हो या शुक (संत शुकदेव ) ने छोड़ देनी चाहिए .न्यूटन की बात इस लिए निरर्थक नहीं होती की वो इंग्लॅण्ड में पैदा हुए थे .हिटलर में भी कुछ चीज अच्छी थी .अगर वो संघ ने अपनाई है तो उनका अनुका अनुमोदन करना चाहिए . पता नहीं वीरेंद्र जैन और जगदीश चतुर्वेदी जैसे लोगों को दिल्ली १९८४ भोपाल गैस काण्ड , Anderson को भागना cwg ,2g कोयला, ४ जून को जलियाला की पुनरावृति ,अफजल और कसाब को गले लगाना क्यों नहीं दिखाई देता. जन्हा तक कम्युनिष्टों का प्रश्न है .पश्चिमी बंगाल में इतने लम्बे शासन के बाद सबसे घनी आबादी और मदरसों का प्रान्त है .गरीबों को मानवाधिकारों का हनन कोलकाता में हुआ है.

  6. जगदीश्वर चतुर्वेदी के इस हास्यास्पद आलेख पर कुछ कमेंट लिखने का अर्थ नहीं है क्योंकि आप सिर्फ सोते हुए को जगा सकते हैं, जाग कर भी सोने का अभिनय कर रहे व्यक्ति को जगाना असंभव है। अगर जगदीश्वर चतुर्वेदी वास्तव में उच्च-शिक्षित प्रोफेसर हैं, जैसा कि बताया जा रहा है, तो फिर उनको अज्ञानी तो नहीं माना जा सकता है! एक ही विकल्प बचता है और वह ये कि वे बौद्धिक दृष्टि से बेइमान हैं। जानते सब कुछ हैं पर कहना-लिखना कुछ और पड़ता है। मजबूरी है, क्या करें! अपनी छवि के अनुकूल वामपंथ की दुकानदारी भी तो चलानी होती है! जानम समझा करो ! उनको यह बताना कि “पास आओ तो शायद समझ लो हमको / ये दूरियां फासले बढ़ाती हैं” काम नहीं आयेगा। वे पक्के कम्यूनिस्ट ठहरे ! अंत समय में आकर ही समझें तो समझें, पहले नहीं समझेंगे ! भगवान उन्हें दीर्घ आयु दें ( पर वह तो कम्यूनिस्ट ठहरे, भगवान के अस्तित्व को भी स्वीकार नहीं करेंगे)?

  7. जो भाजपाई और संघी कर सकते हैं वो कम्युनिस्ट सपने में नहीं कर सकते. आदरणीय जगदीश्वर जी आप को विदित हो कि आज़ाद भारत के इतिहास में बमुश्किल ६-७ साल को छोड़ बाकि का सत्ता समयांतराल कांग्रेस के हवाले रहा है.किन्तु उन कांग्रेसियों ने आधा दर्ज़न पूंजीपतियों से आगे की गिनती नहीं सीखी.भाजपा [एनडीए] को सिर्फ एक बार मौका मिला था १९९९-२००३ के दरम्यान भाजपा ने [प्रमोद महाजनों की मेहरवानी से]देश में ६७ खरबपति और हजारों अरव्पति पैदा करके दिखा दिए.
    अभी -अभी ताज़ा खबर है कि मध्य प्रदेश में सत्तारूढ़ भाजपा के स्थानीय नेताओं से लेकर दिल्ली स्थित केन्द्रीय कार्यकारिणी के तथाकथित महान कर्णधारों की जेबों को निरंतर गर्म रखने वाले महान बिल्डर,ठेकेदारों के बादशाह,-दिलीप सूर्यवंशी और सुधीर शर्मा के दर्जनों ठिकानों पर छापमारी हो रही है. एन्फोर्समेंट डिरेक्टोरेट,सीबीआई तथा अन्य केन्द्रीय जांच एजेंसियों ने अब तक अरबों की अघोषित संपत्ति का खुलासा किया है.बैंक के लाकरों और अनेक वित्तीय ठिकानो से नोटों के पुलेंदे निकल रहे हैं. उधर गरीब वेरोजगार युवा भूंखे मर रहे हैं.चोरी,हत्या,बलात्कार डकेती,खनन माफिया का आतंक इतना बढ़ गया है कि आई पी एस भी दाम्फ्रों से कुचले जा रहे हैं.
    भाजपा ने जो काम यहाँ ५-६ साल में कर दिखाया
    वो कांग्रेस भी नहीं कर पाई ,कम्युनिस वेचारे गरीबों के लिए लड़ते रहे ऊपर से उन्ही पर झूंठे आरोप लग रहे हैं.

  8. जब धर्म के आधार पर देश का बंटवारा हो चुका,मुसलमानों को पाकिस्तान के रूप में पूरा देश मिल चुका तो क्या शेष भाग स्वतः ही हिन्दुओं को नहीं हो जाता ? फिर यह निरर्थक बहस क्यों ? यदि संघ हिन्दुओं के हित में इस राष्ट्र का समग्र हित देखता है तो इसमें क्या गलत है.लेखक महोदय अगर संघ को समझना चाहते हो तो संघ को दूर से मत देखो पास जाकर देखो या फिर उन बुद्धिजीवियों से प्रेरणा लो जिन्होंने जीवन भर संघ को कोसा लेकिन जब संघ के करीब आये तो संघ समझ में आया और संघ के कट्टर भक्त हो गए.संघ द्वारा चलाए जा रहे लाखों सेवा प्रकल्पों के बारे में जानने का प्रयास किया है कभी आपने ? नहीं.क्योंकि आपको और आपकी जमात को सेवा के नाम पर धर्म परिवर्तन करने वाली मदर टेरेसा के आलावा कुच्छ भी दिखाई नहीं देता.जब सारा देश संक्रमण काल से गुजर रहा हो तो संघ शांत कैसे रह सकता है .पता आपको भी है कौन इस देश का हितेषी है और कौन विरोधी लेकिन मैं समझ सकता हूँ आप जैसे लोगों की भी कुछ विवशताएँ हैं .अपनी दूकान चलाओ लेकिन कुछ देश के बारे में भी सोचो और अपनी प्रेरणा के केंद्र इस देश में ही खोजो मास्को या बीजिंग में नहीं.

  9. लो जगदीश्वर जी ने बाकायदा हिटलर-मुस्लोलिनी का सफ़र तय करते हुए संघ के खिलाफ फतवा भी जारी कर दिया.
    आप से और उम्मीद भी क्या की जा सकती है.
    आप असली कम्युनिस्ट हैं. इसमें कोइ शक नहीं.

  10. चतुर्वेदी जी –

    एक शिक्षक के नाते आपने अपने जीवन में एक सम्माननीय मुकाम हासिल किया हैं – इसीलिए आपके बातों और खयालो को महत्व देना और मिलना स्वाभाविक हैं . आपके ज्ञान और पद को नमस्कार करते हुए में अपनी कुछ सोच यहाँ रखता हु ….

    ” भारत में संघ परिवार हिन्दुत्व में विश्वास करते हुए भारत को धर्म के आधार पर एक हिन्दू राष्ट्र के रूप में देखता है। उसका यह नजरिया ही समस्या की प्रधान जड़है। ”

    आपके इस बात से में ठीक बिपरीत सोच रखता हु …. मेरा मानना हैं की अनपढ़ , अनजान , कम बुद्धि वाले लोगो से समझदारी की अपेक्षया ऐसे लोग जो पढ़े लिखे , अकल्मन्द , ग्न्यानी लोगो से – में कम रखता हु …. पर यहाँ स्थिति कुछ और ही हैं …. पढ़े लिखे ज्ञानी समझदार लोग सच्चाई को मानने से इनकार करते हैं या सच्चाई को अपने हिसाब से तोड़ मोर कर पेश करते हैं I

    आप हिंदी के प्रोफेस्सर हैं – कृपया मुझे बताये धर्म का इंग्लिश translation क्या हैं ?

    मेरे ज्ञान से धर्म का कोई सामान भाव वाला शब्द इंग्लिश dictionary में नहीं हैं …. फिर भी धर्म को तीन शब्दों का मिला जुला अर्थ पैदा करने वाला एक शब्द मान सकते हैं – वो हैं इंग्लिश में Truth+Responsibility+Duty ….. जी यह सतच हैं की में अपने बहिन का बड़ा भाई हु …. इसीलिए मुझे बड़े भाई के Responsibility लेना हैं और बड़े भाई होने का कुछ दुतिएस भी निभाना हैं ….. और कुल मिलाकर मुझे अपने बहिन के प्रति बड़े भाई का धर्म निभाना हैं …. ठीक इसी तरह मुझे एक बेटे का धर्म , चाचा का धर्म , छात्र का धर्म , एक अत्चे इंसान का धर्म ….. इसी तरह से और बहुत सारे धर्म निभाना है अपने जीवन में …..

    परुन्तु आप जैसे अनगिनत पढ़े लिखे कोम्मुनिस्ट इस शब्द का सही मतलब ना तो कभी माने है और नाही कभी इसका दुर्प्रयोग और गलत अर्थ पर इस महान शब्द का बलात्कार करने से बाज़ आये हैं …..

    आप जैसे लोगो का मानना यही हैं की हम सभी एक ऐसे धर्म निरपेक्ष देश में रहे और सभी धर्म निरपेक्ष बने जहा ना तो हम किसी बेटा होने का , या भाई होने का … या किसी भी और धर्म को लात मारकर जीवन जिए …..

    आप जैसे लोग मेरे बातों का जवाब देने के लिए अब किसी भी तरीके का उत्पतंग तर्क , कुतर्क रखते हैं जिसे मुझे बार बार अनेको बार अलग अलग कोम्युनिस्तो से मिला हैं …..

    अपने ज्ञान के परिधियो को स्वस्थ बनाये सच्चे शब्दो से और सच्चाई की ज्ञान से ….

    सच्च हैं संघ “भारत को धर्म के आधार पर एक हिन्दू राष्ट्र” के रूप में देखते हैं …..

    जिस तरीके से धर्म के परिभाषा के साथ आप लोग बलात्कार करते हैं ठीक उसी तरीके से हिन्दू शब्द के सही अर्थ को भी आप लोग हमेशा अनदेखा और अस्वीकार करते हैं …..

    व्यक्तिगत रूप से मुझे कोम्मुनिस्तो के ऊपर बहुत दया आती हैं ….. क्यूंकि कोम्मुनिस्ट का मतलब मेरे लिए – पढ़े लिखे ग्न्यानी , समाज के गरीबो के लिए अत्चे भाव रखने वाले लोगो का समूह हैं – पर इसी के साथ साथ कम्युनिस्ट का मतलब – पढ़े लिखे अहंकारी , आधा सच को जान्ने वाले और पुरे सच को नकारने वाले , बिफल सोच के हारे हुए सिपाही हैं …..

    ” कम्युनिस्ट वोटों के जरिए जब आए तो वे बूथ केप्चरिंग करके, गुण्डागर्दी करके नहीं आए थे बल्कि अपने पॉजिटिव कार्यक्रम के आधार पर आए थे। ”

    इस झूठ का पर्दाफास एक बार फिर आपके पार्टी के ही केरला के नेता ने हाल ही में किया हैं जिसमे उन्होने कहा की कोम्युनिस्तो ने केरला में अपने बिरोधियो के हत्या किए हैं ………..

    मेरा आखरी कमेन्ट : आपने लिखा हैं

    “हमारा एक ही अनुरोध है संघ परिवार के लोग कमसे कम केरल जैसा एक राज्य बनाकर दिखाएं। ”

    केरल में आपके सरकार आये राम गए राम होते रहते हैं इसीलिए वाहे के हालत का पूरा श्रेय खुद न ले – पर आपके अपने प्रदेश West Bengal में आपके कोम्युनिस्तो का शासन 25 साल से भी ज्यादा रहा बिना किसी रोक टोक के – पर WB का हाल के बारे में आपका क्या कहना ? कोलकोता जो British India के पहला कैपिटल था … भारत का सबसे अग्रणी शहरो में जिसका गिनती हुवा करता था – उसकी आज की स्थिति क्या हैं ??? आप लोगो ने क्या किया कोलकोता जैसे महानगर के साथ …. कोलकोता का दूसरा पहचान मेरे लिए बंद -हरताल सिटी बना दिया …….

    ……….. हाय रे हाय ….. गरीबो का मसीहा बनने के वादो से सत्ता में आने वाले बेवकुफो ने क्या हाल कर दिया कोलकोता जैसे एक बिकसित शहर का … WB जैसा एक प्रगतिशील प्रदेश का ….. नहीं चाहिए भाई नहीं चाहिए ऐसी बदलाव …. सभी को अर्ध ज्ञानी – महा धोन्गी कोम्युनिस्तो से बचाओ …..

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