सूचना का अधिकार व सामाजिक परिवर्तन

rtiआदिमकालीन मानव शनैः शनैः सभ्यता की ओर अग्रसर हुआ .भाषा व लिपि का अविष्कार होने के पश्चात् मानव समाज ने अनुशासन की आवश्यकता पूर्ति के लिये नियमों एवं रीति – रिवाजों की स्थापना की .उस समय मानव ने महसूस कर लिया था कि जंगल का कानून मानव समाज के हित में नहीं है .विश्व की समस्त मानव सभ्यताओं ने मानव के प्रति मानव का व्यवहार कैसा हो ,इसके लिये नियम व परम्पराओं का निर्धारण किया .अतः हम कह सकते है कि मानव के व्यवहार को अनुशासित एवं मर्यादित करने के लिये जो नियम या कानून बनायें गए है , वहीँ कानून है .सूचना का अधिकार एक ऐसा कानून है जिसके द्वारा आम जनता को सरकारी सूचनाओं को जाननें में आसानी होती है . सूचना के प्रति आम आदमी की पहुँच को सरल एवं सुनिश्चित करने के उद्देश्य व संकल्प की पूर्ति के लिये ही भारत में सूचना का अधिकार अधिनियम -2005 लागू किया गया .इस कानून को प्रभावी बनाने के लिये विधि में परिवर्तन भी किया गया .
अगर हम इस कानून के ऐतिहासिक आलोक में जाये तो कई तथ्य सामने आते है . पहला यह कानून हमारे देश में काफ़ी देर से आया तो वही दूसरा तथ्य यह है कि इसकी जरूरत क्यों पड़ी .एक लोकतान्त्रिक देश होने के चलते इस कानून को भारत में आने के लिये लगभग 61 वर्षों का इंतजार करना पड़ा .सबसे पहले यह कानून स्वीडन में 1766 में लागू किया गया .इसके आने से स्वीडन में सरकारी दस्तावेजो तक जनता की पहुच एक अधिकार हो गया तथा गैर पहुच एक अपवाद .इसके बाद भारत तक आने में इसे कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा इसके बावजूद कि सर्वोच्च न्यायालय ने 1975 में यह साफ कहा कि – सूचना का अधिकार (RTI) भाषण व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अभिन्न अंग है . जिसका वर्णन भारतीय संविधान की धारा 19(A) में किया गया है .इस कानून को लागू करने में शासकीय गुप्त बात अधिनियम ,अखिल भारतीय अधिनियम आदि कानून लगातार बाधा डालते रहे .इस कानून की महत्ता का इसी बात अंदाजा लगाया जा सकता है कि विश्व बैंक के द्वारा 1992 में जारी रिपोर्ट में वुडरो विल्सन ने साफ कहा था कि सरकार को पूरी तरह खुला होना चाहिए .इन सब के बावजूद भी भारत से पहले इस कानून को लागू करने का गौरव स्वीडन ,अमेरिका ,डेनमार्क , नार्वे , दक्षिण अफ्रीका ,फिनलैण्ड आदि देशो को प्राप्त प्राप्त हुआ , हालाकिं ब्रिटेन में यह कानून 1966 में गठित फुल्टन समिति तथा 1972 की मोरेस समिति के सिफ़ारिस पर 1 जून 2005 को लागू हुआ .भारत में इस कानून को लागू करने में आने वाली विभिन्न क़ानूनी अड़चनों को समाप्त कर 12 अक्टूबर 2005 को लागू किया गया . 6 अध्यायों में वर्णित यह कानून किसी भी जानकारी को प्राप्त करने का आज प्रमुख हथियार बन गया है .
विश्व में भारत अकेला ऐसा देश हैं जहाँ सूचना की प्राप्ति एक अधिकार है .शेष जिन देशों में
इस कानून को लागू किया गया है वहाँ यह केवल सूचना की स्वतंत्रता सुनिश्चित करता है .यही कारण है कि इतने कम समय में भी सूचना का अधिकार कानून भारत में काफ़ी व्यापक असर डालने में कामयाब हुआ है .आज भारत में मनमानी,भ्रष्टाचार ,अपना काम न करना जैसी अफसरशाही के विरुद्ध यह कानून आम जनमानस का एक मुख्य हथियार बन गया है .पासपोर्ट बनाने में लेट लतीफी हो या फिर सरकारी कार्यालयों में हो रहे कार्यो में शिथिलता हो , इस कानून के आने से काफ़ी हद तक कम हो गई है .ये अलग बात है कि कुछ लोग इस कानून का गलत इस्तेमाल अपने निजी हितो के लिये करने से नहीं चुक रहे है .इस कानून का प्रयोग आज पत्नियाँ पतियों की मसिक आय जानने के लिये करने लगी है जो इसकी प्रसांगिकता पर सवाल उठाने के लिये काफ़ी है .इन सबके बावजूद राज्य सूचना आयोग को आज तक यह नहीं मालूम है कि कौन –कौन से निजी संस्थान उसके दायरे में आते है .इनसे जुड़ा कोई भी मामला आने पर आयोग संस्थान से यह पूछने के लिये मजबूर है कि क्या उसे सरकारी मदद मिल रही है या नहीं .वहाँ से मिले जवाब की सत्यता परखने का आयोग के पास कोई जरिया नहीं है . ऐसे समस्यायों का हाल ढूढे बगैर इस कानून को प्रभावी नहीं बनाया जा सकता .
सूचना के अधिकार ने रजनीतिक , प्रशासनिक हलकों में एक तरह से क्रांति ला दी है .इस कानून का प्रयोग शहरों से लेकर गाँव – देहात तक काफ़ी प्रभावी तरीके से हो रहा है .इसका प्रचार प्रसार जितना अधिक होगा उतना ही समाज में इसके प्रति समाजिक चेतना का संचार होंगा और इससे लोग जागरूक होगें .इससे निश्चित रूप से आने वाले समय में समाजिक स्थितियां बदलेगी और एक भ्रष्टाचार मुक्त व स्वच्छ समाज का निर्माण होंगा .

नीतेश राय (स्वतंत्र टिप्पणीकार )
8962379075

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