एक और होनहार राजनीतिज्ञ का अफसोसनाक हश्र

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मनप्रीत सिंह बादल निलंबन

-निर्मल रानी

पंजाब की राजनीति पर अपना वर्चस्व कायम रखने को लेकर अकाली दल पहले भी कई बार कई धड़ों में विभाजित हो चुका है। वर्तमान में सबसे माबूत धड़े के रूप में शिरोमणि अकाली दल (बादल) ही पंजाब की राजनीति में अपने आपको सबसे मज़बूती से संगठित किए हुए है। इसके मुखिया पंजाब के मुख्‍यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने पंजाब की राजनीति के कभी दिग्गज समझे जाने वाले गुरू चरण सिंह तोहड़ा समेत कई बड़े नेताओं को राजनैतिक पटखनी देकर अपने वर्चस्व को क़ायम रखने में सफलता हासिल की है। इस राजनैतिक शतरंजी बिसात में उन्होंने भी देश के अन्य तमाम राज्‍यों के अनेक प्रमुख नेताओं की तरह अपनी भी बिसात बिछाई। जिसमें उन्होंने अपने तमाम वंफादार तथा समर्पित साथियों पर विश्वास करने के साथ साथ अपने सगे संबंधियों को भी अपनी राजनैतिक शतरंज का मोहरा बनाया। इनमें जहां उनके पुत्र सुखबीर सिंह बादल तथा उनकी बहु हरसिमरत कौर, सुखबीर के साले विधायक मजीठिया शामिल हैं वहीं बादल के भतीजे मनप्रीत सिंह बादल भी प्रकाश सिंह बादल के खास सिपहसालारों में एक गिने जाने लगे।

विदेश में शिक्षा प्राप्त मनप्रीत सिंह बादल अपनी क़ाबिलियत के साथ साथ बादल के परिवार के सदस्य होने के नाते बादल सरकार में वित्त मंत्री बनाए गए। राय का वित्त मंत्री बनते ही उन्होंने अपनी व्यक्तिगत सोच व काबिलियत का परिचय देते हुए तमाम राज्‍य संबंधी वित्तीय मामलों में कुछ ऐसे क़दम उठाने शुरू किए जो राज्‍य की प्रगति व विकास के पक्ष में थे। वे एक वित्त मंत्री के नाते पंजाब के खजानों को खाली होते देखना नहीं चाहते थे। इसके बजाए उनकी यह इच्छा थी कि राजकीय कोष भरा रहे तथा इसका प्रयोग राज्‍य के विकास एवं उत्थान में ही किया जाए। खासतौर पर वे किसानों के बिजली व पानी के बिलों केर्क़ा मांफी के विरोधी थे। इसके अतिरिक्तमंत्री रहते हुए उनका व्यक्तिगत रहन सहन, आचार विचार स्वभाव तथा जनता के मध्य उनके द्वारा संवाद स्थापित करने का जो तरीक़ा था वह भी ऐसा था कि उनके छोटे से राजनैतिक संफर में ही उनकी लोकप्रियता आसमान छूने लगी थी। वे प्राय: मंत्री होते हुए भी मंत्री नजर नहीं आते थे और न ही आना चाहते थे। अपनी व्यक्तिगत कार पर चलना, उसपर लाल बत्ती न लगाना, अपनी गाड़ी प्राय: स्वयं अकेले चलाना,साथ में गार्ड या पुलिस एस्कॉर्ट जैसे दिखावा पूर्ण तामझाम से परहो करना,किसी भी कार्यक्रम में निर्धारित समय पर पहुंचना किसी भी जरूरतमंद व्यक्ति से प्रेम व सद्भाव के साथ मिलना व गंभीरता से उसकी बात को सुनना व उसका समाधान करना आदि ऐसी विशेषताएं थी जिनकी वजह से वे थोड़ेही समय में पूरे पंजाब में अति लोकप्रिय होने लगे थे।

णाहिर है मनप्रीत बादल की राज्‍य में बढ़ती लोकप्रियता आज नहीं तो कल बादल पुत्र सुखबीर सिंह बादल के लिए एक बड़ी चुनौती साबित हो सकती थी। कहा जा सकता है कि बादल के परिवार में भी एक और ‘राज ठाकरे’ पैदा हो सकता था। संभवत: उस स्थिति तक पहुंचने से पहले ही मनप्रीत सिंह बादल के ‘पर कतरने’ की तैयारी पूरी कर ली गई। और आखिरकार पंजाब में किसानों की कर्ज़ माफी के मुद्दे पर केंद्र सरकार के पक्ष में दिए गए बयान को लेकर मनप्रीत सिंह बादल को शिरोमिणी अकाली दल से निलंबित कर ही दिया गया। इसके साथ साथ उन्हें कारण बताओ नोटिस भी जारी किया गया है। उन पर आरोप है कि वे पार्टी विरोधी गतिविधियों में सम्मिलित पाए गए हैं तथा 20 अक्तूबर तक उन्हें अनुशासन समिति के सामने आकर उत्तर भी देना होगा। शिरोमिणि अकाली दल की अनुशासन समिति ने इस निलंबन प्रकरण को लेकर मनप्रीत सिंह बादल के मुंह पर ताला लगाने का भी प्रयास करते हुए उन्हें यह निर्देश भी दिया है कि वे मीडिया अथवा किसी भी मंच पर इस विषय पर कोई वक्तव्य नहीं देंगे। यदि उन्होंने ऐसा किया तो यह भी अनुशासन भंग करने तथा पार्टी विरोधी गतिविधि के रूप में ही दे ाा जाएगा।

अब जरा इस अनुशासन समिति के बारे में भी जान लीजिए। जिस अनुशासन समिति ने मनप्रीत को संगठन से निलंबित किया है वह समिति गत सप्ताह ही उपमुख्‍यमंत्री तथा शिरोमिणी अकाली दल अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने गठित की थी। सुखबीर बादल ने अपने अत्यंत ख़ास 5 सहयोगियों को इस अनुशासन समिति में सदस्य बनाया था। उनमें सुखदेव सिंह ढींढसा, गुरदेव सिंह, रणजीत सिंह ब्रह्मपुरा, बलदेव सिंह भुंदड़ तथा तोता सिंह शामिल थे। इनमें रणजीत सिंह को अनुशासन समिति का अध्यक्ष बनाया गया था। इस समिति ने अपनी पूरी चुस्ती का प्रदर्शन करते हुए अपने गठन के एक सप्ताह के अंदर ही सुखबीर सिंह बादल को वित्तमंत्री मनप्रीत सिंह बादल के निलंबन की सिफारिश भेज डाली। इस पूरे राजनैतिक घटनाक्रम से यह साफ जाहिर होता है कि मनप्रीत सिंह बादल की राज्‍य की राजनीति में बढ़ती हुई लोकप्रियता सुखबीर सिंह बादल के राजनैतिक भविष्य के लिए चुनौती खडा करने जा रही थी। और इससेपहले कि यह फुंसी नासूर का रूप लेती सुखबीर सिंह बादल के वफादारों ने इसके पूर्व ही मनप्रीत बादल पर शिकंजा कसने की तैयारी कर डाली। इस घटनाक्रम से एक बार फिर यह स्पष्ट हो गया कि राजनीति में काबिलियत या व्यक्तिगत विचारों की कोई गुंजाईश नहीं है। राजनीति इस पहलू पर नार रखने का भी नाम नहीं कि राजकीय कोष को बचाया जाए, उसका संरक्षण किया जाए या इसे बढाने का प्रयास किया जाए। बल्कि ठीक इसके विपरीत राजनीति नाम है लोकलुभावन व लच्छेदार बातें करने का, झूठी लोकप्रियता अर्जित करने का, सरकारी खजाने को जनता के बीच निरर्थक रूप से लुटाकर सत्ता पर कब्‍जा जमाने के लिए राह हमवार करने का तथा अपने रास्ते में आने वाली किसी भी चुनौती या प्रतिस्पर्धा को दरकिनार करते हुए खुद सत्ता की राह में आगे बढ़ने का।

किसानों की क़र्ज माफी की घोषणा करना,बिजली के बिलों को मांफ करने का प्रलोभन देना, सब्सिडी देना, एक या दो रुपये किलो चावल वितरित करना जैसी तमाम घोषणाएं दशकों से विभिन्न रायों के व कभी-कभी संसदीय चुनावों के दौरान भी इस प्रकार की बातें व चुनावी वादे सुनने को मिलते रहते हैं। परंतु इस प्रकार के लोक लुभावन वादों का असर वादों पर अमल करने का प्रभाव देश की अथवा किसी राज्‍य की अर्थव्यवस्था पर क्या पड़ सकता है कोई भी राजनैतिक दल इस ओर गंभीरता से नहीं सोचना चाहता। अपने चुनाव घोषणा पत्र तैयार करते समय लगभग सभी राजनैतिक दलों में इस बात को लेकर प्रतिस्पर्धा सी बनी रहती है देखें कौन सा दल आम लोगों को कितना अधिक प्रलोभन दे सकता है। और इसी के बल पर मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित कर सकता है। परंतु हमारे देश में जहां राजकीय कोष को लुटाकर स्वयं सत्ता पर काबिज होने की आकांक्षा रखने वाले नेताओं की बहुतायत है वहीं मनप्रीत सिंह बादल जैसे कुछ तथा बहुत ही कम बुद्धिजीवी नेता ऐसे भी हैं जो राजनीति को देश की अथवा राज्‍य की सच्ची सेवा का माध्यम महसूस करते हैं।

मनप्रीत सिंह का मंत्री होते हुए भी आम लोगों की तरह कहीं आना जाना भी इसी बात का सूचक था। वे भली भांति जानते हैं कि मंत्री के साथ चलने वाले तामझाम पर भी आंखिरकार सरकारी पैसी ही खर्च होता है। और वे चूंकि वित्तमंत्री होते हुए सरकारी खजाने पर बोझा नहीं बनना चाहते थे इसीलिए वे जहां जाते अकेले जाते, बिना लालबत्ती की गाड़ी के जाते और अपने आंफिस में भी अपनी व्यक्तिगत् कार व पैट्रोल के खर्च से ही आते जाते। वर्तमान दौर की दिखावापूर्ण राजनीति में मनप्रीत बादल को तो आज के युग का लाल बहादुर शास्त्री भी कहा जा सकता है। और नि:संदेह मनप्रीत सिंह बादल को अपने इसी राजनैतिक आचरण का भुगतान करना पड़ा है। मनप्रीत बादल का राजनैतिक आचरण व रहन-सहन उन नेताओं को तो कतई नहीं भा सकता जो इसे भोग-विलास, समाज में दहशत फैलाने तथा धन संपत्ति अर्जित करने का माध्यम समझते हैं। जहां तक किसानों की र्का माफी को लेकर उनके द्वारा दिए गए बयान का प्रश् है तो इसे तो महा एक बहाना बनाया गया है।

मनप्रीत बादल जबसे वर्तमान बादल सरकार में वित्तमंत्री बनाए गए हैं तभी से वे सभी नेताओं व मंत्रियों में सबसे अलग नज़र आने लगे थे। उनके सोच-विचार व आचरण से शुरु से ही उनकी लो‍कप्रियता का ग्राफ़ प्रकाश सिंह बादल व सुखबीर सिंह बादल की तुलना में कहीं अधिक बढ़ने लगा था। उनकी लो‍कप्रियता व राजनैतिक शैली के चर्चे केवल पंजाब में ही नहीं बल्कि देश-विदेश के मीडिया में भी होने लगे थे। राजनीति पर गहरी नज़र रखने वालों ने शुरु से ही मनप्रीत बादल की राजनैतिक उड़ान को भांपकर आज की वर्तमान राजनैतिक परिस्थिति का बख़ूबी अंदाज़ा लगा लिया था। राजनैतिक विश्‍लेषकों को यह भलीभांति मालूम था कि चाहे मनप्रीत बादल कितने भी होनहार, योग्‍य, क़ाबिल व सक्षम क्‍यों न हों तथा अपनी कार्यशैली से शिरोमणि अकाली दल बादल के राजनैतिक ग्राफ़ को कितना ही ऊपर क्‍यों न उठा दें परंतु वे सब कुछ करने के बावजूद आखि़रदार प्रका‍श सिंह बादल के पुत्र तो नहीं हो सकते। और मनप्रीत की इस बढ़ती हुई लो‍कप्रियता का ग्राफ़ आज नहीं तो कल सुखबीर सिंह बादल के राजनैतिक भविष्‍य के लिए चुनौती साबिल हो सकता था। ठीक राज ठाकरे व उद्धव ठाकरे प्रकरण की तरह। लिहाज़ा उस नौबत तक पहुंचने से पहले ही मनप्रीत बादल पर अनुशासन के नाम पर शिकंजा कसने की कोशिश की गई है। अब देखना यह है कि सुखबीर सिंह बादल की इस अनुशासनात्‍मक कार्रवाई का जवाब मनप्रीत बादल राजनैतिक शैली में देते हैं या रक्षात्‍मक रूप से इसे स्‍वीकार करते हैं। जो भी हो, पंजाब की अकाली दल राजनीति में आने वाले दिन बड़े ही रोचक होने वाले हैं और हम घटनाक्रम पर पंजाब के लोगों से अधिक कांग्रेस पार्टी की निगाहें टिकी हुई हैं।

3 COMMENTS

  1. रानी जी आखिर में जो आपने लिखा की कांग्रेस की नज़रे इस मामले में ज्यादा है. बादल जी की यही बड़ी कमजोरी रही है जब भी वे सत्ता मैं होते हैं तो अपने ही लोगों को नहीं संभाल नहीं पाते अब चाहे वो मास्टर तारा सिंह हो या सरदार तोहरा जी या अब उनका बेटा सुखबीर हो. पुनजब को संभालने की ताकत जो प्रकाश सिंह बादल में हैं वो किसी में नहीं. पर उन्हें अपनी नयी पीढ़ी तयार करनी है . मनप्रीत अच्छे नेता साबित हो सकते हैं अगर वे धीरे धीरे अपनी लोकप्रियता बढ़ाते हैं.
    कमल खत्री मीडिया सलाहकार punjab election 2007

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