दुर्जन कुमार सज्जन कुमार बन कर घूम रहे हैं

कुलदीप चंद अग्निहोत्री

sajjan kumar कल  सबूतों के अभाव में केन्द्रीय जांच ब्यूरो की एक विशेष अदालत में सज्जन कुमार बंदी होने से बच गये । उन्हें निर्दोष माना गया है । न्यायालय की यही सीमा है । उसे अपना निर्णय साक्ष्यों के आधार पर देना होता है और साक्ष्य जुटाने का काम सरकार के अलग अलग अभिकरण करते हैं । सज्जन कुमार पर आरोप है कि २ नबम्वर १९८४ को उन्होंने लोगों को उकसाया ही नहीं बल्कि वे स्वयं उस षड्यंत्र का हिस्सा थे , जिसमें दिल्ली छावनी क्षेत्र में पाँच लोगों की हत्या की गई थी । सज्जन कुमार उस समय कांग्रेस के सांसद थे और दिल्ली में इंदिरा गान्धी की हत्या हो गई थी । जिन लोगों ने हत्या की थी , उन्हें पकड़ लिया गया था और देश के क़ानून के मुताबिक़ बाकायदा उन पर मुक़द्दमा दर्ज करवा दिया गया था । दिल्ली में किसी ने उनके पकडे जाने और उन पर मुकद्दमा चलाये जाने का विरोध नहीं किया था । सभी को लगता था कि जिसने अपराध किया है , उसको विधि सम्मत दंड मिलना ही चाहिये । तब इंदिरा गान्धी के सुपुत्र राजीव गान्धी , जिन्हें तुरन्त नये प्रधानमंत्री की शपथ दिला दी गई थी , (परम्परा मंत्रिमंडल के वरिष्ठ सदस्य को कार्यवाहक प्रधानमंत्री बनाने की रही है ) ने ‘जब कोई बड़ा वृक्ष हिलता है तो धरती काँपती ही है’ का मौलिक सिद्धान्त कांग्रेस के नेताओं को दिया । कांग्रेस का यह नया सिद्धान्त समझते ही सज्जन कुमारों और जगदीश टाईटलरों के दल दिल्ली में धरती को हिलाने के लिये निकल पड़े । उन्हें धरती हिलाने के लिये दिल्ली के लोग नहीं मिले तो झुग्गी झोंपड़ियों से भीड़ को लूट का लालच देकर धरती हिलाने के लिये ले आये । सज्जन कुमारों की यह भीड़ इंदिरा गान्धी की हत्या का बदला दिल्ली के सिक्खों से ले रही थी । जैसे जैसे धरती हिलती गई तैसे तैसे लोग मौत के मुँह में समाते गये । सज्जन कुमारों की भीड़ राक्षसी अट्टहास करती रही । दिल्ली में उन दिनों राक्षसी राज हो गया था । दिल्ली के लोगों ने अब तक राक्षसों की कहानियाँ पुराणों में और दशम ग्रन्थ में ही पढ़ी थीं । उन्होंने राक्षसों को आज तक देखा नहीं था । बहुत से लोग पुराणों के इन राक्षसों को कपोल कल्पना ही मानते रहे थे । लेकिन अब वे प्रत्यक्ष उन्हें देख ही नहीं रहे थे बल्कि उनका ग्रास भी बन रहे थे । १९८४ में ये कांग्रेस के राक्षस थे जिन्होंने कुछ दिनों के लिये दिल्ली पर क़ब्ज़ा कर लिया था और धरती को हिला रहे थे । उन्होंने इंदिरा गान्धी की मौत का बदला ले लिया था ।

कुछ दिनों के बाद यह राक्षसी राज तो शान्त हो गया लेकिन अपने पीछे मौत के तांडव की अनेकों कहानियाँ छोड़ गया । आख़िर भारत एक लोकतांत्रिक देश है । इसलिये मौत का खेल खेलने के बाद उसकी जाँच करवाना भी ज़रुरी था । इतिहास में दस्तावेज़ों की बहुत अहमियत होती है । इसलिये जाँच और न्याय के दस्तावेज़ तैयार करने की प्रक्रिया शुरु हुई , ताकि न्याय परम्परा की रक्षा भी हो सके और ये दस्तावेज वक्त वेवक्त काम भी आयें । लेकिन दुर्भाग्य यह था कि जिनको जाँच करनी थी , उन्होंने ही बदला लेने के लिये ‘बड़े वृक्ष के गिरने पर धरती के हिलने ‘ का सिद्धान्त दिया था । इसलिये यह जाँच भी हिलने लगी और इसके हिलने पर उन राक्षसी राज के खलनायकों को कांग्रेस की ओर से लोकसभा के टिकट देकर और मंत्री पद  देकर सम्मानित किया गया । लेकिन इतिहास तो बताता ही है कि दुर्योधन के दरबार में भी विदुर थे , जो उस राज में भी सत्य और न्याय की बात कर दिया करते थे । दिल्ली में भी इतिहास अपने आप को दोहराने लगा था । जाँच एजेंसियाँ सज्जन कुमारों को बचाने के काम में लगी थीं , कांग्रेस उनको लोकसभा में भेजने के काम में जुटी हुईं थीं , लेकिन कहीं कहीं न्यायालय जाँच के नाम पर किये जा रहे इस पाखंड को अनावृत्त करने में सक्रिय हो गये थे । सज्जन कुमार तो जाँच एजेंसियों से ‘निर्दोष होने की रसीद’पाकर छुट्टे घूम रहे थे कि नानावती आयोग ने २००५ में उन पर मुकद्दमा चलाने का आदेश दिया । उन पर यही एक केस नहीं है । हत्याकांडों में संलिप्तता के और केस भी चल रहे हैं । ऐसे ही एक केस मे उच्चतम न्यायालय ने सी बी आई को २०१० में फटकार लगाई थी कि वह जानबूझकर कर सज्जन कुमार के खिलाफ केस को लटका रही है ।

२००९ में दिल्ली के राक्षसी राज के उन दिनों के एक और खलनायक जगदीश टाईटलर को जब कांग्रेस पार्टी सत्ता में भागीदारी देने जा रही थी और इसका रास्ता साफ़ करने के लिये सी बी आई ने जगदीश को भी धरती हिलाने के आरोपों से बरी करते हुये क्लीन चिट दे दी तो एक पत्रकार को कांग्रेस के दूसरे नायक पी चिदम्बरम के जूता मारना पड़ा , तब जाकर कांग्रेस ने जगदीश भाई को टिकट न देने का मन बनाया । कल फिर जब सी बी आई की विशेष अदालत ने सज्जन कुमार को आरोपमुक्त किया तो किसी सज्जन ने न्यायाधीश पर जूता फेंका । न्यायाधीश पर जूता फेंकने का कोई लाभ नहीं है , क्योंकि न्याय अंधा होता है । न्याय पाने के लिये न्यायालय को सबूत दिखाने पड़ते हैं । न्यायालय स्वयं बाहर निकल कर सबूत एकत्रित नहीं कर सकता । यही उसकी सीमा है । जिस सी बी आई के ज़िम्मे न्यायालय को सबूत दिखाने की ज़िम्मेदारी है , वह किस प्रकार काम करती है , उसका ख़ुलासा उच्चतम न्यायालय ने कल ही कर दिया था । क्या इसे संयोग ही कहा जाये कि कल ही सी बी आई की जाँच के कारण सज्जन कुमार बरी हुये और कल ही उच्चतम न्यायालय ने सी बी आई के काम करने के पक्षपात पूर्ण तरीक़े की पोल खोल दी ।

बस एक प्रश्न बचा है , जिसका उत्तर नहीं मिल रहा । तीस्ता सीतलबाड कहीं दिखाई नहीं दे रही ? धरती हिलने से जो दिल्ली में मरे ,उनको भी न्याय की ज़रुरत है या नहीं ? या फिर ‘कांग्रेसी हिंसा हिंसा न भवति’ ? फिर महाभारत की ओर आना होगा । धृतराष्ट् तो अपने पुत्र को सदा सुयोधन ही कहते थे । लेकिन लोग सुयोधन को कभी सुयोधन नहीं कहते थे । अपनी करतूतों के कारण वह सदा दुर्योधन ही रहा । कांग्रेस सज्जन कुमारों के नाम पर दुर्जन कुमारों को क्यों पाल रही है ? कहीं इन सज्जनों के भेष में छिपे दुर्जनों के बोलने से कई और भेद खुलने का डर तो नहीं ? वे अपना मुँह बंद रखें , इसलिये उन्हें सजा से बचाना ज़रुरी है ? प्रकाश सिंह बादल ने कहा है कि सज्जन कुमार के मामले से सिद्ध हो गया है कि उसे बचाने में दिल्ली पुलिस , सी बी आई और कांग्रेस मिली हुंई है । दिल्ली पुलिस और सी बी आई तो कांग्रेस सरकार के इशारे पर ही काम कर रही होगी । लेकिन कांग्रेस दिल्ली के हत्यारों को क्यों बचाने का प्रयास क्यों कर रही है ? इसका उत्तर तो कांग्रेस ही दे सकती है । यदि कांग्रेस नहीं देती तो अगले चुनावों में आम लोग दे सकते हैं ।

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डॉ. कुलदीप चन्‍द अग्निहोत्री
यायावर प्रकृति के डॉ. अग्निहोत्री अनेक देशों की यात्रा कर चुके हैं। उनकी लगभग 15 पुस्‍तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। पेशे से शिक्षक, कर्म से समाजसेवी और उपक्रम से पत्रकार अग्निहोत्रीजी हिमाचल प्रदेश विश्‍वविद्यालय में निदेशक भी रहे। आपातकाल में जेल में रहे। भारत-तिब्‍बत सहयोग मंच के राष्‍ट्रीय संयोजक के नाते तिब्‍बत समस्‍या का गंभीर अध्‍ययन। कुछ समय तक हिंदी दैनिक जनसत्‍ता से भी जुडे रहे। संप्रति देश की प्रसिद्ध संवाद समिति हिंदुस्‍थान समाचार से जुडे हुए हैं।

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  1. क्या 1984 के दंगे गुजरात के दंगो से कम थे, इस बात का उत्तर कम से कम कांग्रेसी तो देने को तैयार नहीं है,कांग्रेस ने सत्ता में रहकर सदा अपने काले कारनामों को ही ढका है.कांग्रेस राज में जनता का कभी बुरा नहीं होता,कांग्रेस मात्र एक सेक्युलर पार्टी है,गाँधी का ठेका केवल कांग्रेस के ही पास है,पर उनकी वास्तविक हत्या गांधीजी की इस कांग्रेस ने ही की है.गुजरात के दंगो पर चिल्लाने वाले कांग्रेसी दिल्ली के दंगो पर चुप हो जाते है.जनता ने देखा,मीडिया ने देखा,दिखाया पर ये गुंडे अभी भी सज्जन बने हुए हैं.कम से कम मोदी पर 3000 लोगों को मरवाने का आरोप नहीं है.माना गुजरात में जो हुआ वह गलत था,पर दिल्ली में हुआ भी उचित नहीं था.तीस्ता जैसे तथाकथित मानवाधिकारवादी केवल मोहरे हैं,जो अपनी दुकान चलने के लिए समय समय पर पैसे लेकर ऐसी कानूनी लड़ाई लड़ते हैं,इनके पास मानवता के लिए न कोई संवेदना है न प्यार.आज सर्वजीत के मामले पर ये कहाँ बिलों में जा कर चुप गए,कल जम्मू में हुए घटनाओं के लिए ये सड़क पर आ कर खड़े हो जायेंगे.उमर अब्दुल्ला आज कुछ नहीं बोल रहें हैं,क्योंकि उन्हें भी सहानुभूति धरम जाती के आधार पर जागृत होती है.

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