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संस्कृत वीणा तथा प्राकृत तानपूरे

डॉ. मधुसूदन

(एक) संस्कृत वीणा है:
आप यदि वीणा के तारों  को छेडकर कंपन या आंदोलन जगाते हैं, तो स्वर मिलाकर कोने में रखा तानपूरा भी बिना छेडे, उन्हीं स्वरों को आंदोलित कर दोहरा देता है। कुछ लोग चकित होते हैं, कि महाराज ! किसी ने तानपूरे को स्पर्श किया नहीं, न किसीने छेडा, तो ये क्या हुआ? तानपूरा, क्या, आप ही आप तरंगित हो कर बज उठा? पर ऐसा होता अवश्य है।
इसके पीछे भी भौतिकी विश्लेषण है ही, जो समझाने का आज उद्देश्य नहीं है। कुछ आकृतियों और रेखाचित्रों (ग्राफ ) के बिना वैसा समझाना सरल भी नहीं है। और सामान्य पाठक ऐसी जानकारी से ऊब सकता है, जो मेरा उद्देश्य अवश्य  नहीं है। बिना उबाए कुछ भाषा के शब्दों को समाझाना ही उद्देश्य है। तो ऐसी मर्यादा रेखा खींच कर मुझे विषय को प्रस्थापित करना है।

(दो) संस्कृत वीणा, प्राकृत भाषाएँ  तानपूरे:  
देववाणी, गीर्वाण-भाषा संस्कृत, हमारी सरस्वती देवी की वीणा है, और सारी प्रादेशिक प्राकृत भाषाएं हैं  तानपूरे। हिन्दी भी उसी वीणा से  स्वर मिला कर रखा हुआ एक तानपूरा है।
जैसे संस्कृत वीणा पर नया शब्द कंपन जन्म लेता है,नया शब्द बनता है; हमारी सारी प्राकृत भाषाओं के तानपूरे उसी शब्द को ग्रहण कर दोहरा देते हैं। कभी बिलकुल संस्कृत शब्द जैसा(तत्सम) कंपन, तो कभी तानपूरे की अपनी प्राकृतिक पहचान से कुछ रूपांतर सहित,(तद्भव)शब्द हमारी अलग अलग भाषाओं में प्रकट होता है।
भाषाएँ भी अवश्य अपनी प्रकृति के अनुसार ही सूक्ष्म बदलाव कर अपने ढंग से शब्द स्वीकार कर लेती है।
पता नहीं कितने शतकों से ऐसा वृन्द-वादन चल रहा है? आज कुछ उदाहरणों द्वारा इस वाद्य वृन्द के मधुर शब्द-संगीत का आस्वाद कराना चाहता हूँ।

(तीन)मित्रों में, चर्चा:
मित्रों में, चर्चा चल निकली और एक मित्र ने जानना चाहा, कि, क्या ’नहाना’ भी संस्कृत मूल से आया है? संदेह स्वाभाविक है।
कहाँ नहाना, और कहाँ स्नान?
वैसे ही बच्चा शब्द का मूल क्या रहा होगा?
या नाचना, खेत….इत्यादि कई शब्द हैं, जो, कुछ मित्रों को संस्कृत से निकले हुए होंगे, ऐसा नहीं लगता था।
हाँ धर्म, कर्म, प्रेरणा, अभिनन्दन, चलन, प्रवचन, … इत्यादि हजारों शब्दों के विषय में किसी को संदेह नहीं था।

(चार) संस्कृत से प्राकृत शब्दमें  बदलाव:

संस्कृत से प्राकृत शब्द  कुछ बदलाव सहित बनता है। इस विधि के सैंकडों नियम पाए गए हैं।पर, सूक्ष्मता में ना जाते हुए भी, बदलाव का कारण समझना विशेष कठिन नहीं है।
(१)जिह्वा उच्चारण में शीघ्रता के कारण लघु (शॉर्ट कट) पथ ले लेती है, तो उच्चारण में बदलाव होता है।पर सुनने वाला फिर भी उसका अर्थ लगा सकता है।
(२)कल्पना करे, कि, शिशु नए शब्द का उच्चारण सीखता है; तो उच्चारण में भेद आ जाता है।
ऐसे शीघ्र उच्चारण के कारण प्राकृत उच्चारण प्रचलित हुआ होगा।
फिर ऐसा उच्चारण ही विशेष प्रदेशों में रूढ होकर भाषाएँ अपना नया रूप धारण कर सकी होंगी।
और उन्हीं प्रदेशों के अनुसार नामकरण हो गया होगा।इसीसे मागधी, अर्धमागधी, शौरसेनी, इत्यादि और आगे जाकर बिहारी, गुजराती, राजस्थानी इत्यादि नाम रूढ हुए होंगे।
(३) उदाहरणार्थ शिशु  ’धर्म’ का उच्चारण ==> ’धम्म’ ,और कर्म ==>’कम्म’ करता है।
निम्न उदाहरणों का निरीक्षण कीजिए।

(पाँच) संस्कृत से प्राकृत के उदाहरण:
सिंधु का हिंदू
संस्कृत शब्द में, जहाँ ’स’ होता है, प्राकृत में बदलकर  ’ह’ बन जाता है।
सिंधु का हुआ हिंधु, और फिर हिंधु का हुआ हिंदु और हिंदू।
गुजरात में ’सूरत’ को सूरत में रहने वाले ही सूरत नहीं, पर ’हूरत’ कहते हैं।’
’समज” के बदले ’हमज” कहते हैं। सुपारी का गुजराती शब्द है ’सोपार” पर सूरत वाले उसे ’होपारी’ कहते हैं।

कहीं ’सप्ता” संस्कृत शब्द का प्राकृत ’हप्ता” बन जाता है, और आगे बन जाता है ’हप्त”।

(छः) स्नान का =>नहाना:
एक  गुजराती भाषी मित्र को स्नान का नहाना स्वीकार नहीं हो रहा था।
उनका प्रश्न सही प्रतीत होता है। क्यों कि, पहले दृष्टिपात करनेपर स्नान और नहाना बिलकुल अलग लगते हैं। पर निम्न अनुक्रम जानने पर शायद आप भी स्वीकार कर ले।
पहले  स्नान (स का ह) का ह्‌नान= ह्नान बना होगा। पर (ह्‌नान ) ह्नान बोलकर देखिए। बोलने में अटपटा लगता है। तो लगता है, कि, ह्नान का न्हान  बन गया होगा। और आगे चलकर न्हान का नहान और नहाना बना होगा।

(सात ) नृत्य और नाच:
नृत्यति का बन जाता है, नट्टति (जिससे बनता है नटी, नट, नाटक )
===> और आगे बन जाता है नच्चति और हिन्दी में बनता है, नाचना और नाच।
फिर आगे चलकर प्रत्येक शब्द अपना “प्रभा मण्डल” ले कर फैलता है। नृत्य और नाच समान मूल से निकले हुए अवश्य है, पर आज उनका प्रभाव मण्डल अलग हो चुका है।
भरत नाट्यं का प्रदर्शन नृत्य कहा जाएगा।
पर नौटंकी का नाच ही कहना होगा। “भरत नाट्यं का नाच” ऐसा प्रयोग किया नहीं जाता।
किसी भी सुशिक्षित व्यक्ति को यह पता ही है।
पर एक विवाह समारोह में युवा संचालक ने मात्र ऐसी गलती कर ही दी थी। उसने घोषणा की, कि, अब कुमारी नलिनी भरत नाट्यं का नाच करेगी। (उसे पता न था कि यह गलत है।) कुछ हिन्दी अच्छी जानता था, तो, संयोजक लोग प्रोत्साहित करना चाहते थे।
यदि कोई भरत नाट्यम की कला दिखाए तो उसे आप नाचना नहीं कह सकते, उसे आप नृत्य ही कहेंगे।
पर कोई नौटंकी या तमाशा होगा तो वहाँ नाचना ही अधिक उचित होगा। वैसे नृत्य और नच्च का मूल एक ही है।

(आठ) कृष्ण से क्रिष्ण:
कृष्ण से बना क्रिष्ण, आगे हुआ क्रिस्न, फिर हुआ किस्न, किस्ना, किसन, और किशन।
कृष्ण से क्रष्ण, क्रष्णा, कह्ना, काह्ना,कान्हा. काह्न, क्‍हान, (अलग अलग भाशाओ में ये सारे रूप पाए जाते हैं।)
धर्म==> धम्म
संघ==> संग
शरणं==> सरणं
संघटन==> संगठन
घटन ==> गठन ==>गठ्ठन ==>गाँठ

(नौ) वर्षा से ==> वर्ष और बरखा:
उसी प्रकार से वर्षा==> बरखा===>बरसा==> वरसाद (गुजराती),==> बरसात (हिन्दी)
इसी वर्षा से ही बनता है, वर्ष (दो वर्षा ऋतुओं के बीच का काल )
फिर उस वर्ष से ==> बरस,==> वरस(गुजराती),==>वरिस(मराठी)
(आटा या चूर्ण पिसना) पिष्ट==>पिट्ठ ==पीठ (मराठी) अर्थ आटा।
दक्षिण==>दक्खिण==दक्खिन==दख्खन==>डेक्कन (अंग्रेज़ी)
दक्षिण==>दाहिण==> दाहिना ==दाँया
श्यामल ===>सामल==> साँवला
श्वेत==> (स्पेद) ==> सफेद
सत्य==> सच्च==>सच
दुग्ध ==> दुद्ध==> दूध
पृच्छति==> पुच्छति ===> पूंछना
युद्ध्यते==> जुज्झते ==> जूझना ==> झुंज (मराठी)
शुष्क ==> शुस्क ==> सूखना, सूखा   बिन वर्षा का सूखा (अकाल)

(दस) भाषा ==> भासा===> भाखा

भाषा ==> भासा===> भाखा
शिक्षा==> सिक्सा==>सीखना
य से ज
योग===>जोग
योगी ===> जोगी
संयोग==> संजोग
क्ष से ख
क्षत्रिय==> खत्री==>खत्तियो
क्षेत्र ==>खेतर(गुजराती) ==>खेत (हिन्दी)
क्षेत्र ==>शेत (मराठी)
अक्षर==>अक्खर
भिक्षु ===>भिक्खु==> भिखारी
क्षत्रिय ==>खत्तिय==>खत्री
मोक्ष==>मोक्ख

(ग्यारह) जैनियों की प्रार्थना है। (जो प्राकृत में है।)
अच्छा अंत करने के लिए इस प्रार्थना को चुनते हैं।
मूल प्राकृत =========>हिन्दी अर्थ
णमो अरिहंताणं—–>नमन अरिहंतो को
णमो सिद्धाणं——–>नमन सिद्धों को
णमो आयरियाणं—>नमन आचार्यों को
णमो उवज्झायाणं—>नमन उपाध्यायों को
णमो लोए सव्व साहूणं—->नमों  लोक के सर्व साधुओं को
एसोपंचणमोक्कारो, ——>ऐसे पाँच नमस्कार
सव्वपावप्पणासणो——>सब पाप नाशन हो।
णमो=नमो, अरिहंताणं =अरिहन्तानं
सिद्धाणं=सिद्धानं, आयरियाणं= आचार्यानं
उवज्झायाणं=उपाध्यायानं, लोए=लोके, सव्व= सर्व= सब, साहू= साधू
एसो=ऐसे, पंच=पाँच, णमोक्कारो=नमस्कार
ऐसे कई हजार शब्द होंगे जो रूपांतरित होकर भारतीय भाषाओं में फैले हैं।
कुछ उदाहरण देकर मैं  पाठक मित्रों को, प्रमाणित करना चाहता था।
यह है हमारी एकता का प्रदर्शन।विविधता है, पर एकता का अंतरप्रवाह भी है।