टीवी का लड्डू

4
214

-बीनू भटनागर-
tv

एक पुरानी कहावत है कि ‘शादी का लड्डू जो खाये वो भी पछताये और जो न खाये वो भी पछताये।‘ ये कहावत टी.वी. के साथ भी सही साबित होती है, ‘टी. वी. जो देखे वो भी पछताये जो न देखे वो भी पछताये।‘ बहुत से बुद्धिजीवी किस्म के लोग कहते हैं,वो टी.वी. बिलकुल नहीं देखते, फिर गिन गिन कर टी.वी. के अलग अलग कार्यक्रमों की बड़ी दक्षता से बुराई करते हैं। अजी साहब, आप जब टी.वी. देखते ही नहीं तो बुराइयों की फहरिस्त क्या आपको चैनल वाले भेजते हैं या कार्यक्रम के निर्माता! संभव है दोनों ही भेजते होंगे… कार्यक्रम के के प्रचार के लिये… प्रचार तो प्रचार ही होता है… भले ही नकारात्मक क्यों न हो!

टी.वी. का रिमोट भी एक विचित्र शक्तिशाली यंत्र है, यह जिसके हाथ में हो सत्ता उसके ही पास रहती है। पहले टी.वी. ड्राइंगरूम में रहता था, पूरा परिवार एक साथ टी.वी. देखता था, परिवार के जिस सदस्य के हाथ में रिमोट आ जाये उसकी मर्ज़ी, जो चैनल चाहें देखे और दिखाये। दूसरे सदस्य अपनी पसन्द की चैनल लगाने की गुहार करते रहते थे, अब सत्ताधारी किसकी सुने किसकी नहीं, उसकी मर्जी… रिमोट के लिये काफ़ी भागदौड़ होती थी… झगड़े होते थे। धीरे-धीरे सत्ता का विकेन्द्रीकरण हुआ और टी.वी. लोगों के शयन कक्ष तक पहुंच गया और सत्ता की ये दौड़ पति पत्नी के बीच सिमट गई कि अब… धारावाहिक देखें या क्रिकेट मैच…

मै तो ख़ूब टी.वी. देखती हूं और रिमोट भी अपने पास नहीं रखती पर सत्ता मेरे ही पास रहती है… सोनिया गांधी का ये हुनर मुझ मे भी है। बिना ज़िम्मेदारी लिये सत्ता हाथ मे कैसे रखते हैं यह, मैंने उनसे ही सीखा है। टी.वी देखे बिना मुझे नींद नहीं आती। टी.वी. देखने से, फिर कार्यक्रमो की बुराई करने मे समय अच्छा कट जाता है। मेरे पास किसी भी चीज़ की कमी हो सकती है, पर समय की कमी… कभी नहीं… मेरा सबसे ज़्यादा समय तो धारावाहिक देखने मे ही जाता है। धारावाहिक टी.वी. की नशे की गोली हैं, एक बार किसी धारावाहिक का नशा लग गया तो वो आसानी से नहीं छुटता। समय काटने का सबसे अच्छा साधन है ही धारावाहिक…. ख़ूब बढ़िया बढ़िया कपड़े देखो… शादियों की रौनक चार पांच दिन तक देखो.. ये बात अलग है कि शादी के वक़्त कोई विघ्न पड़ जाता है और शादी नहीं होती… धारावाहिकों मे शादी निर्विघ्न संपन्न होने की संभावना बहुत कम ही होती है। नायिका सोकर भी पूरे सोलह श्रृंगार के साथ उठती है.. खलनायिका की बिन्दी नाक के नीचे तक और काजल की नुकीली धार कान तक जाती है।

किसी कलाकार को छुट्टी देनी हो तो ट्रैक बदल दिया जाता है। धारावाहिक को सालों खींचना, सप्ताह में 5-6 दिन एपीसोड देना कोई आसान काम नहीं हैं। जब ख़र्चा बढ़ जाये और लगे कि कलाकारों की दिहाड़ी ज्यादा हो रही है, केवल खड़े होने के पैसे क्यों दिये जायें… तो उन्हें विदेश भेज देना सस्ता उपाय है। जब ज़रूरत होगी बुला लेंगे… नहीं उपलब्ध होंगे तो किसी और को लाकर खड़ा कर देंगे। ये सब हम जानते हैं। यदि आपका पसंदीदा किरदार मर जाये तो निराश होने की आवश्यकता नहीं है, चार पांच ऐपीसोड मे किसी और रूप में प्रकट हो जायेगा। लीप के बाद मरने वाली मां अपनी बेटी के रूप में अवतरित हो सकती है। कोई पात्र धारावाहिक छोड़ ही रहा हो तो उसकी मृत्यु किसी दुर्धटना मे करवाई जा सकती है, यदि उसका शव चेहरे के साथ न दिखाया गया हो तो कोई दूसरा कलाकार प्लास्टिक सर्जरी करवाकर उस भूमिका मे फिट किया जा सकता है। हां, उसका चेहरा तो प्लास्टिक सर्जरी से बदल गया… पर डील डौल आवाज़ कैसे बदली पता नहीं… अब इतना क्या सोचना समय कट गया बस… धारावाहिक ही तो है… इतना दिमाग़ लगाने की क्या ज़रूरत है।

धारावाहिक से जी ऊबा तो समाचार चैनल का रुख कर लिया, पर यहाँ तो समाचार और विचार की खिचड़ी परोसी जाती है। खिचड़ी में कल्पना का धी भी डाला जाता है।इस तरह देखा जाये तो धारावाहिक और समाचार मे बहुत अंतर नहीं होता, समाचार भी गढ़े जाते हैं, बनाये जाते हैं। इंगलिश के चैनल तो इसको भी ‘स्टोरी’ कह देते हैं। हर छोटे बड़े नेता की प्रैस कौन्फ्रैंस या भाषण का सीधा प्रसारण हो सकता है अगर नेता ने मीडिया से मधुर संबध बनाये हों तो, ये ही नहीं कि सीधा प्रसारण एक दो चैनल ही दिखायेंगी, सभी चैनल्स में बड़ा दोस्ताना रहता है, सभी उस समय कुछ और दिखाकर दर्शकों का ध्यान भटकने नहीं देते, यहां तक कि विज्ञापन भी सब एक ही समय पर दिखाते है। प्रतिद्वन्दियों मे इतना भाईचारा कम ही देखने को मिलता है। समाचार चैनल्स पर होने वाली वार्तायें तो लाजवाब होती हैं। यहां ऐंकर भी निष्पक्ष नहीं होता वो चीख़ने चिल्लाने डांटने फटकारने मे सारी मर्यादा भूल सकता है। वो जो चाहे वो शब्द किसी भी व्यक्ति के मुंह मे ठूंस सकता है। पत्रकारों पर अगर किसी ने उंगली उठाई तो उसकी ख़ैर नहीं.. सभी प्रवक्ता या अन्य लोग सुनते कम हैं बोलते ज़्यादा हैं और श्रोता कुछ ना समझ पाने पर, जब चैनल बदलते हैं तो वहां भी माहौल कुछ ऐसा ही होता है। सैकड़ों समाचार चैनल्स होने के बावजूद समाचार तो कहीं से भी नहीं मिलते सभी चिल्लाते हैं सबसे आगे.. सबसे तेज़… और इस चक्कर वो भी दिखा देते हैं, घटा ही नहीं होता!

समाचारों के साथ आधे स्क्रीन पर अक्सर दृष्य दिखाये जाते हैं उनका समाचार से कुछ संबंध होता ही नहीं है। मान लीजिये कग्रेस पार्टी के बारे मे कोई समाचार आया है, तो किसी भी अवसर पर लिये गये 10 सेकेंड के क्लिप को बार बार दिखाया जाता रहेगा। राहुल गांधी कार से उतरे किसी से हाथ मिलाया माताश्री के साथ दो चार क़दम चले फिर कार से उतरे… धारावाहिक और समाचार चैनल्स के साथ खेल के चैनल्स भी बहुत अच्छा धन्धा कर रहे हैं। खेल प्रेमियों से इनकी बुराई भी नहीं सुनने को मिलती, बस कभी कभी सिद्धू जी का साहित्य ज्ञान खेल पर भारी पड़ने लगता है। जब क्रिकेट या फुटबाल का विश्वकप हो तो घर मे तनाव बना रहता है। आजकल तो टेनिस, wwf और फॉर्मूला-1 भी खूब देखे जाते हैं। मैं भी खेल देखती हूं पर इसकी ज़्यादा चर्चा नहीं करूंगी, कहीं इस विषय की जानकारी देने से मेरे अधकचरे ज्ञान की पोल न खुल जाये।

इन सब चैनल्स के अलावा बुज़ुर्गों मे धार्मिक चैनल्स लोकप्रिय है। मैं इतनी धार्मिक भी नहीं हूं और ख़ुद को बुज़ुर्ग भी नहीं मानती कि ये चैनल्स देखूं, पर चैनल बदलते समय कभी कभी दिख जाते हैं। दरअसल इन्हें चलाना मुश्किल नहीं है, सौ डेढ़ सौ कार्यक्रम विभिन्न आश्रमों से भजन प्रवचन के ले लो और सालों चलाते रहो। अगरबत्ती, अंगूठी, पैडेट यंत्र-तंत्र और धार्मिक पर्यटन के विज्ञापन भी मिल जाते है। फैशन, लाइफ स्टाइल और ज्ञानवर्धक चैनल्स के अलावा इंगलिश चैनल्स देखने वाले लोग काफी गर्व से टीवी कार्यक्रमो की चर्चा करते हैं। कार्टून बच्चे बहुत देखते हैं। यानि सभी चैनल्स के पास बहुत बडा दर्शक समूह है। मैंने तो भई शादी का लड्डू भी खाया और अब रोज़ टी.वी. का लड्डू तीन चार घँटे तक खाती रहती हूं पर कभी पछताने की नौबत नहीं आई… औरों का मैं नहीं जानती…

4 COMMENTS

  1. आपने बहुत ही उत्कृष्ट रचना को पढवाया है जो पूरे समय बांधे रखती है,ऐसा लगा कि मैं टी.वी.पर आते कार्यक्रमों पर एक अच्छी व्यंग्य कथा के अनुभवों से गुजर रहा हूँ,बधाई.
    अशोक आंद्रे

  2. चाहे पसंद आये या न आये इतना कोसने के बाद भी तीन से चार घंटे टी वी देखना आपके शौक को जताता है उसकी खामियों को नहीं ,

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,871 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress