वक्त पड़े तो फूल हम, दीखते समझदार |
कह दी सच्ची बात तो, सौरभ तुम बेकार ||
बस अपनी ही हांकता, करता लम्बी बात |
सौरभ ऐसा आदमी, देता सबको घात ||
जिसने सच को त्यागकर, पाला झूठ हराम |
वो रिश्तों की फसल को, कर बैठा नीलाम ||
दुश्मन की चालें चले, रहकर तेरे साथ |
सौरभ तेरी हार में, होता उनका हाथ ||
मन में कांटे है भरे, होंठों पर मुस्कान |
दोहरे सत्य जी रहें, ये कैसे इंसान ||
सौरभ मन गाता रहा, जिनके पावन गीत |
अंत वही निकले सभी, वो दुश्मन के मीत ||
वक्त कराएं है सदा, सब रिश्तों का बोध |
पर्दा उठता झूठ का, होता सच पर शोध ||
—प्रियंका सौरभ