—विनय कुमार विनायक
जलालुद्दीन फिरोज खिल्जी
(1290 ई.से 1296 ई.तक)
एक गैर तुर्क, सहनशील उदार दिल था
इसलिए वह शासक नाकाबिल था
अलाउद्दीन(1290 ई.से 1316 ई.तक)
उसका भातृपुत्र सह जमाता मौके की ताक में था
कत्ल किया श्वसुर का उसने तत्क्षण गद्दी को पाया
धन स्वर्ण बांटकर उसने हत्या का आरोप मिटाया
और मिटाया ‘इक्तेदारी’, प्रीति भोज उत्सव बाधित था
मधु का सेवन था प्रतिबंधित,ऐयारी व्यवस्था (जासूसी) दृढ़ थी
भू राजस्व अधिक था (50% तक),बाजार नियंत्रित,
मूल्य निर्धारित, सैनिक का वेतन निश्चित था।
प्रथमतः ‘शहना-ए-मंडी’, सैनिक हुलिया
और घोडदग्गी प्रथा का श्री गणेश किया उसने
अलाई दरवाजा कुतुबमीनार का हजार स्तंभ का महल
सिरीफोर्ट (कश्मीरी गेट) दिल्ली का अलाउद्दीन निर्माता था
देवगिरी के रामदेव को ‘रायरायन’ कहा
उसकी बेटी से शादी कर, प्रचुर धन स्वर्ण लेकर
होयशल बल्लाल देव को सम्मान दिया उसने।
उस अशिक्षित ‘जनता के चरवाहा’ ने ख्वाब देखा था
एक नव धर्म चलाने का सिकंदर सा विश्व विजेता कहलाने का
और कुतुबमीनार से दूने आकर का मीनार बनाने का !
किन्तु अपशकुन अनलकी तेरह पर सोढषी योग
बन आया उसे कब्र में समाने का !
अलाउद्दीन था अद्भुत वीर किन्तु बंगाल और कश्मीर
जीत नहीं पाया था फिर भी सिक्के पर
‘द्वितीय सिकंदर’ उसने अंकित करवाया था
सन् बारह सौ छियानबे में छीना था
गद्दी उसने भिलसा, चंदेरी और देवगिरी के
सफल अभियानी श्वसुर जलालुद्दीन से
सिंहासनारूढ़ होकर इस मूढ़ ने सन् 1297 ई. में
कहर बरपाया गुजराती शाशक कर्ण सिंह बघेल पर
धन-स्वर्ण ‘काफूर’ के साथ कर्ण देव की पत्नी कमला,
पुत्री कर्णा को लेकर बंदी रानी से व्याह रचाकर,
कर्णा देवी को पुत्रवधू बनाकर वह दिल्ली वापस आया
उसने काफूर को मलिक नायब शीघ्र बनाया।
मंगोल तारघी और कुतलुग ख्वाजा से
सल्तनत का दरवाजा सुरक्षित किया काफूर ने
चौदहवीं सदी के प्रथम वर्ष का प्रथम हर्ष मिला
अलाउद्दीन को जब हम्मीर हारा रणथंभौर
तीसरे वर्ष जीता रतनसिंह से अजेय गढ़ चित्तौर,
नाम बदलकर ‘खिजिराबाद’ पूरा किया मन की मुराद
चित्तौड़ समर्पित करके बेटे खिज्र खान की शान में
इसी सदी के आठवें वर्ष सफल हुआ अल्ला
पूर्व सुल्तान प्रतीक्षित दक्षिणी अभियान में।
यद्यपि खलीफा की सत्ता को अलाउद्दीन ने माना था
‘यस्मिन-उल-खिलाफत-नासिरी-अमीर-उल-मुमिनिन’ की
खिताब से उसने खुद को जाना था
फिर भी वह था महा कठोर,अमीरों का विरोधी घोर
पुलिस, गुप्तचर, डाक सुधार, बड़ा नियंत्रित अर्थ बाजार
व्यापारी नियंत्रक ‘दीवान-रियासत’ शाहना-ए-मंडी, बाजार दारोगा
‘मुहतसिव’ जन आचरण रक्षक,’वरीद-ए-मुमालिक’,
अधिकारी गुप्तचर, सूचना दाता मुनहियन (मुन्ही)जैसे
कुछ पदों के संस्थापक थे अलाउद्दीन
निर्मित आयातित वस्तु बाजार ‘सराय-ए-अदल’ पर लागू था
मूल्य नियंत्रण कानून जब्ता,उसने किया था राशनिंग व्यवस्था
मलिक काफूर सेनापति उसका था अति प्यारा
चित्तौड़ किला, मालवा जय,द्वार समुद्र, मदुरा को पराजय
सबका श्रेय ‘हजार दिनारी’ काफूर को जाता
किन्तु इसके सत्ता का घोषित अधिकारी
कुत्बुद्दीन मुबारक शाह खिल्जी था (1316-1320ई.)
जिसे काफूर की हत्या पर सत्ता का मुबारकबाद मिला
और खिलाफत को झटका और अवसाद मिला
जब मुबारक ने खुद को खलीफा घोषित कर खिताब लिया
‘उस वासिक बिल्लाह’ हाय तौबा हाय तौबा
अल्लाह की लगी इसको आह
सन् तेरह सौ सोलह से बीस तक मुबारक हुआ तबाह
फिर खिल्जी का फूल कभी नहीं खिल पाया
वजीर खुशरो खान के हाथों इसने प्राण गंवाया ।
किन्तु भारतीय मूल के प्रथम सुल्तान
खुशरो खान का पौध नहीं जम पाया।
एक गाजी मलिक ने इस्लाम खतरे में कहकर
खुशरो खान को मार भगाया और उसी
गाजी मलिक ने गयासुद्दीन तुगलक बनकर
दिल्ली सल्तनत को पाया!
इतिहासकार खिलजी शासन को खिलजी क्रांति कहते,
ये इल्वारी तुर्क मामलुक नहीं, अफगानी खिलजी तुर्क थे,
चित्तौड़ युद्ध के प्रत्यक्षदर्शी ‘तूतियाएहिंद’ अमीर खुसरो,
हसन निजामी अलाउद्दीन खिलजी के दरबार में थे,
अलाउद्दीन अति क्रूर थे,सिरीफोर्ट बनाया आठ हजार सिर से
पराई नारी कमला और पद्मावती पर लोलुप हो प्राण लिए
कर्ण सिंह बघेल और चित्तौड़गढ़ के राणा रतन सिंह के
भारत में नारी जौहर प्रथा कुरीति अलाउद्दीन से चली
अंततः कुष्ठ रोग से मरे अपने प्रिय काफूर के कर से!
—विनय कुमार विनायक