मेरे जीवन का सबसे कमजोर क्षण और सबसे बङी गलती: स्वामी सानंद

0
160
स्वामी सानंद
स्वामी सानंद
स्वामी सानंद

प्रस्तुति: अरुण तिवारी
प्रो जी डी अग्रवाल जी से स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद जी का नामकरण हासिल गंगापुत्र की एक पहचान आई आई टी, कानपुर के सेवानिवृत प्रोफेसर, राष्ट्रीय नदी संरक्षण निदेशालय के पूर्व सलाहकार, केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के प्रथम सचिव, चित्रकूट स्थित ग्रामोदय विश्वविद्यालय में अध्यापन और पानी-पर्यावरण इंजीनियरिंग के नामी सलाहकार के रूप में है, तो दूसरी पहचान गंगा के लिए अपने प्राणों को दांव पर लगा देने वाले सन्यासी की है। जानने वाले, गंगापुत्र स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद को ज्ञान, विज्ञान और संकल्प के एक संगम की तरह जानते हैं।
मां गंगा के संबंध में अपनी मांगों को लेकर स्वामी ज्ञानस्वरूप सांनद द्वारा किए कठिन अनशन को करीब सवा दो वर्ष हो चुके हैं और ’नमामि गंगे’ की घोषणा हुए करीब डेढ़ बरस, किंतु मांगों को अभी भी पूर्ति का इंतजार है। इसी इंतजार में हम पानी, प्रकृति, ग्रामीण विकास एवम् लोकतांत्रिक मसलों पर लेखक व पत्रकार श्री अरुण तिवारी जी द्वारा स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद जी से की लंबी बातचीत को सार्वजनिक करने से हिचकते रहे, किंतु अब स्वयं बातचीत का धैर्य जवाब दे गया है। अतः अब यह बातचीत को सार्वजनिक कर रहे हैं। हम, प्रत्येक शुक्रवार को इस श्रृंखला का अगला कथन आपको उपलब्ध कराते रहेंगे यह हमारा निश्चय है।

आठवां कथन आपके समर्थ पठन, पाठन और प्रतिक्रिया के लिए प्रस्तुत है:
स्वामी सानंद गंगा संकल्प संवाद -नौवांकथन

गंगा प्रेमी भिक्षु न बोलते हैं, न सही नाम बताते हैं और जन्म स्थान। पैर में भी कुछ गङबङ है। 70 की आयु होगी। उन्होने भी संकल्प लिया था। वह हरिद्वार भी गये। हरिद्वार में उन्होने भी अन्न छोङने की बात कही। फल-सब्जी भी उन्हे जबरदस्ती ही दिए जाते थे। बनारस में भी वह साथ में अस्पताल साथ गये।
सरकार के दूत थे डाॅ. राजीव शर्मा
कोई तय नहीं था, लेकिन खुद पहल कर सन्यासी के हिसाब से हमने सोच लिया था कि पहले कौन जायेगा। पहले मैं, फिर भिक्षु, फिर कृष्णप्रियम और फिर बाकी। इस बीच क्या हुआ कि डिवीजनल हाॅस्पीटल के डाॅ. राजीव शर्मा आये। उन्होने यह नहीं कहाकि  वह सरकार का दूत बनकर आये हैं। उन्होने परिचय दिया कि वह भी आई आई टी के हैं। वह दिन में मेरे साथ जाते थे। बीच में जापान की ’जायका’(कंपनी).. मतलब वह वरुणा नाले के ट्रीटमेंट का एमओईएफ (पर्यावरण एवम् वन मंत्रालय ) का काम देखने जाते थे। वह वहां जाते थे; शायद मार्च एंड का हिस्सा वसूलने। जब वह श्रीप्रकाश जायसवाल (तत्कालीन मंत्री व सांसद ) के साथ आये, तब मुझे हुआ कि वह सरकार की ओर से बात इनीशियेट करने आये हैं। यह सब स्वरूपानंद जी की पहल पर हो रहा था।
मुझे कष्ट होता था
मैं इतना महत्वपूर्ण नहीं था कि मेरे लिए एयर एम्बुलेंस लाई जाये। किंतु मैं देखता था कि एम्स (भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली) में बहुत कम लोगों को मुझसे मिलने दिया जाता था। अविमुक्तेश्वरानंद जी दिन भर बाहर बैठे रहते थे। मुझे कष्ट होता था। वीआईपी आते, तो हास्पीटल के एम.एस (मेडिकल सुपरिटेडेंट) भी आते। अन्ना आये; नारायण सामी (प्रधानमंत्री कार्यालय से संबद्ध तत्कालीन मंत्री), अरविंद केजरीवाल, किरण आईं। जो आते, वे सिर्फ स्वास्थ्य पर बात करते थे। गंगा जी पर कोई बात नहीं करता था।
लिखित ड्राफ्ट: मौखिक आश्वासन
इस बीच क्या हुआ कि गुरुजी (स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद जी), राजेन्द्र सिंह और आचार्य प्रमोद कृष्णम ने ड्राफ्ट बनाया। मुझे पता था कि 14 मार्च से छत्तीसगढ़ में कार्यक्रम है। गुरुजी वहां जाने को आतुर थे। स्वरूपानंद जी का आदेश भी था कि वह उसमें जरूर जायें। इसीलिए भी मुझे चिंता थी। अतः नारायण सामी, श्रीप्रकाश जायसवाल और गुरु जी के कारण मैंने ड्राफ्ट को माना। गुरु जी ने मुझसे कहा कि नहीं, मेरे दोस्तों ने मुझे तैयार किया था। मेरे दोस्त यानी एस.के.गुप्ता, एम.सी. मेहता और राजेन्द्र सिंह जी।
उस एग्रीमेंट में यह कहा गया था कि जो मौखिक आश्वासन दिए गये हैं, वे पूर्ण किए जायेंगे। उसमें यह भी था कि 17 अप्रैल की एनजीआरबीए (राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण) की बैठक होगी। बैठक में मेरे और गुरुजी के अलावा मेरे मतानुसार पांच संतों को बुलाया जायेगा। यह भी लिखा गया था कि मेरे एजेण्डे पर बात होगी। मेरे एजेण्डे पर निर्णय होने के बाद ही बाकि बातें उठाई जायेंगी।
पांच परियोजना रोकने की अपेक्षा

यह 22-23 मार्च की बात है। मुझे लगा कि 17 अप्रैल में तो अभी समय है। मैं चाहता था कि उपवास तभी खोलूं, जब मीटिंग हो जाये; तब तक पांच परियोजनाओं (मंदाकिनी पर चल रही फाटा-ब्योंग व सिंगोली-भटवारी परियोजना तथा अलकनंदा पर चल रही श्रीनगर- धारीदेवी, विष्णुप्रयाग-पीपलकोटी और विष्णुगंगा पर चल रही तपोवन-विष्णुगाड परियोजना) पर काम बंद रहे। क्यों कहा मैने ? क्योंकि अलकनंदा को लेकर मेरा सन्यास था। सन्यास लेते ही मैने अपने को मंदाकिनी के साथ जोङ लिया था। मंदाकिनी को लेकर सुशीला भण्डारी, जगमोहन सिंह आदि आंदोलन कर रहे थे। सो, सिर्फ अलकनंदा की बात करना ज्यादती लगी। तपोवन-विष्णुगाड की सुरंग जोशीमठ के नीचे से जा रही थी। वह कहते थे कि ज्योतिष्पीठ बैठ जायेगा। पंचप्रयागों में एक प्रयाग – विष्णुप्रयाग बैठ जायेगा। इन्ही पांच पर कन्टीन्युअस कन्सट्रक्शन भी चल रहा था। मैं, स्वरूपानंद जी को भी आदर देना चाहता था।
मौखिक आश्वासन का सच-झूठ
श्रीप्रकाश जायसवाल और नारायण सामी कह रहे थे कि सरकार लिखकर देती है, तो लीगल समस्या होगी। परियोजना वाले मुआवजा भी मांग सकते हैं। अतः सरकार लिखकर नहीं दे सकती। बोले कि जुबानी आदेश पर ही बंद हो जायेगा। वे दो परियोजनाओं को बंद करने को तैयार थे। वे फाटा-ब्योंग और पीपलकोटी को बंद करने को कह रहे थे। कह रहे थे कि यह 15 दिन में हो जायेगा। मैने सोचा कि इससे बात नहीं बनेगी। रात को गुरुजी (स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद जी) आये, तो बताया कि वे कह रहे हैं कि चार को बंद करा देंगे। संभवतः वह श्रीनगर परियोजना को बंद कराने को कह रहे थे। हालांकि यह आश्वासन सीधे मुझे नहीं दिया गया था; फिर भी मैने कहा कि चलो यही हो।
अगले दिन 24 मार्च को उपवास खुला। शाम को गुरुजी ने पूछा – ’’ आपने तो स्वीकार लिया है न ? अब आप मेरे हाथ से जल पी लो।’’ मैने इंकार किया। मैने कहा कि सार्वजनिक होना चाहिए। सुबह उपवास खुलने के बाद वह चले जाये।
बनाया एजेण्डा: तय किए नाम व विषय
मुझे जो पत्र मिला था, उसका जवाब भी मुझे ही देना था। जवाब ही नहीं, मीटिंग बुलाने वालों को धन्यवाद भी देना था। एजेण्डा भी लिखना था। मैं एस. के. गुप्ता के यहां गया; सोचा कि यहीं से मुजफ्फरनगर चला जाउंगा। मैंने पत्र लिखा। मैने 10 आइटम का एजेण्डा दिया। बिल ड्राफ्ट के बारे में भी था कि बिल एटैच हो जायेगा। उस पर चर्चा बाद में हो जायेगी, लेकिन पास कराने के बारे मे चर्चा का कन्सीडिरेशन मीटिंग में ही कर लिया जायेगा। एजेण्डा नोट बाद में भेज दूंगा। मैने यह लिखा था। अपने और अविमुक्तेश्वरानंद जी के अलावा पांच लोगों की सूची भी दी थी:
1. स्वामी निश्चलानंद जी (शंकराचार्य-पुरी)
2. स्वामी हंसदेवाचार्य जी (जगद्गुरु-रामानंदचार्य पीठ)
3. स्वामी शिवानंद जी (मातृसदन-हरिद्वार)
4. स्वामी रामदेव जी (पतंजलि-हरिद्वार)
5. आचार्य प्रमोद कृष्णम (कल्किपीठ-संभल)
मैने यह भी तय किया था कि किस विषय पर कौने बोलेगा। स्वामी निश्चलानंद जी को मैं शीर्ष धर्माचार्य मानता हूं। तय किया कि वह गंगाजी के धार्मिक पक्ष पर बोलेंगे। हंसदेवाचार्य जी, प्रवाह की अविरलता का पक्ष रखेंगे। रामदेव जी, गंगा के स्वास्थ्य पर कहेंगे। शिवानंद जी, खनन और अतिक्रमण का पहलू रखेंगे और प्रमोद कृष्णम जी के लिए मैने प्रदूषण का विषय तय किया था।
दलगत नहीं था चयन
मैने यह कोई साथ कोई स्वार्थवश, रणनीतिवश या पार्टीवश नहीं किया था। यह 2010 से चल रही चर्चा के कारण था। इन सभी पांचों से मैं 2010 से ही अलग-अलग मिलकर इन विषयों पर चर्चा करता रहा था। मैं जानता था कि प्रमोद कृष्णम और शिवानंद जी, कांग्रेससे जुङे हैं और बाकि राइटिस्ट हैं या कहिए कि भाजपा से जुङे हैं। अतः यह कोई दलगत निर्णय नहीं था। गुरु जी से मेरी चर्चा होती ही रहती थी। उनके संज्ञान में पांचों नाम थे। गोविंद (गंगा महासभा) पर सब टाइप कर दिया। कहा कि हार्ड काॅपी भेजने के साथ-साथ ई मेल भी कर दें। मैने नामों सहित पत्र लिखकर 28 मार्च को प्रधानमंत्री जी को भेज दिया। मैने प्रधानमंत्री जी को लिखा था कि एनजीआबीए की मीटिंग हेतु सभी सदस्यों को इंडिवीजुअली इनवाइट करें। प्रधानमंत्री के अलावा गंगा प्राधिकरण के सदस्य सचिव – पर्यावरण एवम् वन मंत्रालय, नारायण सामी और श्रीप्रकाश जायसवाल को भी भेज दी। एस. के. गुप्ता ने हार्ड काॅपी ने भेजी और साॅफ्ट काॅपी मैने। गुरु जी तक का कोई काॅपी नही दी।
हालांकि मुझे पता चल गया था कि काम बंद नहीं हुआ है, तो भी मैं सोच रहा था कि कोई जाये; राजेन्द्र सिंह या कोई इंजीनियर देख आये कि काम बंद हुआ कि नहीं ?
सबसे कमजोर क्षण: सबसे बङी गलती
मैं मुजफ्फरनगर गया था। मैने सोचा कि एक तारीख को हरिद्वार जाऊं। वहां से पुरी शंकराचार्य के पास पुरी होते हुए बनारस चला जाउंगा। आचार्य जितेन्द्र ने कहा कि वह भी पुरी चलेंगे। मैने कहा कि मुजफ्फरनगर बनारस से लौटने का रिजर्वेशन करा लूंगा। मैं मुजफ्फरनगर में ही था कि गुरु जी का फोन आया। उन्होने डांटा – ’’तुमने हमसे पूछे बिना एजेण्डा और नाम कैसे तय कर लिए ? तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई ?’’
मुझे याद पङता है इससे पहले यदि किसी ने डांटा था, तो अमेरिका के प्रोफेसर डाॅक्टर डाल ने आई आई टी के डायरेक्टर के सामने डांटा था। उन्होने डांटा था कि या तो अमेरिका जाना स्वीकार कर लो या फिर आई आई टी छोङ जाओ।
गुरूजी… अविमुक्तेश्वरानंद जी मुझे तब तक डांटते रहे, जब तक कि मैने माफी नहीं मांग ली।
मैं समझता हूं कि वह मेरी जिंदगी का सबसे कमजोर क्षण था और सबसे बङी गलती। मैने कहा – ’’ गुरु जी, आप जो चाहेंगे, वही होगा।’’
संवाद जारी…

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here