रतलाम के साथ तीन स जुडे है जो रतलाम को विशिष्ट पहचान दिलाते है। सोना, सेव , साडी। सेव सभी की पहुॅच में है ऐसा नही है कि सेव सिर्फ रतलाम मे ही बनती है परन्तु यहा की सेव का टेस्ट एक बार जो कर लेता है वह रतलामी सेव का दिवाना हो जाता है । यदि रतलाम का कोई नागरिक किसी दूसरे शहर में जाता है तो दूसरे शहर के व्यक्ति के लिये सेव जरूर लेकर जाता है। यह एक परंपरा की तरह होता जा रहा है। पर दुःख तो यहा होता है जब इस कदर अपनी पहचान बनाने के बाद भी कोई मदद नही मिली रतलामी सेव को अंर्तराष्टीªय स्तर पर विशेष पहचान दिला सके।
रतलाम और आसपास के क्षेत्र की विशेष हवा, पानी व मौसम के कारण रतलाम की सेव पूरे देश में विशिष्ट पहचान रखती है। वभिन्न रूपो में पूरे देश में सेव बनाई जाती है किन्तु रतलाम जैसे इन सब का जनक हो । जो स्वाद रतलाम का है वो शायद ही कही मिलता हो , बेसन, नमक,मिर्ची,अजवाइन, लसन या लोंग के साथ खोलते तेल पर झारा रखकर तैयार सेव का जायकेदार होना शायद यहा का वातावरण मददगार हो । यहा के कारीगर, यहा का बेसन अन्यत्र जगह प्रयोग करके भी वो टेस्ट नही ला पाये। रतलाम के लोगो को रोज भोजन में सेव चाहिए होती है शायद इतनी सेव कोई बाहरी व्यक्ति खाये तो उसका हाजमा बिगड सकता है। रतलाम के लोग झन्नाट सेव खाने के भी शौकिन है इस सेव में लोंग , काली मिर्च और हिंग विशेष रूप से मिलाई जाती है ये सेव देश की सभी सेव से अलग पहचान बनाती है। इन्ही के कारण सेव में तर्राट तथा तीखापन आ जाता है इसी सेव को रतलाम में झन्नाट सेव भी कहते है। सेव की खास बात ओर भी है कि रतलामी सेव में बेसन में तेल भी मिलाया जाता है जिसे मोयन कहा जाता है जिससे सेव को बिना दात वाले भी आसानी से खा सकते है। इन सब के अलावा यहा टमाटर सेव, पालक सेव , लोंग सेव, लहसुन सेव भी बनाई जाती है। शायद इतना पडते आपके मुह में पानी आ रहा हो , पेट में मरोडे पड रहे हो तो फोरन रतलाम आईये और यहा की सेव का जायजा लिजिये ।
देश के बडे बडे शहरो से बडी तादात में सेव के आर्डर फोन पर बुक कर सेव भेजी जाती है और रतलामी सेव के नाम से व्यापारी बडे बडे शहरो में बेच रहे है। रतलाम से लगभग 10 टन सेव प्रतिदिन बाहर जाती है । फिर भी रतलामी सेव को इंतजार है किसी बडे सहयोग की । अगर रतलामी सेव को जीई सर्टिफिकेशन मिल जाता है तो प्रदेश में यह छटवां सर्टिफिकेशन होगा। इससे पहले चंदेरी फैब्रिक, लेदर टाॅयज इंदौर, बाघ प्रिंटिंग आॅफ मप्र, बेल मेटल वेयर आॅफ दतीया और टीकमगढ़ व महेश्वर साडी को यह सर्टिफिकेशन प्राप्त हो चुका है। एक अनुमान के मुताबिक वर्तमान में मालवा क्षेत्र में नमकरी उघोग करीब 600 करोड रूपये का हो गया है जिसमें से 50 करोड रूपये नमकीन उत्पादो का निर्यात किया जाता है।
अब देखना ये है कि सरकार का ध्यान कब इस ओर आयेगा । नई सरकार से नई उम्मीदे तो जगी है पर ये उम्मीद कब हकीकत में बदलती है ।
सुन्दर लेख। मालवा तो स्वाद कअ राजा है
शानदार लेख । रतलाम को जरुरत हे बड़े सहयोग की । मेरी शुभकामनाये।