जो घर देखा आपना मुझसे बुरा न कोई – पंकज झा

4
212

आस्ट्रेलिया में भारतवंशी छात्रों एवं अन्य कामगारों पर हुए हमले रुकने का नाम ही नहीं ले रहा है. समूचे देश में इस रंगभेदी हिंसा के विरोध में हाय-तौबा मची है। भारतीयों की ऐसी प्रतिक्रिया स्वाभाविक और उचित भी है। भारत सरकार ने अपना औपचारिक विरोध दर्ज कर छुट्टी पा ली है लेकिन आस्ट्रेलिया सरकार का संदेश मोटे तौर पर सकारात्मक एवं सद्भाव दिखाने वाला रहा है। हमारी सरकार को यह समझना होगा की दुनिया के तमाम मजबूत देशों की तरह भारत का भी कर्तव्य बनता है कि दुनिया के जिस भी कोने में भारत के लोग या अप्रवासी हों वहां की सुरक्षा हेतु हर वक्त जागरूक रहे। पूरे पश्चिम के रंगभेदी क्रूर इतिहास के बावजूद फिलहाल तो हम आश्वस्त हो सकते हैं कि विकास के लिए लालायित कोई भी सभ्य देश कम से कम आज की तारीख में वंश या मूल आधारित हिंसा को प्रश्रय नहीं देगा।

यूं तो इस मामले में भारत सरकार का कदम आशा के अनुरूप रहा लेकिन हमें स्वयं के स्तर पर किये जाने वाले भेद-भाव पर भी गौर करना होगा। न केवल रंग और मूल के स्तर पर बल्कि वोट और महत्ता के स्तर पर किये जाने वाले भेद-भाव को रोकने की जरूरत है। आपको मोहम्मद हनीफ याद होंगे, उन्हें आस्ट्रेलिया में ही आतंकवाद के शक में जेल भेज दिया गया था। हालंकि बाद में वे बरी हो गये लेकिन आप अपने प्रधानमंत्री की प्रतिक्रिया याद कीजिए, उन्होंने कहा था (या यूं कहें कि कहलवाया गया था) कि हनीफ की हालत के बारे में सोच कर उन्हें रात भर नींद नहीं आयी। वही मनमोहन सिंह जी अभी भी पदारूढ़ हैं, वही आस्ट्रेलिया भी है और उससे भयानक घटना अब तक हो रही है। क्या अभी भी सरकार ने अपनी नींद में खलल की शिकायत की है? महंगाई आतंकवाद एवं घुसपैठ की चिंता के बीच इस एक नयी समस्या ने भी यदि उनकी नींद खराब नहीं की है तो आप इस बात को लेकर आश्वस्त हो सकते हैं कि प्रधानमंत्री जी तेजी से स्वास्थ्य लाभ कर रहे हैं।

हॉं, सवाल केवल सरकार का ही नहीं है, आ. शिल्पा शेट्टी जी पर किये गये नस्लवादी वाक् प्रहार से तो हमारा समूचा देश मर्माहत हो गया था। बेचारी शिल्पा जी की तकलीफ तो झेली ही नहीं जा पा रही थी हमसे, विनायक सेन साहब के जेल चले जाने जैसा ही मानवधिकार हनन का मामला हो गया तो वह तो। काफी मशक्कत के बाद हमने अपनी शिल्पा को वापस पाने में “सफलता” प्राप्त की और जेड गुडी तो इस अपराध का बोझ सर पर लिए गॉड को भी प्यारी हो गई। तो भेदभाव के विरूद्ध सरकार अपनी कितनी नींद हराम करे, यह भी कई चीजों पर निर्भर करता है। यह जरूरी थोड़े है कि जितनी मेहनत हम हनीफ साहब के लिए करें उतनी ही उन गैर मजहबी छात्रों के लिए भी की जाय। या जो प्रयास शिल्पा जी के लिए समीचीन है वह हमले में हताहत किसी टैक्सी ड्राइवर या बालों के रख-रखाव का कोर्स करने गए किसी छात्र के लिए भी करें? अरे भाई साहब, आप विदेशों की बात छोडिय़े जो घर देखा आपना मुझसे बुरा न कोई, वो तो वोटों के ग्लैमर या ग्लैमर को वोट देने की बात थी तो नींद हराम हो गई हमारी अन्यथा हम कहां-कहां तक किन-किन की चिंता करें। अब कल होकर आप कहेंगे कि राज ठाकरे द्वारा गरियाये या लतियाये जा रहे बिहारी छात्रों की चिंता भी सरकार ही करे, असम में मारे जा रहे सैकड़ों हिंदी-भाषी कामगारों को भी सुरक्षा सरकार ही दिलवाये, बांग्लादेशी घुसपैठियों से वही निबटे, छत्तीसगढ़ के आदिवासियों की सुरक्षा का भार पीयूसीएल से छीन कर हम अपने हाथ में ले लें। आखिर क्या-क्या करे सरकार भाई? भाई साहब अगर आपको ज्यादा सुरक्षा चाहिए तो आप चाहें तो अपने अंदर इतना ग्लैमर पैदा कर लें ताकि अपने आप मीडिया आपकी चिंता करने लगेगा आरूषि की तरह, या फिर एक ध्रुवीकृत ताकतवर वोट बैंक बन जाइये ताकि सरकार आपके लिए भी अपनी नींद के समय में से कुछ हिस्सा निकाल सके। अगर इतना नहीं कर पाये तो अपना हाथ जगन्नाथ, अपने संसाधनों पर भरोसा कीजिए। आखिर सरकार ने तो आपको घर से बाहर निकलने के लिए कहा नहीं है। सरकार के पास संसाधन सीमित हैं और पीएम साहब ने अपनी पहली ही पारी में बड़ी ही विनम्रता एवं अपनी स्वाभाविक ईमानदारी के साथ स्पष्ट कर दिया था कि देश के इन सीमित संसाधनों पर पहला हक किसका है। आखिर इसी सीमित संसाधनों में से उन्हें मंत्रियों के परिवार, माफ कीजिए परिवार के मंत्रियों का भी ख्याल रखना है, अफजल की भी मेहमान-नवाजी करनी है, और तो और कसाब के वकील को 90 हजार रुपया महीने की फीस भी भरनी है। फिर आप कितना टैक्स देते हैं कि उसी में से आपकी सुरक्षा की भी चिंता की जाय। इतनी भी अपेक्षा का बोझ मत डालिये सरकार पर, नया नया जनादेश दिया है आपने, प्लीज इतनी भी ज्यादती मत कीजिए।

4 COMMENTS

  1. अच्छा लेख है, क्या कीजियेगा, सरकार को अब सरोकार कहाँ है आम लोगों से? कुर्सी बचाने और अगले चुनाव के लिए इंतजाम से फुर्सत मिले तो कुछ और सोचें? मुद्दा तो है ही नहीं केवल तत्कालित बयानों के झुनझुने से बहलाने की घटिया कोशिश होती रहती है. अब तो जनता भी इस नाटक को समझ चुकी है. समय आने पर जवाब भी देती है. लेख के लिए धन्यवाद
    विभाष कुमार झा रायपुर

  2. आस्ट्रेलिया एक गुलाम देश है जो आज भी गुलामी ही पसन्द करता है . और रही हमारी सरकार की वह तो हनीफ़ के मारे सो नही पाती और जो मर रहे है उन्के मारे अपनी नीद खोना नही चाहती

  3. संतुलित विचार.अच्चा चिंतन दिया है, पर सवाल यही है की ये सब परिणत कब होंगे..?

Leave a Reply to dhiru singh Cancel reply

Please enter your comment!
Please enter your name here