-लक्ष्मी नारायण लहरे-
समाज की परिकल्पना करना मां के बगैर अधूरा है । मां समाज की नींव है। शसक्त समाज की कुंजी है ,जो अपने सहजता ,सरलता ,अपनापन ,प्रेम ,स्नेह ,ममता की मीठी अनुभवों को जन्म देती है। मां मात्र एक शब्द नहीं है ,एक अनुभूति है जो परिभाषाओं से परे है । ऐसा एक रिश्ता जो अहसासों की बुनियाद पर खड़ा है । अहसास जिनकी नींव पर निर्मित होता है हर परिवार के बच्चों का , दुनिया के भावी नागरिकों का भविष्य गढ़ती है । संसार की हर मां बिन कहे एक बच्चे का मन पढ लेती है तभी तो जीवन का आधार बन अपने बच्चे को जानते – समझते हुए मां उसका व्यक्तित्व तराशती है।
मां को शब्दों , वाक्यों में परिभाषित कर पाना संभव नहीं है और न ही मां की ममता को मां तो अनंत अनादी जीवन की शक्ति स्तंभ है। मां ऐसा संबोधन है जो बेहद सुकून का अहसास कराता है ,मां ही है जिसका आंचल तपति धूप में भी शीतलता देता है वह जीवन के अंधेरों में रोशनी की किरन दिखाती है । जीवन के कठिनत्म दौर में भी वह अपने बच्चों का साथ नहीं छोड़ती । मां ही तो है जो मनुष्यता गढ़ती है और अपनी हर भूमिका में खुद को साबित करने की माद्दा रखती है,अलहड़ जीवन की सृजन की पाठशाला ! मां की भूमिकाएं होती है, जो समाज को पहचान दिलाती हैं ।
सभ्य संसार में माना की पुरूष प्रधान समाज की चर्चाएं होती है पर नारी को भी कम आंकना बेईमानी होगी कभी अच्छेवर और अच्छेघर का सपना देखने वाली लडकियों की आॅंखों में आज बड़े- बड़े सपने हैं और उनको हकीकत में बदलने की चाहत और जिदें चाहे छोटे शहरों की साधारण परिवार की लड़कियां हो या मेट्रो शहर में पलने वाली माडर्न लड़कियां उनकी जिदें ने बुलंदियों पर पहुंचा दिया । महिला शिक्षा को बढ़ावा देने की तमाम कोशिशें तो बहुत पहले से ही चल रही है, पर उनकी शिक्षा को सही पहचान और मौका अब जाकर मिला है शिक्षा ,संगीत ,नृत्य ,व्यवसाय ,मॉडलिंग ,खेल ,उच्चाधिकारी और छोटा परदा इन महिलाओं के बडा होने का गवाह है घर की चौखट के अंदर के साथ -साथ इस चौखट के बाहर की दुनिया को भी अपना बनाना है तो उसने कोशिश शुरू की उनकी यह प्रयास कमोबेश हर पेशे में दिखाई पड़ती है और उनकी कामयाबी के पिछे मांएॅ ही तो है जो उन्हे सबल प्रदान करती है और मार्ग प्रसस्त करने में मद्द करती है । किसी ने सही कहा है कि भगवान हर जगह नहीं हो सकता इसलिए उसने मां को बनाया है । मजरूह सुल्तानपुरी ने लिखा है – ये मां तेरी सूरत से अलग भगवान की सूरत क्या होगी —–। मां अपने गर्भ में 9 महीने तक कठिन तपस्या से बच्चे को पालती है जब बच्चा को जनती है त बवह खिलखिलाकर हंस्ती है और अपने सारी अनुभव को उस बच्चे में प्रयोग करती है उस अबोध बच्चे में सारे गुण तरासती है ,और उसे समाज के सामने खडे करती है बच्चे की पहली पाठशाला मां ही होती है जो उस बच्चे को हंसना -रोना , चलना – बोलना सिखाती है उस लायक बना देती है जो उसके जीवन की कठिनत्म परिस्थितियों में भी हार न माने । वैसे तो मां को और मां की ममता , स्नेह, त्याग , सहिष्णुता को परिभाषित कर पाना संभव नहीं है फिर भी मैं अपने अनुभव और जिस परिवेश में रहा गांव की पगडंडियों से घर की चौखट तक जो देखा उस पर अपनी बात रखने की कोशिश है ज्यादातर घरेलू मांएॅ की काम -काज देखा समझा और उनकी कुछ त्याग ,प्रेम ,ममता पर ही अनुभव को कहने की एक कोशिश है जो समाज के लिए एक मिशाल है। मै उस मां की चर्चा आम करना चाहता हूं जो हर रोज अपने पति की कहा सुनी झंझट को सहकर भी अपने परिवार के लिए जीति है और कभी हार नहीं मानी मेरे पड़ोस में हर रोज देखा करता हूॅ मन को उनकी झंझट उद्दोलित करता है पर कुछ नहीं कर पाता ये भी एक विडंबना है ? मेरे पड़ोस में श्रीशांतिन रहती है उसका पति अच्छा पढ़ा लिखा है नौकरी भी थी पर नौकरी छुट गई बहुत उम्दा सोच रखता है पर नशे की लत ने उनके पारिवारिक जीवन को बत्तर बनाकर रख दिया है । प्रकृति में जीवन की अनुपम उपहार दाम्पत्य जीवन होती है और हर दाम्पत्य युगल अपने संतान सुख की इच्छा रखता है पर श्रीशांतिन के जीवन में ऐसा सुख नहीं बन सका मां नहीं बन सकी गरिबी परिस्थितियों से गुजरते हुए भी श्रीशांतिन ने अपने नन्द की दो बेटो को गाोद ले ली और पालन – पोषण कर उस लायक बना दिया की उनके पैर में खड़ा हो सके सब बात ठीक है, पर आज भी 46 की उम्र में श्रीशांतिन विषम परिस्थितियों का सामना कर रही है जो मान सम्मान सुख परिवार मे मिलना चाहिए नहीं मिल सका और पति की झंझट हर रोज तृष्कार अपमानित यातनाये सह रही है जो किसी से नहीं छिपा है, ये भी एक मां की एक रूप है, दुख सहकर भी आज परिवार की खुशी चाहती है अपने कर्तब्य से पिछे नहीं हटी विषम परिस्थितियों के बाद भी चंचलता सहजता से जीवन जी रही है । ऐसे समाज में कई उदाहरण मिलेंगे पर सब की चर्चा कर पाना बहुत मुश्किल काम है । मांएं आज परिवार की अंतिम व्यक्ति के रूप में परिवार में अपना जीवन गुजर-बसर कर रही हैं जो चिंता का विषय है ।
कामकाजी मांएं, घरेलू मांएं समाज में विषम परिस्थितियों से गुजर रही है जिनकी सुध परिवार का एक तबका नहीं ले रहा है और एक लंबी अहसास से मांएॅ परिवार से टूटकर बिखर रही हैं जिन्हे मान सम्मान इज्जत मिलना चाहिए नहीं मिल पा रहा है । समाज को दिशा प्रदान करने वाली मां आज समाज से मगरूर नजर आती है कैसे वह हर काम करके खुश रहती है, कैसे वह हमें खिलाकर अंत में पता नहीं कब बचा खाना खाकर भी इतनी संतुष्ट और स्फूर्ति से भरी नजर आती है कैसे वह हमारी सारी मांगें पूरी कर खुद के लिए कुछ बचाकर नहीं रखती कैसे हमारे लिए रात रात भर जागकर भी सुबह हमसे पहले हमारे लिए तैयार रहती है । मांएॅ को कई बखत रोते देखा है टूटते देखा है, उन्हें भी पीड़ा होती है, जब अपने उन्हें सताते हैं प्रताड़ित करते हैं तब भी मां अपनी ममता से मुह नहीं मोड़ती । मांएं उस वक्त रो पड़ती है जब बेटी को डोली में विदा करती है मां की अच्छी सहेली सुख- दुख में हाथ बटाने वाली हमेशा के लिए दूर हो जाती है। यही नहीं मां उस वक्त भी रो पड़ती है जब बहु मां की दर्जा के लायक भी नहीं समझती और पुत्र को मां से अलग थलग कर देती है फिर भी मांएं विषम परिस्थितियों का सामना करती हैं। ताउम्र मां समाज और परिवार के लिए त्यागभरी जीवन जीति हैं। कष्ट भरे जीवन जीते हुए भी समाज और परिवार से दूर नहीं रहना चाहती। मां की सहजता सरलता सहिष्णुता का कोई तोड़ नहीं है । मातृ दिवस के पावन पर्व पर मांएं को अभिनन्दन भरा प्रणाम। मां की जीवन हर वर्ग स्त्री -पुरूष युवा बूढ़े और बच्चे सभी के लिए प्रासंगिक है मां का मान-सम्मान हर वर्ग की जिम्मेदारी है और विचारणीय पहलू है।