अभिभावकों की जेब पर स्कूलों की डकैती

देश में प्राइवेट स्कूलों की संगठित लूट अभिभावकों की आर्थिक आजादी को सीमित कर रही है| किताब, कॉपी, ड्रेस, ब्रांडेड जूते से लेकर अंडरवियर तक की दुकानें स्कूलों में खुलने लगी है| एमआरपी और खुदरा मूल्य या बाजार के नियमों में हेरफेर करके कैसे मुनाफा कमाया जा सकता है ये अब आईएमएफ वालों को हमारे प्राइवेट स्कूलों से सीखना चाहिए| बच्चे को अंग्रेजी सिखाने के सपने में गरीब अभिभावकों की चमड़ी उधेड़ ली जा रही है| मौसम के मिजाज के अनुसार अभिभावकों को दो गुने दाम पर कम-से-कम एक जोड़ी ड्रेस खरीदनी पड़ रही है| कई स्कूलों में सप्ताह में तीन अलग-अलग रंगों के यूनिफार्म पहनकर आने की गाइडलाइन जारी है| ड्रेस का कलर हर साल बदल दिया जाता है ताकि नया खरीदना पड़े| जूते से लेकर मोज़े तक के डिजाईन और कलर में फेर बदल की जाती है ताकि उसका कोई छोटा भाई या बहन इस्तेमाल न कर पाए| हर स्कूल अपने-अपने ठगने के नियमों में नियमित संशोधन करते रहते हैं| स्कूलों ने अपने हिसाब से किताबें छापकर मनमाने दाम वसूलने का इंतजाम कर रखा है और हर साल बच्चे को विद्वान बनाने की कोशिश में उसकी कवितायों या मुख्य पृष्ठ में बदलाव कर दिया जाता है ताकि वो किसी किसी के पुराने किताब न खरीद ले|

आजादी, आर्थिक स्वतंत्रता जैसे जुमले राजनीति में खूब तरक्की कर रही है पर स्कूलों के मसले पर हवा टाइट हो जा रही है| कई जागरूक अभिभावक स्कूलों के इस संगठित लूट पर इकठ्ठे होकर विरोध-प्रदर्शन भी कर रहे हैं और डीएम से लेकर प्रधानमंत्री तक को भी लिख रहे हैं| भले ही असर कुछ नहीं हो रहा हो पर ये हांथ-पैर जरूर चला रहे हैं| सीबीएसई का गाइडलाइन नेताओं, अफसरों और उपरी पहुँच वाले लोगों पर लागू नहीं होता| हर साल हंगामा मचाता है और हर साल नए-नए ढेर सारे दिशानिर्देश दिल्ली से निकलती है पर स्कूलों तक नहीं पहुँचती| बल्कि इससे उलट प्राइवेट स्कूलों की मनमानी दिन पर दिन बढती जा रही है| राजनीतिक पार्टियाँ इस मसले पर कभी गंभीर नहीं होती क्योंकि प्राइवेट स्कूल काले धन उगाही का एक बड़ा सुरक्षित अड्डा माना जाता है| चंदे की राशि का दोगुना, तिगुना बच्चों के माँ-बाप से वसूले जा रहे हैं|

इस तरह के लूटेरे टाइप स्कूलों में पढनेवाले बच्चे adidas, action के जूते पहनकर उसैन बोल्ट नहीं बन सकते और न ही एक्स्ट्रा एक्टिविटी में समय बर्बाद कर ओलिंपिक में पहुँच सकते हैं| नर्सरी के बच्चों को 5-6 हज़ार की किताबों से पढ़कर न्यूटन तो नहीं बनाया जा सकता या लाखों-लाख एडमिशन फी वाले स्कूलों में पढ़ाकर बच्चे को आइन्स्टीन भी पक्का नहीं बनाया जा सकता| हद तो ये भी है की कई स्कूलों ने शर्ट के बटन में भी स्कूल का लोगो खुदवाया हुया है जिसके टूटने पर 20-30रु० का इंतजाम हो ही जाता है| साइंस किट और स्टेशनरी के सामानों की आज के जरूरतों के हिसाब से बहुत जरुरी है, तो इस तरह से आर्यभट्ट और वराहमिहिर जैसे लोग झूठे होंगे|

अभिभावकों को लाचार बना दिया गया है| विरोध करने पर बच्चे को स्कूल से निकाले जाने की धमकी भी उन्हें ‘मदर ऑफ़ आल बम’ की तरह ‘मदर ऑफ़ आल धमकी’ जैसी शक्ति देता है| अनुशासन के नाम पर लेट फाइन ठगी का नया अविष्कार है| पेरेंट्स-टीचर मीटिंग का एकमात्र उद्देश्य अभिभावकों को बच्चे के भविष्य के नाम पर ब्लैकमेल करके उनकी जेब लूटना है| स्कूलों की इन गुंडागर्दी का परोक्ष कारण स्कूल के मालिक का पूर्व आईएस, आईपीएस या नेता होना है|
स्कूलों के लूटकर पैसे कमाने की सनक बच्चे का भविष्य क्या बनाएगा नहीं पता, पर उसे संगठित तौर पर ठग जरूर बना सकता है|

प्राइवेट स्कूलों की बढती मनमानी शोषण का नया तरीका भी कहा जा सकता है और पढ़े-लिखे नागरिकों को आर्थिक गुलाम बनाने की आधुनिक कला भी| गुलामी का ये चक्र अंग्रेजों से भी भयावह है और निश्चित ही वो एक मानसिक गुलामों की एक ऐसी पीढ़ी तैयार कर रही है न्यूटन, आइन्स्टीन बनने के सपने में बेरोजगार बनकर सरकार के आंकड़ों का गुलाम जरूर बन बैठेगा…
नहीं तो राजनीति का जरूर…

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here