विदेशी पैसों पर पल रहे सेकुलर-वामपंथी बुद्धिजीवियों का एक और प्रपंच :- “कारवाँ टू फ़िलीस्तीन”…

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जैसा कि अब सभी जान चुके हैं, भारत में सेकुलरों और मानवाधिकारवादियों की एक विशिष्ट जमात है, जिन्हें मुस्लिमों का विरोध करने वाला व्यक्ति अथवा देश हमेशा से “साम्प्रदायिक” और “फ़ासीवादी” नज़र आते हैं, जबकि इन्हीं सेकुलरों को सभी आतंकवादी “मानवता के मसीहा” और “मासूमियत के पुतले नज़र आते हैं। कुछ ऐसे ही ढोंगी और नकली सेकुलरों द्वारा इज़राइल की गाज़ा पट्टी नीतियों के खिलाफ़ भारत से फ़िलीस्तीन तक रैली निकालने की योजना है। 17 एशियाई देशों के “जमूरे” दिसम्बर 2010 में फ़िलीस्तीन की गाज़ा पट्टी में एकत्रित होंगे।

इज़राइल के ज़ुल्मों(?) से त्रस्त और अमेरिका के पक्षपात(?) से ग्रस्त “मासूम” फ़िलीस्तीनियों के साथ एकजुटता दिखाने के लिये इस कारवां का आयोजन रखा गया है। गाज़ा पट्टी में इज़राइल ने जो नाकेबन्दी कर रखी है, उसके विरोध में यह लोग 2 दिसम्बर से 26 दिसम्बर तक भारत, पाकिस्तान, ईरान, जोर्डन, सीरिया, लेबनान और तुर्की होते हुए गाज़ा पट्टी पहुँचेंगे औरइज़राइल का विरोध करेंगे। इस दौरान ये सभी लोग प्रेस कांफ़्रेंस करेंगे, विभिन्न राजनैतिक व्यक्तित्वों से मिलेंगे, रोड शो करेंगे और भी तमाम नौटंकियाँ करेंगे…

इस “कारवाँ टू फ़िलीस्तीन”कार्यक्रम को अब तक भारत से 51 संगठनों और कुछ “छँटे हुए” सेकुलरों का समर्थन हासिल हो चुका है जो इनके साथ जायेंगे। इनकी प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि ये लोग सताये हुए फ़िलीस्तीनियों के लिये नैतिक समर्थन के साथ-साथ, आर्थिक, कूटनीतिक और “सैनिक”(?) समर्थन के लिये प्रयास करेंगे। हालांकि फ़िलहाल इन्होंने अपने कारवां के अन्तिम चरण की घोषणा नहीं की है कि ये किस बन्दरगाह से गाज़ा की ओर कूच करेंगे, क्योंकि इन्हें आशंका है कि इज़राइल उन्हें वहीं पर जबरन रोक सकता है। इज़राइल ने फ़िलीस्तीन में जिस प्रकार का “जातीय सफ़ाया अभियान” चला रखा है उसे देखते हुए स्थिति बहुत नाज़ुक है… (“जातीय सफ़ाया”, यह शब्द सेकुलरों को बहुत प्रिय है, लेकिन सिर्फ़ मासूम मुस्लिमों के लिये, यह शब्द कश्मीर, पाकिस्तान, बांग्लादेश आदि में हिन्दुओं के लिये उपयोग करना वर्जित है)। एक अन्य सेकुलर गौतम मोदी कहते हैं कि “इस अभियान के लिये पैसों का प्रबन्ध कोई बड़ी समस्या नहीं है…” (होगी भी कैसे, जब खाड़ी से और मानवाधिकार संगठनों से भारी पैसा मिला हो)। आगे कहते हैं, “इस गाज़ा कारवां में प्रति व्यक्ति 40,000 रुपये खर्च आयेगा” और जो विभिन्न संगठन इस कारवां को “प्रायोजित” कर रहे हैं वे यह खर्च उठायेंगे… (सेकुलरिज़्म की तरह का एक और सफ़ेद झूठ… लगभग एक माह का समय और 5-6 देशों से गुज़रने वाले कारवां में प्रति व्यक्ति खर्च सिर्फ़ 40,000 ???)। कुछ ऐसे ही “अज्ञात विदेशी प्रायोजक” अरुंधती रॉय और गिलानी जैसे देशद्रोहियों की प्रेस कांफ़्रेंस दिल्ली में करवाते हैं, और “अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता”(?) के नाम पर भारत जैसे पिलपिले नेताओं से भरे देश में सरेआम केन्द्र सरकार को चाँटे मारकर चलते बनते हैं। वामपंथ और कट्टर इस्लाम हाथ में हाथ मिलाकर चल रहे हैं यह बात अब तेजी से उजागर होती जा रही है। वह तो भला हो कुछ वीर पुरुषों का, जो कभी संसद हमले के आरोपी जिलानी के मुँह पर थूकते हैं और कभी गिलानी पर जूता फ़ेंकते हैं, वरना अधिसंख्य हिन्दू तो कब के “गाँधीवादी नपुंसकता” के शिकार हो चुके हैं।

कारवाँ-ए-फ़िलीस्तीन के समर्थक, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य मौलाना अब्दुल वहाब खिलजी कहते हैं कि “भारत के लोग फ़िलीस्तीन की आज़ादी के पक्ष में हैं और उनके संघर्ष के साथ हैं…” (इन मौलाना साहब की हिम्मत नहीं है कि कश्मीर जाकर अब्दुल गनी लोन और यासीन मलिक से कह सकें कि पंडितों को ससम्मान वापस बुलाओ और उनका जो माल लूटा है उसे वापस करो, अलगाववादी राग अलापना बन्द करो)। फ़िलीस्तीन जा रहे पाखण्डी कारवां में से एक की भी हिम्मत नहीं है कि पाकिस्तान के कबीलाई इलाके में जाकर वहाँ दर-दर की ठोकरें खा रहे प्रताड़ित हिन्दुओं के पक्ष में बोलें। सिमी के शाहनवाज़ अली रेहान और “सामाजिक कार्यकर्ता”(?) संदीप पाण्डे ने इस कारवां को अपना नैतिक समर्थन दिया है, ये दोनों ही बांग्लादेश और मलेशिया जाकर यह कहने का जिगर नहीं रखते कि “वहाँ हिन्दुओं पर जो अत्याचार हो रहा है उसे बन्द करो…”।

“गाज़ा कारवां” चलाने वाले फ़र्जी लोग इस बात से परेशान हैं कि रक्षा क्षेत्र में भारत की इज़राइल से नज़दीकियाँ क्यों बढ़ रही हैं (क्या ये चाहते हैं कि हम चीन पर निर्भर हों? या फ़िर सऊदी अरब जैसे देशों से मित्रता बढ़ायें जो खुद अपनी रक्षा अमेरिकी सेनाओं से करवाता है?)। 26/11 हमले के बाद ताज समूह ने अपने सुरक्षाकर्मियों को प्रशिक्षण के लिये इज़राइल भेजा, तो सेकुलर्स दुखी हो जाते हैं, भारत ने इज़राइल से आधुनिक विमान खरीद लिये, तो सेकुलर्स कपड़े फ़ाड़ने लगते हैं। मुस्लिम पोलिटिकल काउंसिल के डॉ तसलीम रहमानी ने कहा – “हमें फ़िलीस्तीनियों के प्रति अपना समर्थन व्यक्त करना चाहिये और उनके साथ खड़े होना चाहिये…” (यानी भारत की तमाम समस्याएं खत्म हो चुकी हैं… चलो विदेश में टाँग अड़ाई जाये?)।

गाज़ा कारवां के “झुण्ड” मे कई सेकुलर हस्तियाँ और संगठन शामिल हैं जिनमें से कुछ नाम बड़े दिलचस्प हैं जैसे –

“अमन भारत”

“आशा फ़ाउण्डेशन”

“अयोध्या की आवाज़”(इनका फ़िलीस्तीन में क्या काम?)

“बांग्ला मानवाधिकार मंच” (पश्चिम बंगाल में मानवाधिकार हनन नहीं होता क्या? जो फ़िलीस्तीन जा रहे हो…)

“छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा” (नक्सली समस्या खत्म हो गई क्या?)

“इंडियन फ़ेडरेशन ऑफ़ ट्रेड यूनियन” (मजदूरों के लिये लड़ने वाले फ़िलीस्तीन में काहे टाँग फ़ँसा रहे हैं?)

“जमीयत-उलेमा-ए-हिन्द” (हाँ… ये तो जायेंगे ही)

“तीसरा स्वाधीनता आंदोलन” (फ़िलीस्तीन में जाकर?)

“ऑल इंडिया मजलिस-ए-मुशवारत” (हाँ… ये भी जरुर जायेंगे)

अब कुछ “छँटे हुए” लोगों के नाम भी देख लीजिये जो इस कारवां में शामिल हैं –

आनन्द पटवर्धन, एहतिशाम अंसारी, जावेद नकवी, सन्दीप पाण्डे (इनमें से कोई भी सज्जन गोधरा ट्रेन हादसे के बाद कारवां लेकर गुजरात नहीं गया)

सईदा हमीद, थॉमस मैथ्यू (जब ईसाई प्रोफ़ेसर का हाथ कट्टर मुस्लिमों द्वारा काटा गया, तब ये सज्जन कारवां लेकर केरल नहीं गये)

शबनम हाशमी, शाहिद सिद्दीकी (धर्मान्तरण के विरुद्ध जंगलों में काम कर रहे वयोवृद्ध स्वामी लक्ष्मणानन्द सरस्वती की हत्या होने पर भी ये साहब लोग कारवाँ लेकर उड़ीसा नहीं गये)… कश्मीर तो खैर इनमें से कोई भी जाने वाला नहीं है… लेकिन ये सभी फ़िलीस्तीन जरुर जायेंगे।

तात्पर्य यह है कि अपने “असली मालिकों” को खुश करने के लिये सेकुलरों की यह गैंग, जिसने कभी भी विश्व भर में हिन्दुओं पर हो रहे अत्याचार और जातीय सफ़ाये के खिलाफ़ कभी आवाज़ नहीं उठाई… अब फ़िलीस्तीन के प्रति भाईचारा दिखाने को बेताब हो उठा है।इन्हीं के “भाईबन्द” दिल्ली-लाहौर के बीच “अमन की आशा” जैसा फ़ूहड़ कार्यक्रम चलाते हैं जबकि पाकिस्तान के सत्ता संस्थान और आतंकवादियों के बीच खुल्लमखुल्ला साँठगाँठ चलती है…। कश्मीर समस्या पर बात करने के लिये पहले मंत्रिमण्डल का समूह गिलानी के सामने गिड़गिड़ाकर आया था परन्तु उससे मन नहीं भरा, तो अब तीन विशेषज्ञों(?) को बात करने(?) भेज रहे हैं, लेकिन पिलपिले हो चुके किसी भी नेता में दो टूक पूछने / कहने की हिम्मत नहीं है कि “भारत के साथ नहीं रहना हो तो भाड़ में जाओ… कश्मीर तो हमारा ही रहेगा चाहे जो कर लो…”।

(सिर्फ़ हिन्दुओं को) उपदेश बघारने में सेकुलर लोग हमेशा आगे-आगे रहे हैं, खुद की फ़टी हुई चड्डी सिलने की बजाय, दूसरे की धोने में सेकुलरों को ज्यादा मजा आता है…और इसे वे अपनी शान भी समझते हैं। कारवाँ-ए-फ़िलीस्तीन भी कुछ-कुछ ऐसी ही “फ़ोकटिया कवायद” है, इस कारवाँ के जरिये कुछ लोग अपनी औकात बढ़ा-चढ़ाकर बताने लगेंगे, कुछ लोग सरकार और मुस्लिमों की “गुड-बुक” में आने की कोशिश करेंगे, तो कुछ लोग एकाध अन्तर्राष्ट्रीय पुरस्कार की जुगाड़ में लग जायेंगे… न तो फ़िलीस्तीन में कुछ बदलेगा, न ही कश्मीर में…। ये फ़र्जी कारवाँ वाले, इज़राइल का तो कुछ उखाड़ ही नहीं पायेंगे, जबकि गिलानी-मलिक-शब्बीर-लोन को समझाने कभी जायेंगे नहीं… मतलब “फ़ोकटिया-फ़ुरसती” ही हुए ना?

“अपने” लोगों को लतियाकर, दूसरे के घर पोंछा लगाने जाने वालों की साइट का पता यह है :https://www.asiatogaza.net/

19 COMMENTS

  1. सुरेश जी दुःख तब होता है कि ये ताकतें गलत कर्मों के लिए एकजुट हो जाती हैं. लेकिन राष्ट्रवादी ताकतें ऐसा नहीं कर पाती.
    पहले दोहरी नागरिकता के प्रश्न पर डॉक्टर श्यामाप्रसाद मुकर्जी ने अपनी जान दे दी थी. आज ऐसे व्यक्ति परिदृश्य से ओझल हो चुके हैं. राष्ट्रवादियों को भी जागरूकता फ़ैलाने कि जरुरत है. आज हिन्दू सोद्देश्य आतंकवादी करार दिए जा रहे हैं और सारा देश में क्षोभ होने के बावजूद सरकार को रत्ती भर भी डर नहीं है. इसके लिए सड़कों पर लम्बी लड़ाई के लिए राष्ट्रवादियों को तैयार रहना चाहिए.

  2. suresh ji this is a very good journal by you. i appreciate it. first indian human right wings should look the plight of indian hindus particularly in Kashmir, godhra, kandhmahal and so on. i am totally along with suresh chiplunkar on this issue.
    i read the reaction of mr rajesh kapoor ji, madhusudan ji, r singh ji and others. really it’s in interesting turn. you all must spread this opinion on society. this thinking must reach to bottom level of society. indeed a common person is not aware about such activities.
    mr sriram tiwari must not focus his reply on a word. he must look this thoroughly and what actually writer want to say.

  3. सुरेश जी सदा के सामान अति उत्तम राष्ट्र को जगाने वाला लेख, बधाई. एक लेख कम्युनिस्टों और चर्च की मिलीभगत से चल रहे देश तोड़क कार्यों पर भी लिखे जाने की ज़रूरत है. आप की लेखनी से निकले तो सशक्त लेख होगा.

  4. इनलोगों ने फिलिस्तीनियों के साथ तो एकता दिखाई पर अन्य बातों को जिनका लेखक ने अपने इस संतुलित और सारग्रभित लेख में उल्लेख किया है,छोड़ भी दिया जाये तो क्या इस समूह ने खासकर उनलोगों ने जिनका मुस्लिमों से खून का सम्बन्ध नहीं है कभी यह सोचा की इस्राएल यह सब क्यों कर रहा है ?मैं व्यक्तिगत रूप से इस्रायालिओं को दुनिया में सबसे बड़ा राष्ट्रभक्त मानता हूँ.वे अपने देश के लिए कुछ भी कर सकते हैं.आज के मानवाधिकारों की दुहाई देने वालों ने कभी इस्रायल के इतिहास काअध्ययन किया?क्या उनलोगों को याद है की १९६७ के अरब इस्रायल यद्ध के पहले मिश्र के राष्ट्रपति नासिर ने क्या कहा था?ऐसा कौम अगर अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए कुछ नाजायज भी करता है तो पहले उन कारणों के तह में जाना होगा,जो इसके लिए उसे वाध्य करते हैं.इस्रायल में प्रजातंत्र है.वहा सरकारे बदलती हैं,पर लक्ष्य से कोई सरकार नहीं भटकती.मेरा केवल यही कहना है की इस्रायली एक ऐसे रोल माडल है जिनका अनुकरण करने की जरूरत है.ऐसे भी ये सब तथाकथित मानववादी जिनको मैं भाड़े का टट्टू समझता हूँ इस्रायल का कुछ भी नहीं बिगाड़ सकेंगे.

  5. “अपने” लोगों को लतियाकर, दूसरे के घर पोंछा लगाने जाने वालों की साइट का पता यह है :https://www.asiatogaza.net/
    संस्थाओं के नाम, और दूसरे नाम देखने से कोई भी अनुमान कर सकेगा। सस्ती आंतर राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त लोग है। कुछेक संस्थाएं तो जानी पहचानी हुयी है। एक नाम है “आनंद पटवर्धन”। यह महाराज अमरिका में उनकी फिल्म, We are not your minkeys नामक डॉक्युमेंटरी लेकर आए थे।पुलीस की देखभाल के साथ यह स्टेज पर पहुंचे।फिल्म चित्रणमें बिचारे बंदर को सेवा मुद्रा में राम के पैरों के पास नीच स्तरपर बता कर अपमानित, बताया था।फिल्म कुछ युनिवर्सीटियों में में दिखाई गई थी। इसमें हनुमान जी को बंदर वनवासी-वानर(अर्थ- वन में रहने वाला) बताया गया था। और राम ने इस बंदर से गुलाम (दास) जैसा (हीन) बर्ताव करते हुए, वनवासियों का शोषण किया; सारे घटिया काम करवा लिए, इत्यादि। VHP के कार्यकर्ताओ ने ऐसे ऐसे सवाल पूछे, यह सज्जन मूंह छिपाते हुए पिछेसे निकल गए। फूट डालना, संघर्ष उकसाना, यह इनका तरिका था।समाज में कडवाहट पैदा करने की कोशिश, इनका तरिका था। भारत में राष्ट्र विरोधी कार्यवाही, विघटन प्रेरक योगदान, और परदेश को “तथा-कथित” न्याय दिलाने की कोशिश करने वाले यह लोग दिग्भ्रमित जयचंद हैं।लेकिन एक विशेष आंतर राष्ट्रीय गुट जो भारतकी समस्याओं से अपनी उन्नति नापता है, और वह कट्टर इसलामी गुट जो समान शत्रुता के कारण, इनसे मिला हुआ है, यह दोनो साथ आए हैं। जयचंद और शत्रु साथ मिला हुआ है। सुरेशजी डटे रहिए। और बचके रहिए।

  6. आदरणीय तिवारी जी की यह विशेष अदा है…
    “मूल प्रश्न का कभी जवाब मत दो, बल्कि इधर-उधर की बात करके उलझाने की कोशिश करो…”

    मैंने तो एक सीधा-सरल सा सवाल पूछा था कि “कश्मीर अधिक प्यारा है या फ़िलीस्तीन?, कश्मीरी पण्डित हमारे अपने हैं या फ़िलीस्तीन के मुस्लिम?” इसका कोई जवाब नहीं दिया तिवारी जी ने…

    ऐसे कितने कथित “सॉलिडेरिटी कारवां”(?) गोधरा, कंधमाल और श्रीनगर गये हैं? – कोई जवाब नहीं…

    यासेर अराफ़ात कितने भी अच्छे क्यों न हों, भारत के नेता सिर्फ़ और सिर्फ़ मुस्लिम वोटों को पुचकारने के लिये फ़िलीस्तीन का “उपयोग” करते हैं।

    अमेरिका ने पाकिस्तान को २ अरब डालर की सहायता दी है तो यह कोई नई बात नहीं है… ओबामा की आगामी भारत यात्रा को देखकर “चिल्लाते हुए भिखमंगे” को चुप करने के लिये उसके मुँह में नोटों का बण्डल ठूंसा गया है।

    वैसे श्री तिवारी जी आप निश्चिन्त रहें, जल्दी ही “वामपंथ और इस्लामी कट्टरवाद की गलबहियों” के बारे में भी एक लेख लिखूंगा।

  7. @श्रीराम जी आप तो ३० साल बाद भी नहीं सुधरे सुरेश जी ने जो लिखा उसके पक्ष में एक लिंक भी दी है थोडा समय उसपर भी दे देते तो कितना अच्छा रहता

  8. तिवारी जी के इन शब्दों पर सारे हिन्दुस्तानियों को आपत्ती हो सकती है की इस तरह का एक “घटिया आलेख” मेने भी तीस साल पहले छपवाया था, जिसके कारण मेरे दोस्त आज तक हँसी उड़ाते हैं, अरे भाई आप आज भी वही काम कर रहे हो घटिया लिखने का, सुरेश चिपलूनकर से अपनी तुलना करके हँसी का पात्र ना बने आप इस जनम में इतनी लोकप्रियता नहीं प्राप्त कर पायेंगे, आपकी भविष्य में भी हँसी उडती रहेगी इस बात से निश्चिन्त रहिये.

  9. करीब ३० साल पहले मैंने भी एक ऐसा ही घटिया आलेख एक स्मारिका में छपवाया था ,पुराने मित्र आज तक ‘चड्डा ‘कहकर मेरा मजाक उड़ाते हैं ..हालाँकि में चड्डा नहीं हूँ अतेव उत्सुकता वश जानकारी मांगने पर बताया गया की आप यहूदी राज्य की सीमा को हिन्दू चश्में से देखने के बजाय भारतीय चश्में से देखेंगे तो इस्रायल के शरीर में उसी अमरीका के विषाणु मिलेंगे -जिसकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने कल घोषित किया की पाकिस्तान को ३० अर्ब डालर के हथ्यार खरीदने के लिए आगामी दो वर्षों में किस्तवार रकम दी जायेगी ……यह जाहिर है की ये रकम और हथियार भारत के खिलाफ इस्तेमाल होंगे ….जिसमें न केवल वे जो शांति प्रिय ,धर्म निरपेक्ष और हिन्दू -मुस्लिम -सिख -ईसाई -सभी के शुभचिंतक हैं बल्कि आप जैसे पथ भृष्ट भी उस विभीषिका की आंच से नहीं बच पायेंगे .
    अमेरिका की जनता से हमें मोहब्बत है ,इस्रायल की जनता से मोहब्बत है ,तब फिलिस्तीन ने क्या बिगाड़ा जिसके कद्दावर नेता यासिर अराफात ने श्रीनगर में जाकर कहा था की कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है ….तत्कालीन विदेशमंत्री श्री अटलबिहारी वाजपेई ने यु एन ओ में ,तब अपने एतिहासिक हिंदीभाषण में फिलिस्तीन राष्ट्र के पक्ष में जोरदार पेरवी की थी …
    भारत की यही राष्ट्रीय और विदेश नीति है …हमारा दावा है की श्री सुरेश चिपलूनकर जी भी यदि कभी भारत के विदेश मंत्री बने तो वही कहेंगे जो अभी तक कहते आये हैं …हमारा रास्ता सही है .रही बात किसी तरह की कोई चेन बनाने की तो ये सब कोरी लफ्फाजी है .
    जिन संस्थाओं के नाम गिनाये गए ये सब सरकारी और ओपचारिक मात्र हैं ,इनका कोई ज्यादा वजन कहीं नहीं है .आलेख की एक चीज मुझे अच्छी लगी की जिन का लेना देना कहीं नहीं इस सन्दर्भ में वे भी सुरेशजी की लेखनी से कृकृत्य हो गए …धन्य हैं आप और आपकी सोच ……

  10. चंद टुच्चे सेकुलर शैतान जिनका कोई जनाधार नहीं अपनी पब्लिसिटी की खातिर यह प्रपंच रचते ही रहते हैं… आप कियो व्यर्थ में इन्हें भाव दे रहे हो जी।

  11. विदेशी पैसों पर पल रहे सेकुलर-वामपंथी बुद्धिजीवियों का एक और प्रपंच :- “कारवाँ टू फ़िलीस्तीन”…-by- सुरेश चिपलूनकर

    गाज़ा कारवां मे शामिल होने वाली हस्तियाँ की जान का बीमा कितने का होगा और कौन करवा रहा है ?

    – यह जानकारी श्री सुरेश चिपलूनकर देने से चूक गए.

    यह मानना होगा कि : Life insurance is PRE-REREQUISITE

    -अनिल सहगल –

  12. मुक्तिमोर्चा और naxsal समस्या ? कृपया अपना सामान्यज्ञान दुरुस्त करे ,छ. मु. मो. कभी इस समस्या को ख़त्म करने के काम में नहीं लगा .

  13. सुरेश भाई के लेख पर प्रश्न चिन्ह लगाया ही नहीं जा सकता| उनके केखों की एक एक पंक्ति में, उन पंक्तियों के एक एक शब्द में सत्यता की पहचान होती है| इन भांड सेक्युलरों से अपना देश तो संभल नहीं रहा, अब दूसरों के फटे में टांग अडाने चल दिए| इनकी भी मजबूरी है| आखिर मुस्लिम वोट बैंक नाम की भी तो कोई चीज़ होती है|
    सुरेश भाई आपको इस महत्वपूर्ण लेख के लिए बहुत बहुत धन्त्वाद|

  14. मुझे लेख बहुत ही अच्छा लगा
    लेखक महोदय को साधुबाद

  15. जानकारी के लिए धन्यवाद . इसका अंग्रेज़ी अनुवाद भी जरूरी है . यदि सहयोग अपेक्षित हो तो जरूर लिखें .

  16. सुरेश जी धन्यवाद घटिया लोगों के अपनी दुकानदारी चलाने के एक और खुलासे के लिए !

  17. सुरेश जी, सही कह दिया इन मक्कार सेकुलर लोगो के बारे में.
    आपके अंतिम पैरे में ये जोड़ना चाहूँगा. नाम – शोहरत – इनाम के अलावा ये कुछ पैसा भी बनायेंगें. और कुछ भविष्य के लिए पैसे का फंड का रास्ता भी ढूंढ़ लायेंगे

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