-अशोक बजाज
छत्तीसगढ़ राज्य का गठन सहकारिता के लिए वरदान सिद्ध हुआ है। इन 10 वर्षों में सहकारी आंदोलन के स्वरूप में काफी विस्तार हुआ है। प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियों के माध्यम से फसल ऋण लेने वाले किसानों की संख्या जो वर्ष 2000-01 में 3,95,672 थी,जो वर्ष 2009-10 में बढ़कर 7,85,693 हो गई है। इन 10 वर्षों में 3 प्रतिशत ब्याज दर पर कृषि ऋण उपलब्ध कराने वाला छत्तीसगढ़ पहला राज्य बना। छत्तीसगढ़ में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर धान उपार्जन का जिम्मा सहकारी समितियों को दिया गया है , सभी उपार्जन केन्द्रों को कम्प्यूटरीकृत किया गया है जो कि अपने आप में छत्तीसगढ़ शासन की बहुत बड़ी उपलब्धि है। उपलब्धियों की दास्तान यही खत्म नहीं होती,यह बहुत लंबी है। शासन ने प्रो.बैद्यनाथन कमेटी की सिफारिशों को लागू कर मृतप्राय समितियों को पुनर्जीवित किया है,इस योजना के तहत सहकारी समितियों को 225 करोड़ की सहायता राशि प्रदान की गई है। इस योजना को लागू करने के लिए 25.09.2007 को राज्य शासन,नाबार्ड एवं क्रियान्वयन एजेन्सियों के मध्य एम.ओ.यू हुआ। इससे प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियों को प्राणवायु मिल गया है।
रासायनिक खाद वितरण
प्रदेश में कृषि साख सहकारी समितियों की संख्या 1333 है, जिसमें प्रदेश के 18 जिलों के सभी 20796 गांवों के 22,72,070 सदस्य हैं। इनमें से 14,39,472 ऋणी सदस्य हैं। इन समितियों के माध्यम से चालू वित्तीय वर्ष में खरीफ फसल के लिए 3 प्रतिशत ब्याज दर पर 896.41 करोड़ रूपिये का ऋण वितरित किया गया है। छत्तीसगढ राज्य निर्माण के समय वर्ष 2000-01 में मात्र 190 करोड रूपिये का ऋण वितरित किया गया था जो अब 4 गुणा से अधिक हो गया है। ऋण के रूप में किसानों को इस वर्ष 5,29,309 मिट्रिक टन रासायनिक खाद का वितरण किया गया है।
3 प्रतिशत ब्याज
अल्पकालीन कृषि ऋण पर ब्याजदर पूर्व में 13 से 15 प्रतिशत था। वर्ष 2005-06 से ब्याजदर को घटाकर 9 प्रतिशत किया गया। वर्ष 2007-08 में 6 प्रतिशत ब्याज दर निर्धारित किया गया। 2008-09 से प्रदेश के किसानों को तीन प्रतिशत ब्याज दर पर अल्पकालीन ऋण उपलब्ध कराया जा रहा है। शासन की नीति के तहत सहकारी संस्थाओं द्वारा गौ-पालन,मत्स्यपालन एवं उद्यानिकी हेतु भी 3 प्रतिशत ब्याज दर पर ऋण दिया जा रहा है।
किसान क्रेडिट कार्ड
किसानों की सुविधा के लिए सहकारी समितियों में किसान क्रेडिट कार्ड योजना लागू की गई है। किसान क्रेडिट कार्ड के माध्यम से कृषक सदस्यों को 5 लाख रूपिये तक के ऋण उपलब्ध कराये जा रहे है। कुल 14,39,472 क्रियाशील सदस्यों में से 11,86,413 सदस्यों को अब तक किसान क्रेडिट कार्ड उपलब्ध कराये जा चुके है जो कि कुल क्रियाशील सदस्यों का 80 प्रतिशत है।
महिला स्व सहायता समूह
सहकारी संस्थाओं के माध्यम से महिलाओं को स्वावलंबी बनाने के लिए स्व सहायता समूहों का गठन किया जा रहा है। अब तक 20140 समूहों का गठन किया गया है जिसमें 2,41,722 महिला शामिल है। इन समूहों को सहकारी बैंकों के माध्यम से 10 करोड़ 10 लाख रू. की ऋण राशि उपलब्ध कराई जा चुकी है। इसी प्रकार बैंको के माध्यम से 90 कृषक क्लब गठित किये गये है।
प्रो. बैद्यनाथन कमेटी की सिफारिश
छत्तीसगढ शासन ने प्रो.बैद्यनाथन कमेटी की सिफारिशों को लागू कर राज्य में अल्पकालीन साख संरचना को पुनर्जीवित करने की दिशा में ठोस कदम उठाया है इसके तहत दिनांक 25 सितंबर 2007 को केन्द्र सरकार, राज्य सरकार और नाबार्ड के बीच एम.ओ.यू हुआ। त्रि-स्तरीय समझौते के तहत् प्रदेश के 1071 प्राथमिक कृषि साख समितियों को 193.96 करोड़ रूपिये 5 जिला सहकारी केन्द्रीय बैकों को कुल 21.56 करोड़ रूपिये तथा अपेक्स बैंक को 9.49 करोड़ रूपिये की राहत राशि आबंटित की जा चुकी है।
धान खरीदी
सहकारी समितियों के माध्यम से शासन द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य पर धान खरीदी की व्यवस्था की गई है। इसके लिए शासन द्वारा लगभग 1550 उपार्जन केन्द्र स्थापित किये गये है। वर्ष 2009-10 में समितियों के माध्यम से 44.28 लाख मिट्रिक टन धान की खरीदी गई। जबकि छत्तीसगढ राज्य निर्माण के समय वर्ष 2000-01 में मात्र 4.63 मिट्रिक टन , 2001-02 में 13.34 लाख मिट्रिक टन, 2002-03 मे 14.74 लाख मिट्रिक टन , 2003-04 में 27.05 लाख मिट्रिक टन, 2004-05 में 28.82 लाख मिट्रिक टन, 2005-06 में 35.86 लाख मिट्रिक टन , 2006-07 में 37.07 लाख मिट्रिक टन , 2007-08 में 31.51 लाख मिट्रिक टन, 2008-09 में 37.47 लाख मिट्रिक टन धान की खरीदी की गई थी। गत वर्ष 44.28 लाख मिट्रिक टन धान खरीद कर छत्तीसगढ़ सरकार ने एक नया कीर्तिमान स्थापित किया है।
धान खरीदी केन्द्र आनलाईन
शासन द्वारा स्थापित 1550 धान खरीदी केन्द्रों को आन लाईन किया गया है, जिसकी सराहना देशभर में हुई है। धान उपार्जन केन्द्रों के कम्प्यूटराईजेशन से खरीदी व्यवस्था में काफी व्यवस्थित हो गई है। इससे पारदर्शिता भी आई है। किसानों को तुरंत चेक प्रदान किया जा रहा है। किसानों का ऋण अदायगी के लिए लिकिंग की सुविधा प्रदान की गई है। इससे सहकारी समितियां भी लाभान्वित हो रही है, क्योंकि लिकिंग के माध्यम से ऋण की वसूली आसानी से हो रही है।
भूमिहीन कृषकों को ऋण प्रदाय
सहकारी संस्थाओं के माध्यम से किसानों को टैक्टर हार्वेस्टर के अलावा आवास ऋण भी प्रदाय किया जा रहा है। नाबार्ड के निर्देशानुसार अब ऐसे भूमिहीन कृषकों को भी ऋण प्रदाय किया जा रहा है जो अन्य किसानों की भूमि को अधिया या रेगहा लेकर खेती करते है। छत्तीसगढ़ की यह प्राचीन परंपरा है। जब कोई किसान खेती नहीं कर सकता अथवा नहीं करना चाहता तो वह अपनी कृषि योग्य भूमि को अधिया या रेगहा में कुछ समय सीमा के लिए खेती करने हेतु अनुबंध पर दे देता है। चूंकि अधिया या रेगहा लेकर खेती करने वाले किसानों के नाम पर जमीन नहीं होती इसलिए उन्हें समितियों से ऋण नहीं मिल पाता था, लेकिन ऐसे अधिया या रेगहा लेने वाले किसानों का ”संयुक्त देयता समूह” बना कर सहकारी समितियों से ऋण प्रदान करने की योजना बनाई गई है। इस योजना के तहत अकेले रायपुर जिले में चालू खरीफ फसल के लिए 61 समूह गठित कर 8.24 लाख रूपिये का ऋण आबंटित किया गया है।
फसल बीमा
प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियों से ऋण लेने वाले सदस्यों को व्यक्तिगत तथा फसल का बीमा किया जाता है। किसानों के लिए कृषक समूह बीमा योजना तथा फसल के लिए राष्ट्रीय कृषि फसल बीमा योजना लागू है। वर्ष 2009-10 में 7,60,477 किसानों ने 835.71 करोड़ रूपिये का फसल बीमा कराया था फलस्वरूप किसानों को 87.64 करोड़ की राशि क्षतिपूर्ति के रूप में प्रदान की गई।
इस प्रकार हम देखते है कि छत्तीसगढ़ राज्य गठन के पश्चात सहकारिता के माध्यम से सुविधाओं का विस्तार हुआ है। इससे किसानों मे तो खुशहाली आई ही है साथ ही साथ सहकारी आंदोलन को भी काफी गति मिली है।
बजाजजी के उत्तर से मैं संतुष्ट भी हूँ और असतुष्ठ भी. संतुष्ठी का कारन यह है की उन्होंने मेरे प्रश्न को समझा और उसका यथासंभव समाधान की कोशिश की,पर असंतुश्थी इसलिए की वे प्रधान मुद्दे को वे टाल गए.छत्तीसगढ़ की आतंकवादी समस्या भले ही देश के अन्य भागों से जुडी हो पर उसका सबसे विकराल स्वरुप आज छत्तीसगढ़ में दिख रहा है अतः इस समस्या के समाधान का पहल भी छत्तीसगढ़ की जिम्मेवारी हो जाती है. फिर अगर बजाजजी के अनुसार सहकारिता आन्दोलन का कार्य इमानदारी और निष्ठापूर्वक चलाया जा रहा है तो कोई कारन नहीं की यह आन्दोलन नक्शल आन्दोलन को असफल करने में कामयाब न होसके,पर यह तो भविष्य ही बताएगा की बजाजजी का आकलन कितना सही है.
यह उसी छत्तीसगढ़ की बात है जो १० वर्ष पूर्व देश के सर्वाधिक पिछड़े भू-भाग के रूप में चिन्हित था . इस पिछड़ेपन को एन.डी.ए. सरकार ने महसूस किया और इसके उपचार के रूप में १ नवम्बर २००० को आलग राज्य का स्वरूप दिया .निश्चित रूप से इसके लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री माननीय अटल बिहारी वाजपेयी और गृह मंत्री माननीय लालकृष्ण आडवाणी बधाई के पात्र है .
हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि नवोदित राज्य को विरासत में क्या मिला ? विरासत में मिली गरीबी ,बेकारी ,भुखमरी और पिछड़ापन . आतंकवाद तो वैश्विक समस्या है ही ,तब भला छत्तीसगढ़ इस समस्या से कैसे अछूता रहता . मगर आप आश्चर्य करेंगें कि इस छोटे से नवोदित राज्य ने इन समस्याओं से जूझने के बावजूद भी तेजी से विकास किया है .
@ माननीय आर. सिह जी —- मै आपके इस कथन से शतप्रतिशत सहमत हूँ कि ईमानदारी से सहकारिता को लागू किया जाये और उसका प्रभाव दृष्टिगोचर होने लगे तो कोई भी विध्वंसकारी आन्दोलन उसके आसपास नहीं चल सकता है. परन्तु पूर्ववर्ती राज्य में सहकारी आन्दोलन की जो स्थिति थी तथा जिस प्रकार के लोगों के चंगुल में थी उससे सहकारी आन्दोलन की पवित्रता को आंच आ रही थी . अब छत्तीसगढ़ की सहकारिता इस पाप से मुक्त हो चुकी है,अब वह नई वादियों में स्वांस ले रही है . सहकारी संस्थाओं को स्वायत्तता प्रदान कर दी गई है .
छत्तीसगढ़ का जो भू-भाग आतंक से प्रभावित है उस भू-भाग में जब तक स्थिति सामान्य नहीं होगी तब तक इसका प्रभाव नहीं दिख सकता . इसके लिए केंद्र व् राज्य की सरकारें अभियान चला रही है , ये अपनेआप में एक अलग मुद्दा है .इस मुद्दे को हमें राष्ट्रीय परिपेक्ष्य में देखना चाहिए . एक तरफ हम अपने आपको परमाणु सम्पन्न राष्ट्र के रूप में प्रचारित करतें है तथा अमेरिका,चीन और पाकिस्तान से लोहा लेने की बात करतें है तो दूसरी तरफ हमें देश के कई हिस्से में रात को चलने वाली ट्रेनों को लंबित रखना पड़ रहा है .क्या देश में हालात ठीक चल रहे है ? इस पर बहस हो तो बहुत अच्छा होगा .
लेकिन इस हालात के चलते नई योजनाओं के निर्माण तथा उसके क्रियान्वयन को नहीं रोका जाना चाहिए .छत्तीसगढ़ की सरकार जनकल्याण की योजनाओं को पूरी ईमानदारी से लागू कर रही है .इसका सुपरिणाम दिखने लगा है . आगे और दिखेगा..
@ माननीय डा. राजेश कपूर जी
मै समझता हूँ कि मान. सिह की शंकाओं का समाधान हो गया होगा .धन्यवाद
सिंह महोदय का सवाल बड़ा जायज़ है, इसके उत्तर की प्रतीक्षा है बजाज साहेब!
पढ़ने में तो बहुत अच्छा लगा,पर पता नहीं चला की यह किस छतीसगढ़ की बात हो रही है?क्या अशोकजी बताने का कष्ट करेंगे यह छत्तीसगढ़ नक्शल शासित भू भाग से कितना दूर है?अगर यह सबकुछ छत्तीसगढ़ में हो रहा है तो इसका प्रभाव वहा क्यों नहीं पड़ रहा जहां आये दिन खून की होली खेली जा रही है?मैं नहीं समझता की इमानदारी से सहकारिता को लागू किया जाये और उसका प्रभाव दृष्टिगोचर होने लगे तो कोई भी विध्वंसकारी आन्दोलन उसके आसपास चल सकता है.छत्तीसगढ़ के जमीनी हालात अशोकजी के दावे पर सवालिया निशान लगा दे रहे हैं.