विविधा

मानवता को शर्मसार करते यह धनलोभी

-निर्मल रानी-
railway platform

वैसे तो हमारे देश में प्रचलित प्राचीन कहावत के अनुसार झगड़े और विवाद के जो तीन प्रमुख कारण चिन्हित किए गए हैं- वे हैं ज़र, ज़मीन और जोरू अर्थात् धन, भूमि और औरत। प्रायः इन्हीं के कारण विवाद व झगड़े होते सुने भी जाते हैं। परंतु इनमें भी सर्वप्रमुख कारण ज़र यानी धन संपत्ति एक ऐसा विषय है जो इस समय न केवल हमारे देश में बल्कि पूरे विश्व में आम लोगों के लिए सबसे अधिक आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। धन के लालच में धनलोभी नैतिकता, मानवता, कायदे कानून, शर्मो-हया, इज्जत-आबरू सब कुछ दांव पर लगाने को तैयार दिखाई दे रहे हैं। प्रायः ऐसी खबरें सुनने को मिलती हैं कि धन के पीछे कभी कोई पुत्र पिता की हत्या कर देता है तो कभी कोई भाई अपने ही भाई का कत्ल करने से नहीं चूकता। ऐसे तमाम रिश्ते धन लोभियों के कारण शर्मसार होते नज़र आते हैं। और धन लोभी मानसिकता के यही लोग जब व्यवसाय में प्रवेश करते हैं, फिर तो मानो मानवता भी इनसे पनाह मांगने लगती है।

गर्मी के मौसम में शीतल जल प्रत्येक व्यक्ति की सबसे बड़ी ज़रूरत बन जाती है। दो बूंद पानी से अपना गला तर करने के लिए इंसान न जाने कहां-कहां भटकता फिरता है और कैसे-कैसे प्रयास करता है। इसी ग्रीष्म ऋतु में कुछ धर्मभीरू तथा मानवता शब्द को ज़िंदा रखने वाले अनेक लोग व ऐसे लोगों के कई संगठन इसी भीषण गर्मी व चिलचिलाती धूप में प्यासे लोगों को पानी पिलाने के लिए जगह-जगह सबीलें लगाते हैं। और प्यासे लोग इन सबीलों पर निःशुल्क जीभर कर पानी पीकर अपनी प्यास बुझाकर इन मानवता प्रेमी स्वयं सेवकों को अपने दिल की गहराइयों से दुआएं भी देते हैं। केवल ठंडा पानी ही नहीं बल्कि कई स्थानों पर तो शरबत व लस्सी भी प्यासे राहगीरों को निःशुल्क व निःस्वार्थ रूप से उपलब्ध कराई जाती है। गर्मियों में जगह-जगह पानी के मटके रखे जाते हैं तथा प्याऊ स्थापित किए जाते हैं। कई स्थानों पर तो पूरे वर्ष पानी के प्याऊ संचालित होते हैं। परंतु इसी समाज में कुछ लालची प्रवृति के असामाजिक तत्व ऐसे भी हैं जो किसी प्यासे की प्यास को भी व्यवसायिक नज़रिए से देखते हुए इसमें भी लाभ-हानि की संभावनाएं तलाशने लगते हैं। और हद तो उस समय हो जाती है जबकि प्यासों का गला काटने वाले इस लुटेरे नेटवर्क के साथ सरकारी लोग भी धन की लालच में हिस्सेदार बन जाते हैं।

आमतौर पर ऐसे भ्रष्ट सरकारी कर्मचारियों तथा जल माफिया की मिलीभगत के उदाहरण रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म पर देखे जा सकते हैं। पिछले दिनों अपनी बिहार यात्रा के दौरान 11 जून की शाम गोरखपुर रेलवे स्टेशन से गुज़रने का अवसर मिला। प्लेटफार्म नं. 4 व 5 पर दोनों ओर सवारियों से खचाखच भरी लंबी दूरी की दो रेलगाड़ियां एक साथ खड़ी थीं। हज़ारों की तादाद में दोनों ही गाडिय़ों से उतरी सवारियां भीषण गर्मी में पानी की तलाश में इधर-उधर भटक रही थीं। इस प्लेटफार्म पर हालांकि पानी की कई टोटियां अलग-अलग स्थानों पर थोड़े-थोड़े फासले पर लगी भी हुई थीं। यही नहीं बल्कि वाटर कूलर मशीन भी लगी नज़र आ रही थी। परंतु किसी भी टोटी या वाटर कूलर में एक बूंद भी पानी नहीं टपक रहा था। परिणामस्वरूप यात्री टोटी को छेड़ते और उसमें से पानी न निकलने की स्थिति में मायूस होकर इधर-उधर मंडराने लगते। उधर जिन यात्रियों की जेब में पैसे थे वे कोल्ड ड्रिंक तथा ठंडे पानी की बोतल बेचने वाले स्टॉल पर बुरी तरह टूट पड़े। जब प्लेटफॉर्म पर घूमने वाले एक स्थानीय हॉकर से इस विषय पर पूछा गया तो उसने बताया कि प्रायः ऐसा होता रहता है कि जब ट्रेन के आने का समय होता है उस समय जानबूझ कर वाटर सप्लाई को इसीलिए बंद कर दिया जाता है ताकि यात्रीगण अपनी प्यास बुझाने के लिए ठंडे पानी की बोतलों या कोल्ड ड्रिंक खरीदने के लिए मजबूर हों। उसने यह भी बताया कि पानी की आपूर्ति बंद करने का काम सभी प्लेटफार्म पर ट्रेन आने के समय किया जाता है। और यह सिलसिला दशकों से जारी है।

वैसे यह त्रासदी केवल गोरखपुर रेलवे स्टेशन तक ही सीमित नहीं है। न ही यह वर्तमान ‘अच्छे दिनों’ की सौगात है। बल्कि दशकों से हरामखोर लोगों द्वारा रेल यात्रियों को इस प्रकार से परेशान करने व उनकी जेब से जबरन पैसे निकालने का सिलसिला चलता आ रहा है। गोरखपुर की ही तरह देश के हज़ारों रेलवे स्टेशन ऐसे हैं जहां यात्रियों की प्यास की कीमत पर धनलोभी रेल अधिकारी तथा जल माफिया मिलकर मानवता को शर्मसार करने वाला यह खेल खेलते आ रहे हैं। बड़े आश्चर्य की बात है कि भाई कन्हैया सिंह की विरासत वाले हमारे देश में जहां दुश्मनों को भी ठंडा पानी पिलाने की सीख दी जाती रही हो वहां ज़रूरतमंद, प्यासों, बच्चों, महिलाओं व बुज़ुर्गाें के सामने से बहता हुआ पानी बंद कर उन्हें पानी खरीदकर पीने के लिए बाध्य किया जाता हो। ज़रा सोचिए कि रेल यात्रियों में प्रत्येक यात्री ऐसा नहीं होता जो खरीदकर पानी पीने की हैसियत रखता हो। लाख संपन्नता तथा आंकड़ों की बाज़ीगरी के बावजूद अभी भी हमारा देश एक गरीब देश है। आज भी यहां की बहुसंख्य आबादी हैंडपंप, नल, नदी, तालाब व कुंओं आदि का साधारण व प्रदूषित पानी पीकर अपना जीवन बसर करती है। ऐसे में इन लोगों का पानी की बोतल खरीदकर पीने की कल्पना करना कतई न्यायसंगत नहीं है। ज़ाहिर है, रेल अधिकारी व जल माफिया की मिलीभगत से ऐसे गरीब रेलयात्री प्यासे ही रह जाते हैं। इसी प्रकार रेल अधिकारियों व कुलियों के बीच भी दशकों से एक साठगांठ चली आ रही है। इस साठगांठ के तहत बड़े-बड़े नगरों से बनकर चलने वाली लंबी दूरी की रेलगाडिय़ों में सामान्य श्रेणी के डिब्बों में कुलियों द्वारा जबरन साधारण सीट पर ट्रेन प्लेटफॉर्म पर आने से पहले ही कब्ज़ा जमा लिया जाता है तथा यात्रियों से गैर कानूनी तरीके से पैसे वसूल कर उन्हें सीट दी जाती है। मुंबई व पटना जैसे स्टेशन पर यह नज़ारा कई बार मैं स्वयं देख चुकी हूं। इस नेटवर्क से जुड़े कुलियों के हौसले रेल अधिकारियों की शह के चलते इतने बुलंद होते हैं कि वे यात्रियों से लड़ने-भिड़ने व मारपीट करने तक को तैयार हो जाते हैं। मुठीभर कुली रेल अधिकारियों व रेलवे पुलिस की मिलीभगत से पूरे के पूरे सामान्य श्रेणी के कंपार्टमेंट पर कब्ज़ा जमा लेते हैं। और केवल उसी यात्री को डिब्बे में प्रवेश करने देते हैं जिससे उनके द्वारा तय किए गए पैसे यात्री से वसूल हो जाते हैं। अब यहां भी ज़रा कल्पना कीजिए कि जिस व्यक्ति के पास सामान्य श्रेणी का टिकट लेने के अतिरिक्त फालतू पैसे नहीं हैं वह यात्री क्या सामान्य श्रेणी के डिब्बे में भी यात्रा करने का अधिकारी नहीं? कोई कमज़ोर, बुज़ुर्ग, लाचार व्यक्ति अथवा वृद्ध महिला या अपाहिज यात्री इन हट्टे-कट्टे कुलियों तथा भ्रष्ट रेल अधिकारियों व रेल पुलिस के कर्मचारियों का मुकाबला कैसे कर सकता है ?

मानवता को शर्मसार करने वाली और भी तमाम ऐसी घटनाएं हैं जो भारत जैसे सांस्कृतिक एवं धर्मभीरू राष्ट्र के लिए एक बड़ा कलंक कही जा सकती हैं। मिसाल के तौर पर यहां शमशान घाट में लावारिस मुर्दों को जलाने के लिए सरकार द्वारा निर्धारित मात्रा से काफी कम लकड़ी उपलब्ध कराई जाती है। कई बार सुना जा चुका है कि ट्रेन दुर्घटना में घायल यात्रियों को बचाने के बजाए लुटेरों ने उस घायल व्यक्ति की जेब से पैसे निकालने या उसका ज़ेवर उतारने को अधिक तरजीह दी। गरीब लोगों की सहायता के लिए आने वाली धनराशि, कपड़ा-लत्ता तथा खाद्य सामग्री व दवाई आदि को लूटना व बेच खाना तो यहां के लिए आम बात है। मिड डे मील व आंगनवाड़ी योजना के तहत स्कूल के बच्चों को उपलब्ध कराई जाने वाली खाद्य सामग्री में लूटमार व भ्रष्टाचार की खबरें तो अक्सर आती ही रहती हैं। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि इस प्रकार के भ्रष्ट व लालची लोगों की वजह से हमारा देश व समाज बदनाम व रुसवा हो रहा है। ऐसे धनलोभी लोगों के चलते मानवता भी शर्मसार हो रही है।

यदि देश में ‘अच्छे दिनों’ के दावे को अमली जामा पहनाना है तो ऐसी भ्रष्ट तथा अमानवीय व्यवस्था को जड़ से समाप्त करना होगा अन्यथा कोई आश्चर्य नहीं कि दुखी, परेशान तथा ऐसी दुर्व्यवस्था से त्रस्त आम आदमी अपनी समस्याओं का समाधान स्वयं तलाशने लगे। और निश्चित रूप से यह स्थिति भ्रष्ट व्यवस्था पर कभी भी भारी पड़ सकती है।