वरिष्ठ पत्रकार प्रभाष जोशी का निधन

prabhash-joshiहिन्दी पत्रकारिता के समकालीन श्रेष्ठ पत्रकार प्रभाष जोशी (72 वर्ष) नहीं रहे। बिती रात मध्यरात्रि दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया। उनकी पार्थिव देह को गाजियाबाद की वसुंधरा कॉलोनी स्थित उनके निवास से विमान द्वारा आज उनके गृह नगर इंदौर ले जाया जाएगा जहां उनकी इच्छानुसार, नर्मदा के किनारे अंतिम संस्कार किया जायेगा।

लेखक प्रभाष जोशी क्रिकेट के दिवाने थे और दिल का दौरा पड़ने से ठीक पहले भारत-ऑस्ट्रेलिया के बीच चल रहा वनडे क्रिकेट मैच देख रहे थे। कहते हैं जैसे ही सचिन मैच में आउट हुये उनकी बेचैनी बढने लगी, और जब भारत मैच हार गया तो उनकी बेचैनी ज्यादा बढ गयी। बेचैनी ज्यादा होने पर उन्हें समीप के नरेन्द्र मोहन अस्पताल ले जाया गया जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।

जनसत्ता के संस्थापक संपादक रहे प्रभाष जोशी के शोक संतप्त परिवार में उनकी माता लीलाबाई जोशी के साथ ही पत्नी उषा जोशी, पुत्र संदीप, सोपान, पुत्री सोनल और नाती पोते सहित लाखों प्रशंसक हैं।

इंदौर से निकलने वाले हिन्दी दैनिक नई दुनिया से अपनी पत्रकारिता शुरू करने वाले प्रभाष जी राजेन्द्र माथुर, शरद जोशी के समकक्ष थे। देसज संस्कारों और सामाजिक सरोकारों के प्रति समर्पित प्रभाष जोशी सर्वोदय और गांधीवादी विचारधारा में रचे बसे थे।

जब 1972 में जयप्रकाश नारायण ने मुंगावली की खुली जेल में माधो सिंह जैसे दुर्दान्त दस्युओं का आत्मसमर्पण कराया तब प्रभाष जोशी भी इस अभियान से जुड़े सेनानियों में से एक थे। बाद में दिल्ली आने पर उन्होंने 1974-1975 में एक्सप्रेस समूह के हिन्दी साप्ताहिक प्रजानीति का संपादन किया। आपातकाल में साप्ताहिक के बंद होने के बाद इसी समूह की पत्रिका आसपास उन्होंने निकाली। बाद में वे इंडियन एक्सप्रेस के अहमदाबाद, चंडीगढ़ और दिल्ली में स्थानीय संपादक रहे।

प्रभाष जोशी और जनसत्ता एक दूसरे के पर्याय रहे। वर्ष 1983 में एक्सप्रेस समूह के इस हिन्दी दैनिक की शुरुआत करने वाले प्रभाष जोशी ने हिन्दी पत्रकारिता को नई दशा और दिशा दी। उन्होंने सरोकारों के साथ ही शब्दों को भी आम जन की संवेदनाओं और सूचनाओं का संवाद बनाया।

प्रभाष जी के लेखन में विविधता और भाषा में लालित्य का अदभुद समागम रहा। उनकी कलम सत्ता को सलाम करने की जगह सरोकार बताती रही और जनाकांक्षाओं पर चोट करने वालों को निशाना बनाती रही।

उन्होंने संपादकीय श्रेष्ठता पर प्रबंधकीय वर्चस्व कभी नहीं होने दिया। 1995 में जनसत्ता के प्रधान संपादक पद से निवृत्त होने के बाद वे कुछ वर्ष पूर्व तक प्रधान सलाहकार संपादक के पद पर बने रहे। उनका साप्ताहिक स्तंभ कागद कारे उनकी रचना संसार और शब्द संस्कार की मिसाल है।

इन दिनों वे समाचार पत्रों में चुनावी खबरें धन लेकर छापने के खिलाफ मुहिम में जुटे हुए थे। प्रभाष जोशी का लेखन इतना धारदार रहा कि उनके अनगिनत प्रशंसक और आलोचक तो हैं, पर उनके लेखन की उपेक्षा करने वाले नहीं हैं।

6 COMMENTS

  1. हो सकता है ये बात बेवकूफाना लगे लेकिन इस पर भी हमें सोचना चाहिए कि अगर आज क्रिकेट ना होता तो शायद हमें अपने सचिन को इतनी जल्दी खोना ना पड़ता…आखिर सचिन के विकेट जाने के बाद पत्रकारिता का भी अमूल्य विकेट सदा के लिए गिर गया…क्रिकेट पर चिंतन से कई गुणा ज्यादे विसंगतियों पर चिंतन करने वाले ह्रदय की गति का आज सदा के लिए रुक जाना पत्रकारिता का पेवेलियन में चला जाना है…लगता है अब पत्रकारिता के खेल का विश्व कप जितना अब स्वप्न ही रह जाएगा….श्रद्धांजलि.

  2. प्रभाष जोशी जी के पिताजी का नाम जानने की भी उत्‍कंठा है। जो जानते हों कृपया avinashvachaspati@gmail.com पर मेल भेजकर बतलायें।

    प्रभाष जी यहीं मौजूद हैं विचारों के रूप में। विचार सदा अमर हैं। विनम्र श्रद्धांजलि।

  3. हिन्दी पत्रकारिता को नए तेवर, नयी दृष्टि देने वाले एक युग का अंत हो गया. अब हिंदी पर्त्रकारिता को दूसरा प्रभाष जोशी खोजने में समय लगेगा. अभी दिल्ली में जितने भी है, सब के सब माफिया है, या माफियाओं के दलाल है. प्रभाष जी उन सबके बीच अलग से चमकते थे. समाज और क्रिकेट ये उनके प्रिय विषय थे. हर महत्वपूर्ण मुद्दों पर उन्होंने कलम चलाई. उनके तेवर हिंदी पत्रकारिता को दिशा देने वाले साबित हुए. अब उनकी कमी खलेगी, लेकिन वे हमारे बीचक बने रहेंगे, लम्बे समय तक. जैसे हम राजेन्द्र माथुर जी को अब तक भूल नहीं पाए, उसी तरह प्रभाष जी भी भुलाये नहीं भूलेंगे.

  4. हिन्दी पत्रकारिता का एक महान तेजस्वी नक्षत्र अस्त हो गया। प्रभाषजी हमारे दिलों में सदा ही जीवित रहेंगे। उन्हें मेरी अश्रूपूर्ण श्रद्धांजलि…

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