वायु प्रदूषण को रोकने के लिए गंभीर प्रयास जरूरी

– कम आय वाले परिवारों को इनडोर वायु प्रदूषण से मृत्यु का खतरा अधिक है, इसलिए खाना पकाने के लिए स्वच्छ ईंधन भारत में वायु प्रदूषण से समय से पहले होने वाली मौतों की संख्या को कम करने का सबसे प्रभावी तरीका है।
अमित बैजनाथ गर्ग

वायु प्रदूषण एक ऐसी समस्या है, जिससे होने वाली मौतों और नुकसान का पता लगाने का कोई सटीक वैज्ञानिक आधार फिलहाल मौजूद नहीं है। यह एक ऐसी बीमारी बन चुका है, जो 24 घंटे हमें नुकसान पहुंचा सकती है। सीएसई के एक डाटा के अनुसार, केवल दिल्ली जैसे बड़े शहर ही नहीं, बल्कि अब छोटे शहरों में भी वायु प्रदूषण बहुत तेजी से बढ़ता जा रहा है। हालांकि दिल्ली और एनसीआर अभी भी वायु प्रदूषण के मामले में टॉप पर बने हुए हैं। सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के आंकड़े बताते हैं कि देश में हवा की स्थिति बेहद खराब हो चुकी है। वायु प्रदूषण के कारण बहुत सारे लोगों खासकर सांस के मरीजों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ता है।
     दुनिया में वायु प्रदूषण मृत्यु का एक बड़ा कारक है। इसकी वजह से साल 2019 में दुनियाभर में लगभग 90 लाख लोगों की समय से पहले ही मौत हुई। इसका खुलासा एक वैश्विक रिपोर्ट में हुआ था। साल 2000 के बाद से ट्रकों, कारों और उद्योगों से आने वाली गंदी हवा के कारण मरने वालों की संख्या में 55 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। दुनिया में सबसे ज्यादा आबादी वाले देश चीन और भारत में वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों के मामले सबसे ज्यादा हैं। यहां हर साल लगभग 2.4 मिलियन से 2.2 मिलियन मौतें वायु प्रदूषण से होती हैं। वैश्विक स्तर पर वायु प्रदूषण से 66.7 लाख लोगों की मौत हुई। वहीं लगभग 17 लाख लोगों की जान खतरनाक केमिकल के इस्तेमाल की वजह से गई।
     द लैंसेट की रिपोर्ट के अनुसार, कुल प्रदूषण से होने वाली मौतों के लिए शीर्ष 10 देश पूरी तरह से औद्योगिक देश हैं। साल 2021 में अल्जीरिया ने पेट्रोल में लेड पर प्रतिबंध लगा दिया, लेकिन मुख्य रूप से लेड-एसिड बैटरी और ई-कचरे के रिसाइक्लिंग प्रोसेस के कारण लोग इस जहरीले पदार्थ के संपर्क में रहते हैं। ज्यादातर गरीब देशों में इस प्रकार से होने वाली मौतों की संख्या में तेजी से इजाफा हो रहा है। लेड यानी कि सीसे के संपर्क में आने से लगभग सभी शुरुआती मौतों का कारण हृदय रोग रहता है। इसके संपर्क में आने से धमनियां सख्त हो जाती हैं। यह मस्तिष्क के विकास को भी नुकसान पहुंचाता है।
     भारत की बात करें तो यहां पर वायु प्रदूषण का स्तर विश्व में सर्वाधिक है, जो देश के स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था के लिए भारी खतरा है। भारत की लगभग पूरी आबादी (140 करोड़) अपने चारों ओर हवा में हानिकारक स्तर पर मौजूद पीएम 2.5 कणों के संपर्क में हैं, जो सबसे खतरनाक वायु प्रदूषक है और विभिन्न स्रोतों से निकलकर हवा में फैल रहा है। एक अनुमान के अनुसार, घर के भीतर मौजूद प्रदूषित हवा के कारण साल 2019 में 17 लाख भारतीयों की अकाल मृत्यु हो गई। वायु प्रदूषण के कारण हुई घातक बीमारियों के चलते खोए हुए श्रम की लागत 30 से 78 अरब डॉलर थी, जो भारत की जीडीपी का लगभग 0.3-0.9 प्रतिशत है।
     वायु प्रदूषण के विभिन्न स्रोत में ट्रांसपोर्ट, इंडस्ट्री, खाना बनाने के लिए उपयोग में लिए जाने वाले घरेलू ठोस ईंधन और फसलों के अवशेष का जलाना मुख्य है। खाना बनाने में उपयोग किए जाने वाले ठोस ईंधन को एलपीजी और अन्य स्वच्छ ईंधन से प्रतिस्थापित करने से देश की वायु प्रदूषण की समस्या को काफी हद तक कम किया जा सकता है। ठोस ईंधन का उपयोग करने वाली ज्यादातर जनसंख्या ग्रामीण है और 35 प्रतिशत ग्रामीण जनसंख्या को स्वच्छ ईंधन मिल जाए तो वायु प्रदूषण की समस्या काफी हद तक कम हो सकती है। मशीनीकरण और अन्य विभिन्न कारणों से समय के साथ फसलों के अवशेष (पराली) के जलाने का चलन बढ़ा है। प्रति वर्ष सर्दी के मौसम में यह चलन वायु प्रदूषण के स्तर को गंभीर रूप से बढ़ाता है।
     अमेरिका की शोध संस्था एपिक की ओर से तैयार वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक का विश्लेषण दर्शाता है कि भारत के उत्तरी क्षेत्र यानी गंगा के मैदानी इलाकों में रह रहे लोगों की जीवन प्रत्याशा करीब सात वर्ष कम होने की आशंका है, क्योंकि इन इलाकों के वायुमंडल में प्रदूषित सूक्ष्म तत्वों और धूल कणों से होने वाला वायु प्रदूषण विश्व स्वास्थ्य संगठन के तय दिशा-निर्देशों को हासिल करने में विफल रहा है। इसका कारण यह है कि वर्ष 1998 से 2016 में गंगा के मैदानी इलाकों में वायु प्रदूषण 72 प्रतिशत बढ़ गया, जहां भारत की 40 प्रतिशत से अधिक आबादी रहती है। दरअसल वायु प्रदूषण पूरे भारत में एक बड़ी चुनौती है, लेकिन उत्तरी भारत के गंगा के मैदानी इलाके, जहां बिहार, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, चंडीगढ़, दिल्ली और पश्चिम बंगाल जैसे राज्य और केंद्र शासित प्रदेश आते हैं, में यह स्पष्ट रूप से अलग दिखता है।
     विशेषज्ञों का कहना है कि गरीबों के लिए सस्ते, स्वच्छ खाना पकाने के स्टोव और ईंधन की सुविधा प्रदान करने से वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों को प्रभावी ढंग से कम किया जा सकता है। काम की तलाश में लाखों भारतीय ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों की ओर जा रहे हैं। इस आधार पर वायु प्रदूषण के कुल प्रभाव को मापना बहुत कठिन है। शहरों में जनसंख्या घनत्व लगातार बढ़ रहा है। अधिक से अधिक लोग खराब हवा के संपर्क में आते जा रहे हैं, इसलिए वायु प्रदूषण से होने वाले कुल खतरों में बढ़ोतरी होने की आशंका है। उद्योग-धंधों से होने वाले प्रदूषण को नियंत्रित कर वायु प्रदूषण को कम किया जा सकता है। कम आय वाले परिवारों को इनडोर वायु प्रदूषण से मृत्यु का खतरा अधिक है, इसलिए खाना पकाने के लिए स्वच्छ ईंधन भारत में वायु प्रदूषण से समय से पहले होने वाली मौतों की संख्या को कम करने का सबसे प्रभावी तरीका है। हमें इस दिशा में गंभीरता से विचार करना होगा, तभी हम वायु प्रदूषण के खतरों से प्रभावी ढंग से निपट पाएंगे।

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