ममता की सरिता ये, कल-कल शीतल ही बहने दो

हर साल की भांति इस वर्ष भी 26 अगस्त को हम सभी ‘वुमेन इक्वैलिटी डे’ यानी कि ‘महिला समानता दिवस’ मनाने जा रहे हैं। नारी के बारे में किसी ने क्या खूब कहा है कि -‘नारी ही सारी है, सारी ही नारी है। नारी में ही सारी है और सारी में ही नारी है।’ छब्बीस अगस्त को हम महिला समानता दिवस मना रहे हैं। वास्तव में, यह दिवस लोगों को महिलाओं को समानता(इक्वैलिटी) का दर्जा दिलाने के बारे में जागरूकता को बढ़ावा देने के लिए हर साल मनाया जाता है। दूसरे शब्दों में हम यह बात कह सकते हैं कि महिलाओं को समानता का अधिकार दिलाने और समाज में उनकी स्थिति को मजबूत या सशक्त बनाने के उद्देश्य से हर साल महिला समानता दिवस मनाया जाता है। आज भी नारी को समाज में वह स्थान प्राप्त नहीं है जो कि वास्तव में उसे होना चाहिए। तभी शायद किसी कवि को यह लिखना पड़ा कि –

‘नारी सशक्तिकरण के नारों से गूंज उठी है वसुंधरा, संगोष्ठी, परिचर्चाएं सुन-सुन, अंतर्मन ये पूछ पड़ा।

वेद, पुराण, ग्रंथ सभी, नारी की महिमा दोहराते, कोख में कन्या आ जाए, क्यूं उसकी हत्या करवाते?

 कूड़े, करकट के ढेरों में, कुत्तों के मुंह से नुचवाते, बेटे की आस में प्रतिवर्ष, बेटियां घरों में जनवाते।………

….सरस्वती, लक्ष्मी, शीतला, नारी दुर्गा भी बन जाए, मनमोहिनी, गणगौर सी, काली का रूप भी दिखलाए।शक्ति को ना ललकारो, इसको नारी ही रहने दो, करुणा, ममता की सरिता ये, कल-कल शीतल ही बहने दो।’ वास्तव में, इस दिन(महिला समानता दिवस) को मनाने की शुरुआत तब हुई थी जब एक देश विशेष में महिलाओं को मतदान यानी कि वोट देने का अधिकार तक नहीं था। यह ठीक है आज भारत समेत दुनिया के सभी देशों में लैंगिक समानता लाने की दिशा में अनेक प्रयास किए जा रहे हैं, महिलाओं को पुरूषों के समान अधिकार दिए जा रहे हैं लेकिन हमारे समाज में महिलाओं की स्थिति को लेकर आज भी अनेक प्रकार की असमानताएं देखने, सुनने को मिलती हैं और सच तो यह है कि महिलाओं को कहने को भले ही पुरूषों के समान अधिकारों की हम बात करतें हैं लेकिन वास्तविकता यही है कि पुरूषों की तुलना में महिलाओं के प्रति कहीं न कहीं दोहरी मानसिकता होती है। दूसरे शब्दों में कहें तो हम यह बात कह सकते हैं कि समाज में आज भी महिलाओं को पुरुषों के बराबर अधिकार नहीं मिलते हैं। हालांकि यह बात अलग है कि आज भारत समेत दुनियाभर में महिलाओं को समान अधिकार और स्थान दिलाए जाने के लिए प्रयास किया जा रहा है। यहां पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि अमेरिका में महिलाओं को वोट देने का अधिकार नहीं था। इतना ही नहीं विवाहित महिलाओं ने संपत्ति के अधिकार की मांग भी शुरू कर दी थी। यहां यह उल्लेखनीय है कि 

महिला समानता दिवस(वुमेन इक्वैलिटी डे)

सर्वप्रथम अमेरिका में मनाया गया था और वहां महिला अधिकारों की लड़ाई वर्ष 1853 से शुरू हुई थी। जानकारी देना चाहूंगा कि 50 साल के लंबे समय तक महिला समानता की मांग को लेकर हुए आंदोलन का अंत आखिरकार वर्ष 1920 में हुआ था, जब महिलाओं को अधिकार मिलने शुरू हुए। उसके बाद से इस दिन को महिला समानता दिवस के तौर पर मनाया जाने लगा था। दूसरे शब्दों में हम यह बात कह सकते हैं कि इस दिन को मनाने की शुरुआत वर्ष 1920 के बाद से हुई थी और आज यह दिवस विश्व के हरेक देश में मनाया जाता है। उल्लेखनीय है कि अमेरिका में 26 अगस्‍त 1920 में 19 वें संविधान में संशोधन के बाद पहली बार मत यानी की वोट डालने का अधिकार मिला था। यह भी जानकारी मिलती है कि 26 अगस्‍त 1971 में एडवोकेट बेल्‍ला अब्‍जुग(महिला एडवोकेट) के अथक प्रयासों से महिलाओं को समानता का दर्जा दिलाने की शुरूआत इस दिन से हुई थी। इससे पहले अमेरिकी महिलाओं को द्वितीय श्रेणी नागरिकों का दर्जा प्राप्‍त था। वैसे महिला समानता में न्यूजीलैंड का विवरण भी मिलता है, जिसने 1893 में ‘महिला समानता’ की शुरुआत की थी। पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि इस साल महिला समानता दिवस 2023 की थीम ‘एम्ब्रेस क्वालिटी’ रखी गई है यानी ‘समानता को अपनाओ।’ वास्तव में  यह विषय लैंगिक समानता हासिल करने की जरूरत पर प्रकाश डालता है, जो न केवल आर्थिक विकास(इकोनोमिक डेवलपमेंट) के लिए बल्कि मौलिक मानवाधिकारों के लिए भी आवश्यक है। यदि हम यहां अपने देश भारत की बात करें तो हमारा देश भारत तो ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:’ में विश्वास करता आया है और  भारत में आज़ादी के बाद से (1947 के बाद) ही महिलाओं को वोट देने का अधिकार तो प्राप्त था, लेकिन पंचायतों तथा नगर निकायों में चुनाव लड़ने का क़ानूनी अधिकार 73 वें संविधान संशोधन के माध्यम से स्वर्गीय प्रधानमंत्री राजीव गाँधी जी के प्रयासों से मिला। वास्तव में यह इसी का परिणाम है कि आज भारत की पंचायतों में महिलाओं की 50 प्रतिशत से अधिक भागीदारी है। आज के इस आधुनिक युग में हालांकि महिला सशक्तिकरण पर बल दिया जा रहा है और महिलाएं पुरुषों के समान हरेक क्षेत्र में आगे आ रहीं हैं लेकिन बावजूद इसके भी महिलाओं के साथ कहीं न कहीं भेदभाव,असमानता देखने को मिलती हैं। आज भी हमारा समाज कहीं न कहीं पुरुष मानसिकता से ओतप्रोत ही नजर आता है। आज भी महिलाएं घर समाज में असमानताएं झेलने को विवश हैं। आज भी आए दिन मीडिया की सुर्खियों में हमें यह खबरें पढ़ने को मिलती रहती हैं जैसे महिलाओं के साथ अन्याय, हिंसा, बलात्कार, अत्याचार, छेड़छाड़। सच तो यह है कि महिलाओं के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार आज भी कहीं न कहीं जारी है। हर क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी और प्रतिशत पुरूषों की तुलना में आज भी काफी कम ही है। यहां तक कि साक्षरता दर में महिलाएं पुरूषों से पीछे है। सच तो यह है कि महिलाओं के प्रति हमारी सोच में कहीं न कहीं काफी फर्क नजर आता है। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि महिलाओं के प्रति पुरुष की सोच में बदलाव नहीं आएं हैं। आज महिलाओं को हर क्षेत्र में पुरूषों के बराबर हम काम करते हुए देख सकते हैं। शिक्षा का क्षेत्र हो, बैंकिंग का क्षेत्र हो, सेना हो, अंतरिक्ष का क्षेत्र हो, खेल का क्षेत्र हो, विज्ञान का क्षेत्र हो, प्रौद्योगिकी या तकनीक का क्षेत्र हो, राजनीति हो, समाज सेवा हो या दुनिया का कोई भी क्षेत्र हो महिलाएं नित आगे बढ़ रही हैं। आज महिलाएं पुरुषों के समान फाइटर जेट उड़ा रहीं हैं। वे इंजीनियरिंग, मेडिकल के क्षेत्रों में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रहीं हैं। पाठकों को यह विदित ही है कि हमारे देश में श्रीमती इंदिरा गाँधी प्रधानमंत्री के पद पर और श्रीमती  प्रतिभा देवी सिंह पाटिल राष्ट्रपति के पद पर रह चुकी हैं। शीला दीक्षित, जयललिता,  ममता बनर्जी, मायावती , सोनिया गांधी, सुषमा स्वराज, मीरा कुमार ने भारतीय राजनीति में अच्छा नाम कमाया है। कॉरपोरेट सेक्टर, बैंकिंग सेक्टर जैसे क्षेत्रों में इंदिरा नूई और चंदा कोचर जैसी महिलाओं ने भी अपना लोहा मनवाया है। बीते कुछ वर्षों की बात करें तो ओलंपिक में भारत की ओर से भाग लेने वाली महिला एथलीटों की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी हुई है. ओलंपिक डेटाबेस के अनुसार, वर्ष 2000 में ओलंपिक खेलों में कुल 38% महिलाओं की भागीदारी देखी गई, साथ ही 2004 में यह आंकड़ा बढ़कर 40% और वर्ष 2008 में 42% हो गया. वर्ष 2012 में यह आंकड़ा 44% पर, 2016 में 45% और वर्ष 2020 में 3% की छलांग के साथ यह आंकड़ा 47% हुआ। एम सी मैरीकाम, साइना नेहवाल,पीवी सिंधु, गीता फोगाट, सानिया मिर्जा, कर्णम मल्लेश्वरी खेल क्षेत्र के कुछ नाम हैं। साक्षी मलिक, विनेश फोगाट, दीपिका पल्लीकल, जोशना चिन्नप्पा, डोला बनर्जी, अंजू बॉबी जॉर्ज, कुंजरानी देवी, कोनेरु हंपी, हिना सिद्धू, अंजुम चोपड़ा, मिताली राज, झूलन गोस्वामी, हरमनप्रीत कौर, पीटी ऊषा, कृष्णा पूनिया, ज्योर्तिमय सिकदर, साईखोम मीराबाई चानू, मनु भाकर, मनिका बत्रा, अपूर्वी चंदेला, स्वप्ना बर्मन, हिमा दास, दुति चंद सहित कई अन्य महिलाओं ने खेलों की दुनिया में हमारे देश का नाम रोशन किया है। सच तो यह है कि महिलाएं ही हमारे समाज की असली धुरी होती हैं। कोई भी समाज और देश महिलाओं की क्षमताओं, उनकी शक्तियों, उपलब्धियों को नज़रअंदाज करके एक सशक्त समाज व एक सशक्त व उन्नतिशील, प्रगतिशील देश की कल्पना नहीं कर सकता है। शिक्षा और महिला सशक्तिकरण के बिना परिवार, समाज और देश का विकास नहीं हो सकता है। अंत में यही कहूंगा कि -‘अपमान मत करना नारियों का, इनके बल पर जग चलता हैं, पुरुष जन्म लेकर तो…. इन्हीं की गोद में पलता हैं !’

सुनील कुमार महला

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