जिसकी खातिर हम लिखते हैं
वे कहते कि गम लिखते हैं
आस पास का हाल देखकर
आँखें होतीं नम, लिखते हैं
उदर की ज्वाला शांत हुई तो
आँसू को शबनम लिखते हैं
फूट गए गलती से पटाखे
पर थाने में बम लिखते हैं
प्रायोजित रचना को कितने
हो करके बेदम लिखते हैं
चकाचौंध में रहकर भी कुछ
अपने भीतर तम लिखते हैं
कागज करे सुमन ना काला
काम की बातें हम लिखते हैं।
सुन्दर रचना! शब्दों का उम्दा संयोजन! साधुवाद!
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’
आपकी सकारात्मक टिप्पणी हेतु हार्दिक धन्यवाद निरंकुश जी
हार्दिक धन्यवाद अशोक जी
बहूत खूब.
जिसकी खातिर हम लिखते हैं
वे कहते कि गम लिखते हैं|
हार्दिक धन्यवाद रमेश जी