राहुल को बचाने की बेशर्मी

-प्रवीण दुबे-
rahul

लगातार दस वर्षों तक तथा देश में सर्वाधिक समय तक सत्तासीन रहने वाली कांग्रेस ने शायद अपनी गलत रीतियों-नीतियों से कोई सबक नहीं सीखा है। यदि एग्जिट पोल को सही माने तो कांग्रेस के हाथ से सत्ता का जाना लगभग तय है। ऐसे समय में भी कांग्रेस नेता जो चरित्र प्रस्तुत कर रहे हैं वास्तव में वह आश्चर्य में डाल देने वाला है। सामान्यत: राजनीति हो या रण का कोई भी मैदान पिटा हुआ मोहरा अपनी हार की समीक्षा करता है, हार के कारणों पर चिंतन-मंथन करता है और चुुपचाप इस हार को शिरोधार्य करता है। लेकिन कांग्रेस न तो चिंतन-मंथन के मूड में दिखाई दे रही है और न जनता की अस्वीकार्यता को सहजता से शिरोधार्य करती दिख रही है। वह तो बड़ी निर्लज्जता के साथ अभी भी परिवारवाद, व्यक्तिवाद के वशीभूत होकर उसे संरक्षण देती दिख रही है। कांग्रेस की चापलूस फौज अभी भी गांधी परिवार को इस संभावित हार से कैसे बचाया जाए इस जुगत में जुटी है। इससे भी ज्यादा धिनौना कृत्य तो यह प्रस्तुत किया जा रहा है कि हार का ठीकरा राहुल की बजाए मनमोहन सिंह के सिर फोडऩे की तैयारी है। गजब है कांग्रेस का यह चरित्र कोई इन कांग्रेसियों से यह पूछे कि जब-जब किसी अच्छाई का श्रेय लेने की बात आई तो राहुल गांधी का नाम लिया गया, जरा याद कीजिए जब गैस के सिलेंडर नौ से 12 किए जाने की घोषणा हुई तो कांग्रेसियों ने गला फाड़-फाड़कर कहा कि राहुल गांधी के प्रयासों से ऐसा हुआ। अब जबकि एग्जिट पोल में कांग्रेस औंधे मुंह गिरती दिख रही है तो गांधी परिवार की चापलूसमंडली कह रही है कि कांग्रेस के इस खराब प्रदर्शन में राहुल का दोष नहीं। कैसी बेशर्मी के साथ केन्द्रीय मंत्री कमलनाथ यह कह रहे हैं कि राहुल गांधी कभी सरकार का हिस्सा नहीं थे। अत: संभावित खराब प्रदर्शन राहुल गांधी की नेतृत्व क्षमता की कमी का संकेतक नहीं है। उन्होंने यह भी कहा है कि मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार अपने कार्यक्रमों तथा जो अच्छे कार्य वह कर रही है उन सब के बारे में जनता को ठीक ढंग से नहीं बता पाई।

अब भला कमलनाथ जैसे नेताओं से पूछो कि चुनाव प्रचार को विकास के मुद्दे से भटकाने का काम किसने किया? कौन था वह जो चुनाव प्रचार में बार-बार दंगों, सांप्रदायिकता की बात कर रहा था, कौन था वह जिसने मोदी पर सबसे पहले व्यक्तिगत आरोपों-प्रत्यारोपों की शुरुआत की? सीधा जवाब है कि इसकी शुरुआत सोनिया, राहुल, प्रियंका और कमलनाथ जैसे उनके चापलूस नेताओं की फौज ने प्रारंभ किया आखिर किसने रोका था कांग्रेस नेताओं को चुनाव प्रचार में मनमोहन सरकार के अच्छे कार्यों का उल्लेख करने से? अत: यह कहना सरासर गलत है कि कांग्रेस की संभावित हार के लिए राहुल गाधी दोषी नहीं है। अगर राहुल दोषी नहीं हैं तो फिर कौन दोषी है? आखिर सोनिया, राहुल ने ही तो पूरी की पूरी सरकार खासकर मनमोहन सिंह को रबर स्टैंप के रूप में इस्तेमाल किया। यह सही है कि मनमोहन सिंह सदैव सोनिया गांधी के कहने पर चलते रहे और उन्होंने कभी इस बात की चिंता नहीं की कि उनसे जो कुछ कराया जा रहा है वह राष्ट्रहित में है या नहीं। इसके लिए यह निश्चित रूप से दोषी हैं, लेकिन यह कदापि सच नहीं है कि सरकार की जो संभावित दुर्गति होने जा रही है उससे सोनिया, राहुल और उनकी चापलूस मंडली अछूती है। मनमोहन ने जो कुछ किया वह सोनिया, राहुल के कहने पर ही किया। राहुल भले ही सरकार में नहीं थे लेकिन पूरा देश इस बात का गवाह है कि सरकार में उनकी भूमिका क्या थी? ऐसी स्थिति में कांग्रेस की संभावित दुर्गति और चुनाव मेंं जनता द्वारा सरकार की अस्वीकार्यता का ठीकरा यदि सबसे ज्यादा किसी के सिर फूटना चाहिए तो वह है राहुल और सोनिया। अभी भी समय है कांग्रेस को यदि जीवंत रखना है तो उसके सच्चे हितैषियों को आगे आकर कांग्रेस को परिवारवाद के चंगुल से मुक्त कराने के लिए जोरदार आवाज उठाने की जरूरत है और इसके लिए यही सबसे उपयुक्त समय भी है।

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